गज़नी के बादशाह का नियम था कि वह रात को भेष बदलकर गज़नी की गलियों में घूमा करता था. एक रात उसे कुछ आदमी छुपते-छुपाते चलते दिखाई दिए। वह भी उनकी तरफ बढ़ा. चोरों ने उसे देखा, तो वे ठहर गए और उससे पूछने लगे – “भाई, तुम कौन हो और रात के समय किसलिए घूम रहे हो?” बादशाह ने कहा – “मैं भी तुम्हारा भाई हूँ और रोज़ी की तलाश में निकला हूँ” यह सुनकर चोर बड़े खुश हुए और कहने लगे – “यह बहुत अच्छा हुआ, जो तुम हमसे आ मिले। जितने ज्यादा हों, उतनी ही ज्यादा कामयाबी मिलती है। चलो, किसी बड़े आसामी के घर चोरी करे।” जब वे लोग चलने लगे , तो उनमें से एक ने कहा, “पहले यह तय कर लेना चाहिए कि कौन आदमी किस काम को अच्छी तरह कर सकता है, जिससे हम एक-दूसरे के हुनर को जान जाएँ और जो ज्यादा हुनरमंद हो उसे नेता बनाएँ।”
यह सुनकर हर एक ने अपनी-अपनी खूबियाँ बतलाईं। एक बोला – “मैं कुत्तों की बोली पहचानता हूँ। वे जो कुछ कहें, उसे मैं अच्छी तरह समझ लेता हूँ। हमारे काम में कुत्तों से बड़ी अड़चन पड़ती है. हम यदि उनकी बोली जान लें , तो हमारा ख़तरा कम हो सकता है और मैं इस काम को बड़ी अच्छी तरह कर सकता हूँ।”
दूसरा कहने लगा – “मेरी आंखों में ऐसी ताकत है कि जिसे अंधेरे में देख लूं, उसे फिर कभी नहीं भूल सकता। और दिन के देखे को अंधेरी रात में पहचान सकता हूँ। बहुत से लोग हमें पहचानकर पकड़वा देते हैं. मैं ऐसे लोगों को तुरन्त भांप लेता हु और अपने साथियों को सावधान कर देता हूँ। इस तरह हमारी हिफ़ाज़त हो जाती है”.
तीसरा बोला – “मुझमें ऐसी ताकत है कि मज़बूत दीवार में सेंध लगा सकता हूँ और यह काम मैं ऐसी फुर्ती और सफाई से करता हूँ कि सोनेवालों की आंखें नहीं खुलतीं और घण्टों का काम पलों में हो जाता है।”
चौथा बोला – “मेरी सूँघने की ताकत इतनी खास है कि ज़मीन में गड़े हुए धन को वहाँ की मिट्टी सूँघकर ही बता सकता हूँ। मैंने इस काम में इतनी कामयाबी पाई है कि मेरे दुश्मन भी मेरी बड़ाई करते हैं. लोग अमूमन धन को धरती में ही गाड़कर रखते हैं. इस वक्त यह हुनर बड़ा काम देता है. मैं इस इल्म का पूरा जानकार हूँ। मेरे लिए यह काम बड़ा आसान है।”
पांचवे ने कहा – “मेरे हाथों में ऐसी ताकत है कि ऊँचे-ऊँचे महलों पर बिना सीढ़ी के चढ़ सकता हूँ और ऊपर पहुँचकर अपने साथियों को भी चढ़ा सकता हूँ। तुममें तो कोई ऐसा नहीं होगा, जो यह काम कर सके।”
इस तरह जब सब लोग अपने-अपने हुनर बता चुके, तो नए चोर से बोले – “तुम भी अपना कमाल बताओ, जिससे हमें अन्दाज हो कि तुम हमारे काम में कितने मददगार हो सकते हो”. बादशाह ने जब यह सुना , तो खुश होकर कहने लगा – “मुझमें ऐसा इल्म है, जो तुममें से किसी में भी नहीं है। और वह इल्म यह है कि मैं गुनाहों को माफ़ कर सकता हूँ। अगर हम लोग चोरी करते पकड़े जाएँ, तो अवश्य सजा पाएँगे लेकिन मेरी दाढ़ी में यह खूबी है कि उसके हिलते ही सारे गुनाह माफ़ हो जाते हैं। तुम चोरी करके भी साफ बच सकते हो। देखो, कितनी बड़ी ताकत है मेरी दाढ़ी में।”
