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Apr 21, 2012

फूल की पांखुड़ी पर शबनम की दास्तान

फूल की पांखुड़ी पर शबनम की दास्तान

भगवान ने गीता में अर्जुन से अपनी विभूतियों का वर्णन करते हुये कहा है कि महीनों में मैं मार्गशीर्ष का महीना हूँ और वेदों में मैं सामवेद हूँ कारण बहुत स्पष्ट है कि मनुष्य के शरीर, मन, इन्द्रियों और बुद्धि को पुलकित करने वाले इस समशीतोष्ण मौसम वाले माह का कोई जवाब नहीं और जो संगीत सामवेद की ऋचाओं में है उसका मुकाबला अतिशय बुद्धिलब्ध मनीषियों की ऋग्वेद की वाणी भी नहीं कर सकती। यहाँ हमारा काम गीता की विवेचना नहीं है बल्कि एक सवाल उठाना है कि 'क्या ऐसी भी शायरी कोई कर सकता है जिसके लिये योगेश्वर यह कह सके कि शायरों में मैं फलाँ हूँ- यानी सर्वस्वीकार्य और निर्विवाद शायर जो सभी को सिर्फ पसन्द ही आये?!' जवाब है हाँ और एक नाम मैं आपको बता सकता, यह नाम  है- देवमणि पाण्डेय।
चलिये मुद्दे की बात की जाए देवमणि पाण्डेय जी के खुश्बू से सराबोर गुलदस्ते की यानी उनके $ग•ाल संग्रह  'अपना तो मिले कोई' की - उंवान से स्पष्ट है कि यहाँ आत्मीयता की तलाश है और यह हमारे समय की सबसे बड़ी मानवीय आवश्यकता भी है। एक विशिष्ट और मौलिक लहजे में कहे गये अशआर एक सवाल छोड़ते हैं कि 'क्या कोई और ऐसे अशआर कह सकता है?!'  जवाब है कि - हाँ!! कह सकता है !! ऐसे अशआर मुहत्तरम बशीर बद्र साहब कतील शिफाई से मश्वरा कर के कह सकते है' निष्कर्ष यह है कि नर्म बारिश की फुहार जैसी शायरी के लिये बशीर बद्र साहब जाने जाते हैं और अपने अशआर में जिस संगीत के लिये कतील शिफाई मशहूर हैं- ये रंग और खुश्बू देवमणि जी ने अपने अशआर में इस खूबसूरती से पिरो दिये हैं कि इतना तय है कि जिन पुस्तकों को पाठकों का सबसे बड़ा वर्ग पसन्द करता है उनमें एक नाम और जुड़ गया है।
यह पुस्तक ग़ज़ल के व्याकरणीय अनुशासन पर पूरे तौर पर खरी है उर्दू और हिन्दी दोनों पाठक वर्गों में दिल से पसन्द की जाने वाली भाषा में बात करती है यह भाषा  मीर साहब भी बोलते थे और उन्होंने ग़ज़लों में वो ज्ज़्बात पिरोये हैं जो हमारे आपके और सबके दिलों को छू लेते हैं, बिल्कुल अपने लगते हैं। वो अशआर जिनको सुन कर हम कहते हैं कि ठीक यही हम भी कहना चाहते थे लेकिन चूँकि हमारा इज़हार कासिर था इसलिये कह नहीं सके - बहर कैफ देवमणि जी ने दिल की बात कह दी और यह बिल्कुल सच है कि इन्होंने ठीक हमारे ही दिल की बात कह दी है। ये पुस्तक हिन्दुस्तान, पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान तथा सभी जगह जहाँ खड़ी बोली हिन्दुस्तानी की रसाई है वहाँ समझी और सराही जायेगी। भाषा की आसानी और ख्याल की गहराई ने कमाल किया है। दूसरा पहलू है अरूजो- फिक्रो-फन का। कुछ मिसरे मैं जरूर कोट करना चाहूँगा-
मुम्किन है कि पानी में तुम आग लगा दोगे
अश्कों से लिखे खत को मुश्किल है जला देना-1
