जीवन बचाना है तो प्रकृति से
छेड़छाड़ बंद
करना होगा
- डॉ.
सिम्मी भाटिया
पर्यायवरण शब्द दो शब्दों के संयोग से बना है
- परि +आवरण। परि का अर्थ है चारों ओर तथा आवरण का अर्थ है परिवेश दूसरे
शब्दों में कहें तो पर्यायवरण का मतलब है सभी प्राकृतिक परिवेश जैसे भूमि ,जल ,वायु ,धूप जंगल, पौधे ,पशु-पक्षी ,ठोस
सामग्री इत्यादि ।पर्यावरण से हमें पृथ्वी पर सभी जीवित चीजों को विकसित होने में
पूरी सहायता मिलती है हालांकि मानव
निर्मित तकनीकी उन्नति के लिए कुछ चीजों का इस पर बुरा प्रभाव भी पड़ा है और
प्राकृतिक सौंदर्य ,संतुलन भी बिगड़ रहा है अगर प्रकृति के नियम व
अनुशासन के खिलाफ कुछ भी गलत तरीकों का प्रयोग होता है तो वायुमंडल, जलमंडल ,स्थलमंडल अव्यवस्थित होते हैं ।
इस युग में मनुष्य ने अपने उन्नति के लिए
ध्वनि प्रदूषण ,वायुप्रदूषण ,वनों
की कटाई ,जल प्रदूषण ,मृदा प्रदूषण, अम्ल वर्षा ऐसे कार्यों को किया
है जिससे खतरनाक आपदाओं का सामना हो रहा है तथा प्रदूषण भी काफी हद तक
प्रभावित हो रहा है ।
कहा जाता है कि ब्रह्मांड पर पृथ्वी ही एक ऐसा
ग्रह है जहाँ जीवन के अस्तित्व के लिए
पर्यावरण को सुरक्षित रखना बेहद अनिवार्य है पृथ्वी पर जीवन का आहार, पोषण, रहन सहन सब पर्यावरण से ही है आज पर्यायवरण
पूरी दुनिया की समस्या बनी हुई है अगर पर्यावरण को नहीं बचाया गया तो उसके दूरगामी
प्रभाव से भी हम वंचित नहीं रह सकेंगे जैसे आणविक विस्फोट से रेडियो धर्मिता का
अनुवांशिक प्रभाव, वनस्पतियों का नष्ट होना, रोगों का बढ़ना और ओजोन परत की हानि, वायुमंडल
का तापमान बढ़ना, हरियाली का समाप्त होना।
मानव प्रकृति पर पूरी विजय प्राप्त करना चाहता है इसी भागदौड़ व स्पर्धा के
कारण उसने विज्ञान की दुनिया में अनगिनत प्रगति व आविष्कार करने आरंभ कर दिए ।इस कार्य
से प्रकृति असंतुलित हो गई धरती पर बढ़ती हुई जनसंख्या, औद्योगिक
क्रांति तथा शहरीकरण ने प्रकृति की हरियाली को नष्ट कर दिया जगह-जगह फोर लेन सिक्स
लेन बनने के कारण पेड़ों का क़त्ले आम कर
दिया गया।
आजकल खबरों में अक्सर सुना जाता है कि रिहायशी
इलाकों में शेर, तेंदुआ या चीते घुस गए जो अपने बचाव के लिए नुकसान भी करने लगे । ऐसा
इसलिए हुआ क्योकि आधुनीकरण एवम् औद्योगिक विस्तार करने के लिए मानव ने पेड़ो व
जंगलो को काटकर उनके घर छीन लिये।
जानवरों की कई जातियाँ विलुप्त हो गई कुछ
विलुप्त होने के कगार पर है आने वाले समय में प्रदूषण के कारण सारी धरती पर विनाश
दिख रहा है और मानव सभ्यता का हनन भी हो रहा है ।
पर्यायवरण व मानव एक दूसरे से परस्पर जुड़े है
जलवायु में बदलाव आने मानव शरीर पर तुरंत असर होने लगता है।
प्रकृति से छेड़छाड़ होने से बड़ी से बड़ी त्रासदी
को कोई नही बचा सकता। इसके ज्वलंत उदाहरण भुज व नेपाल में भूकम्प का आना,केदारनाथ में भारी वर्षा असम की बाढ़ जिसमे जान माल का भारी नुकसान हुआ ।
कितनी ही जिंदगियाँ महाकाल में समा गयी।
ऐसी ही भयावह स्थितियों को आँकते हुए 1992 में
ब्राजील में विश्व के 174 देशो का पृथ्वी सम्मेलन भी आयोजित किया गया।
पर्यावरण को बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने
पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर सामाजिक व राजनीतिक जागृति लाने के लिए संयुक्त
राष्ट्र महासभा का आयोजन किया , जिसमें ‘विश्व पर्यायवरण सम्मेलन’ हुआ ।यह 5 जून 1973 को
हुआ जो कि पहला ‘विश्व पर्यायवरण के दिवस’ के रूप में मनाया गया। तब से हर वर्ष इस दिन पर्यायवरण जागरूकता अभियान
चलाया जाने लगा।
जिसमे बताया जाने लगा कि किस तरह हम अपने
दैनिक दिनचर्या में छोटे -छोटे कार्यो के
द्वारा जैसे टूटी चीजो की मम्मत करके उन्हें दुबारा उपयोग में लाना, कचरे को कम से कम करना तथा कचरे को
सड़क पर न फेक कर कचरे के डिब्बे में ही डालना ,यूज़
एंड थ्रो की आदत को बदलना, पॉलीथिन का प्रयोग बन्द
करना ,जल- संग्रह करना ,बिजली
की जितनी ज़रूरत हो उतना उपयोग करना ,वर्षा जल संरक्षण करना ,ऊर्जा संरक्षण करना , फ्लोरोसेंट प्रकाश का
उपयोग करना, जैविकीय खाद अपनाना इत्यादि जिससे पर्यायवरण को बचाया जा सके ।
आने वाली पीढ़ी को भी पर्यायवरण के महत्त्व के बारे में बताएँ और उन्हें
छोटी छोटी उपयोगी बातें सिखाएँ ताकि स्वस्थ समाज की कल्पना कर सुन्दर प्राकृतिक
संसाधनों का लाभ उठाया जा सके। रोगों से दूर रहकर नीरोगी काया का निर्माण हो सके व
अपने भविष्य को सुरक्षित किया जा सके।मिलजुल कर आज सबको जागरूक होने की जरूरत है ;
क्योकि पर्यायवरण बचेगा तभी जीवन रहेगा।
सम्पर्क- शौकत गैस वाली गली, मदर इंडिया स्कूल, कंचन टोल, गाँधी नगर, बस्ती (यू पी) 272001,फ़ोन- 8896235786
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