- कृष्ण कुमार यादव
भारतीय
संस्कृति में उत्सवों और त्योहारों
का आदि काल से ही महत्व रहा है। सामान्यत: त्यौहारों का सम्बन्ध किसी न किसी मिथक,
धार्मिक मान्यताओं, परम्पराओं और ऐतिहासिक
घटनाओं से जुड़ा होता है। दशहरा पर्व भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा बेसब्री के
साथ इंतजार किये जाने वाला त्योहार है।
दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द संयोजन दश व हरा से हुई है, जिसका अर्थ भगवान
राम द्वारा रावण के दस सिरों को काटने व तत्पश्चात्
रावण की मृत्यु रूप में राक्षस राज के आंतक की समाप्ति से है। यही कारण
है कि इस दिन को विजयदशमी अर्थात् अन्याय पर न्याय की विजय के रूप में भी मनाया
जाता है।
दशहरे की परम्परा भगवान राम द्वारा
त्रेतायुग में रावण के वध से भले ही आरम्भ हुई हो, पर द्वापरयुग में महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध भी इसी दिन आरम्भ हुआ था। पर
विजया।दशमी सिर्फ इस बात का प्रतीक नहीं
है कि अन्याय पर न्याय अथवा बुराई पर अच्छाई की विजय हुई थी बल्कि यह बुराई में भी
अच्छाई ढूँढ़ने का दिन होता है। रावण में कुछ अवगुण जरूर थे, लेकिन
उसमें कई गुण भी मौजूद थे, जिन्हें कोई भी व्यक्ति अपने जीवन
में उतार सकता है। यदि रामायण या राम के जीवन से रावण के चरित्र को निकाल दिया जाए,
तो सम्पूर्ण रामकथा का अर्थ ही बदल जाएगा। स्वयं राम ने रावण के
बुद्धि और बल की प्रशंसा की है। रावण-वध के बाद भगवान राम ने अनुज लक्ष्मण को रावण
के पास शिक्षा लेने के लिए भेजा था। पहले तो लक्ष्मण रावण के सिर के पास बैठे,
पर जब रावण ने इस स्थिति
में उन्हें शिक्षा देने से इन्कार कर दिया, तो लक्ष्मण ने एक
शिष्य की तरह रावण के चरणों के पास बैठकर शिक्षा ली।
रावण दैत्यराज सुमाली की पुत्री
कैकशी एवं विद्वान् ब्राह्मणविश्रव का पुत्र था। दैत्यराज सुमाली अपनी बेटी
कैकशी का विवाह एक ऐसे व्यक्ति से करना चाहते थे जो उन्हें एक योग्य एवं अति बलवान् उत्तराधिकारी दे सके। जब दैत्यराज की इस
इच्छा पर कोई भी खरा नहीं उतरा तो कैकशी ने स्वयं विद्वान ब्राह्मण विश्रव का चयन
किया। विवाह के वक्त ही विश्रव ने कैकशी से कहा था कि चूँकि तुमने मेरा चुनाव गलत
क्षण में किया है, अत: तुम्हारा पुत्र
बुराई के मार्ग पर जाएगा। रावण के जन्म
के समय उसके पिता विश्रव को जब यह ज्ञात हुआ कि उनके बेटे में दस लोगों के बराबर
बौद्धिक बल है, तो उन्होंने उसका नाम 'दशानन´
रख दिया। रावण के दशानन होने के सम्बन्ध
में किंवदन्ती है कि उसके विद्धान्-ब्राह्मण
पिता विश्रव ने उसे एक बेशकीमती रत्नों का हार पहनाया था, जिसकी
खासियत यह थी कि उससे निकलने वाले प्रकाश से लोगों को रावण के दस सिर और बीस हाथ
होने का आभास होता था। अपने माता-पिता के चलते रावण में दैत्य और ब्राहमण दोनों के
गुण थे। रावण को न केवल शास्त्रों बल्कि 64 कलाओं में महारत
हासिल थी। यहाँ तक कि उसे हाथी और गाय को भी प्रशिक्षित करने की कला का ज्ञान था।
रावण भगवान शिव का भक्त होने के
साथ-साथ महापराक्रमी भी था। इसी तथ्य के मद्देनजर आज भी कानपुर के शिवाला स्थित
कैलाश मंदिर में विजयदशमी के दिन दशानन रावण की महाआरती की जाती है। सन् 1865 में शृंगेरी के शंकराचार्य की
मौजूदगी में महाराज गुरु प्रसाद द्वारा स्थापित इस मंदिर में शिव के
साथ उनके प्रमुख भक्तों की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। कालांतर में सन् 1900 में महाराज शिवशंकर लाल ने कैलाश मंदिर परिसर में शिवभक्त रावण का मंदिर
बनवाया और देवी के तेईस रूपों की
मूर्ति भी स्थापित की। वस्तुत: इसके पीछे यह तर्क था कि भक्त के बगैर ईश्वर अधूरे
हैं, इसीलिए भगवान शंकर के मंदिर के बाहर उनके अनन्य भक्त
