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Mar 1, 2023

मिलेट्स का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष 2023 - मोटे अनाज से सुधरेगी दुनिया की सेहत

 - अपर्णा विश्वनाथ

हमारे भारत देश में मोटे अनाजों की खेती काफी पुरानी है। कह सकते हैं कि यह हमारी सभ्यता का हिस्सा रहे हैं। इसके प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता में भी मिलें हैं। भारत हमेशा से मोटे अनाज के उत्पादन में विश्व में अग्रणी रहा है और प्रतिवर्ष एशिया के कुल मोटे अनाज उत्पादन का 80% उत्पादन अकेला भारत करता है। भारत मोटे अनाज उत्पादन का मुख्य केन्द्र बन सकता है। यह हमारे लिए गर्व का विषय है।

जमीन और हमारी थाली में विविधता होनी चाहिए। यदि कृषि इकहरी फसल वाली हो जाए तो यह हमारे स्वास्थ्य और हमारी भूमि के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। मिलेट्स कृषि और आहार विविधता को बढ़ाने का एक अच्छा तरीका है। मोटे अनाजों के प्रति सजगता बढ़ाना इस आंदोलन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। प्रधानमंत्री जी का यह संदेश इटली में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाज के अंतरराष्ट्रीय वर्ष के उद्घाटन समारोह 2023 में सुश्री शोभा करंदलाजे द्वारा दिया गया।

मोटे अनाज के पोषक तत्वों और आज के वैश्विक हालातों को देखते को हुए भारत ने 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में पोषक अनाज वर्ष मनाने की पहल की थी। प्रधानमंत्री जी की दृष्टि और पहल को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया साथ ही इस प्रस्ताव को 70 से अधिक देशों का समर्थन भी मिला। भारत के पहल पर वर्ष 2023 को *( International Year of Millets 2023 ) अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष* घोषित किया गया। इस आयोजन से दुनिया भर में मोटे अनाज के प्रति सजगता फैलेगी।

इधर भारत में हरित क्रांति 1960 के बाद से समयांतराल में मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा और रागी हमारी थालियों से जैसे से गायब से होते चले गए। आज की पीढ़ी को इसका स्वाद बहुत कम या ना के बराबर मालूम है: क्योंकि गेहूँ और चावल ने मोटे अनाज की जगह ले ली और बहुत सारे देशों का मुख्य अनाज हो गया। आज हमारे देश में चावल की खपत अधिक होने का एक कारण यह भी है कि यह आसानी से कम समय में बनकर तैयार हो जाता है; लेकिन इन फसलों की सबसे बड़ी समस्या है जल।

हरित क्रांति में यूरिया और रासायनिक खादों का बेहिसाब प्रयोग किया गया। कम जमीन पर अधिक पैदावार विकसित हुई। इसमें कोई संदेह नहीं कि घर-घर हर थाली तक गेहूँ और चावल को पहुँचाने में हरित क्रांति की अहम भूमिका रही है। इसका असर अच्छा और बुरा दोनों देखने को मिला।

यूरिया के प्रयोग से मिट्टी के स्वास्थ्य, मनुष्य के स्वास्थ्य और प्रकृति के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ा। जमीन की ऊपरी सतह की उर्वरता क्षीण तो होती ही है, रासायनिक खादों के प्रयोग से सिंचाई में पानी की खपत भी अधिक होती है। गेहूँ और धान जैसे फसल मुख्यता पानी पर निर्भर फसल होने के कारण भू-जल स्तर पर अत्यधिक बोझ पड़ा। हम मनुष्यों के स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव हम सब देख और समझ रहे हैं।

सदी की सबसे बड़ी महामारी कोरोना वैश्विक महामारी, फिर युद्ध और जलवायु परिवर्तन ने की समस्याओं ने खाद्य सुरक्षा की चिंता बढ़ा दी है। इन वैश्विक समस्याओं ने खाद्यान्न सुरक्षा, खाद्य भंडारण जैसी पहलुओं पर पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया और भविष्य के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया।

हालाँकि, महामारी की घटना पहले भी इतिहास में घटित हो चुके हैं। किसी तरह महामारी से एक बार निपटा जा सकता है; लेकिन अत्यधिक बर्फबारी, गर्मी, ठंड और बेहिसाब बारिश के बावजूद घटता भू-जल स्तर जैसी प्राकृतिक समस्याओं का सीधा संबंध और असर हमारे अनाज उत्पादन पर पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन की समस्या से आज पूरा विश्व जूझ रहा है। इस समस्या के लिए वैश्विक स्तर पर टिकाऊ समाधान की जरूरत है।

