सेब क्रांति के अग्रदूत सत्यानंद स्टोक्स
हिमाचल का
काला सोना
- अशोक सरीन
हिमाचल प्रदेश न केवल अपने मायावी सौंदर्य के लिए पर्यटकों में चर्चित है, बल्कि इसकी पहचान आज देश भर में एक प्रमुख फलोत्पादक के रूप में हुई है। संतरा, आम, नींबू, गलगल, लीची, किन्नू, मालटा, अंगूर, अमरूद, खुमानी यहां के प्रमुख फल है। इन फलों के उत्पादन से लगभग 60 हजार लोग जुड़े हैं। पर हिमाचल को जो ख्याति सेब के कारण मिली है, वह किसी अन्य फल से नहीं मिली। इस प्रकार हिमाचल में सेब फलों का सरताज है और इसे 'भारत का सेब राज्य भी कहा जाता है। हालांकि हिमाचल देश में पैदा होने वाले सेब का 35 प्रतिशत भाग ही पैदा करता है लेकिन यह अच्छी क्वालिटी के सेबों के लिए विख्यात है।
प्रदेश में सेब को गत चार दशकों से काफी प्रोत्साहन मिला है। आंकड़ों पर नजर डालें तो सन् 1960 में हिमाचल प्रदेश में केवल 3025 हैक्टेयर क्षेत्र में सेब के बगीचे थे। सन् 1989 में ये क्षेत्र बढक़र 57460 हेकेट्यर हो गया। वर्तमान में यह संख्या एक लाख हेक्टेयर से अधिक है। इसी प्रकार सन् 1960 में सेब का उत्पादन मात्र 1200 टन था, जो 1989 में बढक़र 3.30 लाख टन और अब 6 लाख टन से अधिक है। लगभग 35 हजार सेब उत्पादक सेब उत्पादन से जुड़े हैं। इनमें अधिकांश के पास बहुत कम जमीन है।
हिमाचल में सेब की खेती 3,500 से लेकर 9000 फुट तक की ऊंचाई तक, मुख्यता शिमला, कुल्लू, मंडी, सिरमौर, किन्नौर और चंबा जिलों में की जाती है। फलोत्पादन के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल का लगभग 71 प्रतिशत भाग सेब उत्पादन से जुड़ा है। हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादन में विशेषता यह है कि यहां पर डिलिशियस जाति के सेब व्यावसायिक स्तर पर लगाए गए और यहां से इस किस्म के सेब देश के अन्य राज्यों व अन्य देशों में भी प्रचलित हुए। सभी अखिल भारतीय प्रदर्शनियों में हिमाचल के डिलिशियस जाति के सेब सर्वोत्तम पाए गए। इसके कारण इस प्रदेश को देश का सर्वोत्तम सेब उत्पादक राज्य माना गया है।
हिमाचल प्रदेश में शुरू से ही सेब की रेड डिलिशियस, रायल डिलिशियस, रिचए-रेड आदि जातियां बहुत ही लोकप्रिय रही है। ये जातियां यद्यपि देखने में सुंदर और खाने में स्वादिष्ट है, पर अधिक नाजुक होने के कारण गोदामों में भंडार करने के अयोग्य थीं। इन्हें कुछ विशेष क्षेत्रों में ही उगाया जा सकता था। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी समझा गया कि सेब की ऐसी जातियां निकाली जाएं, जो अधिक पैदावार देने वाली व प्रदेश के सेब उत्पादन क्षमता वाले सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हो तथा कीड़ों व बीमारियों की भी रोधक है। इस उद्देश्य से प्रादेशिक फल अनुसंधान केन्द्र, मशोबरा और कोटखाई में विभिन्न देशों से लगभग 400 जातियां लाकर अनुसंधान कार्य शुरू किया गया। इसके परिणामस्वरूप इस प्रदेश के लिए निम्न जातियां उपयोगी पाई गई:
टाइटमैन वरसेस्टर, रेड डिलिशियस, रायल डिलिशियस, रिच-ए-रेड, रेड गोल्ड, स्टारकरिमसन डिलिशियस, गोल्डन डिलिशियस, मैंकिटास, लाडैलैर्बोन, थोकए रेड, एलिंगटन पिपिन, ग्रेनी स्मिथ।
हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादन का श्रेय सत्यानंद स्टोक्स, जिनका वास्तविक नाम सैमुअल एवांस स्टोक्स था को जाता है। उन्होंने बीसवीं शताब्दी के आरंभ में शिमला के कोटगढ़ व कोटरखाई क्षेत्रों में सेब के पौधें लगाकर स्थानीय लोगों का इस फल के प्रति आकर्षण पैदा किया।
सत्यानंद स्टोक्स को सेब क्रांति का अग्रदूत माना जाता है। उनका नाम हिमाचल प्रदेश में केवल सेब के कारण ही नहीं, बल्कि अनेक ऐसे अन्य कार्यों के लिए आदरसहित लिया जाता है, जो उन्होंने मानव समाज कल्याण के लिए किए। पाठकों के लिए इस सेब पुरूष के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत है:
सैमुअल एवांस स्टोक्स का जन्म 16 अगस्त, 1882 को अमेरिका में हुआ था। उनके पिता बहुत बड़े इंजीनियर थे। वे बेटे को भी अपने रूप में ढालना चाहते थे पर उसे कुछ और ही स्वीकार था। उन्होंने भारत के बारे बहुत कुछ सुन रखा था। वह भारत आने के इच्छुक थे। सन् 1904 में सैमुअल शिमला के सपाटू नामक स्थान पर आकर ठहरे। यहां आकर उन्होंने कोढग़्रस्त लोगों की सेवा सुश्रुषा की। सन् 1905 में आए भंयकर भूकंप के दौरान उन्हें कांगड़ा में राहत कार्यों के संचालन का काम सौंपा गया। भूकंप पीडि़तों की उन्होंने जी जान से सेवा की। उनका विश्वास था कि सच्चा भारतीय बनने के लिए भारतीय जन-जीवन पद्धति को अपनाना आवश्यक है। इसके लिए उन्होंने यूरोपीय आचार-विचार त्याग कर हिंदू धर्म को अंगीकार किया ।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी उन्होंने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। जलियावाला बाग के लोमहर्षक कांड ने उनके मन में ब्रिटिश शासकों के प्रति घृणा जागृत कर दी और वे स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हो गए। वे महात्मा गांधी के काफी निकट रहे। सन् 1922 में उन पर मुकदमा चला, जिसमें लाला लाजपतराय को गुप्त सूचनाएं पहुंचाने के लिए उन्हें दोषी ठहराया गया और उन्हें दो वर्ष के कारावास का दंड मिला। उन्होंने उस समय शिमला हिल्स में विद्यमान बेगार प्रथा के विरूद्ध आंदोलन छेड़ा। उन्हीं के अथक प्रयासों से 1921 में शिमला हिल्स से बेगार प्रथा का अंत हुआ।
उन पर आलोचकों का यह आरोप था कि उत्तरदायित्व विहीन अविवाहित युवक होने पर वे भारत के लिए कुछ न कर पाएंगे। अपने आलोचकों का मुंह बंद करने के लिए उन्होंने कोटगढ़ की एक पहाड़ी राजपूत क्रिश्चियन एजंस बैजामिन जो बाद में प्रिया के नाम से जानी गई, के साथ शादी कर ली। शादी के बाद उन्होंने कहा- 'मैं आज भारत हूं। मैंने एक भारतीय महिला से शादी की है। मेरे होने वाले बच्चे पूर्णत्या भारतीय बनेंगे।
सत्यानंद स्टोक्स को सेब क्रांति का अग्रदूत कहा जाता है और आज हिमाचल सेब राज्य के रूप में जाना जाता है। स्टोक्स का विश्वास था कि पहाड़ों की समृद्धि बागवानी में निहित है। उन्होंने कृषि जलवायु की दृष्टिï ेस अति उपयुक्त मगर कठिन क्षेत्र कोटगढ़ में सेबों की वैज्ञानिक ढंग से खेती की। उन्होंने यहां के लोगों को इस फल के उत्पादन की ओर आकर्षित किया। इन्हीं प्रयासों के फलस्वरूप कोटगढ़ का क्षेत्र बेहतरीन किस्म का सेब उत्पादित करने में हिमाचल के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया।
