दंभ मान मद
करहिं न काऊ, भूलि न देहिं कुमारग पाऊ
लोभ पास जेहिं
गर न बंधाया, सो नर तुम्हार समान रघुराया
सत्य की ही तर्ज पर
इतिहास भी वस्तुपरक (objective)
होता है विषयपरक (subjective) नहीं, लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश में एकाधिकार वाद के अंतर्गत उसे भी रेहन
रखकर अपने हिसाब से लिखवाया गया है आदिकाल से। राज दरबारों में राजकवि का धर्म भी
यही हुआ करता था। इस राग दरबारी संस्कृति ने नई पीढ़ी को जो विरासत सौंपी वह
तथ्यपरक न होकर ठकुरसुहाती के मायाजाल आप्लावित रही। राजनैतिक नेतृत्व ने एक ओर
जहां अपनी गल्तियों या कमियों का भी महिमामंडन कर जनमानस को परोस दिया, वहीं सच्चे तथा अच्छे लोगों के योगदान को उपहास का पात्र बनाकर प्रस्तुत
करने से न तो कोई परहेज किया और न ही किसी किस्म की शालीनता बरती। यह देश तो
मनीषियों की धरती है और अच्छों के सूर्य समान अवदान को स्वार्थ की बदली सदृश्य कुछ
देर तक तो छुपाया जा सकता है, किन्तु विलोपित करना संभव
नहीं। तो आइये आज चर्चा करें भारतीय स्वाधीनता संग्राम के एक पुरोधा डॉ. राममनोहर
लोहिया की जिनके योगदान की बेरहमी से उपेक्षा की गई। लोहिया मूलत: समाजवादी दर्शन
के जनक थे, जिसमें न तो वामपंथी नारेबाजी एवं निर्दयता का
पुट था और न ही पूंजीवादी व्यवस्थान्तर्गत शोषण की संभावना। इस माडल को यदि
ईमानदारीपूर्वक अपनाया गया होता तो आज हमें इतने दुर्दिन न देखने पड़ते। वे औसत कद
काठी के साधारण पुरुष थे आभिजात्य संकृति सभ्यता से सर्वथा परे। पहरावा ठेठ देसी।
इरादों की ईमानदारी की निहाई (anvil) पर उन जैसा दूसरा
उदाहरण मिलना मुश्किल है, जिनका मानवतावाद भौगोलिक सीमाओं से
भी परे था। हमारा मंतव्य केवल कुछ उदाहरण से ही भली- भांति स्पष्ट है।
1.
अर्थशास्त्री:
वे अद्भुत अर्थशास्त्री थे और इसका प्रमाण है लोकसभा के दस्तावेज़ में उपस्थित उनका
वह भाषण जिसमें उन्होंने तत्कालीन नेतृत्व के आम भारतीय की प्रतिदिन 15 आने आय की
हवाई घोषणा रूपी आंकड़ों की धज्जी उड़ाते हुए सिद्ध कर दिया था कि यह मात्र 3 आने
है। भ्रामक,
झूठी बातों का गुब्बारा
फोड़ने या यूं कहें कि भंडाफोड़ करने एवं साहस के साथ सच बोलने में उनकी कोई
सानी नहीं थी। यदि व्यक्तिगत पसंदगी को ताक पर रखकर उनकी सेवा ली गई होती तो आज
देश का नक्शा ही कुछ और होता। भारत कब का विश्व स्तर पर आर्थिक महाशक्ति बन गया
होता।
2. मानवतावादी : भौगोलिक सीमाओं से परे वे खालिस मानवतावादी थे
और उनका यह चेहरा संसार के सामने तब प्रकट हुआ जब उन्होंने नस्लीय भेदभाव से
ग्रस्त अमेरिका में कालों के प्रवेश से प्रतिबंधितएक रेस्तरां में अपनी पारंपरिक
भारतीय वेषभूषा धोती, कुर्ता, सदरी और चप्पल सहित प्रवेश कर पुलिस द्वारा
गिरफ्तारी का जोखिम उठाया। विदेशी धरती पर किसी भारतीय का यह पहला अहिंसा का आग्रह
लिया सत्याग्रह था एवं जब इस संवेदनशील प्रयास का पटाक्षेप अमेरिकी गृह विभाग
द्वारा भारतीय दूतावास को जैक्सन में घटित दुर्व्यवहार के लिये क्षमा याचना युक्त
खेद पत्र द्वारा हुई तो उन्होंने कहा : मुझसे माफ़ी माँगने से क्या मतलब।माफ़ी तो
अमेरिकी राष्ट्रपति को दुनिया के समस्त अश्वेतों से मांगनी चाहिए जिनके प्रति गोरी
चमड़ी वाले आज तक अन्याय करते रहे हैं।
3. राष्ट्रभक्ति : राष्ट्रभक्ति
