आया सावन झूम के...
सवान के महीने में हरे रंग का सर्वाधिक महत्व होता है। क्यूंकि सावन के महीने में धरती सूरज की तपिश से मुक्त होकर अपनी धानी चूनर छोड़ हरीयाली से परिपूर्ण ठंडी- ठंडी हरी चुनरी जो ओढ़ लिया करती है। बड़े- बड़े पेड़ों से लेकर नन्हें- नन्हें पौधों पर पड़ी बारिश की बूंदें जैसे बचपन पर आया नवयौवन का निखार
जैसा के आप सभी जानते ही होंगे कि सवान के महीने में हरे रंग का सर्वाधिक महत्व होता है। क्यूंकि सावन के महीने में धरती सूरज की तपिश से मुक्त होकर अपनी धानी चूनर छोड़ हरीयाली से परिपूर्ण ठंडी- ठंडी हरी चुनरी जो ओढ़ लिया करती है। बड़े- बड़े पेड़ों से लेकर नन्हें- नन्हें पौधों पर पड़ी बारिश की बूंदें जैसे बचपन पर आया नवयौवन का निखार, जल मग्न रास्ते, झीलों, तालाबों और नदियों में बढ़ता जलस्तर बहते पानी का तेज होता बहाव जैसे सब पर एक नया जोश, एक नयी उमंग छा जाती है।
हर कोई, चाहे 'प्रकृति हो या इंसान' इस मौसम में एक नये जोश के साथ अपने- अपने जीवन की एक नयी शुरुवात करने की इच्छा रखते है। इसलिए तो प्रकृति भी नए अंकुरों को जन्म देकर उन्हें नन्हें हरे- हरे पौधों के रूप में बदल कर नव जीवन की शुरआत का संदेशा देती नजर आती है। घर आँगन में पड़े सावन के झूले, उन झूलों पर आज भी झूलता बचपन और उस बचपन में मेरे बचपन की झलक जिसे आज भी सिर्फ मैं देख सकती हूँ।
हरी- हरी चूडिय़ों की खनक, मिट्टी की सौंधी खुशबू में मिली मेहंदी की महक, मेहंदी के रंग को देखने का उतावलापन कि रंग आया या नहीं। नए कपड़ों को खरीद कर जल्द से जल्द पहनने की होड़, भाइयों के आने का बेसब्र इंतजार, मिठाइयों की दुकानों पर सजे फेनी और घेवर की खुशबू, बाजारों का कोलाहल, फुर्सत के पल में घड़ी- घड़ी बनती चाय और पकौड़ों की महक, ताश के पत्ते, पिकनिक की जगह तलाशता बचपन, गर्मागर्म भुट्टों का स्वाद, पानी से भरी सड़कों पर बिना कीचड़ की परवाह किए बेझिझक भीगना और मम्मी की डांट कि बस बहुत हो गया बहुत भीग लिए, अब बस करो और भीगोगे तो बीमार पड़ जाओगे।
सब जैसे एक साथ किसी चलचित्र की तरह चल रहा है जामुन का स्वाद, सबसे सुंदर राखी चुन लेने की उत्सुकता और भी न जाने क्या- क्या....मेरे लिए तो इतना कुछ छुपा है इस सावन के मौसम में जिसे पूरी तरह व्यक्त कर पाना शायद मेरे बस में नहीं, बस एक यादों का अथाह समंदर है जिसमें यादों की ही लहरें उठ रही है। एक अजीब सी बेकरारी है। एक अजीब सा खिंचाव जो हर साल, हर सावन में, हर बार मुझे यूं हीं खींचता है अपनी ओर, और उन यादों के आवेग में मेरा मन बस यूँ हीं बहता चला जाता है किसी मदहोश इंसान की तरह जिसे मौसम का नशा चढ़ा हो। ना जाने क्यूँ कुछ लोग नशे के लिए शराब का सहारा लिया करते हैं। कभी कुदरत के नशे में भी खोकर देखें उसमें जो नशा जो खुमारी है वह शायद ही उस नशे में हो जिसे लोग नशा कहा करते हैं।
लेकिन इन सब चीजों के बाद भी सावन का यह महीना एक चीज के बिना अधूरा है वह है संगीत। सावन के इस मौसम में चाय का कप और बारिश के पानी के साथ किशोर कुमार की आवाज... भला और क्या चाहिए जिंदगी में इस आनंद के सिवा...
रिमझिम गिरे सावन, सुलग- सुलग जाए मन
भीगे आज इस मौसम में लगी कैसी ये अगन...
संपर्क- द्वारा- डॉ. एस.के. सक्सेना, 27/1, गीतांजलि काम्प्लेक्स,
Email- pallavisaxena80@gmail.com
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