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Jul 11, 2010

मार्निंग वॉक का फंडा

मार्निंग वॉक का फंडा
- विनोद साव
'जिन्दगी तो दौड़धूप का दूसरा नाम है।' पहले वे दार्शनिक भाव से बोले। .. जब दौडऩा है तो अकेले क्यूं... पत्नी को भी साथ रखिए क्योंकि पति और पत्नी गृहस्थी की गाड़ी के दो चक्के हैं और इसे चलाने के लिए दोनों चक्कों का दौडऩा जरुरी है।'
आजकल मार्निग वॉक की भागम- भाग है। सेहत बनाने और मांसपेशी दिखाने का फैशन है। मैक्सी के अन्दर बीवी है तो चार साल का बेटा फुलपेंट में डूबा है और पिताश्री उतर आए हैं हाफपेंट पर। तीनों का बरमूडा ट्रायेंगल है। बरमूडा पहने वे पत्नी और बच्चे के साथ दौड़े जा रहे थे। ओलम्पिक में जैसे किसी विजेता धावक के पीछे पत्रकार दौड़ते हैं मैंने उनके पीछे दौड़ लगाते हुए कहा कि 'सर! आखिर आपके मार्निग वॉक का फंडा क्या है? हर रोज आप पत्नी व बच्चों के साथ दौड़ लगाते हैं?'
'जिन्दगी तो दौड़धूप का दूसरा नाम है।' पहले वे दार्शनिक भाव से बोले। .. जब दौडऩा है तो अकेले क्यंू... पत्नी को भी साथ रखिए क्योंकि पति और पत्नी गृहस्थी की गाड़ी के दो चक्के हैं और इसे चलाने के लिए दोनों चक्कों का दौडऩा जरुरी है।' अब वे गृहस्थ मुद्रा में आ गए थे।
'... फिर साथ में यह तीसरा चक्का क्यों।'' मैंने उनके बेटे की ओर इशारा करते हुए कहा।
'बेटा स्टेपनी है.. जब एक चक्का पंचर हो जाता है तब स्टेपनी काम में आती है।' अब वे घोर व्यावहारिकता में उतर आए थे। कहने लगे 'रोज सबेरे दौड़ लगाकर सेहत बनाने का हमारा उद्देश्य भूख बढ़ाना है। आपको आश्चर्य होगा कि हमारे सुखद दाम्पत्य जीवन का मुख्य आधार 'मुर्गा' है।'
'लेकिन आदमी के सुखद दाम्पत्य जीवन से भला एक मुर्गे का क्या संबंध है!' मैंने चौकते हुए पूछा।
'संबंध है साहब संबंध है.. अब देखिए मेरी बीवी मुर्गा बहुत अच्छा बनाती है। जिस दिन वह लजीज मुर्गा बनाती है उस दिन हमारे दाम्पत्य संबंध मधुर हो उठते हैं। जिस दिन मुर्गा बनाने में देरी हुई या मुर्गा ठीक नहीं बना तो हम दोनों के बीच मुर्गा लड़ाई शुरु हो जाती है। हम रोज सबेरे दो मील दौड़ लगाते हैं ताकि हमें ज्यादा से ज्यादा भूख लगे और हम ज्यादा से ज्यादा मुर्गा खा सकें।' यह कहते हुए उन्होंने अपनी पत्नी की ओर किसी मुर्गे की तरह प्यार से गर्दन उठाकर देखा तो पत्नी फुदकती हुई समर्पण भाव से निहाल हो उठी। ये उसी सूत्र का परिणाम था जिससे यह नारा बना है कि सुखद दाम्पत्य जीवन के दो आधार पत्नी का समर्पण और पति का प्यार। जाहिर है सुखद दाम्पत्य जीवन जीना उनके मार्निग वॉक का फंडा था।
अब इधर दाम्पत्य जीवन का एक दूसरा दृश्य है जिसमें आजकल उनका आहार नियंत्रण चल रहा है। पहले धूम्रपान नियंत्रण चल रहा था फिर मद्यपान नियंत्रण सम्पन्न हुआ। कुछ दिनों बर्थ कंट्रोल पर रहेे। इस तरह के अनेक नियंत्रणों को साधने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि उनके पीछे उनकी पत्नी पड़ गई थी। पत्नी को हरदम लगा करता था कि उसका पति हरफनमौला है और वह कभी भी नियंत्रण से बाहर हो सकता है। इसलिए रोज सबेरे नहा धोकर पति के पीछे पड़ जाना उसने अपना प्रथम कर्तव्य माना था।