दिखावे का प्रयोजन न होकर कुर्सी की लालसा से परे रगों में प्रवाहित होने वाला भाव
हैजो उनमें बाल्यकाल से ही कूट कूटकर भरा था। उनकी उत्कट देशभक्ति की भावना ने
उन्हें अनेकों बार अपनी राजनैतिक संगी साथियों के तंग नज़रिये तथा स्वार्थी सोच से
टकराने पर विवश किया। वे आज़ादी उपरांत किसी पद के आकांक्षी तो कभी थे ही नहीं।
उनका सोच तो समग्र भारतवासियों के कल्याण में निहित था।
- वे देश के विभाजन के सर्वथा
विरुद्ध थे,
किन्तु तत्कालीन राजनैतिक लालसा को भांपते हुए उन्होंने भारत पाक
महासंघ का प्रस्ताव रखा था और यदि वही मान लिया जाता तो आज दोनों देशों में कम से
कम अमन शांति तो होती।
- तत्कालीन गोवा पिछले 450 वर्षों
से पुर्तगाल साम्राज्य का उपनिवेश था। लोहियाजी ने 1946 में ही इसे भी अजेंडा में
सम्मिलित करवाने का प्रस्ताव रखा और जब आनाकानी देखी तो एकला चलो की तर्ज पर गोवा
मुक्ति अभियान की योजना का सूत्रपात कर वहां प्रवेश करते हुए मडगांव में खुद की
गिरफ्तारी से अभियान का श्रीगणेश किया। तत्कालीन राजनैतिक ईमानदारी के अभाव का ही
परिणाम था कि गोवा को 1961 तक आज़ादी की प्रतीक्षा करनी पड़ी।
- वे सेना की मजबूती के बावजूद
कश्मीर प्रसंग को संयुक्त राष्ट्र महासभा में ले जाने के न केवल विरुद्ध थे बल्कि
इसे महान भूल मानते थे और ऐसा न हो पाने का परिणाम हम सब जानते हैं।
4. सुधारवादी :
सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ उनका रवैया जेहाद जैसी मानसिकता का स्वरूप था। यदि
उनका ‘जाति तोड़ो’ का
सुधारवादी सूत्र तथाकथित धार्मिक एवं राजनैतिक पुरोधाओं ने स्वीकारा होता तो न तो
आज इतनी सामाजिक विषमता होती और न ही देश इतने खेमों में बंटा हुआ दिखाई देता।
5. भाषा से
भातृत्व :
हिन्दी के लिये उनका आग्रह भाषा से अधिक मैकाले मानसिकता मुक्ति का प्रयास था।
अंग्रेजी से उन्हें कोई परहेज नहीं था। परहेज था तो सिर्फ यह कि वे मानते थे कि
भारतीय भाषाओं का पोषण व विकास ही स्वाधीन सोच का सोपान बन सकता है।
वे अंतस में बहुत उदार एवं
संवेदनशील थे। जब भारत सरकार ने रूस के पूर्व प्रधान मंत्री स्तालिन की पुत्री
स्वेतलाना (जिसने भारतीय क्रांतिकारी बृजेश सिंह से शादी की थी) के यहां आकर बसने
के निवेदन को भारत सरकार ने ठुकरा दिया तो उन्हें बहुत धक्का लगा, क्योंकि शरणागत की रक्षा तो भारतीय दर्शन का मूल भाव रहा है। स्वेतलाना ने
भी सरकार की इस बेरुखी से आहत हो यह विचार छोड़ दिया और अंतत: स्विज़रलेंड जाकर में
बस गईं।
कुल मिलाकर उनके चरित्र से यह बात
भालिभांति उजागर होती है कि वे न तो वे सत्ता के लालची थे और न ही नाम के। यही
कारण था कि गाँधी से लेकर आइंस्टीन, पर्ल एस. बक, श्रीमती रूज़वेल्ट इत्यादि तक अनेक विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ उनकी ईमानदारी
पूरित बातों और आचरण की कायल थीं। वे तो सत्तासीनों के लिये अद्भुत उदाहरण थे एक
फक्कड़ कबीर परंपरा युक्त संत। उन्होंने राष्ट्रहित को सर्वोपरि समझा। शादी के बंधन
तक में नहीं बँधे। खानाबदोशी जीवन जिया और एक हरफनमौला के समान अनूठी मिसाल के साथ
इस सुकरात ने धरा से विदाई ली।
इल्मो अदब के
सारे खज़ाने गुज़र गए
क्या खूब थे वो लोग पुराने जो गुज़र गए
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2,
शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023, मो.
