छत्तीसगढ़ में हाथियों को मिलेगी पनाह
-संदीप पौराणिक
हाथियों के समूह का लीडर हमेशा मादा हाथी होती है और कहा जाता है कि उसकी स्मृति में लगभग 200 वर्षों की मेमोरी होती है चूंकि हाथी लगभग 90 वर्षों तक जिंदगी जीते हैं अत: जब हाथी छोटा होता है तब वह अपनी मां, दादी मां से उन सारी जगहों के रास्तों का पूरा नक्शा अपने मस्तिष्क में संजो लेता है और आपातकाल में उसका उपयोग करता है।
पिछली बार जब राज्य वन्य प्राणी सलाहकार बोर्ड की बैठक हुई थी तब हाथी मानव द्वंद्व का मुद्दा काफी जोर- शोर से उठा था तथा हाथी रिजर्व बनानेे की मांग भी बैठक का प्रमुख मुद्दा बनी थी। छत्तीसगढ़ में हाथी- मानव द्वंद्व पिछले कुछ समय से बढ़ गया है। वर्तमान में लगभग 150 से 190 हाथी छत्तीसगढ़ राज्य में पिछले दस वर्षों से स्थायी रूप से रह रहे हैं। एक बड़ी समस्या इनके द्वारा की गई तबाही के कारण है जिससे दर्जनों मानव, सैकड़ों एकड़ जमीन और किसानों एवं आदिवासियों के मकान इनके द्वारा उजाड़ दिए गए और जवाबी हमलों में जिनमें करंट लगाकर और जहर व अन्य वजहों से दो दर्जन हाथी भी काल कलवित हो गए। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने हाल ही में तीन अभ्यारण्यों तमोर पिंगला, सेमरसोत और बादलखोल अभ्यारण्य को मिला कर हाथी रिजर्व बनाने की घोषणा की है। छत्तीसगढ़ में अभी निवासरत हाथी उड़ीसा, बिहार और झारखंड राज्य से भागकर अपनी जान बचाने के लिए आए हैं या यूं कहें कि खदेड़े गए हैं। इन राज्यों में बड़े जोर- शोर से खनन कार्य चल रहा है। इन राज्यों में जहां- जहां हाथी थे, वहां जमीन में बेशकीमती खनिज हैं। यहां खनन माफियाओं ने मिलकर सुनियोजित तरीके से इन्हें यहां खदेड़ा और ये हमारे प्रदेश पहुंच गए।
वर्तमान में हाथी छत्तीसगढ़ राज्य के लिए समस्या मूलक और वरदान दोनों ही है। छत्तीसगढ़ राज्य एकमात्र ऐसा राज्य है जो लगभग 44 प्रतिशत वनाच्छादित है किंतु यहां पर जंगली जानवरों का प्रतिशत जंगल के हिसाब से बहुत कम है। यहां राज्य पशु वन भैंसा की संख्या लगातार कम होती जा रही है। लगभग 2 दर्जन ही जंगली भैंसें यहां बचे हैं। इसके अतिरिक्त बाघ और गौर भी घटते जा रहे हैं। ऐसे समय में जंगली हाथियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति से पर्यटकों के लिए एक अच्छा वातावरण बनाया जा सकता है। वैसे भी हाथियों का छत्तीसगढ़ से बड़ा गहरा रिश्ता रहा है। अंग्रेज लेखक फोरसिथ द्वारा लिखित पुस्तक हाइलैंड्स ऑफ इंडिया में वर्णन है कि वर्ष 1890-1900 के बीच अमरकंटक, बेलगहना, पेन्ड्रा, रतनपुर से लाफागढ़, सरगुजा तक हाथियों के कई समूह देखे गए। 19वीं सदी तक हाथी पूरे भारत में पाया जाता था परंतु हाथी के प्राकृतिक आवास जंगलों के अंधाधुंध कटने के कारण हाथी की संख्या कम हो गई।
हाथी छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, असम, मेघालय और अरूणाचल प्रदेश में ही पाए जाते हैं। मनुष्य और हाथियों का साथ सदियों पुराना है। जहां- जहां प्राचीन शहरों के अवशेष मिले हैं वहां- वहां हाथी के चित्र या फिर वहां की स्थानीय शिल्पकलाओं में हाथियों की भी कलाकृति पाई गई है। भारत में हड़प्पा की खुदाई करने के बाद शिल्पकला में हाथी के अद्भुत नमूने और बर्तनों पर हाथी की चित्रकारी मिली है। राजा महाराजा तो शुरू से ही गजराज की सवारी करते आए हैं। ऐसा कहा जाता है कि जहांगीर की सेना में चालीस हजार हाथी थे और मुगल शासक अकबर की सेना में छत्तीसगढ़ से बड़ी संख्या में हाथी भेजे गए थे।
