दामिनी
के लिए
- आशा
भाटी
घायल तन और मन
लेकर
कहाँ चली गई हो
तुम
यादों में सदा
रहोगी
कभी न भूलेंगे
तुम्हें
कहीं से कोई आवाज
आई है
मानवता तार-तार
हुई है
किसी ने नहीं सुनी
तुम्हारी पुकार
सब दरवाजे बंद थे
जनमानस आहत हुआ है
उठी है न्याय की
गुहार
कितनी प्रार्थना
की थी तुम्हारे लिए
लगता है सब बेकार
गई
तुम थीं तो एक आस
लगी थी
शायद कोई चमत्कार
हो जाये
जब जिंदगी संघर्ष
कर रही थी
मौत कहीं चुपचाप
खड़ी थी
जिंदगी हार गई
तुमने विदा ले ली
फिर कभी न लौटने
के लिए
तुम इतिहास के
पन्नों में समा गई हो
तो क्या कहें बस
अंतिम विदा, अंतिम
विदा।
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