यदि
आपके बच्चे सब्ज़ियाँ नहीं खाते
डॉ.
विपुल कीर्ति शर्मा
सभी माँओं की एक
ही कहानी है -मेरा बच्चा सब्ज़ियाँ नहीं खाता। उसे तो केवल क्रीम बिस्किट्स, चॉकलेट और आईसक्रीम ही
चाहिए। और फिर शुरू होता है धमकी और रिश्वत का एक सौदा। माँ अपने बच्चे से कहती है
कि जब तक तुम सब्ज़ी नहीं खाओगे, तब तक मिठाई नहीं
मिलेगी। इस रणनीति में कुछ बच्चे आलू और भिंडी तो खाने के लिए हाँ कर देते हैं और बाकी
बेचारों को पालक, गिलकी, लौकी-कद्दू और टिण्डों की ज़बरदस्ती स्वीकार करते बड़ा होना पड़ता है।
हम सभी को मीठा
पसंद है। मीठे की ओर आकर्षण हमें हमारे पूर्वज प्रायमेट्स से विरासत में मिला है।
उस समय हमारे पूर्वज भी आज के बंदरों और वनमानुष की तरह खुशबूदार पके मीठे फलों को
खोजते दिन बिताते थे। अधिक ऊर्जा और पानी के लिए पके और मीठे फल को कच्चे और कड़वे
फल पर प्राथमिकता मिलती थी। पेड़ों पर पके मीठे फल मिलने पर पानी की खोज भी पूरी हो
जाती थी।
तो आपका बच्चा
अगर मिठाई की ओर ललचाई निगाह से देखता है ,तो
इसमें बच्चे का दोष नहीं है। दोष है हमारे प्रायमेट पूर्वजों और उनको मिली
परिस्थितियों का और हमारे आनुवंशिक लक्षणों का।
आज भी हमारे
नज़दीकी रिश्तेदार चिम्पैंज़ी जंगलों में जब भी मधुमक्खी के छत्ते को देखते हैं, तो सैकड़ों मधुमक्खियों
के दंश की परवाह न करते हुए शहद खाने के मौके को कभी भी हाथ से जाने नहीं देते।
शहद को खाने की उत्कंठा चिम्पैंज़ियों में इतनी तीव्र होती है कि अफ्रीका के
विभिन्न स्थानों पर पाए जाने वाले स्थानीय चिम्पैंज़ियों ने शहद को खाने के लिए
उपयुक्त तरीके भी निकाल लिये हैं। पूर्वजों के समान
अगर हम भी मीठे की ओर आकर्षित होते हैं , तो कोई आश्चर्य
नहीं होना चाहिए। यही कारण है कि मानव के पूर्वजों ने गन्ने को पूरे विश्व में
फैला दिया है।
अधिकतर ज़हरीले भोज्य पदार्थ कड़वे होते हैं और हमारे पूर्वजों ने भी कड़वे
पदार्थों से दूरी बनाना सीख लिया था। मीठे, खट्टे और नमकीन की तुलना में कड़वे पदार्थों
के स्वाद के लिए मनुष्यों में अन्य सभी प्राणियों से 25 जीन्स अधिक पाए जाते
हैं।
तो माँओं की यह चिन्ता जायज़ है कि बच्चे
सब्ज़ियाँ नहीं खाते जो स्वास्थ्य के लिए
आवश्यक हैं। कई प्रकार के खाद्य पदार्थ तो अधिकता में शरीर के लिए नुकसानदेह होते हैं। वसा एवं शर्करा ज्यादा मात्रा में लेने पर वे चयापचय को धीमा
करते हैं, वज़न
बढ़ाते हैं तथा धमनियों में जमा होकर उन्हें कठोर कर देते हैं, खासकर जब बच्चे
खेलना-कूदना छोड़ देते हैं। तो क्या हम बच्चों को मिठाई की बजाय सब्ज़ी खाने के लिए
तैयार कर सकते हैं। उत्तर है, हाँ।
विज्ञान की नई
शाखा ऑप्टोजेनेटिक्स इसमें बहुत उपयोगी होगी। ऑप्टोजेनेटिक्स एक ऐसी तकनीक है
जिसमें प्रकाश द्वारा जीवित ऊतक, खासकर
जेनेटिक तौर पर बदले गए न्यूरॉन्स को प्रकाश संवेदी बनाकर कार्य करने के लिए
उकसाया जाता है।
ऑप्टोजेनेटिक्स
के भोजन सम्बन्धी कुछ प्रयोग फलों पर पाई जाने
वाली छोटी एवं लाल आंखों वाली फ्रूट फ्लाय (ड्रॉसोफिला) पर किए गए हैं। मनुष्य को
