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Jan 27, 2018

एक पेड़ की दुनिया

एक पेड़ की दुनिया
 दीपाली शुक्ला
एक पेड़, शीशम का पेड़। इस पेड़ के इर्द-गिर्द तरह-तरह के पेड़ हैं। सब हरे-भरे हैं बस शीशम के पेड़ को छोड़कर। यह सूखा है, भूरे खुरदरे तने और उसके चारों तरफ लटकी सूखी लताओं के अवशेषों को लिए खड़ा है। इसके पड़ोसी बेर और सेमल मौसम बदलने पर अपने पत्तों को हवाओं में लहरा देते हैं। बाकी पेड़ों पर परिंदों की बसाहट समय के साथ करवट लेती है पर शीशम की सूखी डालियाँ हर मौसम में गुलज़ार रहती हैं।
कल का ही किस्सा है सात भाई चिड़ियों का एक पूरा का पूरा कुनबा डालों पर मोतियों की तरह खुद ही सज गया था। ठंड के कारण कितनी ही एक साथ सटकर नींद का मज़ा ले रही थीं। कुछ सुबह के आने के साथ अपनी चोंच को पैना कर रही थीं खुरदरे तने से रगड़कर। उनके इर्द-गिर्द बुलबुल उड़ान भर रही थी। गौरैया भी उनको आ-आकर देख रही थीं।
इस किस्सेा से पहले की एक बात याद आई। अभी थोड़े ही दिन पहले की। भोजन की तलाश में मोरनियाँ और उनके नन्हे एक कतार में शीशम के पेड़ के आसपास से गुज़र रहे थे। मोरनियों को आकर्षित करने के लिए मोर आवाज़ कर रहे थे। पर इधर मोरनियों को तो जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था। बच्चों के साथ नरम पत्तियों को चबाने में मशगूल थीं। आकर्षित करने की कवायद में एक मोर ने आखिरकार शीशम की एक शाख का सहारा लिया। काफी देर वह डाल पर बैठा आवाज़ देता रहा, देता रहा। फिर फुरर्र से उड़कर बेर के झुरमुट में खो गया।
शीशम के पक्के-पक्के दोस्तों में शामिल है कोयल, नर भी मादा भी। इनकी दोस्ती काफी पुरानी है। जब पेड़ पत्तियों से लदा-फदा था तब भी और जब आज वह सूखा दरख्त है तब भी कोयल बतियाती दिखती हैं इससे। मुझे नहीं पता कि कोयल की कितनी पुश्तें अब तक इस पेड़ पर बसती आई हैं। सुबह-सुबह ढेर सारी कोयल पेड़ पर एक दुनिया की बसाहट करती हैं। जो एक-दूसरे से बात नहीं करतीं वो मुँह फेरकर बैठती हैं। शीशम की डालों पर बार-बार पंखों को फड़फड़ाकर हवा करती हैं। चोंच को रगड़ती हैं। कई बार मादा कोयल शीशम पर घंटों बैठती है। कितनी बातें कहती सुनती है शीशम से। शीशम ही सुलह भी करवाता है देखा है मैंने।
कितनी बार जब बारिश के बाद पंखों को सुखाने के लिए बुलबुल और गौरेया आपस में लड़ती हैं तो शीशम दोनों के बीच बंटवारा करता है शाखों का। फिर वह पंखों से झरते पानी की बौछारों को समेटता है ताकि उसके तले नन्ही चीटियाँ भीगे नहीं।
हमेशा नहीं पर कभी-कभार शिकरा भी शीशम पर आराम फरमाता दिखता है। उस दिन चहुँओर बस मौन होता है। बाकी परिन्दे आसपास नहीं होते। तब हवा का बहाव भी बेहद सहमा होता है। शिकरा पेड़ के रंग को यूँ लपेटता है कि दोनों को अलग करना आसान नहीं।
जब शीशम हरियल था तब पतरंगी भी अक्सर शीशम से हरीतिमा लेने आती थी। दोपहर की तेज धूप में पत्तियों के बीच पतरंगी की चमक का क्या कहना! बीच-बीच में पतरंगी शीशम को अपनी उड़ान भी दिखाती। पर अब पतरंगी इस दरख्त पर नहीं आती। शीशम के पड़ोसी पलाश की पत्तियों से झाँकती है इन दिनों।
एक और दोस्त है जिसे किसी से बात करने की फुर्सत ही नहीं मिलती सिवाय शीशम के। वह ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर, एक शाख से दूसरी पर दौड़ती रहती है शीशम को अपनी छबरी पूँछ से गुदगुदी करती। कुनकुनी धूप का आनंद लेने के लिए वह तने पर आँखें मूंदें रहती है। किसी-किसी दिन तो बस गिलहरियों का एक के पीछे एक दौड़ने का सिलसिला थमता ही नहीं। तब शीशम को एक नया रंग मिलता है।
शीशम की दुनिया की यह कहानी और उसके किरदार अभी बहुत हैं पर यह सिलसिला अभी यहाँ रोकती हूँ। क्योंककि मुझे अब शीशम की दुनिया में ताक-झाँक करनी है।

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