सम्पर्क भाषा के लिए अंग्रेजी में कई शब्दों का प्रयोग होता है, यथा lingua franca, bridge language, common language, trade language, auxiliary language, vehicular language और link language. एक तरह से देखें तो हिन्दी की सम्पर्क भाषा नामक शब्दावली अंग्रेजी के link language का ही अनुवाद है। राजभाषा के रूप में हिन्दी की सफलता बहुत कुछ अखिल भारतीय स्तर पर सम्पर्क भाषा के रूप में उसकी सफलता पर निर्भर है।
1.सम्पर्क भाषा से तात्पर्य
सम्पर्क भाषा की परिभाषा निम्नलिखित रूप में दी गई है–
A language that is adopted as a common language between speakers whose native languages are different.’Oxford English
अर्थात् “सम्पर्क भाषा उस भाषा को कहते हैं जिसका प्रयोग दो अलग-अलग भाषा बोलने वाले लोग आपसी सम्पर्क के लिए एक सामान्य भाषा के रूप में करते हैं।’ एक दूसरे की भाषा न जानते हुए भी परस्पर बातचीत करना व्यापारिक, धार्मिक आदि कई कारणों से ज़रूरी हो जाता है। हमें अपना व्यवसाय चलाना है या अपने धर्म का प्रचार करना है तो हमें उन लोगों की भाषा सीखनी ही होगी, जिनसे हमें व्यापार करना है या जिनके बीच हमें अपने धर्म या संस्कृति का प्रचार करना है।
2. देशी भाषा और सम्पर्क भाषा में अंतर
जहाँ एक देशी भाषा विशेष भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित रहती है, वहीं सम्पर्क भाषा व्यापारिक, धार्मिक, राजनीतिक या शैक्षणिक आदि कई कारणों से मूल भाषा-भाषियों की सीमा से काफी बाहर तक अपना विस्तार कर लेती है। उदाहरण के लिए, अंग्रेज़ी वैसे तो सिर्फ यूनाइटेड किंगडम की देशी भाषा है परंतु विश्व के अधिकांश देशों में इसका इस्तेमाल सम्पर्क भाषा के रूप में किया जाता है।
3. विश्व की सम्पर्क भाषाएँ
अब आइए विश्व की कुछ प्रमुख भाषाओं की चर्चा करें जो उन भाषाओं को बोलने वालों की भौगोलिक सीमा के काफी बाहर जाकर अलग-अलग भाषा-भाषियों के बीच सम्पर्क भाषा की भूमिका निभा रही हैं। राजनीतिक कारणों से अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पैनिश और पुर्तगीज उन देशों की सम्पर्क भाषा बन गई जो देश कभी ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन और पुतगाल के उपनिवेश हुआ करते थे। इसी तरह से धार्मिक कारणों से विश्व के काफी मुस्लिम लोग आपसी सम्पर्क के लिए अरबी का प्रयोग करते हैं।
4. कोई भाषा सम्पर्क भाषा कैसे बनती है?
हिन्दी को सम्पर्क भाषा कैसे बनाएँ, इसकी चर्चा करने के पहले आइए यह जानें कि किन कारणों से कोई भाषा सम्पर्क भाषा बनती है? सम्पर्क भाषा के रूप में किसी भाषा का विस्तार व्यापारिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक और प्रशासनिक कारणों से होती है।
5. हिन्दी को सम्पर्क भाषा कैसे बनाया जा सकता है?
आइए जानें कि हिन्दी भाषा को समूचे देश की सम्पर्क भाषा के रूप में कैसे विकसित किया जा सकता है।
-हिन्दी उत्तर और पश्चिम भारत की सम्पर्क भाषा के रूप में
सबसे पहले बात करते हैं उत्तर भारत की। उत्तर भारत की सभी भाषाएँ वैसे भी व्याकरणिक ढाँचे और शब्द संपदा के रूप में हिन्दी से काफी मिलती-जुलती हैं। हिन्दी और उर्दू में तो सिर्फ लिपि और शब्दावली का ही अंतर है। व्यापारिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कारणों से समूचे उत्तर भारत में किसी भी प्रदेश में किसी से भी हिन्दी भाषा में आपसी बातचीत की जा सकती है और इस तरह हिन्दी समूचे उत्तर भारत – पंजाब से लेकर उत्तर-पूर्व तक के लोगों की सम्पर्क भाषा पहले से ही बन चुकी है।
