बचाव की पूर्व तैयारी
- भारत डोगरा
मानसून का
समय बाढ़,
भूस्खलन व भूमि कटाव की दृष्टि से अधिक सावधानियाँ अपनाने का समय
होता है। अधिक बाढ़ की संभावना को कम करने के लिए तटबंधों पर पैनी नजर रखना ज़रूरी
है। तटबंधों में दरारों पर भी समुचित ध्यान देना होगा। नए तटबंध बनाने की बजाय
मौजूदा तटबंधों की सही देख-रेख पर ध्यान देना बेहतर है। और इस मामले में मात्र
अपने निरीक्षण से संतुष्ट रहने के स्थान पर गाँववासियों की शिकायतों पर समुचित
ध्यान देना चाहिए।
बांध प्रबंधन के बारे में
भी बाढ़ नियंत्रण के समुचित दिशा निर्देश ज़रूरी हैं। हाल के वर्षों की विनाशकारी
बाढ़ों के बाद चले आरोप-प्रत्यारोप में कई मुद्दे बार-बार सामने आए हैं। एक मुद्दा
यह रहा है कि बांध प्रबंधन में प्राय: बाढ़ नियंत्रण को उतना महत्त्व नहीं दिया
जाता जितना बिजली उत्पादन को दिया जाता है। पिछले अनुभवों से सीखते हुए बाढ़ से
बचाव पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
एक मुद्दा यह भी उठा है कि
बाँध का पानी छोड़ते समय समुचित चेतावनी नहीं दी गई या चेतावनी लोगों तक समय पर
नहीं पहुँची। इस बारे में अधिक सावधानी बरती जा सकती है।
हिमालय व पश्चिम घाट जैसे
कुछ अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन को कम करने के लिए पहले से बेहतर प्रयासों
की ज़रूरत है। चिंहित गंभीर भूस्खलन स्थानों पर पैनी नजर रखना होगा ताकि स्थिति
अधिक विकट होने की आशंका हो तो समुचित सुरक्षा व्यवस्था समय पर की जा सके।
दूर-दूराज के पर्वतीय गाँवों से लोग अपनी शिकायत व जानकारी दर्ज कर सकें, इसके लिए सरकारों को व्यवस्था बनानी चाहिए। चिंहित स्थलों के अतिरिक्त कई
भूस्खलन स्थल हाल ही में उत्पन्न हुए हैं। इनकी भी उपेक्षा न हो।
भूमि कटाव से पीडि़त लोग
कुछ संदर्भों में सबसे अधिक उपेक्षित हैं। जिन परिवारों की भूमि नदी छीन लेती है
प्राय: उनका संतोषजनक पुनर्वास नहीं हो पा रहा है। चाहे बहराईच हो या सीतापुर या गज़ीपुर
या मालदा या मुर्शिदाबाद, नदी कटान से प्रभावित स्थानों से
ऐसे समाचार मिलते ही रहे हैं कि नदी द्वारा भूमि कटान से पीडि़त लोग भूमिहीन और
कभी-कभी तो आवासहीन होकर रहने को मजबूर हैं। ऐसा नहीं है कि उनके पुनर्वास के लिए ज़मीन
कभी उपलब्ध नहीं होती है। ऐसे कुछ स्थानों पर प्रभावित लोगों ने स्वयं बताया कि
उन्हें किन स्थानों पर बसाया जा सकता है। लगता है कि प्रशासन इन लोगों की समस्याओं
के प्रति उदासीन रहा है। अथवा उच्च स्तर पर उचित नीति न बनने के कारण वह समय पर
निर्णय नहीं ले पाता है। अत: इस बारे में विभिन्न राज्य सरकारों को भी पहल करनी
चाहिए अथवा केंद्र सरकार की ओर से ज़रूरी निर्देश आने चाहिए। इस बारे में
न्यायसंगत नीति तो बनानी ही चाहिए। साथ में नदी-कटाव की अधिक संभावना वाले
क्षेत्रों के प्रशासन को पहले से तैयारी रखनी चाहिए कि जो भी लोग ऐसी त्रासदी से
प्रभावित हों उन्हें वर्षा के दिनों में रहने का उचित स्थान मिल सके व अन्य राहत
भी उन तक पहुँच सके।
आकाशीय बिजली की आपदा हाल
के वर्षों में अधिक जानलेवा हो रही है। इससे जीवन की रक्षा के लिए इसकी अधिक
संभावना वाले क्षेत्रों में, विशेषकर स्कूलों जैसे
सार्वजनिक स्थानों में तडि़त चालकों की व्यवस्था करनी चाहिए व इनकी उपलब्धता
बढ़ानी चाहिए। इसके अतिरिक्त लोगों में बचाव के उपायों का प्रचार करना चाहिए।
(स्रोत फीचर्स)
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