सैमुअल एवांस स्टोक्स आए तो थे ईसाई धर्म का प्रचार करने पर हिन्दू धर्म से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यह धर्म अंगीकार कर लिया। उनके हिन्दू धर्म में दीक्षित होने के पीछे एक घटना जुड़ी है जिसने उनकी जीवन धारा ही बदल डाली।
बात मद्रास की है। वहां घूमने आए एक सन्यासी सत्यानंद की स्टोक्स से भेंट हो गई। बात-बात में धार्मिक चर्चा शुरू हो गयी। बाद में यह चर्चा शास्त्रार्थ में बदल गई। स्वामी जी गीता के मर्मज्ञ थे। स्टोक्स ने स्वामी सत्यानंद को बाइबल के तत्वज्ञान को समझाने का प्रयास किया तो इधर स्वामी ने गीता दर्शन को स्टोक्स के समक्ष रखा। स्वामी के अकाट्य तर्कों से स्टोक्स बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने दो टुक निर्णय लिया कि वह हिन्दू धर्म में दीक्षित होंगे। बाद में एक भव्य समारोह में स्टोक्स ने सपरिवार हिन्दू धर्म में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात सैमुअल एवांस स्टोक्स ने अपना नाम उन्हीं सन्यासी के नाम पर सत्यानंद स्टोक्स रख लिया। स्टोक्स ने कोटगढ़ में एक भव्य गीता मंदिर, थानेधार में सत्यानंद स्टोक्स कृषक सामुदाटिक भवन, प्रशीतनगृह के अतिरिक्त बागवानी केन्द्र की स्थापना की।
सत्यानंद स्टोक्स का 1946 में निधन हुआ। हिमाचल को सदा इस बात का गर्व रहेगा कि स्टोक्स जैसे महान व्यक्ति इस धरती पर आकर रहे।
हिमाचल का
काला सोना
- अशोक सरीन
हिमाचल प्रदेश न केवल अपने मायावी सौंदर्य के लिए पर्यटकों में चर्चित है, बल्कि इसकी पहचान आज देश भर में एक प्रमुख फलोत्पादक के रूप में हुई है। संतरा, आम, नींबू, गलगल, लीची, किन्नू, मालटा, अंगूर, अमरूद, खुमानी यहां के प्रमुख फल है। इन फलों के उत्पादन से लगभग 60 हजार लोग जुड़े हैं। पर हिमाचल को जो ख्याति सेब के कारण मिली है, वह किसी अन्य फल से नहीं मिली। इस प्रकार हिमाचल में सेब फलों का सरताज है और इसे 'भारत का सेब राज्य भी कहा जाता है। हालांकि हिमाचल देश में पैदा होने वाले सेब का 35 प्रतिशत भाग ही पैदा करता है लेकिन यह अच्छी क्वालिटी के सेबों के लिए विख्यात है।
प्रदेश में सेब को गत चार दशकों से काफी प्रोत्साहन मिला है। आंकड़ों पर नजर डालें तो सन् 1960 में हिमाचल प्रदेश में केवल 3025 हैक्टेयर क्षेत्र में सेब के बगीचे थे। सन् 1989 में ये क्षेत्र बढक़र 57460 हेकेट्यर हो गया। वर्तमान में यह संख्या एक लाख हेक्टेयर से अधिक है। इसी प्रकार सन् 1960 में सेब का उत्पादन मात्र 1200 टन था, जो 1989 में बढक़र 3.30 लाख टन और अब 6 लाख टन से अधिक है। लगभग 35 हजार सेब उत्पादक सेब उत्पादन से जुड़े हैं। इनमें अधिकांश के पास बहुत कम जमीन है।
