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Oct 15, 2008

प्रकृति के साज पर धडक़ता शहर- शिमला


      प्रकृति के साज पर धडक़ता शहर-  शिमला
                                                                   - गुरमीत बेदी

देवदार के पत्तों पर ठिठकीं पानी की बूंदें गातार इस बात की गवाही दे रही हैं कि इस शहर में झमाझम बारिश होकर हटी है। पहाड़ के सीने पर उगी ा टीनों वाी छत्तों से भी पानी की बूंदे टपाटप नीचे गिर रही हैं। थोड़ी देर पहे यही छत्तें प्रकृति का एक अनूठा साज बनी थीं, जिन पर पड़ती बारिश की बूंदें एक नैसर्गिक राग उत्पन्न कर रहीं थीं। ेकिन अब यह साज भी शांत है और राग भी। अबता बादों के झुंड शहर के कैनवस पर एक अदभुत काकृति की संरचना में गे हैं। गता है जैसे आसमान में कोई अनाम काकार अपनी तूकिा से प्रकृति के चेहरे पर नए रंग भर रहा हो।

बादों के झुण्ड जहां-तहां दरख्तों से पिटे हैं, घाटी में टह रहे हैं और कभी-कभी तो इतना नीचे आ जा रहे हैं कि रिज पर चहकदमी कर रहे सैानी बादों का परिधान ओढ़े प्रतीत हो रहे हैं। इन बादों के भी कई चेहरे हैं। कहीं पर तो बादों के टुकड़े सफेद झक्क रूई जैसे हैं तो कहीं पहाड़ की ओट से झंाकते सूरज की किरणों का स्पर्श पाकर ये सुरमई रंग में रंगे जा रहे हैं। कहीं पर ये बाद गहरे चॉकेटी रंग में रंगे हैं तो कहीं इंद्रधनुषी चोा ओढ़ते दिख रहे हैं।

यह शिमा है ! यानि पहाड़ों का दि! यहां आने वाा सैानी जब हिमाची ोकगीत की यह पंक्तियां- 'म्हारे पहाड़ा रा दि शिमा Ó गुनगुनाता है तो हवाएं भी इस गीत की य पर ता देती महसूस होती हैं। यहां की फिजाओं में अभी भी अंग्रेजों के दौर के कई किस्से गूंजते हैं और 'शिमा समझौतेÓ की इबारतें हवाओं के थपेड़ों के साथ-साथ शहर में तैरती हुई नजर आती हैं। शहर की ऐतिहासिक इमारतों में एक गौरवमयी अतीत की पदचाप दर्ज है तो देवदार, ओक, बुरांस और फर के गगनचुम्बी पेड़ शिमा के उतार-चढ़ाव की घुमावदार कहानियां सुनाते हैं। शिमा हिमाच का दि भी है, धडक़न भी और जज्बात भी। हिमाच के तमाम रंग अपने में समेटे यह एक घु हिमाच है। प्रकृति के कितने रूप हो सकते हैं और प्रकृति कैसे बनाव-सिंगार करती है, यह शिमा आकर देखा जा सकता है। देवदार के पेड़ हवा में कैसे फरफराते हैं, बर्फ से कैसे द जाते हैं और कैसे मौन तपस्वी बन जाते हैं, यह भी शिमा में आकर महसूस किया जा सकता है। हिमाच में अग-अग जिों का कैसा पहनावा है और कैसी-कैसी बोयिां हिमाच की फिजाओं में तैरती हैं, यह देखना सुनना जरूरी हो तो शिमा के मा रोड पर घूम घूम ीजिए।