रावण का भी मंदिर बनाया गया। तभी से रावण की महाआरती की परम्परा यहाँ पर कायम है।
कानपुर से सटे उन्नाव जिले के मौरावाँ कस्बे में भी राजा चन्दन लाल द्वारा सन् 1804 में स्थापित रावण की मूर्ति की पूजा की जाती है। यहाँ दशहरे के दिन
रामलीला मैदान में 7-8 फुट ऊँचे सिंहासन पर बैठे रावण की
विशालकाय पत्थर की मूर्ति की लोग पूजा करते हैं, जबकि एक
अन्य पुतला बनाकर रावण दहन करते हैं।
मध्य प्रदेश के मंदसौर में नामदेव वैश्य समाज के
लोगों के अनुसार रावण की पत्नी मंदोदरी मंदसौर की थी। अत: रावण को जमाई मानकर उसकी
खातिरदारी यहाँ पर भव्य रूप में की
जाती है। यहाँ पर रावण के समक्ष मनौती मानने और पूरी होने के बाद रावण की वंदना
करने व भोग लगाने की परम्परा रही है।
हाल ही में यहाँ रावण की पैतीस फुट ऊँची बैठी हुई अवस्था में कंक्रीट की मूर्ति स्थापित की गई है। इसी प्रकार जोधपुर
के लोगों के अनुसार रावण की पत्नी मंदोदरी यहाँ की पूर्व राजधानी मंडोर की रहने
वाली थीं व रावण व मंदोदरी के विवाह स्थल पर आज भी रावण की चवरी नामक एक छतरी
मौजूद है। हाल ही में अक्षय ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र ने जोधपुर के चांदपोल
क्षेत्र में स्थित महादेव अमरनाथ एवं नवग्रह मंदिर परिसर में रावण का मंदिर बनाने
की घोषणा की है। इसमें रावण की मूर्ति शिवलिंग पर जल चढ़ाते हुए बनाई जा रही है, जिससे
रावण की शिवभक्ति प्रकट होगी और उसका सम्मानीय स्वरूप सामने आएगा।
मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में
स्थित रावणगाँव में रावण को महात्मा या बाबा के रूप में पूजा जाता है। यहाँ रावण
बाबा की करीब आठ फीट लंबी पाषाण प्रतिमा लेटी हुई
मुद्रा में है और प्रति वर्ष दशहरे पर इसका विधिवत शृंगार
करके अक्षत, रोली, हल्दी
व फूलों से पूजा करने की परंपरा है। चूँकि रावण की जान उसकी नाभि में बसती थी,
अत: यहाँ पर रावण की नाभि पर तेल लगाने की परंपरा है, अन्यथा पूजा
अधूरी मानी जाती है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में
ग्रेटर नोएडा के मध्य स्थित बिसरख गाँव को रावण का पैतृक गाँव माना जाता है। बताते
हैं कि रावण के पिता विश्रवामुनि इस गाँव के जंगल में शिव भक्ति करते थे एवं रावण
सहित उनके तीनों बेटे यहीं पर पैदा हुए। विजय दशमी के दिन जब चारो तरफ रावण का
पुतला फूँका जाता है, तो बिसरख गाँव के
लोग उस दिन शोक मनाते हैं। इस गाँव में दशहरा का त्योहार
नहीं मनाया जाता है। गाँववासियों को मलाल है कि रावण को पापी रूप में प्रचारित
किया जाता है जबकि वह बहुत तेजस्वी, बुद्विमान्, शिवभक्त, प्रकाण्ड पण्डित एवं क्षत्रिय गुणों से युक्त
था। महाराष्ट्र के अमरावती और गढ़चिरौली जिले
में कोरकू और गोंड आदिवासी रावण और उसके पुत्र मेघनाद को अपना देवता मानते हैं।
अपने एक खास पर्व फागुन के अवसर पर वे इसकी विशेष पूजा करते हैं।
उत्तर भारत में दशहरा का मतलब भले
ही रावण दहन से अनिवार्य रूप से जुड़ा हुआ हो, पर
भारत के अन्य हिस्सों में ही इसे अन्य रूप में मनाया जाता है। बंगाल में दशहरे का
मतलब रावण दहन नहीं बल्कि दुर्गा पूजा होती है, जिसमें माँ
दुर्गा को महिषासुर का वध करते हुए दिखाया जाता है।
सम्पर्क:
इलाहाबाद परिक्षेत्र, इलाहाबाद (उ.प्र.) 211001 मो. 08004928599, Email- kkyadav.y@rediffmail.com
2 comments:
रावण के बारे में इतनी उपयोगी तथा रोचक जानकारी देने का आभार!
~सादर
अनिता ललित
आपका ब्लॉग पढ़ कर हमें अच्छा लगा।विजयादशमी और
दशहरा क्यों मनाया जाता है इसकी जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पे विजिट करें ।
http://www.dishanirdesh.in/vijayadashmi-11-october-2016/
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