पिगसन हिंग्लिश स्कूल
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
बहुत पहले श्री
डंडीमार चोकरवाला भूसा-टाल चलाया करते थे। भूसे में कूड़ा-कचरा, कंकड़-पत्थर मिलाकर अच्छी-खासी बिक्री
हो जाया करती थी। संयम का जीवन जीते थे। चार पैसे हाथ में हो गए। पैसे का क्या
जोड़ना, खली खाना,कम्बल ओढ़ना। पैसे
पास में हों, तो मूर्ख आदमी भी समझदारी की बातें करने
लगता है। डंडीमार की बुद्धि निखरने लगी। सोचा, भूसा-टाल
चलाने में एक दिक्कत है। भूसे की धूल दिन भर नाक में घुसती रहती है, छींकते-छींकते इतना बुरा हाल हो जाता है कि नाक को जड़ से कटवाने की बात मन
में उठने लगती है। क्यों न कोई स्कूल खोला जाए। भूषा बेचने से स्कूल चलाना ज्यादा
आसान है। समस्या थी अच्छी जगह की। भूसा-टाल में स्कूल नहीं चल सकता, गाय-बकरी बाँधी जा सकती है। वैसे तो कई स्कूल ‘भूसा-टाल’
से भी बदतर जगहों में चल रहे हैं। डंडीमार के दिमाग में बिजली-सी
कौंध गई। दिमाग के भूसे में चिंगारी-सी सुलग उठी। टाल के बराबर वाला सरकारी गोदाम
खाली पड़ा है। सरकार सबकी होती है, पर सरकार का कोई
माई-बाप नहीं होता। सरकारी सम्पत्ति हड़पने का आनन्द ही कुछ और होता है। हाजमा
दुरुस्त हो जाता है, सरकार चुस्त हो जाती है। दिल कड़ा
करके डंडीमार ने सरकारी गोदाम का ताला तोड़ डाला। ताला टूटने का पता सिर्फ़ ताले को
ही चला, सरकार को बिल्कुल नहीं। यह रोमांचित कर देने
वाला कृत्य था।
पम्फलेट छपने थे।
टीचर्स रखने थे। एडमिशन करने थे। समाज में जाग्रति लानी थी। सबसे पहले समस्या आई
स्कूल के नाम की। आरोपित बुद्धिजीवियों के लिए नामकरण का कार्य सर्वाधिक कठिन है।
इंग्लिश नाम का अपना महत्त्व है। इंग्लिश स्कूल से मतलब जहाँ अमीर माँ-बाप के
बच्चे पढ़ते हैं। अमीर लोग पहाड़ों पर घूमने जाते हैं। पहाड़ उनका बहुत आभार मानते
हैं। जहाँ पहाड़ होते हैं, वहाँ गर्मी कम होती है। बड़े लोगों को गर्मी बहुत लगती है, इसीलिए वे विदेशों में भी घूमने जाते हैं। स्कूल के लिए बहुत सारे नाम
स्मृति-पटल पर उभरे, जैसे-अपहिल, डाउनहिल, नीदरलैंड,फाकलैंड, ग्रीनलैंड, लोलैंड, नो
मैंसलैंड तथा साथ में हिंग्लिश (हिंदी और इंग्लिश से बना चूरन) स्कूल, परन्तु एक भी नाम डंडीमार को नहीं जँचा। मैट्रिक तक पढ़े गए दो-चार शब्द
उन्हें अभी तक याद थे।
इसी बीच ऊधम मचाता
हुआ उनका बच्चा बंटी घर में घुसा। ऊधम मचाना डंडीमार को सख्त नापसंद था। उन्होंने
शाकाहारी भाषा का प्रयोग करते हुए उसको डाँटा ‘सुअर के बच्चे आराम से रहना नहीं सीख सकता।’ बस इतना
कहना था कि उनके ज्ञान-चक्षु खुल गए। सुअर का बच्चा अर्थात् सुअर माने पिग तथा
बच्चा अर्थात् बेटा माने सन। ‘पिगसन हिंग्लिश स्कूल’ डंडीमार उछल पड़े। एकदम बेजोड़ नाम। अब आएगा मज़ा। बड़े लोगों के बच्चे आएँगे
एडमिशन लेने। मोटी फ़ीस दुही जा सकती है। साल भर में पैसा
उलीचने के बहुत सारे अवसर हैं। कभी पिकनिक के नाम पर, कभी
एग्जामिनेशन के नाम पर, कभी प्रदर्शनी के नाम पर, कभी बर्थ डे के नाम पर, कभी डोनेशन के नाम पर।
डंडीमार ने पहला
काम किया, अपनी मैट्रिक फेल की मार्कशीट फाड़कर
पूरी तरह उसकी भूसी छुड़ा दी। पम्फलेट बँटने लगे-
बच्चों का भविष्य
उज्ज्वल बनाना हो तो ‘पिगसन
हिंग्लिश स्कूल’ में प्रवेश दिलवाइए। जो इंग्लिश जानता है, वही उच्चवर्ग में आ सकता है। निम्न वर्ग का कोई वर्ग नहीं होता, क्योंकि नीचे सिर्फ जमीन होती है। वर्ग से ही स्वर्ग बनता है,जिसे स्वर्ग में जाना हो, उसे हिंग्लिश स्कूल
में पढ़ना चाहिए। चुने हुए अध्यापकों की देखरेख में चूना लगवाइए और अपने बच्चों के
भविष्य की दीवार को चूने से पुतवाइए। इसी चमक के भरोसे के साथ-डंडीमार एम-ए-, एम-फिल-, बिल-बिल-, खिल-खिल....
‘पिगसन हिंग्लिश स्कूल’।
पम्फलेट बँटने का
असर हुआ। बच्चों के आने से पहले टीचर्स बनने के इच्छुक लोग जमा हुए। जो हज़ार रुपये
माहवार में काम करने को तैयार थे, उन्हें टीचर बना दिया गया। और कुछ हो या न हो, टीचर
का ‘टी’ चरने का खर्च तो निकल ही
जाएगा। कुछ दिनों के बाद गार्जियन भिनभिनाने लगे। डंडीमार गुर्राने लगे। सिफारिशें
गिजबिजाने लगीं। दोहन-कार्य शुरू हो गया। जो हिन्दी पढ़ते हैं, वे गरीब या गँवार होते हैं। या यों कहिए कि जो देसी भाषा पढ़ते हैं, वे स्वर्गवासी नहीं बन सकते। उनके लिए यहाँ और वहाँ नरक बने हुए हैं।
यूनिफार्म पहनकर
उनींदे बच्चे स्कूल आने लगे। माता-पिता उनको छोड़कर जाते और छुट्टी के वक्त लेने के
लिए आते। इनके साथ कभी-कभी उनके पालतू कुत्ते भी आते। क्यों न आते! कुलीन कुत्तों
का जीवन गली के कुत्तों से अलग-थलग होता है।
अब डंडीमार के छुहारे जैसे गालों की सारी सलवटें
दूर हो गईं। टीचर ‘ए’ फॉर
एप्पल पढ़ाने लगे। ह्ज़ार रुपये मिलते थे। अतः धनराशि की मर्यादा का ध्यान रखते हुए
- जॉन डज नॉट रीडिंग, आई एम गो जैसी व्याकरण सम्मत इंग्लिश पढ़ाये जाने
लगी। घर में बच्चों की मम्मी लोग बड़े प्रेम
से हाथ वाश करो, नोज पोंछ लो, होमवर्क
फिनिश करो जैसी इंग्लिश बोलने में पारंगत हो गइंर्। स्कूल में कॉपियाँ एवं किताबें
परिवर्तित एवं संशोधित मूल्यों पर मिलने लगीं। पापा-मम्मी खुश हो गए। ‘पिगसन हिंग्लिश स्कूल’ में पढ़ने के कारण उनके बच्चे ‘डर्टी’ बच्चों से दूर रहने लगे। वे कल्चर सीखने लगे और
कल्चर को एग्रीकल्चर की तरह ही बोने और काटने लगे।
3 comments:
"भूषा बेचने से स्कूल चलाना ज्यादा आसान है"--कुकुरमुत्तों की तरह जगह जगह दिखने वाले अंग्रेजी मीडियम के स्कूलों पर कटाक्ष करता सशक्त व्यंग्य।आदरणीय काम्बोज जी की इस शैली से अब तक अपरिचित था।बहुत बहुत बधाई
सटीक सशक्त व्यंग्य।
सटीक व समसामयिक व्यंग्य। बधाई।
Post a Comment