पति को प्रात: उठाकर उसके पीछे अपना कुत्ता दौड़ा देना ताकि कुत्ता जब तक भोंकता रहे तब तक पति दौड़ता रहे। घर आने पर उसे लहसून की कलियां चबाने के बाद पांच गिलास पानी पीने को देना। हाजत रफा के लिए नस गुड़ाखू की जगह नीम के दतौन पकड़ा देना। इस कड़वी हिदायत के साथ कि 'देखो.. तुम नीम के ये दतौन लो और जा बैठो। इसे चबा चबाकर इसके कड़वे रस का पान करते रहोगे तो सारे कीड़े बाहर आ जाएंगे।' बाहर निकलते तक बारह इंची नीम की काड़ी बस दो इंच रह जाती है।
पत्नी की हिदायत जारी थी 'चाय बिना दूध के पीयो तो गैस की शिकायत बन्द। चाय छोड़कर जंवारा रस पीयो तो और अच्छा है। मालूम है यह ग्रीन ब्लड है। सुबह के गरमा- गरम नाश्ते को भूल जाओ और अंकुरित मूंग व चने चबाओ। भोजन में पूड़ी पराठा का हल्ला छोड़ो और सूखी रोटी पर धावा बोलो। पुलाव तो क्या चावल भी न खाओ तो तुम्हारी सेहत के लिए ठीक रहेगा। भात खाकर पेट निकालकर कौन सा तीर मारोगे। फिर तुम जानते हो कि ये पेट कहां- कहां आड़े नहीं आता।
गेहूं हमारा मित्र है। सारा जीवन रोटी सब्जी खाकर गुजार सकते हो। अरे आदमी को क्या चाहिए? दो वक्त की रोटी बस..। मारवाड़ी सूखी रोटी खाकर करोड़ीमल बन जाता है और एक तुम हो कि खा- खाकर भुक्कड़ हुए जा रहे हो। जब देखो तब खाने पीने के नाम से घर में हंगामा मचाये रखते हो। जैसे इस दुनियां में तुम खाने के लिए ही जिन्दा हो। अरे तुम्हारा पेट है कि कब्रिस्तान... न जाने अब तक वहां कितने मुर्गे दफन हो गए हैं।
वे जब भी सुबह सोकर उठते हैं लगता है वे घर में नहीं किसी थियेटर में खड़े हों जहां पत्नी की दी हुई हिदायतें डिजीटल साउन्ड में गूंज रही हैं। उसने टीवी चालू किया। सामने बाबा टांगदेव थे। जैसे उनकी पत्नी के कहने पर आए हों। इसके पहले वाले बाबाओं का रोल खत्म हो गया आजकल सब ओर इन्ही बाबा की जय है। हर छह महीने में एक नया गुरु तैयार हो जाता है। यूज एंड थ्रो का जमाना है पुराने गुरु गुड़ गोबर हो गए अब सामने नया गुरु घण्टाल है। उसने कातर दृष्टि से टीवी के एक भक्त को देखा जो शोभा यात्रा में जयजयकार करते चले जा रहे थे। उनके मुंह से निकला 'कहां जा रहे हो? अरे मिलेगा क्या? बाबाजी की पादुका!' भक्त ने मुस्कुराकर कहा 'वह भी मिल जायगा अगर बाबाजी की कृपा हो।'
वे आंखे बन्द कर शांतमुद्रा में बैठ गए थे। या तो प्राणायाम की तैयारी थी या फिर रेकी का आव्हान वे कर रहे थे। आंखें खुलीं तो सामने मैं खड़ा था उनके शुभचिन्तकों में से एक।
सुना है हड्डियों को मजबूत करने के लिए बहुत से लोग पाया पी रहे हैं।' मैंने कहा।
'यह क्या बला है?' उन्होंने दयनीय होते हुए पूछा।
'पाया यानी..बकरे की टांग का रस।' मैंने खुलासा किया।
'यहां मुर्गे की टांग तो नसीब नहीं हो रही है और तुम बकरे की टांग अड़ा रहे हो।' वे तैश में थे। संभवत: इस तैश के पीछे उनका आहार नियंत्रण था। आदमी जब ज्यादा आदर्श पर चलता है तब कई कुण्ठाएं जन्म लेती हैं।
