-गिरिजा
कुलश्रेष्ठ
माँ तुम मेरी सुनो
मत सुनो अब उनकी
जो कहते हैं कि ,
बेटी को आने दो
खिल कर मुस्काने
दो।
बेटे-बेटी का भेद
मिटा कर
समानता की सरिता
लहराने दो
वे लोग तो कहते
हैं बस यों ही
नाम कमाने
कन्या-प्रोत्साहन
के नाम पर
इनाम पाने।
माँ, उनकी कोई बात मत सुनना
मुझे जन्मने के
सपने मत बुनना।
सब धोखा है
प्रपंच भरा
लेखा-जोखा है।
एक तरफ कन्या
प्रोत्साहन
दूसरी तरफ घोर
असुरक्षा
अतिचार और शोषण।
माँ, पहले तुम सुनती थीं ताने
बेटी को जन्म देने
के और फिर
उसे कोख में ही
मारने के।
लेकिन माँ इसे
तुम्ही जानती हो कि
कितनी मजबूरियाँ
और कितने बहाने
रहे होंगे
तुम्हारे सामने
कोई नही आता होगा
बेटी की माँ को
थामने
समझ सकती हूँ माँ
..
तुम गलत नहीं थी।
जानतीं थीं कि
जन्म लेकर भी
मुझे मरना होगा
आँधियों में,
बेटी को पाँखुरी
की तरह
झरना होगा।
हाँ..हाँ..मरना ही
होगा मुझे
एक ही जीवन में
कितनी मौतें
जैसे तुम मरतीं
रहीं हर रूप में
कितनी बार कितनी
मौतें
शायद जिन्दगी ने
तुम्हें समझा दिया
था कि,
लड़की औरत ही होती है
हर उम्र में सिर्फ
एक औरत
औरत, जिसे दायरों में कैद रखने
बनानी पड़तीं हैं
कितनी दीवारें
कितनी तलवार और
कटारें
क्योंकि उसे
निगलने को
बेताब रहता है
अँधेरा जहाँ-तहाँ
कुचलने को बैचैन
रहते हैं
दाँतेदार पहिये...
यहाँ-वहाँ
कोलतार की सड़क
बनाते रोलर की तरह
और...मसलकर फेंकने
बैठे रहते हैं
लोहे के कितने ही
हाथ
फेंक देते हैं
तार-तार करके
उसका अस्तित्व
बिना अपनत्व और
सम्मान के
कभी तन के लिए ,कभी मन के लिए
तो कभी धन के लिए
झोंक देते हैं
तन्दूर में।
खुली सड़क पर ,भरे बाजार में
बस में या कार
में..
कैसे सुरक्षित
रहे तुम्हारी बेटी, माँ
इस भयानक जंगल में
पहले तुमसे नाराज
थी व्यर्थ ही
कोख में ही अपनी
असमय मौत से।
पर अब मैं नाराज
नही हूँ
जानती हूँ कि
मेरी सुरक्षा के
लिए
नहीं है तुम्हारे
पास कोई अस्त्र या शस्त्र
तभी तो तुम्हारी
बेटी कर दी जाती है
'निर्वस्त्र’।
सच कहती हूँ माँ
मैं सचमुच डरने
लगी हूँ
दुनिया में आने
से।
अपनी ही दुनिया के
सपने सजाने से
इसलिए अब तुम
सिर्फ मेरी सुनो माँ,
हो सके तो अब मार
देना मुझे
कोख में ही
कम से कम वह मौत
इतनी वीभत्स तो न
होगी
पंखनुची चिड़िया की
तरह
खून में
लथपथ..घायल पड़ी सड़क पर
जीवन से हारी
हुई..बुरी तरह..।
दो दिन सागर
उबलेंगे
पर्वत हिलेंगे,
मुद्दे मिलेंगे
बहसों और हंगामों
के
और फिर दुनिया
चलेगी पहले की तरह
नहीं चल पाऊँगी तो
सिर्फ मैं
हाँ माँ, सिर्फ मैं।
तुम्हारी असहाय, अकिंचन बेटी
सिर उठा कर, सम्मान पाकर।
कब तक शर्मसार
होती रहोगी??
बेटी की माँ होने
का बोझ
ढोती रहोगी !!
इसलिये मुझे जन्म
न दो माँ !
मैं तो कहती हूँ
कि
तुम जन्म देना ही
बन्द कर दो
नहीं सम्हाल सकती
हो अगर
अपनी सन्तान को
सुरक्षा व
सुसंस्कारों के साथ
माँ तुम सुन-समझ
रही हो न?
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