छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां सबसे अधिक वन एवं वन्यप्राणी है जहां तीन राष्ट्रीय उद्यान- कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान, इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान, गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान एवं 11 अभयारण्य हैं। प्रदेश के हमारे ये राष्ट्रीय उद्यान ऐसे संरक्षित वन है जहां वन्यजीव और वनस्पति दोनों ही सुरक्षित रहते हैं। साथ ही राष्ट्रीय उद्यान पर्यटकों के मनोरंजन, ज्ञानवर्धन, पर्यावरण में जागरूकता के साथ शोध कार्य एवं अध्ययन के लिये भी उपयुक्त स्थान होते हैं। आज जबकि पूरी दुनिया में विकास के नाम पर प्रतिवर्ष करोड़ों वृक्ष काटे जा रहे है ऐसे में हमारा यह कर्तव्य है कि वन एवं जीव जन्तुओं को नष्ट होने से बचाएं। इन राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभयारण्यों के माध्यम से वन एवं वन्य प्राणियों को बचाने के लिए सरकार तो प्रयासरत है ही वहीं हमें भी प्रकृति की इन अमूल्य धरोहरों को बचाने के लिए आगे आना चाहिए। तभी हमारी धरती मानव के जीने लायक बची रहे।
कांगेर घा

जगदलपुर से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान रंग- बिरंगी तितलियों, गुफाओं एवं झरनों के लिए विख्यात है। यह घाटी भारत के सर्वाधिक सुंदर और मनोहारी नेशनल पार्कों में से एक है। यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता और अनोखी तथा समृद्ध जैव विविधता के कारण मशहूर है। कांगेर घाटी को 1982 में नेशनल पार्क का दर्जा दिया गया था। कांगेर घाटी 34 किलो मीटर लंबी तराई में स्थित है। इस राष्ट्रीय उद्यान में कांगेर नदी की विभिन्न शाखाएं साल भर बहती हैं। ऐसी मान्यता है कि देश का सघनतम वन इस राष्ट्रीय उद्यान में सुरक्षित है। यहां के जंगलों में 90 फीसदी वृक्ष साल वनों के हैं। यह एक बायोस्फीयर रिजर्व है। छत्तीसगढ़ का राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना यहीं पाई जाती है। पहाड़ी मैना इंसान के आवाज की हू-ब-हू नकल करती है।
वन्य जीवन और पेड़ पौधों के अलावा इस नेशनल पार्क के अंदर पर्यटकों के लिए अनेक भ्रमण के स्थान हैं जिसमें प्रमुख हैं कुटुमसर की गुफाएं, कैलाश गुफाएं, डंडक की गुफाएं। यहां स्थित तीरथगढ़ जल- प्रपात तो पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है। कांगेर धारा और भीमसा धारा, (घडिय़ालों का एक पार्क) जैसे दो पिकनिक रिजॉर्ट भी हैं।
अनेक वनस्पतियों से मिश्रित इस वन में मुख्यत: साल, टीक और बांस के पेड़ हैं। कांगेर घाटी नेशनल पार्क में पाए जाने वाले प्रमुख जीव जंतुओं में बाघ, चीता, माउस डीयर, जंगली बिल्ली, चीतल, सांभर, बार्किंग डीयर, भेडि़ए, लंगूर, रीसस मैकाक, स्लॉथ बियर, उडऩे वाली गिलहरी, जंगली सुअर, पट्टीदार हाइना, खरगोश, अजगर, कोबरा, घडिय़ाल, मॉनिटर छिपकली तथा सांप आदि शामिल हैं। इस पार्क में मुख्य रूप से पहाड़ी मैना, चित्तीदार उल्लू, लाल जंगली बाज़, रैकिट टेल्ड ड्रोंगो, मोर, तोते, स्टैपी इगल, लाल फर वाला फाल, फटकार, भूरा तीतर, ट्री पाइ और हेरॉन पक्षी पाए जाते हैं।
इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान
