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Feb 10, 2015

लघुकथाएँ

छोटे- बड़े सपने...


तीनों बच्चे रेत के घरौंदे बनाकर खेल रहे थे।
सेठ गणेशीलाल का बेटा बोला 'रात मुझे बहुत अच्छा सपना आया था।'
'हमको भी बताओ।' दोनों बच्चे जानने के लिए चहके।
'उसने बताया 'सपने में मैं बहुत दूर घूमने गया, पहाड़ों और नदियों को पार करके।'
नारायण बाबू का बेटा बोला 'मुझे और भी ज्यादा मजेदार सपना आया। मैंने सपने में बहुत तेज स्कूटर चलाया। सबको पीछे छोड़ दिया।'
जोखू रिक्शेवाले के बेटे ने अपने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा 'तुम दोनों के सपने बिल्कुल बेकार थे।'
'ऐसे ही बेकार कह रहे हो। पहले अपना सपना तो बताओ।' दोनों ने पूछा।
इस बात पर खुश होकर वह बोला 'मैंने रात सपने में खूब डटकर खाना खाया। कई रोटियां, नमक और प्याज के साथ, पर....'।
'पर...पर क्या?' दोनों ने टोका।
'मुझे भूख लगी है।' कहकर वह रो पड़ा।

कट्टरपंथी
पूरे शहर में मौत जैसा सन्नाटा छाया हुआ था। सुनसान गलियों में आतंक पहरा दे रहा था। लोग जरा- सी तेज आवाज पर भी चौंक उठते। पंडित दीनदयाल आंगन में बैठे हुए थे।
दरवाजे पर थपथपाहट हुई। बिना कुछ सोचे- समझे उन्होंने द्वार खोल दिया। एक युवक तेजी से भीतर आया और गिड़गिड़ा उठा 'मुझे बचा लीजिए। कुछ गुण्डे मेरे पीछे पड़े हैं।' याचना उसकी आंखों में तैर रही थी।
पंडित किंकर्तव्यविमूढ़ । कट्टरता नस- नस में बसी थी। किसी का छुआ अन्न-जल तक ग्रहण नहीं करते थे। उन्होंने आग्नेय नेत्रों से युवक को घूरा। वह सिहर उठा।
भीड़ दरवाजे पर आ चुकी थी। युवक को उन्होंने भीतर कोठरी में जाने का इशारा किया।
भीड़ में से एक बाहर निकल आया- 'पंडित जी, एक काफिर इधर आया था। हमने उसको इसी दरवाजे में घुसते देखा है। देखिए न, वह अन्दर कोठरी में बैठा है।'
पंडितजी हंसे- 'उसे तुम काफिर कह रहे हो? अरे वह तो मेरा भतीजा सोमदत्त है। आज ही जबलपुर से आया है। बाहर घूमने निकल गया था। वह तुमको मुसलमान समझकर भाग खड़ा हुआ होगा।'
'पंडितजी, आप झूठ बोल रहे हैं।' कई स्वर उभरे 'अगर आप इसके हाथ का पानी पी लें तो हमें यकीन हो जाएगा।'
पंडितजी ऊंची आवाज़ में बोले- 'बेटा सोमदत्त, एक गिलास पानी ले आना।' पानी आ गया। पंडितजी एक ही सांस में गट्गट् पी गए- 'अब तो तुम्हें विश्वास हो गया?'
'हां! हो गया।' और भीड़ लौट गई।
युवक की आंखों में कृतज्ञता तैर रही थी।

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