आपकी
मासिक पत्रिका 'उदंती´ के सितंबर, 2013 अंक में आपका संपादकीय 'बाबाओं
का गोरखधंधा´ के लिए साधुवाद! हमारी आस्था
अंधविश्वास में कैसे और क्यों तब्दील होती है? इस सवाल के
जवाब को आपने जिस तरह से बताया है, वह हम सबको इस अँधेरे से
लडऩे के लिए प्रेरित करता है। यूँ सदैव की भाँति उदंती के सितम्बर 2013 अंक में प्रकाशित सभी रचनाएँ
सामायिक और प्रभावी हैं। सभी लेखकों को बधाई!
अपने देश में सत्संग के बहाने बोलने में माहिर कुछ तथाकथित बाबा अथवा
प्रवचनकर्ता आम जनता को वर्षों से लूट रहे हैं।
इनमें से कुछ तो करोड़ों की संपदा के मालिक हैं ; क्योंकि इनके तथाकथित
भक्तों की संख्या लाखों में है, इन पर
कार्रवाई करने में पुलिस मजबूर दिखती है और नेता मेहरबान। ताज्जुब होता है कि ये देश को किसी भी आफत से
बचाने में आज तक कोई चमत्कार नहीं कर पाए हैं।
इनमें से कुछ तो गृहस्थ हैं और इनके बच्चे भी इनके सहारे ऐश कर रहे हैं।
समाज के प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का
कर्तव्य है कि वह समाज को लूटने वालों का विरोध करे। सबसे बड़ा सत्संग है अपनी
जिम्मेदारियों का निर्वहन ईमानदारी से करना।
जो लोग अपने पारिवारिक, सामाजिक,
और कार्य से जुड़ी जिम्मेदारियों को निष्ठा और लगन से निभाते हैं और
सत्य का साथ देने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं, उन्हें किसी
सत्संग में जाने की जरूरत नहीं है। अगर समय नहीं बीत रहा हो तो अपने आसपास ऐसे
सामाजिक कार्यों से जुड़ें जिनसे आम लोगों और जरूरतमंदों को लाभ होता हो; राहत मिलती
हो।
याद रखिये कबीर दास जी अपने परिवार
को अपने परिश्रम से पालते थे, दान पात्र के
चंदे से नहीं! बहरहाल, टीवी
चैनलों पर जब आम जनता ऐसे 'ढोंगी बाबाओं´ के
विज्ञापनों को देखती है तो वह यह नहीं जान पाती कि इन प्रसारणों के लिए ये पाखंडी भारी रकम अदा
करते हैं। देश की जनता यह मानती है
कि टीवी चैनलों में आने वाला व्यक्ति कोई
साधारण व्यक्ति नहीं होता है। फलस्वरूप, भेड़ चाल का मुहावरा चरितार्थ हो उठता है और लोग अधिकाधिक संख्या
में इनके जाल में फँसने के लिए बेताब
हो उठते हैं। दरअसल, टीवी चैनलों को पहले तो इस तरह के
विज्ञापनों से बचना चाहिए अन्यथा उन्हें जनता को यह जरूर बताना चाहिए कि जो
कुछ दिखाया जा रहा है, वह एक विज्ञापन है और उन्हें उसके लिए पैसे मिलते हैं। यूँ भारतीय दंड
सहिंता के अनुसार ठगी में सहयोग देना भी एक अपराध है। काश, हमारा मीडिया
अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को निभाने में सक्षम होता और धन अर्जित करने के लिए इस
तरह के विज्ञापनों को नकार पाता।
उत्तर प्रदेश
में इस वर्ष तीन जनवरी की रात को जिस तरह लोग जलजले और
पत्थरों में तब्दील होने के ख़ौफ़ से घरों से बाहर टहलते रहे,
वह इस बात का स्पष्ट प्रमाण था कि अभी भी हमारी जनता अज्ञानता का
बोझ ढो
रही है।
हमारे टीवी चैनल दिन भर ऐसी खबरों पर अपनी रोटियाँ सेंकते रहते हैं। यदि
समाज में गुंडागर्दी पर अंकुश नहीं
लगता तो हम पुलिस को कोसते हैं। हमारा
मीडिया यदि यूँ ही निष्क्रिय बना रहेगा तो
हमारी जनता का एक बहुत बड़ा हिस्सा अज्ञानता से उपजे और नकली बाबाओं द्वारा टीवी के
निजी चैनलों के माध्यम से फैलाये जा रहे अंधविश्वासों का बोझ ढ़ोती रहेगी।