हिमाचल में सेब की खेती 3,500 से लेकर 9000 फुट तक की ऊंचाई तक, मुख्यता शिमला, कुल्लू, मंडी, सिरमौर, किन्नौर और चंबा जिलों में की जाती है। फलोत्पादन के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल का लगभग 71 प्रतिशत भाग सेब उत्पादन से जुड़ा है। हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादन में विशेषता यह है कि यहां पर डिलिशियस जाति के सेब व्यावसायिक स्तर पर लगाए गए और यहां से इस किस्म के सेब देश के अन्य राज्यों व अन्य देशों में भी प्रचलित हुए। सभी अखिल भारतीय प्रदर्शनियों में हिमाचल के डिलिशियस जाति के सेब सर्वोत्तम पाए गए। इसके कारण इस प्रदेश को देश का सर्वोत्तम सेब उत्पादक राज्य माना गया है।
हिमाचल प्रदेश में शुरू से ही सेब की रेड डिलिशियस, रायल डिलिशियस, रिचए-रेड आदि जातियां बहुत ही लोकप्रिय रही है। ये जातियां यद्यपि देखने में सुंदर और खाने में स्वादिष्ट है, पर अधिक नाजुक होने के कारण गोदामों में भंडार करने के अयोग्य थीं। इन्हें कुछ विशेष क्षेत्रों में ही उगाया जा सकता था। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी समझा गया कि सेब की ऐसी जातियां निकाली जाएं, जो अधिक पैदावार देने वाली व प्रदेश के सेब उत्पादन क्षमता वाले सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हो तथा कीड़ों व बीमारियों की भी रोधक है। इस उद्देश्य से प्रादेशिक फल अनुसंधान केन्द्र, मशोबरा और कोटखाई में विभिन्न देशों से लगभग 400 जातियां लाकर अनुसंधान कार्य शुरू किया गया। इसके परिणामस्वरूप इस प्रदेश के लिए निम्न जातियां उपयोगी पाई गई:
टाइटमैन वरसेस्टर, रेड डिलिशियस, रायल डिलिशियस, रिच-ए-रेड, रेड गोल्ड, स्टारकरिमसन डिलिशियस, गोल्डन डिलिशियस, मैंकिटास, लाडैलैर्बोन, थोकए रेड, एलिंगटन पिपिन, ग्रेनी स्मिथ।
हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादन का श्रेय सत्यानंद स्टोक्स, जिनका वास्तविक नाम सैमुअल एवांस स्टोक्स था को जाता है। उन्होंने बीसवीं शताब्दी के आरंभ में शिमला के कोटगढ़ व कोटरखाई क्षेत्रों में सेब के पौधें लगाकर स्थानीय लोगों का इस फल के प्रति आकर्षण पैदा किया।
सत्यानंद स्टोक्स को सेब क्रांति का अग्रदूत माना जाता है। उनका नाम हिमाचल प्रदेश में केवल सेब के कारण ही नहीं, बल्कि अनेक ऐसे अन्य कार्यों के लिए आदरसहित लिया जाता है, जो उन्होंने मानव समाज कल्याण के लिए किए। पाठकों के लिए इस सेब पुरूष के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत है:
सैमुअल एवांस स्टोक्स का जन्म 16 अगस्त, 1882 को अमेरिका में हुआ था। उनके पिता बहुत बड़े इंजीनियर थे। वे बेटे को भी अपने रूप में ढालना चाहते थे पर उसे कुछ और ही स्वीकार था। उन्होंने भारत के बारे बहुत कुछ सुन रखा था। वह भारत आने के इच्छुक थे। सन् 1904 में सैमुअल शिमला के सपाटू नामक स्थान पर आकर ठहरे। यहां आकर उन्होंने कोढग़्रस्त लोगों की सेवा सुश्रुषा की। सन् 1905 में आए भंयकर भूकंप के दौरान उन्हें कांगड़ा में राहत कार्यों के संचालन का काम सौंपा गया। भूकंप पीडि़तों की उन्होंने जी जान से सेवा की। उनका विश्वास था कि सच्चा भारतीय बनने के लिए भारतीय जन-जीवन पद्धति को अपनाना आवश्यक है। इसके लिए उन्होंने यूरोपीय आचार-विचार त्याग कर हिंदू धर्म को अंगीकार किया ।