शिमा का हर मौसम प्रकृति के फक्कड़पन का साक्षी है। शिमा की गर्मियां हों, शिमा की बरसातें या शिमा की बर्फ, शिमा हर रूत में हसीन गता है। हिमाच की नैसर्गिक मुस्कान कैसी है, यह शिमा के किसी भी कोने में खड़े होकर आप देख सकते हैं। कोई पहाड़ी युवती कैसे उन्मुक्त भाव से खिखिाती है, शिमा का रिज इसका आईना बनता है। शिमा ने इतिहास के अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं, कई पुरानी और आीशान इमारतें इसकी गवाही देती हैं। पीठ पर ादे बोझ को लेकर ोग किस तरह पहाड़ नापते हैं, शिमा इसका जीता जागता सबूत है। कोई बुजूर्ग ाठी टेके किस तरह सचिवाय के गेट पर खड़ा हांफता है और किस तरह निराशा की परतें उसकी झुर्रियों पर चमकने गती हैं, यह भी शिमा का एक चेहरा है। सीढि़यों पर टिका यह शहर रात को किस तरह जुगनुओं सा टिमटिमाता है, इसे शिमा के एक अग रूप में देखा जा सकता है। देवदार के घने जंगों के साथ-साथ कंकरीट का कैसा घना जंग यहां उग आया है और बेतरतीव निर्माण ने प्रकृति की गाों को कैसी खरोंचे डाी हैं, शिमा इसका भी साक्षी है।

चढ़ाई-उतराई से भरपूर शिमा में घरों से घर सटे हैं और छतों से छतें सटी हैं ेकिन शिमा का यह चेहरा इसी सदी की देन है। पहे ऐसा नहीं था। शिमा तो पहे महज एक गांव था, जिसका नाम था 'श्यामाÓ। फिर श्यामा से अपभं्रश होकर इसका नाम 'शुमाहÓ पड़ा जो एक अर्से तक शिमाह रहने के बाद फिर शिमा हो गया। शिमा को बसाने का श्रेय किसे जाता है, इस बारे में इतिहासकार एकमत नहीं हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, शिमा पर सर्वप्रथम एक अंग्रेज अधिकारी की नजर पड़ी थी, जो सन 1817 में सपाटू से कोटगढ़ के एि बरास्ता शिमा से होकर गुजरा था। कुछ इतिहासकार यह श्रेय उन जिराल्ड बंधुओं को देते हैं जो सन् 1817 में शिमा-जाखू मार्ग से सतुज घाटी के भू-गर्भ संबंधी सर्वेक्षण के एि किन्नौर गए थे। इन दोनों बंधुओं में से एक एैक्जैंडर जिराल्ड ने 30 अगस्त 1817 को अपने डायरी में खिा था, 'हम जाखू टिब्बा के इस ओर रात को रहे। वहां एक फकीर राहगीरों को पानी पिाता है ... वह फकीर तेजस्वी है तथा अपने जिस्म पर मात्र चीते की खा ओढ़े रहता है। इस निर्जन, भयावह और घने जंग में रहने वाा वह एक मात्र मनुष्य है ... जाखू एक अत्यंत सुहावना स्थ है और यहां से सम्पूर्ण घाटी का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। शिमा से जाखू तक का मार्ग उबड़-खाबड़ है और जंग से होता हुआ जाता है।Ó इस डायरी का वर्णन 'शिमा पास्ट एण्ड प्रजैंटÓ में सविस्तार किया गया है।