पृथ्वी पर हाथी के पूर्वज 50- 60 मिलियन वर्ष पूर्व रहते थे। ये रेतीले मैदानों से लेकर आर्द्र वनों, समुद्र तट से लेकर ऊंचे पहाड़ों तक पाए जाते थे। इस जाति की 352 प्रजातियों में से 350 लुप्त हो चुकी हैं। अब केवल दो प्रजातियां ही बची हैं।
अफ्रीकी हाथी अफ्रीका के जंगलों में और एशियाई हाथी भारत, मलेशिया, श्रीलंका और सुमात्रा में पाया जाता है। अफ्रीकी हाथी और एशियन हाथी में मुख्य अंतर यह है कि अफ्रीकी हाथी एशिया के हाथी से आकार में बड़ा होता है। अफ्रीकी हाथी के कान एशियाई हाथी से बड़े होते हैं। 19वीं सदी तक हाथी पूरे भारत में पाया जाता था। हाथी हमारे पर्यावरण और वन संपदा का परम मित्र है। हाथी बीजों के परागण में सहायता करते हैं। जो घास पत्तियां हाथी खाते हैं, उनके बीज हाथी के गोबर द्वारा अन्य स्थान पर पहुंच कर विकसित हो जाते हैं। कीड़े हाथी के गोबर को अपने साथ भूमि के भीतर ले जाते हैं जिससे मिट्टी छिद्रित हो जाती है। हाथी के पैरों में गहरे निशान बनने से भूमि में वर्षा का पानी एकत्र होता है। हाथियों के जंगलों में चलने से पैरों से ऐसे निशान बनते हैं जो जंगलों में रहने वाले पशुओं के लिए मार्गदर्शक का काम करते हैं। इससे उन्हे जंगल में पानी की तलाश करने में कोई कठिनाई नही होती। वे आसानी से पानी तक पहुंच जाते हैं।
हाथी का सबसे निराला अंग है उसकी सूंड जो हाथी के लिए हाथ का काम करती है। यह सूंड नासिका और ऊपर के होंठ से मिलकर बनती है। यह काफी लचकदार होती है। यह लगभग 10 हजार पेशियों से मिलकर बनी होती है और इसमें लगभग 8.5 लीटर पानी समा जाता है। संूड हाथी को खाने, पीने, नहाने, संूघने, स्पर्श करने और बचाव में मदद करती है। हाथी अपनी सूंड से एक सिक्के जैसी छोटी वस्तु को भी उठा सकता है।
हाथी के दांत और जीवों से भिन्न होते हैं, न केवल दिखाने के किंतु खाने के भी। हाथी के दांत नीचे से ऊपर की ओर नहीं निकलते बल्कि पीछे से आगे की ओर बढ़ते हैं। नवजात हाथी में दो या तीन दांत के जोड़े होते हैं, जैसे- जैसे ये दांत घिसते जाते हैं ये बढ़ते- बढ़ते अपने आप नष्ट हो जाते हैं। इनका स्थान पीछे से आगे आने वाले नए दांत ले लेते हैं। ऐसा हाथी के जीवन में छ: बार होता है। दांत हाथी के लिए इतने महत्वपूर्ण होते हैं कि अधिकतर हाथियों की मृत्यु दांत गिरने के कारण भूखा रहने से होती है। हाथी दांत वास्तव में हाथी के शरीर के बाहर नजर आने वाले दांत हैं। नवजात हाथी के ये दांत 6 माह से एक वर्ष के अंदर गिर जाते हैं और उनकी जगह नए दांत आ जाते है। हाथी के दांत एक साल में लगभग 7 इंच बढ़ जाते हैं। हाथी का शिकार मुख्यत: हाथी के इन्हीं दंातों के लिए किया जाता है।
