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Jan 18, 2013

सितार के पर्याय पंडित रविशंकर

सितार के पर्याय पंडित रविशंकर
[ सितार का पर्याय बन चुके पंडित रविशंकर नहीं रहे। 12-12-2012 को अमेरिका में उनका निधन हो गया। उन्होंने अपना पूरा जीवन संगीत, सुर और रागों के साथ बिताया। वे 92 वर्ष के थे। कुछ लोग ऐसे होते हैं, उनकी शख्सियत ऐसी होती है, उनका कर्म ऐसा होता है कि लगता है कि वे चाँद, तारे समुद्र और पहाड़ की तरह हमेशा रहेंगे, शाश्वत, अखंड, अविचल। पं. रविशंकर भी कुछ ऐसे ही हैं। सितार के सुर कभी मौन हो सकते हैं क्या भला?... और हमारे लिए तो सितार का मतलब ही रहा है रविशंकर। ]
विश्व विख्यात सितारवादक पंडित रविशंकर का 92 साल की उम्र मे निधन हो गया। भारतीय शास्त्रीय संगीत का पश्चिम समेत पूरी दुनिया में परचम लहराने में पंडित रविशंकर का अहम योगदान है। पश्चिमी संगीत समूह बीटल्स का भारतीय शास्त्रीय संगीत से परिचय करवाने का श्रेय भी पंडित रविशंकर को जाता है। लेकिन पश्चिमी संगीत की दुनिया में बड़ा नाम कमाने और पहचान बनने के बाद भी पंडित रविशंकर हमेशा से सितार से जुड़ी भारतीय परंपराओं की तरफ लौट कर आते रहे। लंबे समय से अमरीका में रहने के बावजूद वे कभी भी भारतीय संगीत की जड़ों से अपने आपको अलग नहीं कर सके।
पंडित रविशंकर का जन्म भारत के सांस्कृतिक शहर बनारस  में 7 अप्रैल 1920 में हुआ था। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि एक बेहद ही साधारण और मध्यम वर्ग के परिवार की थी। पंडित रविशंकर के पिता बनारस के एक नामी वकील थे ; लेकिन उनका अपने परिवार के साथ काफी कम संपर्क रहा। रविशंकर के बड़े भाई उदय शंकर एक शास्त्रीय नर्तक थे  ; जिन्होंने यूरोप में अपनी एक नृत्य कम्पनी बनाई थी। जब उदय की नृत्य कम्पनी  यूरोप में काफ़ी सफ़ल और प्रसिद्ध हुई तब पंडित रविशंकर की मां अपने तीनों बच्चों के साथ उनके पास रहने पेरिस चली आईं थीं।
1944 में औपचारिक शिक्षा समाप्त करने के बाद वे मुंबई चले गए और उन्होंने फिल्मों के लिए संगीत दिया। बचपन में तकरीबन आठ साल वे अपने बड़े भाई के साथ रहे और इस दौरान अमेरिका और यूरोप के कई दौरे किए। जिससे इन देशों के लोगों की पसंद और उनके मन को परखने में उन्हें काफी मदद मिली। पंडित जी कहते हैं कि जीवन की दिशा तय करने में उनके भाई उदय शंकर ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
पंडित रविशकर ने अपना पहला कार्यक्रम 10 साल की उम्र में दिया था। भारत में उनका पहला कार्यक्रम 1939 में हुआ था। देश के बाहर पहला कार्यक्रम 1954 में तत्कालीन सोवियत संघ में और यूरोप में पहला कार्यक्रम 1956 में।

