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Jun 14, 2016

प्रकृति


        प्रकृति में ही बसे हैं परमात्मा
                                                          - ज्योत्स्ना प्रदीप
 हमारे चारों ओर जो विराट प्राकृतिक परिवेश व्याप्त है उसे ही हम पर्यावरण कहते हैं। सूरज के आगमन पर  सुनहरे परिधान में लिपटी भोर रूपसी, अनदेखी हवा की सजीव रखने की प्रत्यक्ष उदारता, वृक्षों का हरा- भरा यौवन, पर्वतों की कुंदन सी दमकती देह, कभी शुद्ध तो कभी कोमल व मीठे रागों को गाते पक्षी , नदियों तथा सागर की अल्हड़ लहरों की नटखट  ठखेलियाँ...
ये सभी तो प्राकृतिक परिवेश के सुन्दर आभरण  हैं, जो हमारे जीवन को जगमगाते हैं। हमारे प्राणों के तार की  चमक तथा खनक इन सभी का स्पर्श या दर्शन हैं। कुदरत ने प्रकृति और मानव का एक अटूट सम्बन्ध बनाया हैं जो जन्म -जन्मांतर का है।
भारतीय दर्शन यह मानता है कि इस देह की रचना पर्यावरण के महत्त्वपूर्ण घटकों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से ही हुई है। ऐसा माना जाता है कि केवल पृथ्वी ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक मात्र ऐसा गृह है जहाँ जीवन है। 
 स्वच्छ पर्यावरण पृथ्वी पर स्वस्थ जीवन का अस्तित्व बनाये रखने में एक बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पर्यावरण का प्रकृति से आत्मिक सम्बन्ध है। इसके बिना जीवन की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। इसलिए हमें भविष्य में जीवन की संभावना सुनिश्चित करने के    लिए अपनें पर्यावरण को स्वस्थ्य और सुन्दर रखना चाहिए। यह पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है। एक स्वच्छ वातावरण शांतिपूर्ण और स्वस्थ जीवन जीने के लिए बहुत आवश्यक है।
भारतीय संस्कृति में पर्यावरण को विशेष महत्त्व दिया गया है। वैदिककाल में हमारे जीवन का विभाजन भी प्रकृति पर ही आधारित था। हमारे- ऋषि मुनि प्रकृति में परमात्मा के दर्शन करते थे। उन्हें ये सत्य ज्ञात था कि प्रकृति ही हमारी जननी है।
 वैदिककाल में  जीवन  चार आश्रमों में  विभाजित था उनमें  से तीन तो पूरी तरह से प्रकृति माँ की  गोद में ही व्यतीत होते थे।  ब्रह्मचर्य आश्रम के अन्तर्गत प्राकृतिक सौंदर्य से खिले हुए गुरुकुल अक्सर नदी के तट पर हुआ करते थे। ये सौंदर्य भी विद्यार्थियों के जीवन को निखारनें में बहुत सहयोगी हुआ करता था। प्राकृतिक सौंदर्य का तन, मन और आत्मा से गहरा नाता है। ये आत्मिक सौंदर्य ही हमारे हर कर्म को एक प्रकाश की तरफ ले जाता है।  वानप्रस्थ आश्रम में भी व्यक्ति वन प्रदेशों में रहकर आत्मचिंतन तथा  लोगों की भलाई के लिए ही  कार्य  करता था। संन्यास आश्रम में तो व्यक्ति समग्र उत्तरदायित्वों को अपनी संतानों को सौंपकर, निर्जन वन  तथा गिरि कन्दराओं में रह कर आत्मकल्याण करनें में बाकी जीवन बिता देता था।
 गृहस्थ आश्रम भी इससे  अछूता  कहाँ रहा? लोग रीति- रिवाजों तथा त्योहारों व विवाह आदि के अवसरों पर प्रकृति का आशीर्वाद पा ही लेते थे। पीपल के वृक्ष, वट- वृक्ष  साथ ही आँवले तथा केले के पेड़ को पूजा जाता था। तुलसी का पौधा तो हर घर में होता था। नारियों का तुलसी का सिंचन करना कहीं न कहीं शुद्धता को बनाए रखना था ताकि रोगाणुओं जनित बिमारियों का संक्रमण न हो।
 अब हमारी  लापरवाही से हमारा पर्यावरण दिन- ब -दिन दूषित  होता जा रहा है, जिससे प्राकृतिक असंतुलन पैदा हो गया है। सम्पूर्ण वातावरण ही अशुद्ध हो गया है। यही तो प्रदूषण है। आज के मशीनी युग में हम ऐसी स्थिति से गुर रहे हैं  कि प्रदूषण एक अभिशाप के रूप में सम्पूर्ण पर्यावरण को नष्ट  कर रहा है। पर्यावरण में कॉर्बनडाइ ऑक्साइड के बढ़ते स्तर के कारण धरती के सतह का तापमान लगातार बढऩा ग्लोबल वार्मिंग है। ये विश्व के लिए  चिंता का विषय  है। विश्व  के सभी देशों को इसके समाधान के लिए  सकारात्मक कदम उठाने  चाहिए। नियमित बढ़ते धरती के तापमान से कई सारे खतरों का जन्म होगा जो इस ग्रह पर जीवन के अस्तित्व को कठिन बना देगा। ये धरती के आबोहवा में नियमित और स्थायी परिवर्तन को बढ़ा देगा और इससे प्रकृति का संतुलन बिगडऩे लगेगा। 
