ब्राज़ील में अमेज़न के वर्षा वनों में भयानक आग लगी हुई है, धुएँ के स्तंभ उठते दिख रहे हैं। जहाँ
सरकारी प्रवक्ता का कहना है कि इस साल जंगलों में लगी इस भीषण आग का कारण सूखा
मौसम, हवाएँ और गर्मी है, वहीं ब्राज़ील
व अन्य देशों के वैज्ञानिकों का स्पष्ट मत है कि आग का प्रमुख कारण जंगल कटाई की
गतिविधियों में हुई वृद्धि है।
साओ पौलो
विश्वविद्यालय में वायुमंडलीय भौतिक शास्त्री पौलो आर्टक्सो का कहना है कि आग के
फैलाव का पैटर्न जंगल कटाई से जुड़ा नज़र आता है। सबसे ज़्यादा आग कृषि क्षेत्र से
सटे क्षेत्रों में लगी दिख रही है। ब्राज़ील के नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च
ने अब ब्राज़ील के अमेज़न में 41,000 अग्नि स्थल पता किए हैं। पिछले वर्ष इसी अवधि
में 22,000 ऐसे स्थल पहचाने गए थे। यही स्थिति कैलिफोर्निया स्थित ग्लोबल फायर
एमिशन डैटाबेस प्रोजेक्ट ने भी रिकॉर्ड की है। वैसे दोनों एजेंसियों के पास आँकड़ों का स्रोत एक ही है मगर विश्लेषण के
तरीकों में अंतर के कारण ग्लोबल फायर एमिशन डैटाबेस ने कुछ अधिक ऐसे स्थलों की
गिनती है जहाँ आग लगी हुई है।
इस वर्ष अग्नि
स्थलों की संख्या 2010 के बाद सबसे अधिक है। सन् 2010 में एल निनो तथा अटलांटिक के गर्म होने की वजह से भीषण सूखा पड़ा था, जिसे दावानलों के लिए दोषी ठहराया गया था, मगर इस
वर्ष सूखा ज़्यादा नहीं पड़ा है। गैर सरकारी संगठन अमेज़न एन्वायर्मेंट रिसर्च
इंस्टिट्यूट के पौलो मूटिन्हो का मत है कि इस साल जंगल की आग में सबसे बड़ा योगदान
निर्वनीकरण का है। उनका कहना है कि जिन 10 नगरपालिकाओं में सबसे ज़्यादा दावानल की
घटनाएँ हुई हैं, वे वही हैं, जहाँ इस
वर्ष सबसे अधिक जंगल कटाई रिकॉर्ड की गई है। ये 10 नगरपालिकाएँ बहुत बड़ी-बड़ी हैं,
कुछ तो छोटे-मोटे युरोपीय देशों से भी बड़ी हैं। आम तौर किया यह जाता
है कि जंगल की किसी पट्टी को साफ करने के बाद वहाँ आग लगा दी जाती है; ताकि झाड़-झंखाड़ जल जाएँ। परिणास्वरूप जो आग लगती है,उसे बुझने में महीनों लग जाते हैं। आग बुझने के बाद इस पट्टी को चारागाह
अथवा कृषि भूमि में तबदील कर दिया जाता है।
कई लोगों का मानना है कि ब्राज़ील में जंगल कटाई की
गतिविधियों में वृद्धि का प्रमुख कारण नव निर्वाचित राष्ट्रपति जायर बोलसोनेरो की
नीतियाँ हैं। इन नीतियों में विकास के नाम पर पर्यावरण की बलि देना शामिल है।
ब्राज़ील के एक पर्यावरणविद कार्लोस पेरेस के मुताबिक –“उन्होंने अपने जीवन में ऐसा
पर्यावरण-विरोधी माहौल नहीं देखा है।”
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