हाथियों की संख्या में निरंतर कमी होने का मुख्य कारण यह भी है। हाथी दंात से बनी विभिन्न आकर्षक वस्तुएं भारी कीमत पर बिकती हैं। हाथी अपने दांतों का उपयोग खोदने के लिए, पेड़ों की छाल उतारने के लिए, लड़ाई के लिए या सूंड बचाने के लिए करते हैं। बिना दांत वाले हाथी को मखना कहते हैं। अफ्रीका में पाए जाने वाले नर और मादा हाथियों में दोनों के दांत होते हैं। एशिया में केवल नर हाथी के ही दांत होते हैं। लगभग दस वर्ष पूर्व जब हाथियों का छत्तीसगढ़ प्रदेश में आगमन हुआ तब सरकार, स्थानीय निवासी तथा पर्यावरण एवं वन्य प्राणियों से जुड़े संगठनों और विशेषज्ञों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और शुरूआत में इसे समस्यामूलक ही समझा गया और ऐसा सोचा जाता रहा कि हाथी जिन जगहों में आए हैं, उन्हीं जंगलों में वापस चले जाएंगे, किंतु जब हाथी यहां स्थायी रूप से रहने लगे तब सबको अपना नजरिया बदलना पड़ा।
हाथियों के समूह का लीडर हमेशा मादा हाथी होती है और कहा जाता है कि उसकी स्मृति में लगभग 200 वर्षों की मेमोरी होती है चूंकि हाथी लगभग 90 वर्षों तक जिंदगी जीते हैं अत: जब हाथी छोटा होता है तब वह अपनी मां, दादी मां से उन सारी जगहों के रास्तों का पूरा नक्शा अपने मस्तिष्क मेें संजो लेता है और आपातकाल में उसका उपयोग करता है। छत्तीसगढ़ में भी हाथी जिन जगहों पर डेरा जमाए हैं उन सभी स्थानों पर पूर्व में हाथियों के रहने के प्रमाण मिले है और वे सारी जगहें पूर्व में राजा, महाराजाओं द्वारा शिकार करके इन्हें वन्य प्राणी विहीन बना दिया गया है। अत: जंगल तो समृद्ध हैं किंतु जानवर नहीं के बराबर। अब हाथियों के कारण जंगल भरे- भरे लगते हैं किंतु जिस तेज गति से यहां काम होना था उस गति से हो नहीं रहा है।
अभी हाल ही में मैंने केरल, तमिलनाडु जो कि हाथी समृद्ध राज्य का अध्ययन दौरा किया। वहां पर हाथी कॉरीडोर बहुत खूबसूरत है। उस पूरे कॉरीडोर में हाथियों की पसंद के फल केला, कटहल, गन्ना आदि जैसी फसलें लगाई गई हैं जिससे हाथी उक्त परिवेश से बाहर नहीं निकलना चाहता। इस तरह आस- पास के प्रभावित किसानों को अदरक, हरी मिर्च, लहसुन जैसी फसलें लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जिन्हें हाथी पसंद नहीं करते। इस प्रकार वहां पर हाथी- मानव द्वंद्व कम हो गया है और लोग सामंजस्यपूर्वक रह रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में अभी भी अच्छे वन्य प्राणी विशेषज्ञ और पशु चिकित्सकों की कमी है। शासन को चाहिए कि वन अधिकारियों एवं स्वयंसेवी संगठनों से जुड़े लोगों और प्रभावित ग्रामीणों को अच्छी ट्यूनिंग दिलवाई जाए और उन राज्यों में इन्हें भेजा जाए जहां लोग वर्षों से बिना समस्या के हाथियों के साथ सामंजस्य से रह रहे हैं। शासन को हाथियों की मुखिया मादा हाथी को रेडियो कॉलर पहनाने पर भी विचार करना चाहिए जिससे उनके दल के रूट का अंदाजा लगाया जा सके। वर्तमान में बहुत ही उत्कृष्ट किस्म के कम वजन वाले लगभग 800 ग्राम के रेडियो कॉलर विश्व बाजार में उपलब्ध हैं, जो कि बहुत ही अधिक असर कारक हैं। इन रेडियो कॉलर द्वारा हम हाथियों को बहुत सी मुसीबतों से बचा सकते हैं। तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक राज्यों ने हाल ही में अपने राज्य में हाथियों पर रेडियो कॉलर प्रायोगिक तौर पर लगाए जिनके परिणाम बेहद उत्साहजनक हैं। हाल ही में मैसूर में दो जंगली हाथियों ने शहर में घुसकर भारी तबाही मचा दी थी।
