1. इक्कीस कोटि-जन-पूजिता हिन्दी
पड़ने लगती है पीयूष की शिर पर धारा
हो जाता है रुचिर ज्योति मय लोचन-तारा
बर बिनोद की लहर हृदय में है लहराती
कुछ बिजली सी दौड़ सब नसों में है जाती
आते ही मुख पर अति सुखद जिसका पावन नाम ही
इक्कीस कोटि-जन-पूजिता हिन्दी भाषा है वही
जिसने जग में जन्म दिया औ पोसा, पाला
जिसने यक- यक लहू बूँद में जीवन डाला
उस माता के शुचि मुख से जो भाषा सीखी
उसके उर से लग जिसकी मधुराई चीखी
जिसके तुतलाकर कथन से सुधाधार घर में बही
क्या उस भाषा का मोह कुछ हम लोगों को है नहीं
- अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
2. मेरी माता है
मेरी भाषा में तोते भी राम राम जब कहते हैं,
मेरे रोम-रोम में मानो सुधा-स्रोत तब बहते हैं ।
सब कुछ छूट जाय मैं अपनी भाषा कभी न छोडूँगा,
वह मेरी माता है उससे नाता कैसे तोड़ूँगा ।।
-मैथिलीशरण गुप्त
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