-सुभाष लखेड़ा, नई दिल्ली
सटीक संपादकीय
उदंती
के सितम्बर अंक में अनकही से सम-सामयिक विषय पर सटीक संपादकीय तथा अभयारण्य में
उदंती पर अच्छी जानकारी देने के लिए आपको
बधाई। - देवेन्द्र
प्रकाश मिश्र dpmishra7@gmail.com
बाल संसद - अद्भुत प्रयास
सितम्बर
अंक में प्रकाशति आलेख बाल संसद- प्राथमिक शिक्षा से लोकतंत्र का प्रशिक्षण बहुत
ही अद्भुत प्रयास है। सराहना के लिए शब्दों की कमी महसूस हो रही है। इन्ही तरह के
प्रयास बालकों के भविष्य को उज्ज्वल
बनाने मैं सहायक होंगे। इसी तरह प्रेरक के अंतर्गत क्षमादान का मूल्य - यह विषय मन
के कष्ट पूर्ण किंतु फिर भी मीठे अनुभवों की याद दिलाते हुए मन में उदारता का भाव
को प्रगाढ़ करता है।
-माधवी
बाबाओं के कच्चे चिट्ठे
उदंती
के सितम्बर अंक में पुण्य स्मरण लाला जी के चले जाने का अर्थ -बहुत मार्मिक बन गया
है। हिन्दी दिवस युवा वर्ग की चेतना बनाने का संघर्ष-सुधा ओम ढींगरा ने विदेशी में
हिन्दी के लिए किए जा रहे प्रयासों की सार्थक जानकारी दी है। डॉ. ढींगरा स्वयं भी
इस पावन यज्ञ को आगे बढ़ा रहीं हैं। परदेशी राम वर्मा का यात्रा-संस्मरण बहुत रोचक
है। अनकही में सम्पादक जी हर बार की तरह बहुत गहरी बातें कह गईं। बाबाओं पर भरोसा
करना खुद को ठगे जाने के लिए प्रस्तुत करना है। चेलों और बाबाओं के कच्चे-चिट्ठे
हर रोज एक नया शिगूफ़ा लेकर आ रहे हैं।
पत्रिका की साज-सज्जा नयनाभिराम है। -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु ; दिल्ली rdkamboj@gmail.com
पाँच वर्ष की यात्रा पर बधाई
उदंती
की पाँच वर्षों की निरंतर यात्रा सफलता पूर्वक पूरी हो गई है।यह प्रसन्नता की बात
है। मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें। इससे साबित होता है कि कुशल नेतृत्व और
सहयोगियों कि मिल जुलकर काम करने की भावना अगर आपके पास है,
तो सफलता के लिए कोई सीमा नहीं है। खासतौर से पत्रकारिता में हो रही
गलाकाट प्रतियोगिता के इस युग में आप जिस गंभीरता और धैर्य के साथ सधे कदमों से
चुपचाप आगे बढ़ते रहे उसके लिए आप बधाई की पात्र हैं। टीम उदंती को भी इस अवसर पर
मैं बधाई देता हूँ साथ ही उदंती के उज्ज्वल भविष्य
की कामना करता हूँ । -ललित कुमार वर्मा,
भिलाई
सफर अनवरत चलता रहे
सर्वप्रथम
तो उदंती के नियमित रूप से 5 वर्षों तक
प्रकाशन होने के लिए आपको और आपकी पूरी टीम को तहे-दिल से मुबारकबाद पेश करता हूँ।
मैं उदंती पत्रिका का प्रशंसक हूँ और पिछले कई महीने से मैं उसे इंटरनेट संस्करण
को देख रहा हूँ, पढ़ रहा हूँ। इसकी सामग्री काफी ज्ञानवर्धक
है और इससे आपके सफल संपादन का पता साफ तौर पर चलता है। वर्तमान अंक में बाबाओं का
गोरख धंधा के बारे में काफी जानकारी मिली कि किस प्रकार समाज के जागरूकता की कमी
के कारण लोग आजकल बाबाओं के चंगुल में फंसते जा रहे हैं। प्राथमिक शिक्षा से
लोकतंत्र का प्रशिक्षण, 1300 साल पुराना रायपुर शहर, विलुप्त प्रजातियों की शरण स्थली, विनोद साव की
कहानी- सिन्टी, आदि सहित अनेक सामग्री पठनीय है। यह उदंती
दिनों दिन तरक्की करे और पत्रिका का सफर अनवरत चलता रहे, इन्हीं
शुभकामनाओं के साथ।
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