इसी सिसिे में एक और घटना प्रचति है, जिस बारे में कई विद्वान का एक ही मत हैं। यह बात 1820 की है। घुड़सवार कैप्टन कैनेडी और उसके साथी इस क्षेत्र में टह रहे थे कि उन्होंने दूर देवदार के घने जंग में अजीब किस्म का धुआं उठते देखा। कैनेडी ने अपने साथियों के साथ उस घुएं की ओर कूच किया। वहां पहुंचने पर एक सफेद जटाधारी साधू को उन्होंने समाधिस्थ पाया। कैनेडी उस साधू के चेहरे पर दमक रहे तेज से बहुत प्रभावित हुआ और समाधि टूटने का इंतजार करने गा। शाम को जब साधू की समाधि टूटी तो अंग्रेज अधिकारियों को अपने सामने खड़ा पाकर साधू के होठों पर मुस्कान फै गई। बोा, 'आप आ गए। मैं आपका ही इंतजार कर रहा था। जल्द ही हजारों ोग आएंगे और बहुत से मकान बनेंगे ... इस जगह पर ोग खुशियां मनाएंगे।Ó इतना कहने के बाद साधू अपना कमण्ड उठाकर अज्ञात दिशा को चा गया। उस साधू को फिर कभी यहां नहीं देखा गया। ेकिन उसकी भविष्यवाणी सच हुई। शिमा गांव से शहर बना और शहर से राजधानी। अंग्रेजों ने तो इसे अपनी ग्रीष्मकाीन राजधानी भी बनाया। हिमाच की तो यह सदाबहार राजधानी है।

इतिहास के पन्ने पटें तो माूम होगा कि शिमा को सजाने और संवारने का श्रेय अंग्रेजों को जाता है। सर एडबर्ड बक के अनुसार, सन 1819 में सहायक राजनैतिक अधिकारी ैफटीनैंट रौस ने शिमा में लकड़ी और घास-फूस से झौपड़ी बनाई। रौस के बाद मेजर कैनेडी इस क्षेत्र का राजनीतिक उत्तराधिकारी हुआ। उसने सर्वप्रथम 1822 में यहां कड़ी और पत्थर से निर्मित पहा पक्का मकान बनाया, जिसे कैनेडी हाऊस के नाम से जाना गया।

फिर तो कई अंग्रेज अधिकारी यहां के सम्मोहन में बंधे और मकान बनाकर यहीं बस गए। 19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में काका-शिमा रे मार्ग का निर्माण हुआ और 9 नवम्बर, 1906 को पही रेगाड़ी छुक-छुक करती हुई शिमा की हसीन वादियों में पहुंची। अंग्रेजों के समय में ही यहां कई सुरंगों का निर्माण हुआ। इन सुरंगों का वजूद न केव आज भी कायम है, बल्कि कई सैानी तो शिमा को 'सुरंगों की नगरीÓ का खिताव भी दे देते हैं।

