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Oct 15, 2008

सफ़रनामा- कारीगरों के बीच 20 साल

             सफ़रनामा- कारीगरों के बीच 20 साल
                                                              -जमील रिज़वी

छत्तीसगढ़ के कोंडागांव बस्तर में स्थित साथी समाज सेवी संस्था का नाम पारम्परिक का के संरक्षण और विकास के यिे किये गए उल्ेखनीय कार्यों के कारण न केव देश में बल्कि विदेश में भी प्रसिद्घ हो चुका है। संस्था से जुड़े कारीगर न सिर्फ भारत में 500 से ज्यादा प्रदर्शनियंा कर चुके हैं बल्कि विदेशों में भी अपनी का का ोहा मनवा चुके हैं। गौरतब बात यह कि साथी संस्था ने यहां तक का सफर बिना किसी सरकारी मदद के तय किया है। आज इस संस्था का वार्षिक टर्न ओव्हर गभग 40 से 50 ाख रुपयों के बीच है।

आज से 20 सा पहे यह संस्था एक छोटे अनाथ बच्चे की तरह पैदा हुई थी। शुरूआती दिनों में चंद ोगों ने इसे समझा और सराहा। कुछ कर गुजरने की लगन से संस्था की मेहनत दिन -ब -दिन रंग ाती गई और आज यह संस्था किसी नाम की मोहताज नहीं है।

बातें शुरू होती हैं 1986 से जब भद्रावती महाराष्ट्र में गांधीवादी समाजसेवी श्री कृष्णमूर्ति मिरमिरा के संस्थान ग्रामोदय संघ में 2 सा के डिपेमा इन सिरेमिक्स में देश के अन्य नौजवान डक़ों के साथ मुरैना मध्यप्रदेश से भूपेश तिवारी, भिाई मध्यप्रदेश (अब छत्तीसगढ़) से भूपेंद्र बंछोर और आजमगढ़ उत्तर प्रदेश से हरीा भारद्वाज ने यहां दाखिा यिा। यहीं पर इन तीनों नौजवानों की दोस्ती हुई और मिरमिरा जी की हिफाजत में रहते हुए महात्मा गांधी और कुमारप्पा के विचारों से प्रेरणा ेकर ये तीनों साथी डिपेमा ेने के बाद देश भर में सिरेमिक्स और कुम्हारी के विकास की संभावनाओं की ताश करते बस्तर चे आए।

कुम्हारपारा कोंडागांव में इन्होंने अपना नया ठिकाना बनाया। तीनों साथी आसपास के कुम्हारों से मिते रहे और उन्हें अपनी बातें बताते रहे। शुरू के ये दिन बड़ी तकीफ वो थे क्योंकि ना तो कोई इनकी बातें सही तौर पर सुनने वाा था और ना ही समझने वाा। हाात यहां तक आ पहुंचे थे कि इन तीनों साथियों के पास की सारी जमा पूंजी भी खत्म हो चुकी थी। बात भूखों मरने तक आ पहुंची थी। ेकिन मजबूत इरादों और कुछ स्थानीय दोस्तों की मदद से तीनों यहां टिके रहे। धीरे-धीरे कारीगर कुछ- कुछ समझने गे और यहीं से इन तीनों का संघर्षपूर्ण सफर शुरू हुआ। अफसोस सिर्फ इस बात का है कि संस्था के एक कर्मठ साथी भूपेंद्र बंछोर आज कारीगरों के बीच नहीं है। एक सडक़ दुर्घटना में उनका देहांत हो गया।
भूपेश तिवारी, साथी समाज सेवी संस्था, कुम्हारपारा कोंडागांव, बस्तर के संस्थापक अध्यक्ष हैं और कपार्ट की गवर्निंग बॉडी के पूर्व सदस्य, केंद्रीय योजना आयोग की जाएंट मशीनरी के सदस्य, छत्तीसगढ़ शासन की टास्क फोर्स फार रूर इन्डस्ट्रियाइजेशन के सदस्य, नेशन अवार्ड कमेटी के सदस्य के रूप में अपना योगदान दे चुके है और इसके आवा वे देश की कई नामी गिरामी संस्थाओं से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं।


यह संस्था दक्षिणी छत्तीसगढ़ के तीन जिों बस्तर, नारायणपुर और कांकेर के 140 गांवों के करीब 2000 कारीगर कुनबों के यिे काम कर रही है। कारीगरों में सामुदायिक विकास, कारीगरों को संगठित करना, उद्यमिता विकास, नेतृत्व विकास, एक्सपोजर, तकनीक और औजारों का विकास, डिजाइन डेवपमेंट और उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी, स्थानीय से ेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक विपणन, काम के यिे पूंजी की व्यवस्था, जैसे मुद्दों पर साथी समाज सेवी संस्था का हमेशा ध्यान रहा है।


साथी की मदद ेकर पिछे 20 सा में 5000 से भी ज्यादा कारीगर पूरी तरह दक्ष हो चुके हैं। और आज स्वतंत्रतापूर्वक अपना रोजगार कर रहे हैं। बस्तर की विभिन्न कलाओं और कलाकारों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक विशेष मुकाम तक पंहुचाने के साथ संस्था ने 1994 से अब तक 200 स्वसहायता समूहों का गठन करवाया है। साथी की निगरानी में सभी स्वसहायता समूह अपना अपना काम कर रहे हैं। कारीगरों के स्वसहायता समूह के सदस्य आपस में मि बैठ कर आर्थिक गतिविधियों पर काम कर रहे हैं जबकि ग्रामीण महिाओं के स्वसहायता समूह गांव में ोंगों को कम ब्याज दर पर उधार रकम देकर उनकी मदद कर रहे हैं। नगरनार क्षेत्र में 40 नए स्वसहायता समूह ग्रामीण पर्यटन से जुड़े हुए हैं। इन क्षेत्रों में आने वो सैानियों के यिे ये स्वसहायता समूह काफी मददगार साबित हुए हैं। इसके आवा साथी की मदद से पांच या सात कारीगरों के अग-अग द भी बने हुए हैं जो आपस में मि बैठ कर काम करते हैं।


