-डा. रत्ना वर्मा
दिल्ली
में 23 वर्षीय लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना
समूची इंसानियत पर एक बदनुमा दाग है। क्रूर बर्बरता की चरमसीमा इससे अधिक कुछ और
हो ही नहीं सकती। शर्म से सिर झुक जाता है कि हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं ; जहाँ ऐसी घटनाएँ हो रही हैं। दिल दहला देने वाली
यह घटना 2012 के नाम पर मानवता के लिए कलंक। पीडि़त लड़की उन
राक्षसों से मिले अनगिनत घावों के बावजूद कई दिन तक मौत से लड़ती रही लेकिन अंतत:
हार गई। परंतु उसकी यह हार शरीर की हार
है। जिस जिजीविषा के साथ उसने जिंदगी के साथ संघर्ष किया वह इस बात का संकेत है कि
वह अपने साथ हुई उस बर्बरता और उस नृशंसता के खिलाफ लडऩे का जज्बा रखती थी। अब इस
नए साल में हमारा यह संकल्प होना चाहिए कि उसकी जिजीविषा को जिंदा रखें और उसके
साथ हुए जुल्म के खिलाफ लड़ते रहें, तब तक जब तक कि इंसाफ
नहीं मिल जाता।
पूरा देश इस बर्बर
कृत्य के विरोध में सड़क पर उतर आया। इस वीभत्स घटना पर देश भर में जैसा गुस्सा
उमड़ पड़ा, वह इस
बात का संकेत है कि भारत की आम जनता खासकर युवा अब चुप बैठने को तैयार नहीं हैं।
बुराई के खिलाफ लोगों का इस तरह जाग्रत होना भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के लिए एक
अच्छा संकेत माना जा रहा है। पर दिल्ली की उसके साथ हुए हादसे के बाद उबले इस
गुस्से को देश के लिए अच्छा संकेत जैसा शब्द लिखते हुए हाथ काँप रहे हैं। यह अच्छा
संकेत नहीं बल्कि ऐसा गुस्सा, ऐसा उबाल है जो कई बरसों से आम
इंसान के दिल में, युवाओं के मन में दबा हुआ था, और जब उसने ऐसी बर्बरता देखी तो उसका खून उबल पड़ा।
लेकिन इस गुस्से
को सिर्फ एक मामले तक सीमित रखकर नहीं देखा जा सकता,
यह गुस्सा पूरी व्यवस्था के खिलाफ है, जो
बरसों- बरस एक ही ढर्रे पर चली आ रही है। बदलते समय और बढ़ते हिंसक अपराधों को
देखते हुए हमारी कानून- व्यवस्था को नए सिरे से बदले जाने की आवश्यकता है।
भ्रष्टाचार में लिप्त सरकार जनता के प्रति कितनी संवेदनहीन हो चुकी है और जनता से
कितनी कट चुकी है, इसी तथ्य से सिद्ध हो जाता है कि पूर्ववर्ती
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार करके उनकी हत्या
करने जैसे भयंकर जघन्य अपराधों के लिए सुप्रीम कोर्ट से फाँसी की सजा पाए पाँच
आरोपियों की दया याचिकाएँ स्वीकार लीं। अँधेर नगरी चौपट राजा....
कानून व्यवस्था की
स्थिति पर विचार करने के साथ साथ हमें यह भी सोचना होगा कि भारतीय परिवेश में ऐसी
क्रूरता क्योंकर पनप रही है। महिलाएँ ज्यों-ज्यों आगे बढ़ रही हैं पुरुषों के साथ कदम
से कदम मिलाकर अपनी काबिलयत साबित कर रही हैं,
वैसे-वैसे उन पर अत्याचार, शोषण और बलात्कार
जैसी अमानवीय घटनाएँ भी बढ़ती जा रही हैं। महिला जहाँ आत्मनिर्भर हो कर अपने
अधिकारों के लिए लड़ रही है वहीं वह अपने को और अधिक असुरक्षित महसूस कर रही है।
पुलिस की बर्बरता का उदाहरण इस मामले में प्रत्यक्ष देखने को मिला और यह पहली बार
नहीं है यह हमेशा ही होता आया है- वह ऐसे मामलों की तुरंत प्राथमिकी दर्ज नहीं
करता, कोई जख्मी है तो चिकित्सा उपलब्ध नहीं करवाता। दिल्ली गैंग रेप मामले के बाद इतना अवश्य हुआ
है कि जनता के गुस्से को देखते हुए मीडिया ने इस तरह की खबरों को हाशिये पर न रखकर
अब प्रमुख खबर के रूप में प्रकाशित करना आरंभ कर दिया है।
तमाम अध्ययनों का
यह भी निष्कर्ष है कि समस्या मात्र सख्त कानून का अभाव नहीं, बल्कि कानून को लागू करने वाली एजेंसियों की
निष्क्रियता, अभियोग पक्ष और यहाँ तक कि कई बार न्यायपालिका
का भी स्त्री-विरोधी रुख और पूरे समाज में बैठी पितृ-सत्तात्मक मानसिकता का भी है।
एक अंग्रेजी पत्रिका ने कुछ समय पहले बड़े पुलिस अधिकारियों का स्टिंग आपरेशन कर
ऐसे ही मामले को उजागर किया था कि किस तरह पुलिस वाले बलात्कार के लिए खुद पीडि़त
