उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Aug 15, 2017

दिल बड़ा कीजिए

दिल बड़ा कीजिए
                    - विजय जोशी 
            (पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)
जिन्दगी भव्य और विशाल है, जिसके विस्तृत मंच पर आप अपने कार्य रूप आयोजन को अंजाम देते हैं। दिल बड़ा करके साथियों के साथ संबंध निर्वाह वह अनमोल निधी है जो सबके हृदय में आपके प्रति शुभच्छाओं, संवेदना, सहानुभूति और स्नेह का संस्कार जगाकर उसे सुंदर कर देती है। छोटा दिल स्वार्थ व कंजूसी का  पर्याय है, जो आपके मार्ग में अवरोध बनकर मुश्किलें पैदा करता है।
एक बार एक गुरू ने अपने असंतुष्ट शिष्य को एक ग्लास पानी में नमक डालकर पीने के लिये कहा और पूछा- कैसा है स्वाद।
भयानक- शिष्य ने थूकते हुए कहा।
अब गुरू ने उसी मात्रा में नमक लेकर एक झील में मिलाने के लिये कहा। वे खामोशी से झील के नजदीक पहुंचे और नमक जल में डाल दिया। गुरू ने कहा- अब जल ग्रहण करो।
शिष्य ने पहला घूंट लिया ही था कि फिर पूछा गया उसी से - स्वाद कैसा है जल का।
बहुत अच्छा मीठा - शिष्य ने कहा
क्या अब भी नमक का स्वाद आ रहा है- गुरु ने पूछा।
बिल्कुल नहीं- शिष्य का उतार था।
और तब गुरू ने कहा- हमारे जीवन में दुख या दर्द की मात्रा उतनी ही रहती है, किन्तु हम उसका स्वाद किस प्रकार चखते हैं यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम उसे किस पात्र में डाल रहे हैं।
अत: जब भी दर्द का अनुभव करने की बात हो, सिर्फ यह करें कि दिल का आकार बड़ा कर लें।
बात सिर्फ इतनी सी है हमें अपने निजी जीवन में ग्लास बनने के बजाय झील बनने का प्रयत्न करना चाहिये। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि दर्द तो वही होगा, लेकिन उसकी तीव्रता न्यूनतम होकर हमें विचलित नहीं कर पाएगी। आपने देखा होगा बड़े दिल वाले हमेशा अलमस्त, प्रसन्न एवं खुश मिजाज़ पाए जाते हैं, जब कि होटे दिल वाले सदा अप्रसन्न एवं दुखी। दिलदार लोग छोटी मोटी समस्याओं या दुखों का कोई नोटिस ही नहीं लेते, उनकी रंचमात्र भी परवाह नहीं करते और अंतत: यही गुण उनके व्यक्तित्व की क्षमता बनकर उभरता है।

प्यार करना सीखें, घृणा से पार पाएँ

अंतस में कोमल भाव ईश्वर ने मनुष्य को इसलिये प्रदान किये हैं ताकि वह जीवन को भावपूर्ण बनाते हुए जी सके। भाव के अभाव में तो जीवन एक मशीन का कल पुर्जा बनकर रह जाता है। प्यार वह ईश्वरीय देन है जो हमें एक दूसरे के हृदय से जोड़कर रखती है। ऊपरी रिश्ता टूट सकता है, लेकिन अंतस का रिश्ता तो अजर अमर और  अविनाशी है। इसके लिये यह अनिवार्य है कि हम अपने व्यक्तित्व में प्यार की फसल उपजाएं और घृणा को विदा करें।
एक बार एक शिक्षक ने अपने छात्रों को एक खेल खेलने को कहा कि हर एक अपने साथ एक झोले में आलू लाए और हर एक एक आलू पर एक एक कर उसका नाम लिखे, जिसे वह सख्त रूप से नापंसद या घृणा करता है।
कक्षा में उपस्थित करीब करीब सब बच्चों ने ऐसा ही किया। तब शिक्षक ने वे तमाम आलू उन्हें एक झोले में रखकर उस झोले को सदा अपने पास ही रखने को लिये कहा। समय के साथ आलू सड़ते गए और उन सड़ रहे आलूओं की दुर्गध को सहना हर छात्र के लिये कठिन हो गया।
जिसके पास जितने अधिक सड़े आलू थे, वह उतना ही अधिक बेचैन था।
एक सप्ताह बाद खेल समाप्त हुआ। शिक्षक ने पूछा - कैसा रहा आलू सहजने का अनुभव। बच्चे शिकायत करने लगे।
और तब शिक्षक ने समझाया - यह जीवन के लिये अनमोल सीख है जब आप दूसरों के प्रति घृणा अपने हृदय में सहेजते हैं तो उससे आपका ही हृदय प्रदूषित होता है। जब आप केवल एक सप्ताह सड़े आलूओं का बोझ नहीं सह सके तो फिर तमाम उम्र अप्रिय घटनाओं का बोझ अपने हृदय में क्यों संजोते हैं। वे सदैव आपको व्यथित एवं  दुखी करेंगी।
इसलिये यह आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य है कि  आप घृणा के बीज का रोपण अपनी हृदय की प्यार भरी धरती पर होने ही न दें। सद्विचार व स्नेह  की फसल जब आपके अंतस में लहलहाएगी तो सोचिये आप कितनी प्रसन्नता का अनुभव करेंगे। दूसरे जो भी करें करते रहें, आप तो रामायण के अनुसार भलाई पर ही डटकर निर्भय रूप से जमे रहें -भलो भलाई ये लहई।

No comments: