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Aug 25, 2012

एक पाती

कपिल सिब्बल साहब यह जिद क्यों है

- विनोद मिश्र
आदरणीय,
कपिल सिब्बल जी
एक प्रखर प्रवक्ता के रूप में आपको वर्षों से इस मुल्क ने करीब से देखा है। कानूनी दावपेंच और अकाट्य तर्कों के जरिये आपने अब तक अनर्गल बातों में भी जान डालने की जो महारत हासिल की है, देश को आप पर नाज है... 2जी के घोटाले में देश एक लाख छिहत्तर हजार करोड़ रुपए लूट लेने की चिंता से बाहर नहीं हो रहा था। लेकिन संचार मंत्रालय सँभालते ही आपने देश को अपने तर्कों से आश्वस्त करने की कोशिश की कि दरअसल कोई घोटाला हुआ ही नहीं। ये बात अलग थी कि सरकारी जाँच एजेंसी सीबीआई ने आपकी बातों पर तब्बजो नहीं दिया। अपने काले ड्रेस का जो चमत्कार आपने सियासत में दिखाया आज इस चमत्कार से हर छोटी बड़ी पार्टियां अभिभूत हंै। आज हर पार्टी का प्रवक्ता कोई न कोई वकील है। लेकिन विज्ञान के क्षेत्र में आपकी बढ़ी रूचि ने देश को एक बड़े  संकट में डाल दिया है। इन दिनों आप आईआईटी की परीक्षा में सुधार लाने की जिद पर अड़े हैं। आपने इसे नाक का सवाल बना लिया है। यह देश के 7 लाख बच्चों के जिंदगी का सवाल है लेकिन अपने अकाट्य तर्कों से आप देश को कम सरकार को ज्यादा संतुष्ट करना चाहते हैं। सामाजिक न्याय और प्रतिभा खोज का दायरा बढ़ाने के चक्कर में आपने जिसका भी भला किया हो (मुस्लिम बच्चों को 4 फीसदी आरक्षण देने की आपकी जिद ने आज आईआईटी उत्तीर्ण 450 मुस्लिम बच्चों के भविष्य को अधर में लटका दिया है) लेकिन इस देश के लाखों छात्र आपकी जिद के कारण हतोत्साहित हंै।
आप मानते हैं कि आईआईटी प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के सपनों का संस्थान है। आप यह भी मानते हैं कि आईआईटी के फैकल्टी ने भारत को पूरी दुनिया में गौरव दिलाया है। आप यह भी मानते हैं कि देश के प्रौद्योगिकी विकास में इन संस्थानों का अमूल्य योगदान है। फिर यह अधिकार आपको किसने दिया कि भैंसे की तरह किसी सजे बगीचे में घुस कर उसे तहस नहस कर दें। आईआईटी के तमाम प्राध्यापक आपकी सलाह से इत्तेफाक नहीं रखते लेकिन आप जबरन अपनी वकालत घुसेरे हुए हैं। आपके घर में कोई बच्चा आईआईटी की तैयारी कर रहा होगा इसकी सम्भावना कम है। ऐसा नहीं है कि आपके बच्चे या रिश्तेदार प्रतिभाशाली नहीं होंगे लेकिन इस दौर में जिस कठिन परिश्रम और लम्बी पारी खेल कर बच्चे सफल होने की जिद करते हंै। शायद आप जैसे सुविधा संपन्न परिवार के बच्चे ऐसी जिद नहीं कर सकते। आईआईटी हम जैसे गरीब और मध्यम परिवार के बच्चों को आसमान छूने के ख्वाब जैसा है। वह अपनी पूरी प्रतिभा और लगन से जीवन का रास्ता खोजता है। मेरे जैसे परिवार के इन बच्चों के साथ साथ माता पिता ने अपनी तमाम गतिविधि बंद करके अपने घर को जेल बना दिया है। लेकिन आप उनकी प्रतिभा और मेहनत पर शक करते हैं। आपका मानना है की ये बच्चे कोचिंग से प्रतिभा उधार में ले आते हैं।