09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com
23 comments:
यह मेरा सौभाग्य था कि में दिल्ली में उनके अंतिम दर्शन कर सका। लोग दो दिनों तक उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि देने के लिए आते रहे थे। सादगी, समर्पण, राष्ट्रप्रेम एवं ईमानदारी से भरपूर उनके जैसा व्यक्तित्व आजकल मिलना मुश्किल है।
आपका लेख उनके व्यक्तित्व को भलीभांति चित्रित कर्ता है।
अत्यंत सरल शब्दों में ऐसे महान व सरल व्यक्तिव को हम सब के सामने रखा है। धन्यवाद साहेब।
आदरणीय, स्वार्थ के वशीभूत सत्ताधीनों ने उनके योगदान को भूला दिया पर कम से कम हम तो कृतघ्नता पाप न ढोयें. आप सचमुच भाग्यशाली हैं जो उनके अंतिम दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर सके. हार्दिक हार्दिक आभार. सादर
प्रिय हेमंत, हार्दिक धन्यवाद. सस्नेह.
जोशी भाई जी
. ....लोहिया जी बेमिसाल ब्यक्तित्व,
देश प्रेम निराला
उनका मार्ग दर्शन पीढियां ऋण न चुका सकेंगी ।
...... ...होनहार बलवान।
मैं जब स्कूल में था सौभाग्य से.लोहिया. जी पर .साहित्यिक व उनके राजनैतिक बोध पर अध्यन कर ने का अवसर मिला । मैं अभिभूत हूं।
वाणी का प्रताप व यश उन की रेखाओं में
निहित था।
समाजवाद को यश मिला इस पुजारी का शंखनाद।
जय हो
आप याद रहेंगे।। आप को जो समझ पाया.वो धन्य जो न समझ पाया उसे आने वाली पीढियों को क्षमा कर देना है ।
. .सत्यमेव जयते
18-3-2021 लखनऊ
Dear Joshiji,
I was an Enginnering student at Rewa Engg.College,during 1964-1969 and had an opportunity of hearing Respected Dr Lihiyaji in a public meeting.It is a matter of great pride and satisfaction that you have covered many aspects of unknown dimensions of the personality of great hero
PRYAGRAJ (ALLAHABAD) is lucky enough to have his tall statue at a prime crossing in Civil Lines area like that of नेताजी and swami Vivekanand. However,the new generation have to learn more about such personalities and people like you are doing wonderful work.
Heart-felt Congratulations for this great job of digging the information and making it available to general public.