अनाज उत्पादन के लिए पानी मूल आवश्यकता है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में पानी के लिए अधिकतर क्षेत्र मानसून पर निर्भर है। ऐसे में टिकाऊ खेती ही एक कारगर उपाय है। हर तरफ टिकाऊ विकास की बात हो रही है वैसे में टिकाऊ खेती और टिकाऊ अनाज उत्पादन के बारे में विचार करना अपरिहार्य है।

मोटा अनाज (मिलेट्स) आज के समय में प्रकृति, मनुष्यों और पशुओं के लिए वरदान है। मोटा अनाज बेहतरीन, पोषण से भरपूर आहार का विकल्प है। इनमें पोषक तत्त्व अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होते हैं; इसलिए इन्हें सुपर फूड कहा जाता है। अपने कुछ खास गुणों यह के कारण यह टिकाऊ अनाज साबित हो सकता है।

मिलेट या मोटा अनाज क्या है ?

छोटे और मोटे बीजों वाली फसलें जैसे सावाँ, कंगनी, चीना, ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो, कुटकी और कुट्टू को मिलेट क्रॉप या मोटा अनाज कहा जाता है।

वर्तमान समय में मिलेट्स भारत के उत्‍तर प्रदेश, मध्‍यप्रदेश छत्तीसगढ़, महाराष्‍ट्र, गुजरात, राजस्‍थान, हरियाणा,आँध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्‍यों में उगाया जाता है।

मोटे अनाज उगाने के कई फ़ायदे हैं

 मोटे अनाज सीमांत नमी, कम उर्वरक और प्रतिकूल जलवायु, में भी टिके रहने वाले फसल है। इन फसलों को किसी भी क्षेत्र जैसे वर्षा आधारित क्षेत्रों, सूखे क्षेत्रों, पहाड़ी क्षेत्रों या तटीय क्षेत्रों, में भी आसानी से उगाया जा सकता हैं। यहाँ तक कि इनका उत्पादन सूखी जमीन पर न्यूनतम देख-रेख के साथ भी हो सकता हैं।

 दूसरे अनाजों की तुलना में ये फसलें कीट-पतंगों और मौसम के बड़े बदलावों से न्यूनतम प्रभावित होते हैं। कीड़े मकौड़े इन पर न के बराबर हमला करते हैं;  इसलिए इनमें कीटनाशकों का इस्तेमाल भी न के बराबर किया जाता है।  मोटे अनाज के बीज का भंडारण अनेक वर्षों के लिए किया जा सकता है। इससे सूखे की स्थिति वाले क्षेत्रों के लिए ये लाभदायक है।  यह फ़सल न्यूनतम उर्वरक के इस्तेमाल के साथ कम पानी के में आसानी से हो सकता है। सेहत के हिसाब से यह लाभकारी तो है ही।

मोटे अनाज में कई पोषक तत्वों के अच्छे स्रोत हैं जैसे: ऊर्जा, कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट, आयरन, ज़िंक और विटामिन इत्यादि। यह भारत एवं दूसरे विकासशील देशों में विटामिन एवं खनिज तत्वों की कमी और कुपोषण को ख़त्म करने में मदद कर सकते हैं। इसलिए अब दुनिया भर के लोगों को जलवायु के अनुकूल मोटे अनाज के उत्पादन और इसके के सामान्य फ़ायदों पर ध्यान देना चाहिए; क्योंकि इनमें पॉलीअनसैचुरेटेड एसिड और ओमेगा-3 एसिड भरपूर मात्रा में पाया जाता है।  यह कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करते हैं। मोटे अनाज से संधारणीय विकास लक्ष्यों Sustainable Development Goals (SDG)* को प्राप्त करने में काफी मददगार होगा। खास तौर पर-

एसडीजी २- (भूख से मुक्ति)

एसडीजी ३- (अच्छी सेहत और ख़ुशी)

एसडीजी १२- (सतत खपत और उत्पादन)

और एसडीजी १३- (जलवायु कार्यवाही)

मोटे अनाज (मिलेट्स) और छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ सरकार ने देश-विदेश में कोदो-कुटकी और रागी जैसे मिलेट की बढ़ती माँग को देखते हुए छत्तीसगढ़ में भी मिलेट मिशन शुरू किया है। इस मिशन का लक्ष्य वनांचल और आदिवासी क्षेत्र के किसानों की आमदनी बढ़ोतरी के साथ छत्तीसगढ़ को देश में मिलेट हब के रूप में एक पहचान दिलाना है।

अनाज के संधारणीय विकास और ताजे पानी की किल्लत जैसे संकट का मुकाबला करने के लिए लिए कोदो, रागी, बाजरा, ज्वार, समां, कुट्टू, रामदाना आदि जैसे मोटे अनाज अवश्य ही वरदान साबित होंगे।

सम्प्रतिः शिक्षिका, रायपुर (छत्तीसगढ़), मो. नं. 7000048644

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