नारी तुम केवल
श्रद्धा हो
- महेश राजा
मित्र के साथ शहर से लौट रहा था। आरंग पहुँचते ही बुनियादी
शाला के चौराहे के पास पहुँच कर कुछ याद हो आया।मित्र से कह कर कार रुकवाई नीचे उतर कर स्कूल के सामने ही टपरी वाली जर्जर दुकान दिखी। आसपास कोई नहीं था। थोड़ी दूर पर एक गाय लेटी हुई थी।
काफी देर इधर उधर देखता रहा। तभी एक बुजुर्ग की तरफ निगाह पड़ी। पूछा, वो....होटल....।
बुजुर्ग ने चश्मे के भीतर से टटोला फिर कहा,-"लक्ष्मी...। लक्ष्मी... को पूछ रहे हो... बाबू।"
मेरे हाँ "कहने पर वह बोले,-"बहुत दिनों बाद आए हो लगता है। लक्ष्मी का तो तीन बरस पूर्व एक एक्सीडेंट मे निधन हो गया।"
सुनकर पाँव लड़खड़ाए। बहुत मुश्किल से कार तक पहुँचा। पानी की बोतल से पानी पिया।
मित्र पूछते रहे," क्या हुआ.....तबियत तो ठीक है न ?" हाथ से' हाँ 'का इशारा कर आँखे बँद कर लीं। मित्र ने धीरे से कार स्टार्ट की।
सफर के साथ चल पड़ी बीते दिनों की तस्वीरे। यादें। उसके ही गाँव की थी वह। सीधी- सादी, भोली- भाली। किसी शहरी बाबू से दिल मिल गया था। बाद मे बाबू ने धोखा दिया था। तब उनके परिवार की बड़ी बदनामी हुई थी। माँ सदमे से गुजर गई थी। तबसे लक्ष्मी अपने पिताजी के साथ आरंग मे रहने लगी थी।
उसके पिताजी ने गाँव की जमीन बेचकर आरंग मे स्कूल के सामने छोटी-सा होटल खोल लिया था।
बाद के दिनों मे उसके बाबूजी भी गुजर गए थे। तब से वह अकेली ही रहती और स्कूल के बच्चों को दस रुपये मे चार समोसे दिया करती थी।
एक दो बार स्कूल जाना हुआ तो पुनःपरिचय निकल आया था।
पूछने पर कि दस रूपये मे चार समौसे देती हो। पोसाता है। वह हँसी,-"साहब बच्चों के स्नेह, उसकी खुशी के आगे रुपये पैसे क्या चीज है। यही तो बाबू ने सिखाया था कि बच्चों की आँखो मे खुशी जीवित रखना। तब से यह कर रही हूँ।"
-" गरीब बच्चे कहाँ जाएँ या पैसे कहा से लाएँ। उनकी आँखें देखकर पहचान जाती हूँ कि पैसे नहीं है। पास बुलाकर समोसे देती हूँ। वे शरमा जाते हैं। उनके स्वाभिमान को चोट न पहुँचे सोचकर कह देती हूँ। जब पैसे होंगे दे देना।"
-"और साहब तेल मे राइसब्रान्ड का टीन लाती हूँ। और आलु भी थोक में बोरी। बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं करती।"
तब कहा था-, "तुम्हारा इन्टरव्यू पेपर में देते हैं " तब हाथ जोड़कर बोली थी,-"नहीं बाबूजी यह सब नहीं। मैं यह सब नाम के लिए थोडे़ ही कर रही हूँ। बच्चों की खुशी में ही मुझे संतोष है।"
-"बाजार में सब महँगा बेचते हैं तुम रेट क्यों नहीं बढ़ाती?" पूछने पर बोली थी-“क्या करूँगी रेट बढ़ा कर। दो समय की रोटी हो जाती है। बचाकर क्या करूँगी। मैं इसी में खुश हूँ।"
तब मन हुआ था, कि लक्ष्मी के पाँव पड़ जाऊँ।
पर यह हो न सका। बीच में व्यस्तता के कारण यहाँ आना हो न सका।
आज संयोगवश यह दुःखद बात पता चली।
मन ही मन लक्ष्मी को प्रणाम कर श्रदांजलि दी। मौन रखा।
यकीन ही नहीं होता कि आज भी ऐसे लोग होते हैं। संसार मे आते हैं, अपना काम कर गुमनामी से चले जाते हैं। अफसोस हम, समाज या देश इसे कोई श्रेय नहीं दे पाता। पर उनकी महानता अमर हो जाती है। लक्ष्मी आज भी उन बच्चों के जेहन मे जीवित है, जिन्होंने उससे एक बार मुलाकात की हो या उसके भाव भरे समोसे खाये हों। नमन.....नमन ...
सम्पर्कः वसंत 51, कालेज रोड, महासमुंद , छत्तीसगढ़
यकीन ही नहीं होता कि आज भी ऐसे लोग होते हैं। संसार मे आते हैं, अपना काम कर गुमनामी से चले जाते हैं। अफसोस हम, समाज या देश इसे कोई श्रेय नहीं दे पाता। पर उनकी महानता अमर हो जाती है। लक्ष्मी आज भी उन बच्चों के जेहन मे जीवित है, जिन्होंने उससे एक बार मुलाकात की हो या उसके भाव भरे समोसे खाये हों। नमन.....नमन ...
सम्पर्कः वसंत 51, कालेज रोड, महासमुंद , छत्तीसगढ़
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