पर जहाँ तक पश्चिमी भारत के राज्यों की बात है, भक्तिकाल में हिन्दी भाषी प्रदेशों और इन राज्यों के संत आपस में मिला करते थे और इस तरह हिन्दी भाषा का काफी प्रचार इन क्षेत्रों में पहले से ही हो चुका था। मीराबाई की कविताएँ तो आज भी उसी रूप में गुजराती में पढ़ाई जाती हैं। मराठी भाषा ने देवनागरी लिपि को अपनाकर स्वयं को लिपि के स्तर पर हिन्दी के और भी नज़दीक ला दिया है। महाराष्ट्र के दूरदराज के कुछ लोगों को छोड़ दें तो सभी आपसी बातचीत हिन्दी में कर लेते हैं। जो लोग हिन्दी बोल नहीं सकते उनके बीच बोलचाल की हिन्दी को लोकप्रिय बनाने की थोड़ी ज़रूरत है और इस दिशा में सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर प्रयास किए जाने की ज़रूरत है।
- तमिलनाडु से इतर दक्षिणी भारत की सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी
अब बात करते हैं तमिलनाडु को छोड़कर शेष दक्षिण भारत की। मुहम्मद-बिन-तुगलक ने जब देवगिरि को अपनी राजधानी बनाई तो उनके साथ दिल्ली से काफ़ी संख्या में लोग गए, जिसकी वजह से दक्खिनी नामक हिन्दी की एक अलग बोली बनी। 15वीं से 18वीं सदी तक बहमनी वंश के तथा अन्य राजाओं ने दक्खिनी हिन्दी को आश्रय दिया। बहमनी वंश के महामंत्री गंगू ब्राह्मण ने दक्खिनी हिन्दी को राजभाषा बनाया। दक्खिनी की केवल लिपि फ़ारसी थी, भाषा के रूप में तो वह हिन्दी ही थी। इस तरह से राजनीतिक कारण से हिन्दी दक्षिण तक गई और वहाँ के सभी लोगों की सम्पर्क भाषा बन गई। आज भी जब हम हैदराबाद जाते हैं तो लगता ही नहीं है कि हम दक्षिण भारत में आए हुए हैं। राजनीतिक और धार्मिक कारणों से हिन्दी न केवल आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में अपितु कर्नाटक और केरल में भी दूसरी भाषा के रूप में अच्छी तरह से बोली और समझी जाने लगी है। एक बार जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने कर्नाटक राज्य के धारवाड़ शहर में अंग्रेज़ी में बोलना शुरू किया तो वहाँ की जनता ने हिन्दी-हिन्दी कहना शुरू कर दिया और उन्हें हिन्दी में भाषण देने के लिए विवश कर दिया। इसी से आप समझ सकते हैं कि तमिलनाडु से इतर दक्षिण भारत के राज्यों में लोग अंग्रेज़ी भले ही न समझें, हिन्दी समझते हैं और इस तरह से हिन्दी इस इलाके की भी सम्पर्क भाषा बनती जा रही है।
राजनीतिक और धार्मिक कारणों के अलावा व्यावसायिक और व्यापारिक कारणों से भी दक्षिण के लोग हिन्दी सीख रहे हैं और यहाँ के मूल निवासियों और हिन्दी क्षेत्र से यहाँ आए लोगों की यह सम्पर्क भाषा बनती जा रही है। इसमें मारवाड़ी और गुजराती व्यवसायियों का बहुत अधिक योगदान है। जैसे-जैसे केंद्र सरकार और दक्षिण भारत की राज्य सरकारें इन राज्यों में रोजगार करना आसान बनाती जाएँगी, सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी का और विकास होता जाएगा।
- तमिलनाडु की सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी
आइए अब बात करते हैं तमिलनाडु की, जहाँ आज भी तमिल और अंग्रेज़ी का ही बोलबाला है। इसे स्वीकार करने में कोई हर्ज़ नहीं है कि आज भी हिन्दी इस राज्य की सम्पर्क भाषा नहीं बन पाई है। एक बार मैं चेन्नै में एक सरकारी बैंक के एक शाखा प्रबंधक से मिला जो गुजराती थे – उनका कहना था कि वे गुजरात में सारा काम हिन्दी में ही करते थे पर यहाँ आकर समझ में आया कि आज भी अंग्रेज़ी के बिना गुज़ारा नहीं है। उनका कहना था कि यदि वे अंग्रेज़ी नहीं जानते तो यहाँ के ग्राहकों के साथ सम्पर्क करना नामुमकिन था। सात साल चेन्नै में रहने के बाद मैंने भी कुछ ऐसा ही महसूस किया।
पर उसी तमिलनाडु के कुछ क्षेत्रों में स्थितियाँ काफी अलग हैं। विशेषकर उन शहरों में जो हिंदू धर्म के केंद्र हैं - यथा मदुरै, कन्याकुमारी, रामेश्वरम आदि – लोग आराम से हिन्दी समझते भी हैं और बोलते भी हैं। कारण स्पष्ट है उत्तर भारत से आए दर्शनार्थियों के साथ सम्पर्क करना। लगभग तीस साल पहले जब मैं मीनाक्षी मंदिर का दर्शन करने के लिए मदुरै गया था तो मैंने वहाँ के एक पुलिसकर्मी से अंग्रेज़ी में रास्ता पूछा और जब उसने हिन्दी में जवाब दिया तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। दक्षिण के अन्य राज्यों की ही तरह धार्मिक, व्यावसायिक और व्यापारिक कारणों से यहाँ भी लोग हिन्दी सीखने लगे हैं। चेन्नै में पहले हिन्दी काशीचट्टी तक सीमित हुआ करती थी पर अब उसका विस्तार चेन्नै के हर बाज़ार तक हो गया है। हर व्यापारी आराम से हिन्दी में बात करने लगा है क्योंकि ऐसा न करने पर नुकसान उनका ही होगा।