यह छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल बस्तर संभाग के अंतर्गत दो हजार 800 वर्ग किलोमीटर में पसरा हुआ है। यह जिला मुख्यालय बीजापुर से भोपालपट्टनम मार्ग पर 50 किलोमीटर की दूरी पर है। इस राष्ट्रीय उद्यान का नाम बस्तर अंचल की जीवनदायिनी इंद्रावती नदी के नाम पर रखा गया है जो इस उद्यान से होकर बहती है। यह उद्यान वनभैंसो का निवास स्थल है। वर्तमान में देश में केवल काजीरंगा राष्ट्रीय उ

इस संरक्षित क्षेत्र में सागौन एवं मिश्रित प्रजाति के वन पाये जाते है जिनमें 102 प्रकार के वृक्ष 28 प्रकार की लताऐं 46 प्रकार की झाडिय़ां बांस फर्न एवं ब्रायोफाईट पाये जाते है। जैसे - सागौन, शीशम, साजा, सलई, हल्दू, सेन्हा, तिनसा, जामुन, तेन्दू, धावडा, बीजा, साल, चार आदि। भोपालपटनम से 70 कि.मी. की दूरी पर भद्रकाली नामक स्थान पर इंद्रावती एवं गोदावरी नदी का संगम है। यह स्थान बहुत ही खूबसूरत है। पर्यटक इस स्थान पर पिकनिक का आनंद लेते हंै।
गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान
बैकुण्ठपुर जिला कोरिया में बैकुण्ठपुर- सोनहत मार्ग पर 35 किलोमीटर दूरी पर स्थित है यह राष्ट्रीय उद्यान। राज्य बनने के बाद वर्ष 2001 में इस राष्ट्रीय उद्यान का निर्माण किया गया था। ऊंची- ऊंची पहाडिय़ों और नदियों से घिरे इस उद्यान का क्षेत्रफल एक हजार चार सौ वर्ग किलोमीटर है। इस राष्ट्रीय उद्यान से होकर हसदेव, गोपद एवं लोधार नदियां बहती हैं। हसदेव नदी का उद्गम इस राष्ट्रीय उद्यान के अंदर है। अन्य दर्शनीय स्थलों में हसदेव नदी का उद्गम स्थल आमापानी, खेकड़ा माड़ा हिलटॉप, नीलकंठ जल- प्रपात, च्यूल जल- प्रपात, गांगीरानी माता की गुफा, आनंदपुर, बीजाधुर, सिद्धबाबा की गुफा, खोहरा पाट, छतोडा की गुफा, नेउर नदी प्रमुख हैं।
ग्यारह अभयारण्यों से भरा पूरा प्रदेश
इन तीन राष्ट्रीय उद्यानों के अलावा प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में ग्यारह ऐसे अभयारण्य हैं जो विभिन्न तरह की वनस्पतियों और जीव जन्तु के लिए प्रसिद्ध हैं। प्रकृति के ये अमूल्यों धरोहर कहीं खो न जाएं आइए इन्हें संजो लें-
बारनवापारा अभयारण्य
राज्य की राजधानी रायपुर से सबसे नजदीक लगभग सौ किलोमीटर दूर बारनवापारा अभयारण्य स्थित है। अभयारण्य के बीच स्थित बार और नवापारा वन्यग्रामों के आधार पर इसका नामकरण बारनवापारा अभयारण्य हुआ है। सन् 1976 से अस्तित्व में आए इस वन्य प्राणी संरक्षित क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 245 वर्ग किलोमीटर है। रायपुर से बारनवापारा पहुंचने के लिए रायपुर- सराईपाली राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-6 पर रायपुर से 72 किलोमीटर पर स्थित ग्राम पटेवा से 28 किलोमीटर कच्चे मार्ग पर चलकर अभयारण्य के मुख्यालय तक पहुंचा जा सकता है। बारनवापारा अभयारण्य में बाघ, तेन्दुआ, गौर, भालू, सांभर,
कांगेर के जंगलों में 90 फीसदी वृक्ष साल वनों के हैं। यह एक बायोस्फीयर रिजर्व है। छत्तीसगढ़ का राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना यहीं पाई जाती है। पहाड़ी मैना इंसान के आवाज की हू-ब-हू नकल करती है।
उदन्ती अभयारण्य
