-नन्दा पाण्डेय
कहानी खत्म होते ही अचानक नीचे, लेखक के नाम पर मदन की दृष्टि रुक गई।
ऐसा लगा मानो किसी ने ठंडे पानी के छीटें
डालकर उसकी निंद्रा भंग कर दी हो। मन ही मन इस कहानी की लेखिका पर आलोचना-
प्रत्यालोचना करता चला गया।
.....क्या यह सब सच है?
तो क्या! आज तक मैं भ्रमजाल में फँसा रहा?
यदि इसको सच मान लिया जाए तो इसमें तनिक
भी संदेह नहीं कि, आज तक मैंने जितना भी
जीवन इसके साथ जिया वह सब व्यर्थ था... एक धोखा था।
अपने ही उलझन में उलझा मदन, बेमन से नाश्ता किेए बगैर ही दफ्तर के लिए निकल गया।
वहाँ भी मन ही मन में खुद से सवाल करता
रहा... क्या कहूँगा निशा से... कैसे पूछूँगा,... 25 वर्षों का साथ है हमारा...
नहीं ... नहीं पूछूँगा, ...पर उसका मन कह रहा था कि आज तो उसे सच का पता
लगना ही चाहिए।
अंतर्द्वंद्व में घिरा मदन,अपने आपको सहज रखते हुए रात में खाने की मेज पर पूछ ही बैठा.....एक बात
पूछूँ, निशा? सच बताना....
हाँ पूछो न ! अब क्या परमिशन लेकर
पूछोगे....कहो न क्या पूछना है....
क्या तुम मुझे बता सकती हो निशा, कि मुझसे पहले तुम्हारी जिंदगी में कौन था और किसकी प्रेरणा ने तुम्हें
इतना प्रतिभाशाली लेखिका बना दिया?
मदन, मेरा
लेखन सही मायने में आज सार्थक हुआ।
इसी पल का तो बरसों से इंतजार था
मुझे....यही तो चाहती थी मैं कि बस तुम पढ़ो मेरी लिखी कहानियाँ: पर तुमने हमेशा
नज़रअंदाज किया मेरे लेखन को......
नम आँखों से निशा मदन से लिपट गई ।
लेखक के बारे में- स्वतंत्र लेखन, प्रकाशन- एकल कविता संग्रह ‘बस कह
देना कि आऊंगा’ साहित्यिक पत्रिका- कादम्बिनी, कथादेश, पाखी, आजकल, माटी, विभोम-स्वर, आधुनिक-साहित्य, विश्वगाथा,
ककसाड़, किस्सा-कोताह, प्रणाम
पर्यटन, सृजन सरोकार, उड़ान
(झारखंड विधान सभा की पत्रिका), हिंदी चेतना (कनाडा
हिंदी प्रचारिणी सभा) में लगातार कविताएँ प्रकाशित।
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