1.अहसास
- रचना गौड़ 'भारती'
एक चिड़िया रोज़ उसकी खिड़की पर आकर बैठती। आज
जोरदार बारिश हो रही थी। खिड़की सूनी देख, उसे याद ही किया था कि भीगे पंख लिए कंपकंपाती सी चिडिय़ा खिड़की की सलाखों
के बीच आकर बैठ गई। रह-रहकर अपने पंख फडफ़ड़ाने लगी, मानो पंखों को सुखा रही हो। सुधा भागती हुई अंदर आई और एक डलिया में तौलिया
बिछाकर छज्जे के नीचे खिड़की से लगाकर रख दिया।
चिडिय़ा ने डलिया के चारों ओर घूमकर देखा
आश्वस्त होने के बाद उसमें बैठ गई। तौलिए से उसके पंख सूख गए थे, अब वो उडऩे को तैयार थी। चिडिय़ा उड़ गई, सुधा ने जब डलिया देखी तो तौलिए पर उसे पंजों से बनी आकृति टी के आकार जैसी
प्रतीत हुई। वो मुस्कुरा पड़ी शायद चिड़िया उसे थैंक्यू कह गई।
2.जनसेवा
नई क्रांति में अपशगुनों से भला कौन घबराता है, जब बात दफ्तर व चौकी की
हो। शहर में बिगड़ी पेयजल आपूर्ति के आक्रोश में जनता अभियन्ताओं के कक्ष के बाहर
मटकियाँ फोड़ रही थी। धरना- प्रदर्शन आदि चालू था। एक बारगी मन में आया बुरे समय
में लोग घर के बाहर मटकी फोड़ते हैं, तो क्या जलदाय विभाग का समय ...।
हालात दिन ब दिन बिगड़ रहे थे। एक दिन मेरे घर के दरवाजे की घण्टी बजी देखा
तो दो आदमी जिसमें से एक ने वर्दी पहनी थी वॉचमैन जैसी और दूसरा होगा कोई अदना
कर्मचारी।
-‘मैडम! एक गिलास पानी
मिलेगा।’
-‘हाँ! हाँ जरूर।‘
-‘क्या बताएँ ऑफिस के
अंदर-बाहर दोनों नल बंद हैं।’
-‘अच्छा! आप लोग कौन से
ऑफिस से आए हैं ?’
-‘वो नुक्कड़ पर है न, जलदाय विभाग की चौकी।’
3.आज भी...।
सुनीता हमारे घर के ऑउट हॉउस में अपने छोटे से परिवार के साथ मुश्किलों के
दिन काट रही थी। सर्दियों में अक्सर मेरे पास लॉन में आ बैठती। मैं अपने कागज़ों
में उलझी बीच-बीच में उससे बात कर लेती। वो हसरत भरी निगाहों से मौन बस मुझे देखती
रहती। मुझे कहानी का प्लॉट तैयार करना था, उसे देखकर जैसे मन में हिलोरें लेने लगा। मैंनें उससे पूछा- ‘सुनीता कभी तुमने
स्त्री की आज़ादी के बारे में सोचा है ?’
सुनीता- ‘दीदी! मैं क्या जानूं
ये तो आप लोग ही बता सकती हैं।’
-‘अरे नहीं! तुम भी तो
औरत हो। अच्छा बताओं मर्द और औरत की लड़ाई में हमेशा मर्द ही क्यों अपनी बात ऊपर
रखता है ?’
सुनीता- ‘दीदी! सच बताऊँ, जब भी लल्लन के पापा का कोई काम न हो बस हम पर गुस्सा उतार देते हैं। इसमें
हमारा क्या दोष ?’
-‘ फिर तुम क्या करती हो ?’