ग्रामीणों में नेतृत्व के विकास के यिे साथी संस्था ने समय-समय पर युवा सम्मेन आयोजित कर खे प्रतियोगिताएं आयोजित करवाईं, कारीगरों को राष्ट्रीय कारीगर पंचायत, बस्तर शिल्पी संरक्षण संगठन जैसे मंचों से जुडऩे में मदद की।
साथी का विश्वास कम्यूनिटी ओनरशिप, कम्यूनिटी पार्टिसिपेशन, कम्यूनिटी डेवपमेंट और कम्यूनिटी स्पिरिट पर सबसे ज्यादा रहा है। साथी संस्था ने कारीगरों के यिे कई कम्यूनिटी सेंटर अपनी निगरानी में शुरू किये। जब कारीगर इन कम्यूनिटी केन्द्रों को खुद चा पाने में सक्षम हो गए तब संस्था ने उनका एक समुदाय बनाकर पूरे तौर पर अपना दख हटा कर कम्यूनिटी केंद्र का पूरा माकिाना हक कारीगरों के समुदाय के हाथों सौंप दिया। बीटीएसी कुम्हारपारा, नगरनार, गोावंड, करनपुर, नारायणपुर, उमरगांव और किड़ईछेपड़ा जैसे अनेक कम्यूनिटी सेंटर के माकि कारीगर खुद हैं और बखूबी अंजाम दे रहे हैं।

तकनीकी विकास के अंतर्गत उपयोगी औजार और तकनीकी विकास के यिे साथी संस्था ने मेपकास्ट, आई आई टी दिल्ी, आई आई टी मुम्बई, रीजन रिसर्च ेब भोपा, नेशन मेटर्जी ेब जमशेदपुर, महात्मा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ रूर इंडस्ट्रियाइजेशन, सेंट्र गस एंड सिरेमिक्स रिसर्च इंस्टिट्यूट खुर्जा की मदद ेकर कारीगरों का काम आसान बनाया है।
डिजाइन डेवपमेंट के यिे साथी संस्था ने बहुत बारीकी से काम किया है। भारतीय और विदेशी डिजाइनर्स के
साथ साथी कारीगरों की कार्यशाा से बेहतरनतीजे सामने आए हैं। संस्था के कारीगरों ने सन् 2000 में गेरिट रिटवेल्ड एकेडमी एम्स्टर्डम हॉेंड के 50 डिजाइन स्टुडेंट के साथ, 2002 एवं 2004 में इटायिन डिजाइनर एदुआर्दो पेरी के साथ 60 कारीगरों की चार कार्यशाा, 2004 में नीदरैंड की 2 डिजाइन स्टुडेंट स्टिना और एग्नेस एवं 2005 में इंडियन इन्टिट्यूट आफ क्राफ्ट एवं डिजाइन जयपुर के विद्घार्थी हुसैन और राजेश के साथ महत्वपूर्ण कार्यशााएं की हैं। 2006 में स्वीडन के दस डिजाइन स्टुडेंट के साथ हुई कार्यशाा के अतिरिक्त इंटेेक्चुअ प्रापर्टी राइट्स के तहत निफ्ट हैदराबाद एवं साथी के 100 कारीगरों की एक महत्वपूर्ण कार्यशाा साथी ने आयोजित की थी।



इन कार्यशााओं के जरिये साथी के कारीगरों ने नये डिजाइनों का विकास किया और बोनिया इटी में हुए साना फेयर 2007 में इसका प्रदर्शन हुआ। साथी संस्था ने अपने कारीगरों के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गभग 5 से 6 का प्रदर्शनियों में भाग यिा। साथी ने आइफेट, सीटीएम, अल्ट्रा क्वाटिा जैसे संगठनों से जुडक़र कारीगरों के यिे हाइजीनिक वर्किग कंडीशन के यिे भी प्रयास किया है। साथी को डीएसटी, कापार्ट, यूएनडीपी, डीसीएच और केव्हीआई सी जैसे संस्थानों के साथ भी काम करने का अच्छा खासा अनुभव रहा है।

साथी समाज सेवी संस्था का सबसे अधिक सराहनीय काम 2003 में तब रहा, जब संस्था ने एक सहयोगी संस्था रायपुर राउंड टेब की मदद से जरूरतमंद ग्रामीण तबकों एवं कारीगरों के बच्चों के यिे एक स्कू साथी राउंड टेब गुरूकु शुरू किया। यह स्कूल आज 170 छोटे बच्चों को गुणवत्तापूर्ण और रोजगारपरक शिक्षा देकर एक नया नजरिया दे रहा है।
साथी संस्था के केम्पस में पंहुचने पर खुद-ब-खुद इस बात का अंदाज हो जाता है कि संस्था के सदस्य और कारीगरों के बीच किस कदर बेहतरीन तामे है, देखकर हैरानी होती है कि आज से बीस सा पहे अगर ये तीन साथी हिम्मत नहीं जुटा पाते तो आज बस्तर के इन करीगरों को न तो अपनी हूनर को दुनिया भर में प्रचारित करने का अवसर सुलभ होता और न ही इस क्षेत्र में आपसी तामे और भाईचारे का ये नजारा देखने को मिता।

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