नीचे बरमूडा और ऊपर टी-शर्ट थी जो पत्नी ने उनके जन्मदिन पर उपहार दिया था उन्हीं के पैसों से। उसने प्रतिवाद भी किया था पत्नी की इस फिजूल खर्ची पर 'नीचे पहनने के लिए मेरे पास लोअर, लूंगी, पाजामा, टॉवेल और जांघिया है। अब और क्या- क्या तुम मुझे पहनाओगी?' तब पत्नी ने एक रहस्यमय मुस्कान के साथ कहा था 'बरमूडा में तुम ज्यादा यंग लगोगे।'
'यार इन बीवियों को पति नहीं एक केयरटेकर चाहिए जो घोड़े जैसा शक्तिशाली हो और कुत्ते जैसा वफादार।' उसने मेरी ओर समर्थन की आस में देखा।
'तुम्हारा टॉमी आज दिख नहीं रहा है।' मैंने कुत्ते की चर्चा होने पर उनके कुत्ते को याद किया।
'टॉमी की सर्विसिंग हो रही है। मतलब नहलाई धुलाई।' उन्होंने बतलाया 'नहाने के बाद मेरे साथ सलाद खाएगा।' उसने पत्नी के काटे हुए सलाद पर अंकुरित मूंग व चने छिड़कते हुए कहा।
'क्या तुम्हारे साथ- साथ टॉमी का नानवेज भी बन्द हो गया?' मैंने जैसे उसकी दुखती रग पर हाथ फेरा। उसने दर्द को जज्ब करते हुए कहा 'हां! टॉमी को आजकल खीरा ककड़ी दिया जा रहा है। भूख में वह कुछ भी खाने के लिए ललचता है।' उसकी आवाज में मायूसी थी जैसे वे टॉमी की नहीं अपनी बात कह रहे हों। उनकी पत्नी बाहर आ गई थी हाथ में एक प्लेट थी जिसमें केले और पपीते के छिलके थे। उसने पत्नी की ओर हैरत से देखा 'यह क्या अब तुम मुझे ये छिलके भी खिलाओगी!'
'यह तुम्हारे लिए नहीं टॉमी के लिए है।' पत्नी ने स्पष्ट कर उसे शान्त किया। उनकी पत्नी ने मुझे नमस्कार करते हुए कहा 'हमारा टॉमी अब शुद्ध शाकाहारी हो रहा है।'
'पर भाभीजी .. टॉमी तो फ्लेश इटिंग एनीमल है ग्रास इटिंग नहीं... यानी मांसाहारी जीव है और आप..?' मैंने कहा।
बीच में टोकते हुए उनकी पत्नी ने कहा 'ऐसा कुछ नहीं है.. जैसा संस्कार डालोगे जीव वैसा हो जाता है।' अबकी बार थोड़े कर्मकाण्डी स्वर गूंजे थे। फिर अपने पति की ओर इशारा कर उसने कहा 'ये भी तो फ्लेश इटिंग एनीमल थे टॉमी की तरह .. अब इन्हें भी शाकाहारी बना रही हूं। यानी इनको और टॉमी को .. दोनों को। अरे शाकाहारी जानवर मांसाहारी जानवरों से ज्यादा बड़े और ताकतवर होते हैं। जैसे हाथी, दरियाई घोड़ा और जिराफ। और मांसाहारियों की तरह पीठ पीछे से हमला नहीं करते बल्कि सामने से आक्रमण करने का साहस करते हैं। मैं इनको और टॉमी दोनों को साहसी बना रही हूं। और फिर देखिये आप रोज सबेरे ये दोनों कैसी दौड़ लगाते है। ये है हमारे मार्निंग वाक का फंडा।' उनकी पत्नी ने जोर से आवाज लगाई जैसे कि उन्होंने कोई नारा गुंजाया हो।
'सुना है आप पचास के हो गए?' मार्निग वाक के समय किसी सहृदयी की आवाज सुनाई दी।
हां भई .. हो तो गए।' मैंने तेज चाल चलते हुए उसंास भरी।
'मैं भी चालीस का हो गया हूं।' वे दौड़कर हांफते हुए करीब आए और बधाई पाने की चाहत से मुझे देखा।
'यार बधाई हो।' मैंने भी उन्हें भांपते हुए कहा कि 'आजकल चालीस भी बहुत होता है हो.., इस जमाने में आपने चालीस पूरे कर लिए यानी मैदान मार लिया।' सबेरे सबेरे मैदान में उकडूं बैठे लोगों की ओर हमने एक साथ देखा।