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी उन्होंने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। जलियावाला बाग के लोमहर्षक कांड ने उनके मन में ब्रिटिश शासकों के प्रति घृणा जागृत कर दी और वे स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हो गए। वे महात्मा गांधी के काफी निकट रहे। सन् 1922 में उन पर मुकदमा चला, जिसमें लाला लाजपतराय को गुप्त सूचनाएं पहुंचाने के लिए उन्हें दोषी ठहराया गया और उन्हें दो वर्ष के कारावास का दंड मिला। उन्होंने उस समय शिमला हिल्स में विद्यमान बेगार प्रथा के विरूद्ध आंदोलन छेड़ा। उन्हीं के अथक प्रयासों से 1921 में शिमला हिल्स से बेगार प्रथा का अंत हुआ।
उन पर आलोचकों का यह आरोप था कि उत्तरदायित्व विहीन अविवाहित युवक होने पर वे भारत के लिए कुछ न कर पाएंगे। अपने आलोचकों का मुंह बंद करने के लिए उन्होंने कोटगढ़ की एक पहाड़ी राजपूत क्रिश्चियन एजंस बैजामिन जो बाद में प्रिया के नाम से जानी गई, के साथ शादी कर ली। शादी के बाद उन्होंने कहा- 'मैं आज भारत हूं। मैंने एक भारतीय महिला से शादी की है। मेरे होने वाले बच्चे पूर्णत्या भारतीय बनेंगे।
सत्यानंद स्टोक्स को सेब क्रांति का अग्रदूत कहा जाता है और आज हिमाचल सेब राज्य के रूप में जाना जाता है। स्टोक्स का विश्वास था कि पहाड़ों की समृद्धि बागवानी में निहित है। उन्होंने कृषि जलवायु की दृष्टिï ेस अति उपयुक्त मगर कठिन क्षेत्र कोटगढ़ में सेबों की वैज्ञानिक ढंग से खेती की। उन्होंने यहां के लोगों को इस फल के उत्पादन की ओर आकर्षित किया। इन्हीं प्रयासों के फलस्वरूप कोटगढ़ का क्षेत्र बेहतरीन किस्म का सेब उत्पादित करने में हिमाचल के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया।
सैमुअल एवांस स्टोक्स आए तो थे ईसाई धर्म का प्रचार करने पर हिन्दू धर्म से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यह धर्म अंगीकार कर लिया। उनके हिन्दू धर्म में दीक्षित होने के पीछे एक घटना जुड़ी है जिसने उनकी जीवन धारा ही बदल डाली।
बात मद्रास की है। वहां घूमने आए एक सन्यासी सत्यानंद की स्टोक्स से भेंट हो गई। बात-बात में धार्मिक चर्चा शुरू हो गयी। बाद में यह चर्चा शास्त्रार्थ में बदल गई। स्वामी जी गीता के मर्मज्ञ थे। स्टोक्स ने स्वामी सत्यानंद को बाइबल के तत्वज्ञान को समझाने का प्रयास किया तो इधर स्वामी ने गीता दर्शन को स्टोक्स के समक्ष रखा। स्वामी के अकाट्य तर्कों से स्टोक्स बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने दो टुक निर्णय लिया कि वह हिन्दू धर्म में दीक्षित होंगे। बाद में एक भव्य समारोह में स्टोक्स ने सपरिवार हिन्दू धर्म में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात सैमुअल एवांस स्टोक्स ने अपना नाम उन्हीं सन्यासी के नाम पर सत्यानंद स्टोक्स रख लिया। स्टोक्स ने कोटगढ़ में एक भव्य गीता मंदिर, थानेधार में सत्यानंद स्टोक्स कृषक सामुदाटिक भवन, प्रशीतनगृह के अतिरिक्त बागवानी केन्द्र की स्थापना की।
सत्यानंद स्टोक्स का 1946 में निधन हुआ। हिमाचल को सदा इस बात का गर्व रहेगा कि स्टोक्स जैसे महान व्यक्ति इस धरती पर आकर रहे।
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