तमिलनाडु में दक्खिनी का प्रसार नहीं हुआ जिसका कारण यह था कि उत्तर भारत के शासक यहां तक अपना पैर नहीं पसार सके। यहां तो स्थानीय चेर, चोल और पांड्य शासकों का शासन रहा जिन्होंने तमिल भाषा को आश्रय दिया। इन शासकों का संबंध उत्तर भारत से कम और दक्षिण-पूर्व एशिया के शासकों से अधिक था। इनकी वज़ह से मलेशिया, सिंगापुर आदि देशों तक तमिल भाषा का प्रसार हुआ।अठारहवीं सदी में अंग्रेज़ों ने यहाँ अपना पैर जमाया और मद्रास प्रेसिडेंसी बनाया और उनकी वज़ह से यहां तमिल के अलावा अंग्रेज़ी का भी प्रसार हुआ। हमें स्वीकार करना होगा कि उक्त कारणों से यहां की दूसरी भाषा अंग्रेज़ी है, हिन्दी नहीं। हिन्दी को एक तरह से तीसरी भाषा कह सकते हैं। पर केन्द्रीय विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चे हिन्दी सीख रहे हैं। भारत सरकार को भी चाहिए कि वह ऐसे केन्द्रीय विद्यालयों की संख्या बढ़ाए जिसमें बच्चे हिन्दी भी सीखें, फीस भी कम देनी पड़े और पढ़ाई का स्तर भी बेहतरीन हो। हिन्दी को यदि यहाँ की सम्पर्क भाषा बनानी है तो यही एकमात्र विकल्प है – केंद्र सरकार को इस दिशा में शीघ्र पहल करनी चाहिए। यहाँ हिन्दी का प्रसार शैक्षणिक, धार्मिक और व्यावसायिक कारणों से ही हो सकेगा पर शैक्षणिक कारण अधिक असरदार साबित होंगे।
- हिन्दी विश्व की सम्पर्क भाषा के रूप में
प्रवासी भारतीयों के कारण बीस से अधिक देशों में काफी संख्या में लोग हिन्दी बोलने लगे हैं – यथा यूएसए, मारिशस, दक्षिण अफ्रीका, यमन, उगांडा, सिंगापुर, पाकिस्तान, नेपाल, न्यूजीलैंड, फिज़ी, सुरीनाम, गुयाना, ट्रिनिडाड और टोबैगो आदि। कहने का तात्पर्य यही है कि जैसे-जैसे भारत आर्थिक रूप से सशक्त बनेगा और विश्व व्यापार में भारत की भागीदारी बढ़ेगी, वैसे-वैसे दूसरे देश के लोग स्वत: हिन्दी सीखेंगे और भारत की ही तरह विश्व मंच पर भी हिन्दी एक सशक्त सम्पर्क भाषा के रूप में उभरेगी।
6. निष्कर्ष
इसमें कोई शक नहीं कि जब से हिन्दी ने हिंदुस्तानी का रूप ले लिया, सम्पर्क भाषा के रूप में इसका विस्तार होता गया। मुगल शासकों ने दक्षिण भारत तक हिन्दी का प्रसार करने में अहम भूमिका निभाई। आज़ादी के बाद इसे केंद्र सरकार की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया जिसके फलस्वरूप देश में ही नहीं विदेशों में स्थित केंद्र सरकार के कार्यालयों में भी लोग हिन्दी सीखने लगे। शिक्षा के स्तर पर त्रिभाषा सूत्र ने भी सम्पर्क भाषा के रूप में इसका प्रसार करने में योगदान दिया।
जब बात सम्पर्क भाषा की आती है तो हमें हिन्दी और उर्दू को एक भाषा मानकर चलना चाहिए। इन दोनों भाषाओं ने न केवल पूरे भारत में अपितु विदेशों में भी अपना सिक्का जमा लिया है। आज हिन्दी विभिन्न कारणों से समूचे देश की सम्पर्क भाषा बन चुकी है। जैसे-जैसे भारत एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरता जाएगा, विश्व में हिन्दी सीखने वाले बढ़ते जाएँगे और वह दिन दूर नहीं जब विदेशी लोग भारत आकर यहाँ की जनता के साथ सम्पर्क करने के लिए सम्पर्क भाषा के रूप में अंग्रेज़ी के बाजाए हिन्दी को पसंद करेंगे। ■■
निवास स्थान : बेंगलूरु, : मो. 9820414276,, ईमेल drramakant2000@gmail.com
1 comment:
मैं इससे सहमत नहीं हूं की मुगलों ने हिंदी को दक्षिण भारत पहुंचाया मेरा मत है की प्राचीन समय संस्कृत भाषा पूरे भारत में पढ़ाई जाती थी और हिंदी भी उसी का भाग है तमिलनाडु सहित दक्षिण के कई लोग वाराणसी और उत्तर भारत के अन्य शहर का प्रवास करते रहे हैं और उनका स्थानीय लोगों से संवाद जरूर होता होगा
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