इस दुनिया की भीड़ में अक्सर चेहरे गुम हो जाते है
रखनी है पहचान तो अपना चेहरा अपने पास रहे-2
तस्व्वुफइनके शेरों में दूध में मक्खन की तरह छुपा है कहीं कही बहुत स्पष्ट भी है-
अभी तक यह भरम टूटा नहीं है
समन्दर साथ देगा तिश्नगी का -3
दिल में मेरे पल रही है यह तमन्ना आज भी
इक समन्दर पी चुकूँ और तिश्नगी बाकी रहे -4
तृष्णा रक्तबीज होती है मर कर और भी उद्दाम और प्रचंड संवेग से प्रत्युपन्न हो जाने वाली लेकिन शायर ने बेहद खूबसूरती से कबीर के लहजे में 'हँसबा खेलबा करिबा ध्यानम' की शैली में गहरी बातें आसानी से कह दीं हैं। पुस्तक का आकार विशिष्ट है और शब्दों में फाण्ट में नस्ता लीक और देवनागरी दोनों की आहट मिलती है और इस शायरी को जिस गुलदस्ते में पेश किया जाना था ठीक उसी में पेश किया गया है। शायरी जिस तहज़ीब की पैरोकार होती है उसका खासा ध्यान रखा गया है। तय है कि उनकी शख्सीयत में सलीके और तहजीब के वे सभी जाविये शुमार हैं जो कि ग़ज़ल को मुकम्मल और शायर को कामिल शायर बनाते हैं।
उनको सलाम, क्योंकि इतनी आसान जुबान में इतनी खूबसूरत ग़ज़लें उन्होंने कहीं। उनको सैकड़ों दाद। क्योंकि शायद बशीर बद्र के बाद मेरे देखे वो दूसरे ऐसे समकालीन शायर हैं। जिनके शेर जितने आसान हैं उतने ही गहरे भी हैं मैं चाहता था कि ढेर सारे खूबसूरत अशआर यहाँ बयां करूँ लेकिन कथ्य की परिधि फिर बहुत बढ़ेगी। एक मशवरा यह जरूर देना चाहूँगा कि डिमाई साइज में भी पेपरबैक में यह पुस्तक कुछ कम दामों पर भी उपलब्ध करवाएं।  एक बार बुक- स्टाल पर पन्ने पलटने के बाद कोई भी इस पुस्तक के मोह से खुद को दूर नहीं रख सकेगा।
शायरी में आज बहुत उच्च स्तर की शायरी भी उपलब्ध है।  लेकिन कुछ शायरों को शिल्प से इतना मोह है कि कथ्य छुप जाता है। जैसे बहुत कढ़ाई से कपड़ा छुप जाता है। दूसरे अतिरंजित भावनात्मक उद्द्वेग का सहारा लेते हैं यहाँ रंग से कपड़ा छुप जाता है। अच्छा शेर वही है जो भावपक्ष और कला पक्ष दोनों का समुचित ध्यान रखे और दोनों का कितना प्रतिशत शेर में होना चाहिये इसका भी ज्ञान उसको हो। देवमणि जी सब कुछ जानते हैं।
अगर ग़ज़ल तितली के परों से फूल की पाँखुड़ी पर शबनम की दास्तान लिखने का नाम है तो शत प्रतिशत उन्होंने मुकम्मल ग़ज़ल कह दी है। उनका व्यक्तित्व भी तस्दीक करता है कि वो ऐसी ही ग़ज़लें कहते क्योंकि वो लगभग पचास बरस की उम्र में भी नौजवान हैं, तरोताजा हैं। शिद्दते-अहसास और ऊर्जा से भरपूर व्यक्तित्व के मालिक हैं। नि:सन्देह  देवमणि जी ने एक यादगार पुस्तक अदब की दुनिया को तोहफा दिया है।
  संपर्क- मयंक अवस्थी, नागपुर, awasthimka@gmail.com

पुस्तक- अपना तो मिले कोई
शायर- देवमणि पाण्डेय
कीमत- 150 रूपए
प्रकाशक- अमृत प्रकाशन,  1/5170, बलबीर नगर, गली न 8, शाहदरा, दिल्ली -110032

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