-गोवर्धन यादव
बच्चो!
क्या कभी आपने किसी पक्षी को उड़ते हुए देखा है ?
प्रश्न सुनते ही शायद आपके मन में क्रोध उत्पन्न
होने लगेगा और आप झट से कह उठेंगे कि यह भी भला कोई प्रश्न हुआ?
हम तो रोज पक्षियों को आसमान में उड़ते हुए देखते हैं।
इसी प्रश्न को पलटते हुए मैं दूसरा सवाल
दोहराऊँ कि क्या कभी, आपमें से किसी ने,
पक्षी की तरह आसमान में उड़ते हुए बहुत दूर तक जा पाने की कल्पना की
है ? तब आप चुप्पी साध लेंगे। क्योंकि आपके मन में कभी भी
आकाश में उड़ान भरने की कल्पना तक नहीं जागी। यदि कल्पना जागी होती तो शायद इसके
परिणाम कुछ और होते।
बच्चो -आज हम सुगम,
सुविधाजनक, आरामतलबी की जिन्दगी जी रहे हैं।
हम अधिक से अधिक शौक-मौज से भरे दिन काटना चाहते हैं और विलासिता में निमग्न रहने
का साधन ढूँढते रहते हैं। आरामतलबी जीवन जीने के लिए आलीशान बंगलों का निर्माण
करते हैं और पूरी जिन्दगी उसी चार-दीवारी में काट देते हें। लेकिन पशु-पक्षी ऎसा
कदापि नहीं करते। न तो वे अपने लिए कोई घर बनाने की सोचते हैं और न ही विलासिता की
चीजें बटोरकर रखते हैं। शायद यही कारण है कि वे लंबी-लंबी यात्राएँ करते हुए एक
देश से दूसरे देश में जा पहुँचते हैं। उन्हें न तो वीजा की जरुरत पड़ती है और न ही
पासपोर्ट बनाने की जरुरत। वे खुलकर प्रकृति में आए नित बदलाव का आनन्द उठाते हैं
और एक अवधि पश्चात फिर अपने पुराने ठिकाने पर आ पहुँचते है।
आरामतलबी या आलसीपन यह दोनों ही सजीव
चेतन प्राणी की अन्तरात्मा की मूल प्रकृति के विपरीत है। यदि हमारे मन से इस दुर्बुद्धि के बादल छँट जाएँ, तो हमारे
अन्दर सदा साहसिकता का परिचय देने की- शौर्य प्रवृत्ति उमगती दिखाई देगी। बहादुरी
और वीरता का प्रतिफल ही सच्चा आनन्द और सन्तोष दे सकते हैं,
इस मंत्र को तो छोटे-छोटे कीट-पतंगे और
पशु-पक्षी भी भली-भांति जानते हैं।
बहुत- सी ऐसी
चिड़ियाँ हैं, जो बदलती हुए ऋतुओं में
आनन्द लेने के लिए दुर्गम यात्राएँ करती हैं। उन्हें काफ़ी
जोखिम उठानी पड़ती है और काफ़ी श्रम भी करना पड़ता है तथा मनोयोग का प्रयोग भी करना
पड़ता है। पर वे बेकार की झंझटों में न पड़ते हुए साहसिकता का परिचय देती हुई,
लंबी उड़ान भरते हुए आन्तरिक प्रसन्नता एवं सन्तोष का अनुभव करती है।
वे जानती हैं कि पेट तो कहीं भी भरा जा सकता है और रात कहीं भी काटी जा सकती है।
मनुष्य भले ही इसे पसन्द न करे; परन्तु पशु-पक्षी से लेकर
कीट-पतंगे तक कोई भी एक जगह रुकना पसंद नहीं करते।
इन पक्षियों की लम्बी यात्राएँ,
ऊँची उड़ानें आश्चर्यजनक है। बागटेल 2000 मील की लम्बी यात्रा करके मुम्बई के निकट एक मैदान में उतरते हैं और फिर विभिन्न स्थानों के लिए बिखर जाते हैं। गोल्डन फ़्लावर पक्षी अमेरिका से
चलते हैं। पतझड़ में विश्राम करते हैं , फिर थकान मिटाकर
अटलांटिक और दक्षिण महासागर पार करते हुए दक्षिण अमेरिका जा पहुँचते हैं। आते समय
वे समुद्र के ऊपर से उड़ते हैं और जाते समय जमीन के रास्ते लौटते हैं। अलास्का में
उनके घोंसले होते हैं और वहीं अंडे देते हैं। हर वर्ष वे
दो-ढाई हजार मील की यात्रा करते हैं। पृथ्वी की परिक्रमा केवल तीन हजार मील की है। इस प्रकार वे लगभग पृथ्वी की एक परिक्रमा हर वर्ष
पूरी करते हैं।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAwgOxMEq31N85NZVXVeta60TNCoANY907jDVhjIWGQYQXh64XsFSX_XaEtdnzkc_obZSLqahu0Jgblp7FfgsIIpD4DiH67i5NdqcbGDvlEbEdcG6nz6BZ9o9JD0J6w8si5l_QoI8TIg7f/s200/golden+plover.jpg)
बच्चो!-
इन घुम्मकड़ पक्षियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के ठीक बाद, हमारे मन में यह प्रश्न उठना लाजमी है कि आखिर वह कौन सा कारण है कि जिसके
चलते ये पक्षी खतरनाक और कष्टदायक उड़ाने भरते हैं ? क्या
इनके लिए उड़ान अनिवार्य है ? क्या वे अपने क्षेत्र में रहकर
गुजारा नहीं कर सकते ? या वे थोड़ा- सा
उड़कर, एक जगह रहकर अपना काम नहीं चला सकते ? आखिर ऐसा कौन सा कारण है कि वे अपनी जान जोखिम में डालने वाला ऐसा कदम,
उन्हें क्यों उठाना पड़ता है ?