Dear बंधु,I forgot to write my name
Dr S K Agrawal
Gwalior
आदरणीय भाई साहब राम मनोहर लोहिया जी हम सभी के लिए एक उदाहरण हैं, उनकी उपलब्धियों एवं समाज के लिए उनके द्वारा किये गए कार्यो का आपने अतिसुन्दर वर्णन किया हैं, आपको साधुवाद, हमारे आज के नेतागण उनसे थोड़ी सी प्रेरणा ले सके ऐसी आशा करता हूँ।
संदीप जोशी
माननीय आपने सही कहा. इनके उपकार का एक मात्र प्रतिदान केवल यह हो सकता है कि हम नई पीढ़ी को इनके योगदान से परिचित करवायें. जीवनी पढ़ेंगे तो श्रद्धानत हो जाएंगे. हार्दिक आभार. सादर
Dear Dr. Agrawal, You are right. Personalities like Dr Lohiya are our real icons and heros though neglected by post Independence rulers. My modest initiative is to bring facts on record for the benefit of GenNext. Heartiest Thanks. Kind Regards
प्रिय संदीप, राजेंद्र बाबू हों या फिर लोहिया अथवा बीजू पटनायक या फिर अन्य कई, सब संकीर्ण स्वार्थ के तहत इतिहास के उपेक्षित हैं. दुर्भाग्य है यह देश का. कम से कम अब तो इन गलतियों को सुधारा ही जा सकता है. पसंदगी के लिये धन्यवाद. सस्नेह
आदरणीय भाईसाहब... ऐसी महान शख्सियत के बारे में हमने पड़ा तो था पर आपने अपने लेख के द्वारा उनके व्यक्तित्व के अन्य गुणों,उनकी राष्ट्रभक्ति,मानवतावाद एवं सरल सादगीपूर्ण जीवन से हमे परिचय करवाया। ये हमारे देश के राजनीतिक नेतृत्व का दुर्भाग्य ही है कि ऐसी महान शक्सियतों को हम इतिहास में ऊंचा स्थान न दे सके। नई पीढ़ी को उनके गुणों से अवगत करवाने के लिए आपके अथक प्रयास के लिए हार्दिक अभिनंदन।
प्रिय मधु बेन, यही तो होने चाहिये थे हमारे आदर्श पर सत्तासीन भेड़ियों ने सचाई को पहुंचने ही नहीं दिया जनमानस तक. खैर देर आयद दुरुस्त आयद. जब जागे तभी सवेरा. इस वाट्सेपी दौर में भी इतने मनोयोग से पढ़ने के लिये हार्दिक धन्यवाद. सस्नेह
I was unaware of this great personality..
Thank you very much for spreding awareness.
Now I will read more about him.
सादर अभिवादन आदरणीय,
हमेशा की तरह सत्य को बेबाकी से उजागर करने का सम्वेदनशील तरीका कोई आपसे सीखे।लोहिया जी के व्यक्तित्व और कृतित्व का ज्ञानवर्धक संगम;जिसे पढ़कर मन श्रद्धा से नतमस्तक हो गया।भाषा शैली का लालित्य अद्भुत है।ऐसे लेखों के अविरल प्रतीक्षा में:-
माण्डवी
कीर्तिशेष विचारक और स्वतंत्रता सेनानी डॉ राममनोहर लोहिया जी, युवाओं के प्रेरणास्रोत है। उनकी विचारधारा देशहित के साथ साथ संपूर्ण समाज हित भी थी ।ऐसे जननायक को सादर प्रणाम ,आदरणीय जोशी जी आपकी लेखनी को नमन।
सुनीता यादव भोपाल
Thanks very much. A modest attempt to bring in forefront the contribution of unsung heros.
सच कहने का होना चाहिये साहस न कि अहंकार और यह गुण आपमें पूर्ण रूपेण समाहित है. बहुत गुणी हैं आप और सदा ऐसी ही बनी रहियेगा. सादर
आप बहुत विचारवान पाठिका हैं जो लेखन के साथ दूसरों को न केवल पढ़तीं हैं बल्कि सराहती भी हैं और वह भी इस वाट्सेपी दौर में जहां वन वे ट्रेफिक है. सो हार्दिक आभार
पुरुषोत्तम तिवारी 'साहित्यार्थी'
डॉ. राम मनोहर लोहिया जी एक महान जननायक थे. उनका कर्म और व्यक्तित्व अनुकरणीय है. आपने लोहिया जी पर बहुत सुन्दर लेख लिखा है. सर बहुत बहुत बधाई.
मानवीय तिवारीजी, यह तो आप जैसे सुधीजनों के साथ सत्संग का फल है. हमने जिन अनेक देशभक्तों के साथ अन्याय किया लोहियाजी भी उन्हीं में से एक हैं. सादर
सर इस देश में महानता का सम्मान नहीं बल्कि विचारधारा का सम्मान होता है जो कि समाज का एक चारित्रिक पतन है. विचारधारा का भी महानता से जोड़ कर ही सम्मान किया जाना चाहिए.
Post a Comment