चंद्रशेखर आजाद भारतीय क्रांतिकारियों के इतिहास के एक ऐसे चमकदार नक्षत्र
हैं ,जिनके प्रकाश से युगों-युगों तक क्रांतिचेता युवक प्रकाश ग्रहण करते
रहेंगे। 23 जुलाई 1906 को म.प्र. के झाबुआ जिले के भाबरा में एक ब्राह्मण परिवार
में जन्मे चंद्रशेखर अपनी किशोरावस्था से ही भारतीय स्वतंत्रता के महासमर में कूद
गए थे। उनके शौर्य की गाथाएँ आज भी प्रत्येक देशभक्त के अंदर ऊर्जा का संचार करती
हैं। चंद्रशेखर आजाद का नाम लेते ही आँखों के सामने एक छवि उभरती है, नंगे बदन,कमर पर धोती बाँधे हुए, कंधे पर जनेऊ और बाएँ हाथ से दाहिनी ओर की मूँछ उमेठते हुए एक बलिष्ठ
देहयष्टि वाले तेजस्वी नवयुवक की।... जहाँ कहीं उनकी मूर्ति भी स्थापित है, वहाँ भी उनकी इसी छवि को मूर्तिमान किया गया है। वस्तुतः चंद्रशेखर आजाद
की यही एकमात्र उपलब्ध तस्वीर है, जो उनके जीवन काल मे खींची
गई थी; और इस तस्वीर की भी एक कहानी है।
इंटरनेट पर इस तस्वीर के संदर्भ में अनेक विवरण उपलब्ध है;
किंतु वे पूरा सच बयान नहीं
कर रहे। इस तस्वीर के पीछे का सच आजाद जी के अभिन्न साथी रहे प्रसिद्ध क्रांतिकारी
डॉ. भगवान दास माहौर जी से मुझे सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। डॉ. माहौर भी प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे, साण्डर्स के
वध में वे आजाद जी के सहयोगी रहे थे, भुसावल बमकाण्ड में
उन्हें जेल में भी रहना पड़ा था, आजादी के बाद उन्होंने छूटी
हुई पढ़ाई को पुनः प्रारम्भ किया तथा हिन्दी विषय से एम.ए.,पी-एच.डी,
एवं डी. लिट्. तक की उपाधियाँ अर्जित करके बुंदेलखंड
महाविद्यालय झाँसी में हिन्दी के प्रोफेसर हो गए थे। जिस वर्ष मैं एम.ए. का विद्यार्थी था ,वे
सेवानिवृत्ति के पश्चात् अतिथि प्राध्यापक के रूप में पढा
रहे थे। मुझे भी एक वर्ष उनसे पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वे मेरे पिता के अच्छे मित्र भी थे; अतः मेरे घर भी
उनका प्रायः आगमन होता था। हम लोगों के अनुरोध पर वे आजाद जी
से जुड़े संस्मरण अकसर सुनाया करते थे। एक बार इस चित्र का
रहस्य भी उन्होंने ही बतलाया था।
झाँसी
में मास्टर रुद्रनारायण का घर क्रांतिकारियों की शरणस्थली था,
वहाँ क्रांतिकारियों की गुप्त बैठकें भी हुआ करती थीं। काकोरी-काण्ड
के पश्चात् फरारी के दिनों में चंद्रशेखर आजाद लंबे समय तक
झाँसी में मास्टर रुद्रनारायण के घर पर रहे। माहौर जी की
आजाद जी से यहीं भेंट हुई थी, फिर धीरे-धीरे वे आजाद जी के
विश्वस्त साथी बन गए। आजाद जी झाँसी-ओरछा मार्ग पर सातार के जंगलों में एक संन्यासी के रूप में
अज्ञातवास में भी रहे। उस अज्ञातवास हेतु मास्टर रुद्रनारायण ने उन्हें हरिशंकर
नाम दिया था। लगभग डेढ़ वर्ष आजाद जी वहाँ साधु बनकर एक कुटिया बनाकर रहे, उन्होंने वहाँ के गाँव के बच्चों को शिक्षा भी दी, इन
जंगलों में चंद्रशेखर आजाद ,भगवान दास माहौर, सदाशिवराव मलकापुरकर आदि के साथ निशानेबाजी एवं गुरिल्ला युद्ध का अभ्यास भी करते रहे; किंतु किसी को ये ज्ञात नहीं हो सका कि साधु हरिशंकर वही आजाद जी हैं ,जिन्हें पूरी ब्रिटिश पुलिस पागलों की तरह तलाश कर रही है।