पक्षी विज्ञान के वैज्ञानियों ने यह पाया
है कि बाह्य दृष्टि से उनके सामने कोई कठिनाई नहीं होती, जिसके कारण उन्हें इतना बड़ा जोखिम उठाने के लिए विवश होना पड़े। आहार की-
ऋतु प्रभाव की घट-बढ़ होती रह सकती है, पर दूसरे पक्षी तो
उन्हीं परिस्थितियों में किसी प्रकार निर्वाह करते हैं। फिर
सैलानी चिड़ियों को ही ऐसी विचित्र उमंग क्यों उठती है ? इस
प्रश्न का उत्तर उनकी वृक्क ग्रन्थियों में पाए जाने वाले विशेष हारमोन रसों से
मिलता है। जिस प्रकार कुछ बढ़े हुए हारमोन उन्हें संतान उत्पत्ति के लिए बेचैनी
उत्पन्न करती है, लगभग वैसी ही बेचैनी इस प्रकार की लम्बी
उड़ान भरने के लिए इन पक्षियों को विवश करती है। वे अपने भीतर एक अद्भुत उमंग अनुभव
करते हैं और वह इतनी प्रबल होती है कि उसे पूरा किए बिना
उनसे रहा ही नहीं जाता। यह उड़ान हारमोन न केवल प्रेरणा देते हैं, वरन उसके लिए उनके शरीरों में आवश्यक साधन सामग्री भी जुटाते हैं। पंखों
में अतिरिक्त शक्ति, खुराक का समुचित साधन न जुट सकने की
क्षतिपूर्ति करने के लिए बढ़ी हुई चर्बी- साथ उड़ने की प्रवृत्ति, समय का ज्ञान, नियत स्थानों की पहचान, सफ़र का सही मार्ग जैसी कितनी ही एक से एक अद्भुत बातें हैं, जो इस लम्बी उड़ान और वापसी के साथ जुड़ी हुई हैं। उन उड़ान हारमोनों को
पक्षी के शरीर, मन और अन्तर्मन में इस प्रकार के समस्त साधन
जुटाने पड़ते हैं, जिससे उनकी यात्रा प्रवृत्ति तथा प्रक्रिया
को सफलतापूर्वक कार्यान्वित होते रहने का अवसर मिलता रहे।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjyeJKE8u3xMdDh6eDgOfzaZ-OobeNwjGU75J2O5knqnSGr146yv3xro9j21-1hi8ekBSg5nyKX2snjIO5nYiZeCvb02DI8_DAzbQ1X_lBj-NCA_AX1roarowvUCCSyIGyMPhMlMfpsohs0/s200/golden+plover-1.jpg)
मनुष्य में आरामतलबी की प्रवृत्ति इतनी
घातक है कि वह कुछ महत्त्वपूर्ण काम कर ही नहीं सकता,
अपनी प्रगति के द्वार किसी को रोकने हों तो उसे काम से जी चुराने की
आदत डालनी चाहिए और साहसिकता का त्याग कर विलासी बनने की बात सोचनी चाहिए। ऐसे
लोगों को मुँह चिढ़ाते हुए- उनकी भर्त्सना करते हुए ही यह उड़ान पक्षी, विश्व-निरीक्षण, विश्व-भ्रमण करते रहते हैं- ऐसा
लगता है।
सम्पर्कः 103 कावेरी नगर , छिन्दवाडा, म.प्र.
४८०००१, 7162-246651,9424356400, goverdhanyadav44@gmail.com
2 comments:
प्रणाम सर बहुत बहुत बधाई....
अपनी प्रगति के द्वार किसी को रोकने हों तो उसे काम से जी चुराने की आदत डालनी चाहिए............ बेहतरीन सर
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