छत्तीसगढ़ राज्य में ऐसी घटना कभी भी हो सकती है। लगभग चार वर्ष पूर्व हाथियों का एक दल रायगढ़ जिला मुख्यालय में डी.एफ.ओ. के बंगले में घुस गया था जिसे बमुश्किल जंगल में खदेड़ा गया। यदि वह शहर में घुस जाता तो भारी तबाही हो सकती थी। ऐसी ही घटना सरगुजा जिले के मुख्यालय में भी हो चुकी है। यहां लोक निर्माण विभाग के विश्राम भवन में हाथियों के दल ने काफी तबाही मचाई थी। वर्तमान में रायगढ़, कोरबा सहित कई जिला मुख्यालयों से हाथी मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर डेरा जमाए रहते हैं जिन पर निरंतर निगरानी की जरूरत है जिन्हें मात्र रेडियो कॉलर के द्वारा ही काबू में लाया जा सकता है।
संपर्क- एफ 11, शांतिनगर सिंचाई कालोनी, रायपुर (छग)
मो. 9329116267
वर्तमान में हाथी छत्तीसगढ़ राज्य के लिए समस्या मूलक और वरदान दोनों ही है। छत्तीसगढ़ राज्य एकमात्र ऐसा राज्य है जो लगभग 44 प्रतिशत वनाच्छादित है किंतु यहां पर जंगली जानवरों का प्रतिशत जंगल के हिसाब से बहुत कम है। यहां राज्य पशु वन भैंसा की संख्या लगातार कम होती जा रही है। लगभग 2 दर्जन ही जंगली भैंसें यहां बचे हैं। इसके अतिरिक्त बाघ और गौर भी घटते जा रहे हैं। ऐसे समय में जंगली हाथियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति से पर्यटकों के लिए एक अच्छा वातावरण बनाया जा सकता है। वैसे भी हाथियों का छत्तीसगढ़ से बड़ा गहरा रिश्ता रहा है। अंग्रेज लेखक फोरसिथ द्वारा लिखित पुस्तक हाइलैंड्स ऑफ इंडिया में वर्णन है कि वर्ष 1890-1900 के बीच अमरकंटक, बेलगहना, पेन्ड्रा, रतनपुर से लाफागढ़, सरगुजा तक हाथियों के कई समूह देखे गए। 19वीं सदी तक हाथी पूरे भारत में पाया जाता था परंतु हाथी के प्राकृतिक आवास जंगलों के अंधाधुंध कटने के कारण हाथी की संख्या कम हो गई।
हाथी छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, असम, मेघालय और अरूणाचल प्रदेश में ही पाए जाते हैं। मनुष्य और हाथियों का साथ सदियों पुराना है। जहां- जहां प्राचीन शहरों के अवशेष मिले हैं वहां- वहां हाथी के चित्र या फिर वहां की स्थानीय शिल्पकलाओं में हाथियों की भी कलाकृति पाई गई है। भारत में हड़प्पा की खुदाई करने के बाद शिल्पकला में हाथी के अद्भुत नमूने और बर्तनों पर हाथी की चित्रकारी मिली है। राजा महाराजा तो शुरू से ही गजराज की सवारी करते आए हैं। ऐसा कहा जाता है कि जहांगीर की सेना में चालीस हजार हाथी थे और मुगल शासक अकबर की सेना में छत्तीसगढ़ से बड़ी संख्या में हाथी भेजे गए थे।
पृथ्वी पर हाथी के पूर्वज 50- 60 मिलियन वर्ष पूर्व रहते थे। ये रेतीले मैदानों से लेकर आर्द्र वनों, समुद्र तट से लेकर ऊंचे पहाड़ों तक पाए जाते थे। इस जाति की 352 प्रजातियों में से 350 लुप्त हो चुकी हैं। अब केवल दो प्रजातियां ही बची हैं।