सुनीता- ‘मैं जल्दी-जल्दी काम
समेट लल्लन को लेकर कोने में दुबक जाती हूँ और क्या।’
कब्रिस्तान में दो मुर्दे पास-पास दफ़न थे। एक दूसरे की मीमांसा में लीन।
एक ने दूसरे से कहा- ‘दोस्त! काफी समय से देख
रहा हूँ लोग तुम्हारी कब्र पर फूल बरसाते रहते हैं और मेरी तरफ कोई देखता तक नहीं।
जब मैं जीवित था तो सारी दुनियाँ मेरी जयजयकार में लगी माल्र्यापण करती थी।’
दूसरा- ‘मित्र! इसे ही दुनियाँ
कहते हैं। तुम एक नेता थे इसलिए उस समय भीड़ तुम्हारे साथ थी। तुम अब मर गए। सत्ता
भी बदल गई। मैं एक लेखक था सारा जीवन संघर्ष किया। प्रेस के दफ्तरों से निकाला भी
गया। मगर ऐसा साहित्य रच आया जो लोगों की तब समझ से परे था। आज समझ में आया हैं।’
दिनभर की परेशानियों के बाद इक्वेरियम की रंगबिरंगी मछलियों का संसर्ग उसे
शांति प्रदान करता। दोनों वक्त भोजन के कण
डालते समय उनपर उसका स्पर्श व खुश्बू मछलियां जैसे महसूस करतीं। एक बड़ी मछली उसकी
उपस्थिति पा फ डफ़ ड़ाने लगती और भोजन के स्रोत पर पहुँच जाती। रिया को बहुत अच्छा
लगता जैसे वो कह रही हो-
‘आ गईं
तुम ? मैं कब से तुम्हारा
इंतज़ार कर रही थी।’
कुछ दिन के लिए रिया को शहर के बाहर जाना पड़ा लिहाज़ा ये जिम्मेदारी गैर
अनजान हाथों में सौंपनी पड़ी। अनभिज्ञता के चलते कुछ को छोड़ सारी मछलियाँ मर गईं।
रिया- ‘उर्मि! नई मछलियाँ आ
गईं मगर मैं उसे नहीं भूल पा रही उसके पास जाते ही उसका मचलना, फ ड़कना उसके और मेरे
बीच संवाद जैसा था। आज इक्वेरयम के सूने माथे पर दोबारा बिंदिया तो सजा दी मगर जो
रिश्ता कायम हुआ था उसकी टीस नहीं निकल रही।’
उर्मि- ‘जीवन में अपनों की
जुदाई तक सहनी पड़ती है फिर वो तो एक मछली थी।’
रिया- ‘यादें जब सालतीं हैं, तभी रिश्तों की गहराई
पता चलती है।’
6.भाव विक्रय
एक बुढ़िया घण्टियाँ बेचा करती थी। सभी तरह की छोटी
बड़ी घण्टियाँ। लोग भक्ति भाववश उससे घण्टी खरीदते भी थे। ये ही उसकी आजीविका भी
थी और सूकून भी।
क्रेता- ‘माँ जी! आप सिर्फ घण्टियाँ ही क्यों बेचती हो ? इससे कितनी आमदनी हो जाती होगी ?’
बुढिय़ा- ‘आमदनी क्या बेटा, टेम निकाल रही हूँ
अपना। बस दाल रोटी दे देता है मालिक।’
क्रेता- ‘और घण्टियाँ ही क्यों ?’
बुढिय़ा-‘कहते हैं जो इस लोक में
जो करो, वो मालिक वहाँ देता है।
देखो इसलिए सब दान करते हैं। मैं भी जब ऊपर जाऊँगीं तो कदम-कदम पर घण्टी बजाकर
भगवान के दरबार में अपनी उपस्थिति
दर्ज़ करूँगी’
अब क्रेता ने भी एक घण्टी खरीद ली।
सम्पर्क: 304,रिद्धि सिद्धि नगर
प्रथम, बूंदी रोड, कोटा राजस्थान, मो.- 9414746668, 8058260600
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