पंडित रविशंकर ने अपने करियर की शुरुआत अपने बड़े भाई पंडित उदय शंकर की नृत्य कम्पनी  के साथ एक शास्त्रीय नर्तक के रुप में किया था। उस दौरान उन्हें कई बड़े लोगों, जिनमें उपन्यासकार जेरट्रड स्टीन, शास्त्रीय गिटार वादक एंद्रियास सिगोविया और गीतकार कोल पोर्टर के साथ काम करने का मौका मिला। रविशंकर ने इस डांस ग्रुप के साथ पूरी दुनिया में नृत्य प्रस्तुत किया। वे यूरोप, उत्तरी अमरीका और कई जगहों पर अपना कार्यक्रम देते रहे। लेकिन इसी दौरान वे नृत्य कम्पनी  से पहले से जुड़े बेहतरीन भारतीय संगीतकार बाबा अलाउद्दीन खान के संपर्क में आए और उनसे काफी प्रभावित हुए। बाबा अलाउद्दीन ख़ान के सम्पर्क में आने के बाद की ही बात है कि पंडित रविशंकर ने संगीत की शिक्षा लेने का फैसला किया। कुछ समय बाद वे वापस भारत आए और यहाँ आकर उन्होंने लगातार सात सालों तक मैहर (मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले) में रहकर बाबा अलादुद्दीन ख़ान  से सितार की शिक्षा ग्रहण की।
उन्होंने दो शादियां कीं। पहली शादी गुरु अलाउद्दीन खान की बेटी अन्नपूर्णा से हुई, लेकिन बाद में उनका तलाक हो गया। उनकी दूसरी शादी सुकन्या से हुई जिससे उनकी एक संतान अनुष्का शंकर है। अनुष्का भी मशहूर संगीतकार और सितार वादक हैं। इसके अलावा उनका संबंध एक अमेरिकी महिला सू जोन्स से भी रहा, जिनसे उनकी एक बेटी नोरा जोन्स हुई। हालांकि सू से उन्होंने कभी शादी नहीं की।
1940 -1950 के बीच वे अपने काम के ज़रिए काफी नाम कमा चुके थे। उस दौरान एक शास्त्रीय गायक और संगीतकार के रूप में वे काफी मशहूर हुए। इस दौरान उन्होंने कई स्टेज म्यूज़िकल और फिल्मों के लिए बिल्कुल नई तरह का संगीत दिया। उन्होंने धरती के लाल और नीचा नगर जैसी फिल्मों में संगीत भी दिया। मोहम्मद इकबाल के सारे जहाँ  से अच्छा... की धुन भी पंडित रविशंकर की बनाई हुई है।  उन्हें फिल्म गाँधी में उनके काम के लिए ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया गया था। पंडित जी ने कई मौलिक राग खुद गढ़े थे।
पंडित रविशकर को भारत और अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों से ऑनरेरी डिग्री मिल चुकी हैं। देश-विदेश के तमाम पुरस्कारों के अलावा उन्हें अब तक मैगसैसे, तीन ग्रैमी अवार्ड सहित देश-विदेश के कई पुरस्कार मिले। साल 1986 से 1992 तक वे राज्य सभा के भी सदस्य रहे। भारत में पद्मविभूषण के अलावा उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा जा चुका है। उन्होंने भारत के शास्त्रीय संगीत के दूत और ध्वजवाहक की भूमिका निभाई, उन्होंने पूरब और पश्चिम के संगीत का खूबसूरत मिलन करवाया। वॉयलिन वादक येहूदी मेनह्युन पंडित रविशंकर के काम से काफी मोहित थे और बाद में दोनों काफी अच्छे दोस्त भी बने। इन दोनों ने बाद में ईस्ट मीट वेस्ट के नाम से संगीत के तीन कैसेट भी निकाले।
 पंडित रविशंकर के जीवन में सबसे बड़ा पल साल 1966 में तब आया जब उनकी मुलाकात बीटल्स सदस्य जॉर्ज हैरिसन से हुई। बीटल्स के जॉर्ज हैरिसन बनारस आए तो ध्यान और शांति की तलाश में थे पर वे पं। रविशंकर की कला पर इतने मुग्ध हो गए कि उनके शिष्य ही बन गए। इस महामिलन ने भारत की शास्त्रीयता और संगीत की महान परंपरा को दुनिया के मंच पर प्रतिष्ठित किया।