अफ्रीकी हाथी अफ्रीका के जंगलों में और एशियाई हाथी भारत, मलेशिया, श्रीलंका और सुमात्रा में पाया जाता है। अफ्रीकी हाथी और एशियन हाथी में मुख्य अंतर यह है कि अफ्रीकी हाथी एशिया के हाथी से आकार में बड़ा होता है। अफ्रीकी हाथी के कान एशियाई हाथी से बड़े होते हैं। 19वीं सदी तक हाथी पूरे भारत में पाया जाता था। हाथी हमारे पर्यावरण और वन संपदा का परम मित्र है। हाथी बीजों के परागण में सहायता करते हैं। जो घास पत्तियां हाथी खाते हैं, उनके बीज हाथी के गोबर द्वारा अन्य स्थान पर पहुंच कर विकसित हो जाते हैं। कीड़े हाथी के गोबर को अपने साथ भूमि के भीतर ले जाते हैं जिससे मिट्टी छिद्रित हो जाती है। हाथी के पैरों में गहरे निशान बनने से भूमि में वर्षा का पानी एकत्र होता है। हाथियों के जंगलों में चलने से पैरों से ऐसे निशान बनते हैं जो जंगलों में रहने वाले पशुओं के लिए मार्गदर्शक का काम करते हैं। इससे उन्हे जंगल में पानी की तलाश करने में कोई कठिनाई नही होती। वे आसानी से पानी तक पहुंच जाते हैं।
हाथी का सबसे निराला अंग है उसकी सूंड जो हाथी के लिए हाथ का काम करती है। यह सूंड नासिका और ऊपर के होंठ से मिलकर बनती है। यह काफी लचकदार होती है। यह लगभग 10 हजार पेशियों से मिलकर बनी होती है और इसमें लगभग 8.5 लीटर पानी समा जाता है। संूड हाथी को खाने, पीने, नहाने, संूघने, स्पर्श करने और बचाव में मदद करती है। हाथी अपनी सूंड से एक सिक्के जैसी छोटी वस्तु को भी उठा सकता है।
हाथी के दांत और जीवों से भिन्न होते हैं, न केवल दिखाने के किंतु खाने के भी। हाथी के दांत नीचे से ऊपर की ओर नहीं निकलते बल्कि पीछे से आगे की ओर बढ़ते हैं। नवजात हाथी में दो या तीन दांत के जोड़े होते हैं, जैसे- जैसे ये दांत घिसते जाते हैं ये बढ़ते- बढ़ते अपने आप नष्ट हो जाते हैं। इनका स्थान पीछे से आगे आने वाले नए दांत ले लेते हैं। ऐसा हाथी के जीवन में छ: बार होता है। दांत हाथी के लिए इतने महत्वपूर्ण होते हैं कि अधिकतर हाथियों की मृत्यु दांत गिरने के कारण भूखा रहने से होती है। हाथी दांत वास्तव में हाथी के शरीर के बाहर नजर आने वाले दांत हैं। नवजात हाथी के ये दांत 6 माह से एक वर्ष के अंदर गिर जाते हैं और उनकी जगह नए दांत आ जाते है। हाथी के दांत एक साल में लगभग 7 इंच बढ़ जाते हैं। हाथी का शिकार मुख्यत: हाथी के इन्हीं दंातों के लिए किया जाता है।
हाथियों की संख्या में निरंतर कमी होने का मुख्य कारण यह भी है। हाथी दंात से बनी विभिन्न आकर्षक वस्तुएं भारी कीमत पर बिकती हैं। हाथी अपने दांतों का उपयोग खोदने के लिए, पेड़ों की छाल उतारने के लिए, लड़ाई के लिए या सूंड बचाने के लिए करते हैं। बिना दांत वाले हाथी को मखना कहते हैं। अफ्रीका में पाए जाने वाले नर और मादा हाथियों में दोनों के दांत होते हैं। एशिया में केवल नर हाथी के ही दांत होते हैं। लगभग दस वर्ष पूर्व जब हाथियों का छत्तीसगढ़ प्रदेश में आगमन हुआ तब सरकार, स्थानीय निवासी तथा पर्यावरण एवं वन्य प्राणियों से जुड़े संगठनों और विशेषज्ञों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और शुरूआत में इसे समस्यामूलक ही समझा गया और ऐसा सोचा जाता रहा कि हाथी जिन जगहों में आए हैं, उन्हीं जंगलों में वापस चले जाएंगे, किंतु जब हाथी यहां स्थायी रूप से रहने लगे तब सबको अपना नजरिया बदलना पड़ा।
