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Apr 21, 2012

ब्लॉग बुलेटिन से

सोचती हूँ 

सिर्फ कविता

 जैसा कि आप सब से हमारा वादा है ... हम आप के लिए कुछ न कुछ नया लाते रहेंगे ... उसी वादे को निभाते हुए उदंती में हमने जो नयी श्रृंखला की शुरूआत की है उसके अंतर्गत निरंतर हम किसी एक ब्लॉग के बारे में आपको जानकारी दे रहे हैं।  इस 'एकल ब्लॉग चर्चा' में ब्लॉग की शुरुआत से लेकर अब तक की सभी पोस्टों के आधार पर उस ब्लॉग और ब्लॉगर का परिचय रश्मि प्रभा जी अपने ही अंदाज दे रही हैं। आशा है आपको हमारा यह प्रयास पसंद आएगा। तो आज मिलिए... माधवी शर्मा गुलेरी के ब्लॉग http://guleri.blogspot.com से।           - संपादक

'तेरी कुड़माई हो गई है? हाँ, हो गई। ...देखते नहीं, यह रेशम से कढ़ा हुआ साल।' जेहन में ये पंक्तियाँ और पूरी कहानी आज भी है। चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी की 'उसने कहा था' प्राय: हर साहित्यिक प्रेमियों की पसंद में अमर है। अब आप सोच रहे होंगे किसी के ब्लॉग की चर्चा में यह प्रसंग क्यूँ , स्वाभाविक है सोचना और जरूरी है मेरा बताना। तो आज मैं जिस शख्स के ब्लॉग के साथ आई हूँ , उनके ब्लॉग का नाम ही आगे बढ़ते कदमों को अपनी दहलीज पर रोकता है - 'उसने कहा था' ब्लॉग के आगे मैं भी रुकी और नाम पढ़ा और मन ने फिर माना- गुम्बद बताता है कि नींव कितनी मजबूत है! जी हाँ , 'उसने कहा था' के कहानीकार चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी की परपोती माधवी शर्मा गुलेरी का ब्लॉग है- 'उसने कहा था' http://guleri.blogspot.com
माधवी ने 2010 के मई महीने से लिखना शुरू किया ... खबर ब्लॉग की पहली रचना है, पर तुम्हारे पंख में एक चिडिय़ा सी चाह और चंचलता है, जिसे जीने के लिए उसने कहा था की नायिका की तरह माधवी का मन एक डील करता है रेस्टलेस कबूतरों से -
क्यों न तुम घोंसला बनाने को
ले लो मेरे मकान का इक कोना
और बदले में दे दो
मुझे अपने पंख।
....जिन्दगी की उड़ान जो भरनी है !
माधवी की मनमोहक मासूम सी मुस्कान में कहानियों वाला एक घर दिखता है... जिस घर से उन्हें एक कलम मिली, मिले अनगिनत ख्याल... हमें लगता है कविता जन्म ले रही है, पर नहीं कविता तो मुंदी पलकों में भी होती है, दाल की छौंक में भी होती है, होती है खामोशी में- ...कभी भी, कहीं भी, .....बस वह आकार लेती है कुछ इस तरह -
रोटी और कविता
मुझे नहीं पता
क्या है आटे- दाल का भाव
इन दिनों
नहीं जानती
खत्म हो चुका है घर में
नमक, मिर्च, तेल और
दूसरा जरूरी सामान
रसोईघर में कदम रख
राशन नहीं,
सोचती हूं सिर्फ
कविता
आटा गूंधते- गूंधते
गुंधने लगता है कुछ भीतर
गीला, सूखा, लसलसा- सा
चूल्हे पर रखते ही तवा
ऊष्मा से भर उठता है मस्तिष्क
बेलती हूं रोटियां
नाप- तोल, गोलाई के साथ
विचार भी लेने लगते हैं आकार
होता है शुरू रोटियों के
सिकने का सिलसिला
शब्द भी सिकते हैं धीरे-धीरे
देखती हूं यंत्रवत
रोटियों की उलट- पलट
उनका उफान
आखरी रोटी के फूलने तक
कविता भी हो जाती है
पककर तैयार ...
 गर्म आँच पर तपता तवा और गोल गोल बेलती रोटियों के मध्य मन लिख रहा है अनकहा, कहाँ कोई जान पाता है। पर शब्दों के परथन लगते जाते हैं, टेढ़ी मेढ़ी होती रोटी गोल हो जाती है और चिमटे से छूकर पक जाती है- तभी तो कौर- कौर शब्द गले से नीचे उतरते हैं- मानना पड़ता है - खाना एक पर स्वाद अलग अलग होता है- कोई कविता पढ़ लेता है, कोई पूरी कहानी जान लेता है, कोई बस पेट भरकर चल देता है...
यदि माधवी के ब्लॉग से मैं उनकी माँ कीर्ति निधि शर्मा गुलेरी जी के एहसास अपनी कलम में न लूँ तो कलम की गति कम हो जाएगी http://guleri.blogspot. com/2011/09/blog-post_12.html इस रचना में पाठकों को एक और नया आयाम मिलेगा द्रौपदी को लेकर।
माधवी की कलम में गजब की ऊर्जा है ....समर्थ, सार्थक पड़ाव हैं इनकी लेखनी के- उनकी रचनाएं अनेक स्थानों पर प्रकाशित हुई है जिनमें अहा जिंदगी में पंकज कपूर से बातचीत, तेज रफ्तार सड़कें और यादों की टमटम, ख़ूबसूरती तथा यात्रा एवं प्रेम विशेषांक में लेख।  दैनिक जागरण में सापूतारा, तारकरली, बायलाकूपे, मॉरिशस व केरल पर संस्मरण। वागर्थ में कविताएं, कविता कोश में आपका साथ, साथ फूलों का,  हिमाचल मित्र में हाइकु, लमही में कविताएं, जनपक्ष में मेरा पक्ष, अनुनाद में अनूदित कविताएं,  inext में उसने कहा था की चर्चा, रूपायन (अमर उजाला) में तुम्हारे पंख आदि शामिल है।
सब कुछ बखूबी समेटने का अदभुत प्रयास ... नि:संदेह सफल प्रयास... अब है  2012, और उनकी रचना- जहाँ से मैं साथ चल पड़ी हूँ। साथ के लिए लगभग सारे पन्ने पलट डाले, उम्र से परे दोस्त बन गई- अपनी यात्रा के लिए लॉक हटवाया, बस सिर्फ एक बार कारण जानना चाहा और बिना देर किये सारे दरवाजे खोल दिए। इसे कहते हैं विरासत  जिसमें से हम जितना देते हैं, घटता नहीं। तो चलने से पहले हम इस वर्ष की रचना से रूबरू हों- http://guleri.blogspot.com/ 2012/01/blog-post.html

धौलाधार की पहाडिय़ों पर
बर्फ झरी है बरसों बाद
और कई सौ मील दूर
स्मृतियों में
पहाड़ जीवंत हो उठे हैं
...जिसे पढ़ते हुए मैंने कहा है- अरसे बाद मिली हूँ उन निशानों से, और मिलते ही जीवंत हो उठी हूँ और ले आई हूँ एक और संजीवनी आपके लिए ...
प्रस्तुति- रश्मि प्रभा, संपर्क: निको एन एक्स, फ्लैट नम्बर- 42, दत्त मंदिर, विमान नगर, पुणे- 14, मो. 09371022446 http://lifeteacheseverything.blogspot.in

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