इस दौरान मास्टर रुद्रनारायण के घर पर भी उनका आना जाना रहा। रुद्रनारायण
बहुत अच्छे चित्रकार, मूर्तिकार एवम
फोटोग्राफर थे। उन दिनों तक आजाद जी की कोई तस्वीर थी ही नहीं, इसीलिए वे पुलिस की नज़रों से
भी बचे रहते थे, उन्हें कोई पहचानता नहीं था। आजाद जी अपनी
फोटो खिंचवाते भी नहीं थे, मास्टर रुद्रनारायण एवं उनकी पत्नी ने कई बार उनसे फ़ोटो खिंचवाने का आग्रह किया; पर उन्होंने हमेशा इनकार कर दिया। आजाद जी को आशंका थी कि अगर कभी भी
फ़ोटो किसी प्रकार पुलिस के हाथ लगा, तो उन्हें पहचाना जा
सकता है।
एक दिन आजाद जी मास्टर रुद्रनारायण के घर पर थे, सुबह स्नान करके वे स्नानागार से बाहर आए, तो श्वेत
धोती कमर से लपेटी हुई थी, कंधे पर जनेऊ था ही, वे अपने बाल काढ़ते हुए कोई देशभक्ति का तराना गुनगुना रहे थे, मास्टर रुद्रनारायण ने अचानक कैमरा उठाया और बोले-पंडिज्जी, आजआपकी छवि बिल्कुल अलग लग रही है। एक फोटो खींच
लूँ। आजाद जी ने टालते हुए कहा-अरे, नहीं, ऐसे नंगे बदन... रुको मैं कुर्ता तो पहन लूँ... मास्टर
रुद्रनारायण रुकना नही चाहते थे, उन्होंने कहा-ऐसे ही अच्छे
लग रहे हो, कुर्ता रहने दो।'....आजाद
जी बोले- अच्छा नहाने से मूँछें बेतरतीब हो गई हैं, इन्हें
तो ठीक कर लूँ- कहते हुए उन्होंने एक ओर मूँछ ठीक करके दूसरी मूँछ उमेठना शुरू
की... मास्टर रुद्रनारायण सशंकित थे कि कहीं आजाद जी का मन अचानक बदल न जाए, उन्होंने चट से उस क्षण की मुद्रा को ही कैमरे में कैद कर लिया....
बस वही आजाद जी की एकमात्र अकेली तस्वीर
थी, जो उनके जीवन काल मे खींची गई थी। मास्टर रुद्रनारायण जी ने आजाद जी के
इस चित्र को उनके जीवन काल मे किसी को नहीं दिखलाया, उनके
बलिदान के बाद ही इसे सार्वजनिक किया। ...यह तस्वीर इतिहास
की महत्त्वपूर्ण धरोहर बनी। उसके बाद उनकी जितनी तस्वीरें या मूर्तियाँ बनाई गईं ,
सब इसी के आधार पर बनाई गईं। आजाद जी की एक और दुर्लभ तस्वीर भी
प्राप्त होती है ,जिसमें वह मास्टर रुद्रनारायण की पत्नी और
उनकी दो बेटियों के साथ बैठे हैं, यह एक पारिवारिक चित्र है।
वह मास्टर रुद्रनारायण ने कब और किन स्थितियों में खींचा, इसका विवरण नहीं मिलता, किंतु
आजाद जी की पहचान के रूप में वही इकलौता चित्र अमर हो गया,
जिसकी चर्चा माहौर जी ने की।
आजाद जी की जयंती पर उनके उसी चित्र को सामने रखकर उनका भावपूर्ण स्मरण
करते हुए उनके एक पसंदीदा शेर के साथ ही उन्हें नमन करता हूँ-
‘दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे।
आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे।’
उनके साथ
ही उनकी छवि को जन-जन तक पहुँचाने वाले मास्टर रुद्रनारायण को नमन, अपने गुरु डॉ. भगवानदास माहौर को
नमन।
1 comment:
आदरणीय दोबारा आपका लेख पढ़ने का सौभाग्य मिला, और अधिक आनंद आया! आपने चंदशेखर जैसे अनूठे व्यक्तित्व का बहुत सुंदर और रोचक चित्र उकेरा!..आपको ढेरों बधाई!
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