हाथियों के समूह का लीडर हमेशा मादा हाथी होती है और कहा जाता है कि उसकी स्मृति में लगभग 200 वर्षों की मेमोरी होती है चूंकि हाथी लगभग 90 वर्षों तक जिंदगी जीते हैं अत: जब हाथी छोटा होता है तब वह अपनी मां, दादी मां से उन सारी जगहों के रास्तों का पूरा नक्शा अपने मस्तिष्क मेें संजो लेता है और आपातकाल में उसका उपयोग करता है। छत्तीसगढ़ में भी हाथी जिन जगहों पर डेरा जमाए हैं उन सभी स्थानों पर पूर्व में हाथियों के रहने के प्रमाण मिले है और वे सारी जगहें पूर्व में राजा, महाराजाओं द्वारा शिकार करके इन्हें वन्य प्राणी विहीन बना दिया गया है। अत: जंगल तो समृद्ध हैं किंतु जानवर नहीं के बराबर। अब हाथियों के कारण जंगल भरे- भरे लगते हैं किंतु जिस तेज गति से यहां काम होना था उस गति से हो नहीं रहा है।
अभी हाल ही में मैंने केरल, तमिलनाडु जो कि हाथी समृद्ध राज्य का अध्ययन दौरा किया। वहां पर हाथी कॉरीडोर बहुत खूबसूरत है। उस पूरे कॉरीडोर में हाथियों की पसंद के फल केला, कटहल, गन्ना आदि जैसी फसलें लगाई गई हैं जिससे हाथी उक्त परिवेश से बाहर नहीं निकलना चाहता। इस तरह आस- पास के प्रभावित किसानों को अदरक, हरी मिर्च, लहसुन जैसी फसलें लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जिन्हें हाथी पसंद नहीं करते। इस प्रकार वहां पर हाथी- मानव द्वंद्व कम हो गया है और लोग सामंजस्यपूर्वक रह रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में अभी भी अच्छे वन्य प्राणी विशेषज्ञ और पशु चिकित्सकों की कमी है। शासन को चाहिए कि वन अधिकारियों एवं स्वयंसेवी संगठनों से जुड़े लोगों और प्रभावित ग्रामीणों को अच्छी ट्यूनिंग दिलवाई जाए और उन राज्यों में इन्हें भेजा जाए जहां लोग वर्षों से बिना समस्या के हाथियों के साथ सामंजस्य से रह रहे हैं। शासन को हाथियों की मुखिया मादा हाथी को रेडियो कॉलर पहनाने पर भी विचार करना चाहिए जिससे उनके दल के रूट का अंदाजा लगाया जा सके। वर्तमान में बहुत ही उत्कृष्ट किस्म के कम वजन वाले लगभग 800 ग्राम के रेडियो कॉलर विश्व बाजार में उपलब्ध हैं, जो कि बहुत ही अधिक असर कारक हैं। इन रेडियो कॉलर द्वारा हम हाथियों को बहुत सी मुसीबतों से बचा सकते हैं। तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक राज्यों ने हाल ही में अपने राज्य में हाथियों पर रेडियो कॉलर प्रायोगिक तौर पर लगाए जिनके परिणाम बेहद उत्साहजनक हैं। हाल ही में मैसूर में दो जंगली हाथियों ने शहर में घुसकर भारी तबाही मचा दी थी।
छत्तीसगढ़ राज्य में ऐसी घटना कभी भी हो सकती है। लगभग चार वर्ष पूर्व हाथियों का एक दल रायगढ़ जिला मुख्यालय में डी.एफ.ओ. के बंगले में घुस गया था जिसे बमुश्किल जंगल में खदेड़ा गया। यदि वह शहर में घुस जाता तो भारी तबाही हो सकती थी। ऐसी ही घटना सरगुजा जिले के मुख्यालय में भी हो चुकी है। यहां लोक निर्माण विभाग के विश्राम भवन में हाथियों के दल ने काफी तबाही मचाई थी। वर्तमान में रायगढ़, कोरबा सहित कई जिला मुख्यालयों से हाथी मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर डेरा जमाए रहते हैं जिन पर निरंतर निगरानी की जरूरत है जिन्हें मात्र रेडियो कॉलर के द्वारा ही काबू में लाया जा सकता है।
संपर्क- एफ 11, शांतिनगर सिंचाई कालोनी, रायपुर (छग)
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ज्ञानवर्धक आलेख.
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