रायपुर से कोई डेढ़ सौ किलोमीटर दूर उड़ीसा से लगा उदन्ती अभयारण्य एक छोटा किन्तु महत्वपूर्ण वन्य जीवन अभयारण्य है। उदंती अभयारण्य दुर्लभ वनभैंसा का प्राकृतिक आवास स्थल है। इसकी स्थापना 1983 में की गई थी। यह अभयारण्य लगभग 232 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है। इस अभयारण्य के बीच मैदानी हिस्सों के साथ छोटी- छोटी असंख्य पहाडिय़ां हैं। यह सुंदर अभयारण्य पश्चिम से पूर्व के ओर बहने वाली उदंती नदी के नाम पर बनाया गया है जो इस अभयारण्य के अधिकांश भाग में बहती है। उदंती अभयारण्य जंगली भैंसों की आबादी के लिए प्रसिद्ध है जो इन दिनों खतरे में है। इसे बचाए रखने के लिए वर्तमान में सरकार ने विशेष प्रयास आरंभ किए हैं। उदंती अभयारण्य के दौरे पर जाकर आप ढेर सारे जंतुओं और पक्षियों को इनकी प्राकृतिक स्थिति में देखने का आनंद उठा सकते हैं।
सीतानदी अभयारण्य
छत्तीसगढ़ के धम

अचानकमार अभयारण्य
बिलासपुर जिले में मैकल पहाडिय़ों के बीच साढ़े पांच सौ वर्ग किलोमीटर इलाके में अचानकमार अभयारण्य फैला हुआ है। बिलासपुर जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस अभयारण्य के साल वनों की गिनती देश के सर्वश्रेष्ठ साल वनों में की जाती है। सघन वनों से आच्छादित इस अभयारण्य में बाघ और तेंदूआ जैसे मांसाहारी वन्य जीवों के अलावा गौर, सांभर, चीतल, चौसिंघा, बार्किग डियर, भालू, उडऩे वाली गिलहरी,सोनकुत्ता बहुतायत से पाए जाते हैं।
तमोर पिंगला अभयारण्य
आदिवासी बहुल सरगुजा जिले में जिला मुख्यालय अम्बिकापुर से सौ किलोमीटर की दूरी पर तमोर पिंगला अभयारण्य है। ये पूरा क्षेत्र पहाड़ी, घने जंगलों और नदियों से घिरे होने के कारण मनोरम है। बाघ, तेंदूआ और अन्य शाकाहारी वन्य प्राणियों के अलावा राष्ट्रीय पक्षी मोर, तोता, जंगली मुर्गा, दूधराज, तीतर मैना आदि अभयारण्य के लिए खास आकर्षण का केन्द्र होते हैं।
सेमरसोत अभयारण्य
अम्बिकापुर- रामानुजगंज मार्ग पर 58 किलोमीटर की दूरी पर सेमरसोत अभयारण्य है। सेमरसोत नदी के कारण इस अभयारण्य का नाम सेमरसोत पड़ा है। अभयारण्य के प्राकृतिक सुंदरता का अवलोकन करने के लिए यहां अनेक स्थानों पर वॉच टावरों का निर्माण किया गया है।
भोरमदेव अभयारण्य
कवर्धा से 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित भोरमदेव अभयारण्य जैव विविधता एवं वन्य प्राणी के लिए अपना विशिष्ट स्थान रखता है। इस अभयारण्य का नाम सुविख्यात भोरमदेव मंदिर के नाम से रखा गया है। जिसका निर्माण 11वीं सदी में नागवंशी राजा गोपालदेव द्वारा कराया गया है। इस अभयारण्य का गठन 2001 में किया गया है, इसका कुल क्षेत्रफल 163.80 वर्ग कि.मी. है।
भोरमदेव अभयारण्य मैकल पर्वत श्रृंखला में समुद्र सतह से लगभग 600 मीटर से 894 मीटर की ऊंचाई में स्थित है। इसमें मुख्यत: साल तथा मिश्रित प्रजाति के वन है, इस अभयारण्य में कुछ स्थानों पर सागौन के प्राकृतिक वन भी पाये जाते हैं। यह अभयारण्य विश्व विख्यात कान्हा टाईगर राष्ट्रीय उद्यान एवं चिल्फी बफर जोन के साथ जुड़ी होने के कारण और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
गोमर्डा अभयारण्य
रायगढ़ से 52 कि.मी. दूर सारंगढ़ के पास गोमर्डा अभयारण्य में वन्य प्राणियों की बढ़ती हुई संख्या एवं उसके विस्तार को देखते हुए अभयारण्य क्षेत्र का विस्तार 1983 में किया गया। वर्तमान में गोमर्डा अभयारण्य का कुल क्षेत्रफल 277.82 वर्ग कि.मी. है। अभयारण्य का अधिकांश भाग पहाड़ी है। राठन बुढ़ाघाट, गोमर्डा, दानव करवट दैहान जैसी पहाडिय़ां इस अभयारण्य के सौन्दर्य को और भी बढ़ाती है। लात, मनई जैसी छोटी-छोटी जल प्रवाही नदियां इस क्षेत्र के वन्य जीवों की प्यास बुझाती हैं। इस अभयारण्य में यूं तो अनेक प्रकार के वन्य प्राणी पाये जाते हैं लेकिन भालू जो सर्वभक्षी माना जाता है, इस अभयारण्य में बड़ी संख्या में पाए जाते हैं।