 धरती पर कॉर्बनडाई ऑक्साइड के बढऩे से मनुष्य के जीवन पर इसका बुरा  प्रभाव होगा, इससे  तूफ़ा, अप्रत्याशित चक्रवात, ओजोन परत में क्षरण, बाढ़, सुनाम, सूखा, खाद्य पदार्थों की कमी, महामारी, और मौंते आदि में बढ़ौतरी होगी। ऐसा शोध में पाया गया है कि कॉर्बनडाई ऑक्साइड के अधिक उत्सर्जन का कारण जीवाश्म ईंधनों के प्रयोग, खाद का  उपयोग, पेड़ों की कटाई, फ्रिज और ए सी से निकलने वाली गैस, अत्यधिक बिजली के इस्तेमाल आदि है।  कॉर्बनडा ऑक्साइड का उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है। 2020 तक ग्लोबल वार्मिंग से धरती पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
धरती पर ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव बढऩे का कारण  कॉर्बनडा ऑक्साइड के स्तर   का  बढऩा है, सभी ग्रीनहाउस गैस (जलवाष्प, कॉर्बनडा ऑक्साइड , मीथेन, आदि) गर्म किरणों की पात को सोखता है ,जिसके बाद सभी दिशाओं में दुबारा से विकीकरण होता है और धरती पर वापस आकर तापमान में वृद्धि करता है जो हमें ग्लोबल वार्मिंग के रुप में दिखाई देता है। ग्लोबल वार्मिंग के जीवन से सम्बन्धित दुष्प्रभावों को रोकने के लिए , हमें कॉर्बनडा ऑक्साइड  और ग्रीनहाउस गैसों के प्रभावों को बढ़ाने वाले सभी कारकों को हमेशा के लिए  त्यागना पड़ेगा।
प्रदूषण को बढ़ाने में कल-कारखाने, वैज्ञानिक साधनों का अधिक उपयोग, फ्रिज, कूलर, वातानुकूलन, ऊर्जा संयंत्र आदि दोषी हैं। प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना भी मुख्य कारण है।  वृक्षों को अंधा-धुंध काटने से मौसम का चक्र बिगड़ा है।  घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होने से भी प्रदूषण बढ़ा है। ये हमारे शरीर के  रोगों से लडऩे की क्षमता को क्षीण कर रहा  है। एक शिशु पर भी जन्म लेते ही   कई रोगों के चपेट में आनें की संभावना बनी रहती है। इन रोगों में प्रमुख रूप से फेफड़ो का कैंसर, तथा समस्त श्वास सम्बन्धिरोग हैं।
विश्व तथा भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए विभिन्न परियोजनाएँ  चलाई जा रही हैं इस कार्य में भारत दशकों से प्रयत्नशील रहा है,जिन्हें विभिन्न वर्गों में  विभाजित किया जा सकता हैं। हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण कार्य नदियों पेड़- पौधों व जीव जंतुओं की लुप्त होती प्रजातियों  पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री मेनका गाँधी ने  पशु- पक्षियों के संरक्षण के लिए कई प्रशंसनीय कार्य कि हैं।
इसके आलावा वर्तमान  समय में माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र दामोदर मोदी के नेतृत्व में 1500 लोगों के मौजूदगी में  2 अक्टूबर 2014 को राष्ट्रपति भवन में स्वच्छ भारत अभियान के कार्यक्रम को आयोजित किया गया। परिणामस्वरूप उल्लेखनीय सुधारों की प्रक्रिया  आज तक भी जारी है। अत: इस विषय में हमारे देश में सरकारी स्तर पर भी योगदान प्रदान किया जा रहा है। भारत में इसका सूत्रपात सामाजिक स्तर पर हुआ  है। इन विषयों पर हाल  ही में विभिन्न परियोजनाओं का शुभारम्भ  किया गया जिनके सकरात्मक परिणाम धीरे-धीरे सामनें आ रहे हैं।
हम सभी इस क्षेत्र में बहुत योगदान कर सकते हैं। प्लास्टिक की थैली के स्थान पर कपड़े की थैली  उपयोग में  ला सकते हैं।  बिजली के बिल में कटौती करने वाले उपाय  को अपना सकते हैं। घर में एल ई डी बल्ब लगाने चाहि। फ्रिज के पानी के बजाय मटके का ठंडा पानी ज्यादा बेहतर है। घर के सारे बिजली से चलने वाले उपकरणों  का कम से कम उपयोग करें। घर से बाहर जाते हुए मेन स्विच बंद करें। इस तरह बिजली के बिल में भी थोड़ी कटौती होगी और ज्यादा बिजली बनाने के लिए कोयला भी नहीं जलाना पड़ेगा। पृथ्वी का तापमान भी कुछ कम पड़ेगा। घर में ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने चाहि। इससे हम अपनें पर्यावरण को स्वस्थ व शुद्ध बना सकते हैं।
सम्पर्क: मकान नंबर- 32, गली नंबर-9, न्यू गुरु नानक नगर, गुलाब देवी रोड, जालंधर, पंजाब -144013

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