शिमा का मुख्य आकर्षण यहां के गिरजाघर भी हैं। ये गिरजाघर मात्र प्रार्थनाय ही नहीं हैं, अपितु काकृति का भी बेमिसा नमूना हैं। शिमा का पहा कैथोकि चर्च ोअर बाजार के पश्चिमी किनारे पर सन् 1850 में निर्मित हुआ था। इसके निर्माण का श्रेय मिस्टर एफई जेम्स और जे नैश को जाता है। 1880 में गोर्डन केस्ट नामक स्टेट ने इस गिरजाघर को और भव्य बनाने के एि 40 हजार रुपए दिए। इसी स्थ पर 1885 में एक अन्य भव्य चर्च का निर्माण हुआ, जिस पर उस समय अस्सी हजार रुपए व्यय हुए। इसके निर्माण का श्रेय ार्ड रिपन को जाता है, जो स्वयं कैथोकि थे। ार्ड रिपन ने इस चर्च के निर्माण में व्यक्तिगत रूचि ेकर इसका डिजायन ंदन के मशहूर वास्तुकार मिस्टर मैथ्यूज से तैयार करवाया। अत्यंत भव्य कारीगरी की जीवंत मिसा यह गिरजाघर सहज ही राहगीरों को अपनी ओर आकर्षित करता है। शिमा के रिज मैदान में स्थित गिरजाघर तो अपनी भव्य निर्माण शैी औेर ंबे-ंबे बुर्जों की वजह से शिमा की शान कहाता है और देश-विदेश में अत्याधिक ख्याति अर्जित कर चुका है। आप किसी भी कोण से शिमा की तस्वीर उतार ीजिए, यह गिरजाघर आपको गर्व से खड़ा दिखेगा। शिमा का ही एक आकर्षण यहां का रिज है। गर्मियां हों या सर्दियां, रिज पर भरपूर चह- पह मिेगी। जब शिमा बर्फ की चादर ओढ़ता है, तब भी रिज पर सन्नाटा नहीं बजता। ोग गुदगुदाती बर्फ पर चने का रोमांच ेते हैं। सैानी बर्फ के गो बनाकर एक-दूसरे पर फेंकते हैं। हनीमून मनाने आए जोड़े बांहों में बाहें डो रिज पर मस्ती से घूमते हैं। सारी गयिां वीरान होने पर भी रिज देर तक आबाद रहता है। शिमा में तो यह कहावत भी प्रचति है कि अगर किसी को घर जाकर ढूंढने की जहमत नहीं उठानी हो तो उसे शााम को रिज पर मि ें। रिज में तो हर कोई तफरीह मारने को बेचैन रहता है। रिज दि वाों का है, जैसे दि वाों की है दिल्ी। हो भी क्यों न ? हमारे पहाड़ों का तो दि ही शिमा है। 'म्हारे पहाड़ा रा दि शिमाÓ गीत की पंक्त्यिां कोई पहाड़ी युवती शिमा आकर यूं ही नहीं गुनगुनाती। शिमा में कोई आकर्षण तो जरूर है जो देसी, विदेशी सैानियों को यहां खींच-खींच ाता है। शिमा की फिजां में कोई ऐसा सम्मोहन जरूर है जो सैानी यहां आते ही दुनियावी चिंताओं को भूकर मस्ती के आम में खो जाते हैं। शिमा अमस्त फक्कड़पन का नाम है, प्रकृति के फक्कड़पन की तरह। शिमा का अपना एक अग कबीराना अंदाज है ...।

शिमा महज एक पर्यटन स्थ ही नहीं, अपितु ऐतिहासिक इमारतों की नगरी भी है। समय-समय पर अग्निकांडों में यहां की ऐतिहासिक इमारतें खाक होती रहीं हैं ेकिन जो सामत बची हैं, वे अभी तक चर्चा में हैं। ये तमाम इमारतें अंग्रेजों की यादें संजोए हुए हैं और इनमें वायसरीग ाज, स्नोडन, रिट्रीट, गेयटी, गोस्टन कास और वार्नस कोर्ट को गिना जा सकता है। रेनेसां का का प्रसिद्घ भवन वायसरीग ाज सम्भवत: शिमा का सबसे विशा भवन है। इस भवन का दूसरा उदाहरण इग्ैंड में स्कोच हिडरो है। प्रख्यात वास्तुकार हैनरी अरविन तथा एचएल कौ ने भी इसे स्कोच हिडरो का दूसरा रूप माना था। 1888 में बनी यह इमारत आीशान तो है ही, इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। इस भवन में ार्ड डफरन ने प्रथम वायसराय के रूप में पदार्पण किया था। जब वायसराय शिमा में होते तो इस भवन पर यूनियन जैक हराता था। शिमा के ोग इसे ाट साहिब की कोठी भी कहते थे। गांधी-नेहरू से ेकर जिन्नाह तक अनेक कांग्रेसी और मुस्मि ीगी नेताओं से यहां अंग्रेज साम्राज्य के अफसरों ने परामर्श किया था। शिमा के पर्यटन स्थों में कुफरी, नादेहरा, वाइल्ड फावर का नाम यिा जा सकता है। समुद्रत से 2623 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कुफरी की शिमा से दूरी 16 किोमीटर है। गर्मियों में यहां चारों तरफ हरियाी बिछी नजर आती है। शिमा से 23 किोमीटर दूर नादेहरा विश्व के सबसे उंचे गोल्फ मैदान के एि प्रसिद्घ है। शिमा से 13 किोमीटर दूर वाइल्ड फावर की खूबसूरती भी बेमिसा है।

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