महिला को दोषी मानकर चलते हैं। अगर पुलिस वालों की ट्रेनिंग में उन्हें ऐसे सामाजिक
मसलों पर संवेदनशील बनाने की कोशिश नहीं होती है, तो चाहे जो
भी कानूनी प्रावधान कर लिए जाएँ, उससे अपराधियों को सजा
दिलवाने की दर में बढ़ोतरी नहीं होगी।
शर्मनाक असलियत यह है कि देश में 95 हजार से भी अधिक बलात्कार के मामले न्यायालय में लंबित पड़े हैं। इसलिए
जरूरत इस बात की है बहस को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए वरना, क्योंकि एक मामले में अगर शीघ्र न्याय हो भी जाता है, तब भी उससे महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी इसकी क्या गारंटी है।
इस संदर्भ में पिछले वर्ष समाज में कुछ ऐसी नई सकारात्मक
प्रक्रियाएँ देखी गई हैं जो समाज-कल्याण और शासन तंत्र में सुधार के लिए कुछ शुभ
संकेत देती हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण सकारात्मक घटना है सरकारी भ्रष्टाचार और तेजी
से बढ़ते जघन्य अपराधों के विरुद्ध सुशिक्षित- आम जनता, विशेषतया युवा वर्ग का, हजारों
की संख्या में अपनी आत्मा की आवाज पर नगरों और महानगरों में सरकार की अकर्मण्यता
के विरुद्ध सड़कों पर उतरना और सरकार पर जवाबदेही के लिए दबाव बढ़ाना। स्पष्ट है कि सुशिक्षित और संस्कारों से समृद्ध वर्ग सरकार की दमनात्मक
शक्तियों के भय से मुक्त हो चुका है। अन्ना हजारे के अंदोलन से जन-मानस की चेतना
में सरकारी भ्रष्टाचार, दुराचार और अत्याचार के विरुद्ध जो
जागरण हुआ है उसी का परिणाम था कि 2012 के अंतिम पखवाड़े का
देश-विदेश व्यापी विशाल आन्दोलन जो इस पंक्तियों के लिखे जाने तक भी चल रहा है।
इसमें समाज और
सरकारी तंत्र में कई कल्याणकारी परिवर्तन होने के शुभ संकेत हैं। इससे यह भी उजागर
हो रहा है कि अभी तक जनतंत्र का अर्थ आम जनता के लिए सिर्फ वोट डालने तक सीमित था
अर्थात प्रशासनिक तंत्र ब्रिटिश राज जैसा
ही था जिसमें सरकार की अन्यायपूर्ण हरकतों के विरुद्ध आवाज उठाना राजद्रोह मानकर
कुचल दिया जाता है। पिछले वर्ष के
जनान्दोलनों ने स्पष्ट शुभ संकेत दिया है कि अब जनतंत्र की धारणा को जनता चुनावों
के बीच के समय में भी शासन और समाज में समग्र रूप से सक्रिय देखना चाहती है। हमें
विश्वास है कि जन चेतना में यह शुभ नव जागरण तेजी से हमारे ग्रामीण समाज में भी फैलेगा।
अपने सुधी पाठकों
को नव वर्ष की शुभकामनाएँ प्रेषित करते हुए हम सभी से विनम्र निवेदन करते हैं कि
जन- चेतना में नव जागरण के शुभ कार्य को और अधिक विस्तृत तथा प्रभावशाली बनाने में
भरपूर सहयोग करेंगे ,जिससे समाज और प्रशासन में अन्य सुधारों के साथ-साथ समाज में
औरतों को औरत होने की सजा मिलनी बंद हो और उन्हें भी समाज में वांछित सुरक्षा और
सम्मान मिल सके।
* * * *
पिछले माह हमारी
समृद्ध संस्कृति के सबसे सक्रिय, विश्व प्रसिद्ध राजदूत और विलक्षण संगीतज्ञ भारत रत्न पंडित रविशंकर जी का
अमरीका में स्वर्गवास हो गया। पंडित जी की
पुण्य स्मृति को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।
2 comments:
रत्ना जी आलेख विचारोत्तेजक है । ऐसे ही कलमें चलती रहें तो जाग्रति तो आएगी हालांकि बहुत ही धीमे । क्योंकि जो कुछ दिख रहा है उसके पीछे बहुत कुछ है । उसे सामने लाकर व्यर्थ करना होगा । इन्टरनेट टीवी फिल्म और शराब ये चार कारक मानसिकता को बिगाडने में अहम् भूमिका निभा रहे हैं । इन्टरनेट पर महिलाओं के बेहद अशलील फोटो देना , फिल्मकारों का फिल्म में बेशर्मी के साथ अन्तरंग दृश्य देना ,टीवी पर संस्कारहीन सामग्री का प्रसारण ...ये सब हमारे आसपास एक अशिक्षित व अनैतिक वातावरण तैयार कर रहे हैं ।
समाज को स्वच्छ बनाने के लिये केवल कानून को ही जिम्मेदार नही माना जासकता । उसके लिये पुरुषों के साथ महिलाओं का भी दायित्व बनता ।
bahut hi shandar aalekh...
ab jaruri hai ..
ham apne saskar bachchon ko jarur de
tabhi ghatanao pr lag sakati hai rok......
Post a Comment