बादशाह की यह बात सुनकर सबने एक सुर में कहा – “भाई तू ही हमारा नेता है। हम सब तेरी ही इशारों पर काम करेंगे, ताकि अगर कहीं पकड़े जाएँ , तो बख्शे जा सकें। ये हमारी खुशकिस्मती है कि तुझ-जैसा हुनरमंद साथी हमें मिला।”
इस तरह मशवरा करके ये लोग वहाँ से चले। जब बादशाह के महल के पास पहुँचे , तो कुत्ता भौंका. चोर ने कुत्ते की बोली पहचानकर साथियों से कहा कि यह कह रहा है कि बादशाह पास ही हैं; इसलिए होशियार होकर चलना चाहिए। मगर उसकी बात किसीने नहीं मानी। जब नेता आगे बढ़ता चला गया , तो दूसरों ने भी उसके संकेत की कोई परवाह नहीं की. बादशाह के महल के नीचे पहुँचकर सब रुक गए और वहीं चोरी करने का इरादा किया। दूसरा चोर उछलकर महल पर चढ़ गया और फिर उसने बाकी चोरों को भी खींच लिया। महल के भीतर घुसकर सेंध लगाई गई और खूब लूट हुई. जिसके जो हाथ लगा, समेटता गया. जब लूट चुके, तो चलने की तैयारी हुई। जल्दी-जल्दी नीचे उतरे और अपना-अपना रास्ता लिया। बादशाह ने सबका नाम-धाम पूछ लिया था। चोर माल-असबाब लेकर चंपत हो गए।
बादशाह ने अपने मंत्री को आज्ञा दी कि तुम अमुक स्थान में तुरन्त सिपाही भेजो और फलाँ- फलाँ-लोगों को गिरफ्तार करके मेरे सामने हाजिर करो। मंत्री ने फौरन सिपाही भेज दिए। चोर पकड़े गए और बादशाह के सामने पेश किए गए. जब इन लोगों ने बादशाह को देखा, तो एक-दूसरे से कहा – “बड़ा गजब हो गया! रात चोरी में बादशाह हमारे साथ था.” और यह वही नया चोर था, जिसने कहा था कि “मेरी दाढ़ी में वह शक्ति है कि उसके हिलते ही अपराध क्षमा हो जाते हैं।”
सब लोग साहस करके आगे बढ़े और बादशाह के सामने सज़दा किया. बादशाह ने उनसे पूछा – “तुमने चोरी की है?”
सबने एक साथ जवाब दिया – “हाँ, हूजर. यह अपराध हमसे ही हुआ है।”
बादशाह ने पूछा – “तुम लोग कितने थे?”
चोरों ने कहा – “हम कुल छह थे।”
बादशाह ने पूछा – “छठा कहाँ है?”
चोरों ने कहा – “अन्नदाता, गुस्ताखी माफ हो। छठे आप ही थे।”
चोरों की यह बात सुनकर सब दरबारी अचंभे में रह गए . इतने में बादशाह ने चोरों से फिर पूछा – “अच्छा, अब तुम क्या चाहते हो?”
चोरों ने कहा – “अन्नदाता, हममें से हर एक ने अपना-अपना काम कर दिखाया. अब छठे की बारी है। अब आप अपना हुनर दिखाएँ, जिससे हम अपराधियों की जान बचे।”
यह सुनकर बादशाह मुस्कराया और बोला – “अच्छा! तुमको माफ किया जाता है। आगे से ऐसा काम मत करना।” (हिन्दी जेन से)
( जलालुद्दीन रूमी की किताब मसनवी से ली गई कहानी )
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