बादलखोल अभयारण्य
जशपुर जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूरी पर स्थित यह आरक्षित वनखण्ड कभी जशपुर महाराज का शिकारगाह था। बादलखोल अभयारण्य कुल 32 वनकक्षों से मिलकर बना है, जिसका कुल क्षेत्रफल 104.454 वर्ग किलोमीटर है। अभयारण्य का संपूर्ण क्षेत्र ईब एवं डोड़की नदी का जलागम क्षेत्र है। यह अभयारण्य 1975 में बनाया गया था। अभयारण्य में बिहार एवं उड़ीसा से आने वाले हाथियों के झुण्ड इस वनक्षेत्र को कोरिडोर के रूप में इस्तेमाल करते है। इस अभयारण्य के आसपास अनेक पर्यटन स्थल है- जैसे अम्बिकापुर नगर से पूर्व दिशा में 60 कि.मी. पर स्थित सामरबार नामक स्थान हैं, जहां प्राकृतिक वन सुषमा के बीच कैलाश गुफा स्थित है। इसे संत रामेश्वर गहिरा गुरू ने पहाड़ी चट्टानों को तराश कर निर्मित करवाया है। इस गुफा में शिव-पार्वती मंदिर बाघमाडा एवं अनेक लोक देवी- देवता के स्थान हैं। यहां महाशिवरात्रि पर विशाल मेला लगता है। इस गुफा से लगा हुआ दो पहाडिय़ों के बीच गुल्लू जलप्रपात, छुरी जलप्रपात पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
भैरमगढ़ अभयारण्य
बीजापुर जिले से 48 कि.मी. दूर भैरमगढ़ नामक स्थान पर स्थित है यह अभयारण्य। इस अभयारण्य का नाम ग्राम भैरमगढ के नाम पर पड़ा है। इसका कुल क्षेत्रफल 138.95 वर्ग कि.मी. है। इस अभयारण्य से इंद्रावती नदी बहती है। यहां सागौन, अर्जुन, आंवला, जामुन, तिन्सा, धावडा, तेन्दु, बिजा, हर्रा, हल्दु, सलई, सेन्हा आदि के अतिरिक्त बांस एवं औषधीय पौधे भी पाये जाते हैं। इंद्रावती नदी के किनारे घास के मैदान पाये जाते हैं, जिसका उपयोग वन भैसों के द्वारा किया जाता है। यह अभयारण्य वन भैसा के कारण प्रसिद्ध है। वन भैसे के अतिरिक्त इस अभयारण्य में शेर, तेन्दुआ, गौर, नीलगाय, चितल, साभंर, काकड, लोमडी, भालू, खरगोश, जंगली सुअर आदि वन्य प्राणी एवं विभिन्न प्रकार के पक्षी भी पाये जाते हैं।
पामेड़ अभयारण्य
यह अभयारण्य बीजापुर जिले के आवापल्ली ग्राम से 33 कि.मी. दूर जगदलपुर -निजामाबाद पर स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल 442.23 वर्ग कि.मी. है। इस अभयारण्य का नाम पामेड ग्राम के नाम से रखा गया है। यह अभयारण्य पांच पहाड़- मेटागुंडंम, कोरागुटटा, बलराजगुटटा, कोटापल्ली एवं डोलीगुटटा से घिरा हुआ है। इस अभयारण्य में तलपेरू, चिंतावगु नदी बहती है नदी के किनारे घास के मैदान पाये जाते हैं, जिसका उपयोग वन भैसे के द्वारा किया जाता है। साल, सागौन, अर्जुन, आंवला, जामुन, तिन्सा, तेन्दु, बिजा, हर्रा, हल्दु, सलई, सेन्हा आदी के वृक्ष यहां बहुतायत से पाए जाते हैं। किनारे- किनारे घास के मैदान पाये जाते हैं, जिसका उपयोग वन भैसे के द्वारा किया जाता है। यह अभयारण्य वन भैसा के पाये जाने के कारण प्रसिद्ध है। वन भैसे के अतिरिक्त इस अभयारण्य में शेर, तेन्दुआ, गौर, नीलगाय, चितल, सांभर, काकड़, लोमड़ी, भालू, खरगोश, जंगली सुअर आदि वन्य प्राणी एवं विभिन्न प्रकार के पक्षी भी पाये जाते हैं।
4 comments:
Thank you
Very Very nice
अद्भुत छत्तीसगढ़ । वन एवं वन्य जीवों से परिपूर्ण संपदा।
Rahul kumar sahu,forest gaurd, तमोर पिंगला अभ्यारण्य्
Barnavapara best abhiyaran
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