भोर
- उर्मिला शर्मा
सरस भोर की किरण ने,
फैलाया कैसा उल्लास!
चुपके से अरुणिमा सिमटती,
विकसित हो रहे जलजात!!
चपल को किला मौन रहे क्यों?
दिशि-दिशि में फैला आह्लाद!
स्वर- रस में डूबा कण-कण यों,
चहुँ ओर लालित्य प्रवाह!!
मृदु ओ मंद समीरण तुझसे,
पुलकित पल्लव और पराग !
नींद भरे दृग-पट खुलते ज्यों,
कलियों में नव-रस संचार!!
तृण-तृण पर यों विहँस रहा है,
तुहिन कणों का भव्य-विलास!
जल कण के लघु रुप में जैसे,
प्रतिबिम्बित हो रहा विराट!!
हे प्रकृति तुम पूज्य हमारी,
नमन तुम्हे है बारम्बार!!
कही मनुज से छीन ना लेना,
अनुराग मेरा वात्सल्य प्रवाह
सम्पर्क: 2/332, विद्याधर नगर, जयपुर-302039,
मो. 30296089
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