पावस अलबेली
डॉ. सुधा गुप्ता
1
खड़ी है सजी
पावस अलबेली
भू की सहेली।
2
नभ उमड़ी
भरपूर फ़सल
नीले मेघों की।
3
चुरा ले गई
कोई नीली ओढऩी
नभ की बिन्दी।
4
रात उदास -
मेघ-मेले की भीड़
खोई बिन्दिया।
5
आए सावन
तने हैं शामियाने
नीले कासनी।
6
मोती की झार
धरा-वधू ने पाई
‘मुँह दिखाई’।
7
उमड़ रहा
नव-वधू धरा का
रूप का ज्वार ।
8
हरी चुँदड़ी
चाँदी -सोने के तार
बूँटे-कढ़ी है ।
9
नभ से झरे
मेघ-प्रेमोपहार-
आग के फूल।
10
मेघों की पीर -
दिखाए दिल चीर
आग -लकीर ।
11
पहली वर्षा -
रूखी-सूखी थी धरा
खूब नहाई।
12
अल्हड़ निशा
बारिश की धुन पे
नाचती रही।
13
बरसे पिया
तन-मन से तृप्त
बुझी भू -तृषा।
14
लाए सावन
कुठला भर धान
होठों की हँसी।
15
मेघ जो झरे
सोखे धरा-कोख ने
खिले गुलाब।
16
लौटा के लाया
सावन का ‘पाहुना’
खोई मुस्कान।
17
आए हैं इन्द्र
प्रिया ‘वृष्टि’ के साथ
करो सत्कार!
18
घिरे पड़े हैं
अमराई के झूले
मेघ-मल्हार।
19
‘अब जो आए
जाना नहीं बिदेस’-
कहे धरती।
20
मैं तो उर्वरा
छोड़ऩा न ‘परती’
मैं फलवती।
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