'नई तो क्या!' वे उत्साह से भर गए फिर बोले 'आज की भागमभाग जिन्दगी में न जाने किस दिन हार्ट-अटैक हो जाय। चढ़ती महंगाई में आप क्या खाओगे और कितनी कैलोरी पाओगे, बढ़ते प्रदूषण में न जाने कब दम घुट जाय।' उन्होंने हवा में आती शराब खाने की बदबू से अपनी नाक ढंकते हुए कहा।
'ये लो आपने शैतान का नाम लिया और शैतान आ धमका, अब तो हवाएं भी हमारी नहीं रहीं। जहां मुट्ठी भर धूप, थोड़ा सा आसमां और ताजा हवा की किल्लत हो जाए वहां तो चालीस पार कर लेना ही एक बड़ी उपलब्धि है। ऐसे लोगों का तो हेल्थ क्लबों और योग शिविरों में सम्मान किया जाना चाहिए और उनके अभिनंदन पत्र में यह लिखा जाना चाहिए कि किन गुणों के सागर होने के कारण चालीस पूरे कर लेने के बाद भी उनका चालीसा नहीं उठा।' मेरा चालीसा पाठ पूरा हो चुका था उनकी दौड़ पूरी हो चुकी थी। हम अपनी अपनी दिशाओं की ओर मुड़ चले थे। यह था उनके मार्निंग वॉक के फंडे पर मेरा फंडा।
पता- 'सिद्धार्थ' मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़- 491001
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ई-मेल- vinod.sao1955@gmail.com
21 वीं सदी के व्यंग्यकार स्तंभ के आयोजक विनोद साव
20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जन्मे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में सहायक प्रबंधक हैं। मूलत: व्यंग्य लिखने वाले विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, ज्ञानोदय, अक्षरपर्व, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में भी छप रही हैं। उनके दो उपन्यास, चार व्यंग्य संग्रह और संस्मरणों के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है। उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वे उपन्यास के लिए डॉ. नामवरसिंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी पुरस्कृत हुए हैं।
उदंती में प्रति माह प्रकाशित 21वीं सदी के व्यंग्यकार स्तंभ का आयोजन विनोद साव के प्रयासों से ही संभव हो सका। इस सदी के सक्रिय व्यंग्यकारों को तलाश कर उन्होंने व्यंग्य की आगे की संभावनाओं को तलाशने की कोशिश की है। उनकी यह कोशिश पूरी हो पाई या नहीं इसे तो हमारे सुधी पाठक और व्यंग्य-समीक्षक ही ठीक-ठीक बता पाएंगे। विनोद जी अब इस स्तंभ को और अधिक खींचने के मूड में नहीं हैं अत: इसका समापन हम विनोद जी के व्यंग्य 'मॉर्निंग वॉक का फंडा' से कर रहे हैं। विनोद जी की खासियत है कि वे बोलते बतियाते हुए व्यंग्य करते हैं जिनमें हास्य का पुट भी होता है और मुद्दे की गंभीरता भी। प्रस्तुत व्यंग्य में उन्होंने आधुनिक जीवन शैली में हो रहे परिवर्तन पर हास्य- व्यंग्य की हल्की फुहार तो छोड़ी ही है साथ ही उस बाजारवाद पर गहरा कटाक्ष किया है जहां सेहत के नाम पर लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
-संपादक

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