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Aug 15, 2017

प्रेरक

            मानवता का सबक
                    - निशांत मिश्रा
मैं दिलीप मेनेज़ेस को नहीं जानता। उनके फेसबुक प्रोफाइल से पता चलता है कि वे गोवा में आल्टो पोरवोरिम में रहते हैं और अपनी बाइक पर दूर-दराज़ में घूमना पसंद करते हैं। कुछ दिन पहले आंध्रप्रदेश की ऐसी ही एक यात्रा में वे एक वृद्ध पति-पत्नी
से मिले जो अपनी झोपड़ी के सामने चाय बेचकर जीवनयापन करते हैं। गरीब वृद्ध दंपत्ति का दयालुतापूर्ण व्यवहार उनके दिल को छू गया। उन्होंने अपने साथ घटी घटना को फेसबुक पर शेयर किया जो वायरल हो गई। इसे यहाँ प्रस्तुत करने तक बज़
$फीड तथा अनेक वेबसाइटों ने शेयर किया है। मानवता में हमारी आस्था को गहरा करनेवाले इस प्रसंग का मैं अनुवाद करके हिंदी ज़ेन पर सभी से शेयर कर रहा हूँ। मैं आशा करता हूँ कि दिलीप इसे अन्यथा नहीं लेंगे।

सुबह-सुबह अपनी बाइक पर नरसीपट्नम से लंबासिंघी जाते समय में एक गाँव में नाश्ते के लिए रुका। गाँव की सड़क के किनारे बनी एक झोपड़ी के बाहर लगी टेबल पर एक वृद्ध व्यक्ति चाय बना रहा था। मैंने उससे एक कप चाय के साथ कुछ खाने के लिए मांगा। वृद्ध ने मुझे चाय बनाकर दी और अपनी भाषा में कुछ कहा जो मैं समझ न सका। तब मैंने उसे इशारे से कुछ खाने के लिए मांगा। वृद्ध ने पास ही खड़ी अपनी पत्नी की ओर मुड़कर कुछ कहा। वृद्ध पत्नी मे मुझे बाहर पड़ी एक बेंच पर बैठने का इशारा किया और झोपड़ी के भीतर चली गई। कुछ ही समय में वह एक प्लेट में इडली और चटनी लेकर आई, जिसे मैंने चाय के साथ अच्छे से खाया।
खाने के बाद मैंने वृद्ध से पूछा कि मुझे उसे कितने रुपए देने थे और उसने कहा- 5 रुपए। मुझे पता था कि मैं भारत के एक बहुत पिछड़े भूभाग में था फिर भी वहाँ एक प्लेट इडली और चाय का मूल्य 5 रुपए नहीं हो सकता था। मैंने इशारे से उन्हें अपनी हैरत जताई जिसपर वृद्ध ने केवल चाय के कप की ओर इशारा किया। जब मैंने इडली की खाली प्लेट की ओर इशारा किया तो उसकी पत्नी ने कुछ कहा जो मैं फिर से नहीं समझ सका। शायद वे मुझसे सिर्फ चाय का ही पैसा ले रहे थे।
मैंने विरोधस्वरूप फिर से खाली प्लेट की ओर इशारा किया और वे दोनों मुस्कुराने लगे। मुझे उसी क्षण यह समझ में आया कि वे केवल चाय बेचते थे और मेरे कुछ खाने का मांगने पर उन्होंने अपने नाश्ते में से मुझे खाने के लिए दिया, अर्थात उस दिन मेरी वजह से उनका खाना कम पड़ गया।
मैं वहाँ चुपचाप खड़ा कुछ मिनटों के भीतर घटी बातों को अपने मष्तिष्क में उमड़ता-घुमड़ता देखता रहा। फिर मैंने अपने वालेट से कुछ रुपए निकलकर वृद्ध को देना चाहा जो उसने स्वीकार नहीं किए। बहुत अनुनय-विनय और ज़िद करने पर ही मैं उसे कुछ रूपए दे पाया।
लंबासिंघी के घाट से गुज़रते समय मेरे मन में बार-बार उन वृद्ध दंपत्ति और उनके दयालुतापूर्ण व्यवहार की स्मृति तैरती रही। मैंने यकीनन उस दिन जीवन का एक बहुत महत्त्वपूर्ण पाठ ग्रहण किया। स्वयं अभावग्रस्त होने पर भी दूसरों की इस सीमा तक सहायता करने का गुण विरलों में ही होता है।

(मेरी पोस्ट के सोशल मीडिया पर वायरल हो जाने के बाद कई लोगों में मुझसे इन वृद्ध दंपत्ति का पता पूछा ताकि वे भी उनसे मिल सकें।
उनका गूगल लोकेशन मैप यह है। https://goo.gl/maps/vkeNdXj3Ze52 यदि आप उनसे मिलें तो उन्हें बताएँ कि बड़ी सी सफेद मोटरसाइकल पर गोवा से आनेवाले लंबे कद के दाढ़ीवाले युवक ने उन्हें नमस्ते कहा है।) 
दिलीप मेनेज़ेस की वेबसाइट है- http://www.deelipmenezes.com/
 (हिंदी ज़ेन से)

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