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके से इस बार 175 आदिवासी बच्चों ने आई आई टी और ए आई ई ई ई में कामयाबी पाई है। दंतेवाड़ा के जिला कलेक्टर ने 'प्रयास' कोचिंग खोलकर गरीब बच्चों के सपनों को साकार किया है। आज छत्तीसगढ़ सरकार ने पटना के सुपर 30 की मदद से इस प्रयास को पूरे आदिवासी इलाके में खोलने की योजना बनायी है। लेकिन आपकी जिद है की बारहवीं की परीक्षा में 20 प्रतिशत टॉपर को ही आईआईटी की परीक्षा में शामिल होने का मौका मिले जबकि 80 फीसदी प्रतिभाशाली बच्चों को इस दौर से बाहर कर दिया जाए। आपके ध्यानार्थ यह बताना जरुरी है की +2 के इन टॉपर बच्चों में 10 फीसदी भी आईआईटी की परीक्षा में उतीर्ण नहीं हो पाते। वजह कोचिंग का ट्रिक नहीं है वजह सिर्फ सिलेबस है। देश के 42 राज्य बोर्ड का अलग अलग सिलेबस है तो अलग मानक लेकिन आपका तर्क है कि इससे गरीब बच्चों को आगे आने का मौका मिलेगा। गरीब बच्चे किस तरह आईआईटी का ख्वाब देख रहे हैं यह बात सुपर 30 के संस्थापक आनंद बेहतर बता सकते हैं।
चाँदी का चमचा मुंह में डाल आप पैदा हुए है... शायद आप उन मेधावी बच्चों के ख्वाब को नहीं जान सकते जो बड़ी मुश्किल से अपने लिए कापी- किताब जुटा कर आईआईटी का जिद पाले हुए हैं... उसकी यह जिद इसलिए भी है कि उन्हें भरोसा है कि आईआईटी उसके साथ अन्याय नहीं करेगा लेकिन राज्य बोर्ड किस बच्चे के साथ कितना न्याय करता है सरकार में रहकर शायद आप इसे बेहतर जान सकते हैं।
हर साल +2 के इम्तिहान में डीपीएस के छात्र -छात्राओं को अव्वल देखकर आपका मन जरूर बाग- बाग होता होगा, लेकिन एक बार उन बच्चों से यह सवाल जरूर पूछिए जिन्होंने तालीम किसी सरकारी स्कूल में ली है। बिहार, उत्तर प्रदेश के कई स्कूलों में वर्षों से विज्ञान शिक्षक नहीं है। राज्य सरकार मेधावी शिक्षकों की बहाली करने में अक्षम है लेकिन सिब्बल साहब आप गरीबों बच्चों को न्याय दिलाने के नाम पर शायद डीपीएस और संस्कृति के बच्चों की पैरवी कर रहे हैं।
अंत में सिब्बल साहब जिस देश में हर साल लाखों- करोड़ों रुपए घोटालों की भेंट चढ़ जाते हैं क्या उस देश में 1000-2000 करोड़ रूपए खर्च करके गरीब बच्चों के लिए कोचिंग की व्यवस्था नहीं की जा सकती? नारायण मूर्ति ने गरीब और पिछड़े तबके के मेधावी बच्चों को विशेष कोचिंग दिलाकर उन्हें प्रतिभा के दम पर पद हासिल करने का जज्बा दिया था। आरक्षण को बढ़ावा देने के बजाय गरीब बच्चों को बेहतर तालीम की जरूरत है जो आप नहीं दे सकते लेकिन आप लोगों में संशय फैला रहे हंै कि देश के कोचिंग संस्थान गरीब बच्चों का हक छीन रहे हैं मेरे जैसा एक साधारण आदमी अपनी गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा किस तरह बच्चों के कोचिंग पर खर्च करता है, इस जज्बे को आप शायद ही समझ सकते हैं। सर, अगर आपके पास कोई आइडिया नहीं है तो कोचिंग को निशाना बनाकर बच्चों के भविष्य के साथ मत खेलिये। जिस दिन आप आईआईटी के लिए कोई मरेथान रेस की शर्त रखेंगे ये कोचिंग संस्थाएं अपने बच्चों को दौडऩे के लिए ट्रेंड कर देगी। अगर आप जिद कर सकते हैं तो कृपया स्कूली शिक्षा के स्तर को सुधारने की जिद करें। आपकी यह जिद देश के लाखों गरीब बच्चों को नया जीवन दे सकती है जिसे किसी कोचिंग की कभी जरूरत ही नहीं होगी...।
सादर...
एक अभिवावक

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