इन सबके बाद भी रविशंकर के मन में ये दुविधा रहती थी कि पश्चिम के लोग उनके संगीत को समझते भी हैं या नहीं? लेकिन उनका ये संशय तब दूर हुआ जब साल 1971 में वे बांग्लादेश के शरणार्थियों के लिए पैसे जमा करने के लिए आयोजित एक कॉंन्सर्ट में हिस्सा लेने बांग्लादेश पहुँचे। वहाँ उनके कार्यक्रम के अंत में सभा में मौजूद दर्शकों ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया था। इस घटना ने पंडित रविशंकर की आँखें खोल दीं और वे एक बार फिर से अपनी जड़ों और परंपराओं की तरफ लौटने लगे।
उन्होंने एक के बाद एक कई सांस्कृतिक समारोहों में हिस्सा लिया और प्राचीन भारतीय शास्त्रीय संगीत को पारंपरिक तरीके से प्रस्तुत किया। हालांकि इस दौरान वे अपने अंतरराष्ट्रीय असाइनमेंट पर भी काम करते रहे। रविशंकर बाद में अमरीका के सैन-डियागो शहर में बस गए थे। वे वहाँ  अपनी दूसरी पत्नी और बेटी अनुष्का शंकर के साथ रहते थे। अनुष्का शंकर भी एक नामी सितार वादक बन चुकी हैं और पिता-पुत्री की जोड़ी ने एक साथ कई मंचों पर सितार वादन किया है और उन्होंने भी कई ग्रैमी अवार्ड जीते हैं।  इसी तरह पंडित रविशंकर की दूसरी बेटी नोराह जोन्स भी एक कामयाब और नामी कलाकार हैं। नोराह जोन्स को भी कई ग्रैमी अवार्ड मिल चुके हैं।  
अपने अंतिम दिनों तक पंडित रविशंकर पूरब और पश्चिम के बीच पुल का काम करते रहे। इसके बावजूद जो चीज़ उनके दिल के करीब ज्यादा रही वो भारतीय परंपरा थी। इनमें योग, नृत्य, संगीत और दर्शनशास्त्र शामिल थे। 92 साल के होने के बाद भी रविशंकर का दिल जवान था। उनकी उम्र भले ही बढ़ती जा रही थी, लेकिन दिल से वह कभी भी बूढ़े नहीं हुए। रविशंकर मानते थे कि जिंदगी एक संघर्ष है और इस संघर्ष के साथ चलना ही जीवन है। बीटल्स ग्रुप और जॉर्ज हैरीसन जैसे प्रख्यात अंतरराष्ट्रीय संगीतकारों के प्रेरणा स्त्रोत रह चुके पंडित रविशकर के मुताबिक संगीत ही उनके जीवन की प्रेरणा रहा है और उन्होंने जिंदगी भर ना सिर्फ इसका लुत्फ उठाया है ; बल्कि इसे महसूस भी किया है।
उस्ताद अल्ला रक्खा और पंडित रविशंकर की जुगलबंदी विश्व प्रसिद्ध है। उनकी जुगलबंदी को बजने दीजिए, आप जान जाएँगे कि ईश्वर क्या है, अध्यात्म क्या है, ध्यान क्या है, संगीत क्या है और जादू क्या है।  रविशंकर जी के सितार की स्वर लहरियों ने आम आदमी को शास्त्रीय वाद्य संगीत के बहुत करीब लाकर खड़ा कर दिया। जिनको रागदारी की जानकारी है वे निश्चित ही इस आनंद सागर में बहुत गहरे गोते लगाते हैं, लेकिन जिनका राग और सुर से परिचय नहीं भी है उनके लिए रविशंकर जी के सितार को सुनते हुए ध्यानमग्न हो जाना बहुत आसान है। ये एक तरह की थैरेपी है, बहुत सुकून देने वाला है। सितार को सीखना और उसे पूरी शास्त्रीयता के साथ साधना जितना कठिन है, उसे सुनना और उसे गुनना उतना ही सहज और सरल बना गए पंडित रविशंकर।
 पंडित रविशंकर जी को विनम्र श्रद्धांजलि। (संकलित)

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