मीठे लगने वाले विभिन्न प्रकार के रसायन अन्य प्रजातियों के प्राणियों को भी मीठे
लगें, यह ज़रूरी नहीं है। उदाहरण के लिए मनुष्यों द्वारा मीठे
के लिए उपयोग किया जाने वाला रसायन एस्पार्टेम चूहों और बिल्लियों को मीठा नहीं
लगता। आश्चर्यजनक रूप से मीठे के मामले में ड्रॉसोफिला एवं मानव की पसंद एक जैसी
ही है। दोनों की पसंद इतनी मिलती है कि हमारे नज़दीकी रिश्तेदार कई बंदरों को भी वे
चीज़ें मीठी नहीं लगती जो हमें और ड्रॉसोफिला को मीठी लगती हैं। यह भी पता लगा है
कि मनुष्य एवं ड्रॉसोफिला दोनों के पूर्वज सर्वाहारी एवं मुख्य रूप से मीठे फल
खाने वाले थे।
मीठे की
तुलनात्मक अनुभूति कराने वाले रसायन में से 21
पोषक और अपोषक रसायन जो मानव को मीठे लगते हैं वे मक्खियों को कैसे लगते हैं यह
जानने के लिए प्रयोग किए गए।
क्या स्वाद
ग्रंथियाँ सब्ज़ियों का स्वाद लेने पर भी मस्तिष्क को मीठा खाने जैसी अच्छी अनुभूति
दे सकती है? हाँ।
इसे सिद्ध करने के लिए ड्रॉसोफिला पर एक प्रयोग किया गया। मक्खियों के उपयोग में
लाए जाने वाले आयपैड (जिसे फ्लायपैड कहते हैं) का उपयोग किया गया। पैड के दो
कक्षों में से एक में हरी ब्रोकली तथा दूसरे में केले का गूदा रखा गया। अब
मक्खियों को छोड़कर यह देखा गया कि वे किस प्रकार का खाद्य पदार्थ पसंद करती हैं।
मक्खी जिस खाद्य पदार्थ की ओर जाती थी फ्लायपैड उस परिणाम को आँकड़े के रूप में एकत्र कर लेता था। निष्कर्षों में यह पता चला कि मक्खियों
ने भी बच्चों की तरह ब्रोकली की बजाय केले को मीठे स्वाद के कारण ज्यादा पसंद
किया। ऐसा इसलिए हुआ ; क्योंकि मानव में जीभ पर पाए जाने
वाली स्वाद कलिकाएँ स्वाद ग्राहियों से
बनी होती है ,जो विशेष न्यूरॉन्स होते हैं। जब भी जीभ पर
भोज्य पदार्थ लगता है तो स्वाद ग्राही मस्तिष्क तक एक संदेश भेजते हैं। मीठे
पदार्थ के अणु मीठे स्वाद ग्राहियों से जुड़कर तुरंत संदेश को मस्तिष्क में पहुँचाते
हैं जिससे सुखद अनुभूति होती है। किन्तु ड्रॉसोफिला में
ब्रोकली पदार्थ के अणु मीठे स्वाद ग्राहियों से नहीं जुड़ते। इस कारण मस्तिष्क को
संदेश नहीं मिलते हैं। हम ब्रोकली के जीनोम में कुछ जीन जोड़कर उन्हें
ऑप्टोजेनेटिक्स से ब्रोकली खाने पर भी मीठे होने जैसी अनुभूति दे सकते हैं।
नए जीन डालने पर
ड्रॉसोफिला के स्वाद ग्राही के न्यूरॉन्स प्रकाश के प्रति संवेदी हो जाते हैं। अब
प्रयोग में एक परिवर्तन किया गया। जब भी ड्रॉसोफिला ब्रोकली खाने के लिए आती है
तभी एक लाल लाइट के जलने से मीठे स्वाद ग्राही मस्तिष्क को संदेश भेजते हैं।
ब्रोकली खाने पर भी ड्रॉसोफिला को मीठे खाने जैसी ही अनुभूति होती है। प्रयोगों
द्वारा पाया गया कि जीन परिवर्तित ड्रॉसोफिला अब ब्रोकली को भी केले के बराबर पसंद
करने लगी थी।
क्या ऑप्टोजेनेटिक्स के द्वारा आपके बच्चे भी मिठाई
की बजाय सब्ज़ियाँ पसंद करने लगेंगे? कही नहीं जा सकता। लेकिन ऑप्टोजेनेटिक्स की सहायता से अब दृष्टिबाधित भी देखने
लगे हैं और आने वाले समय में भूलने की समस्या का निदान भी ऑप्टोजेनेटिक्स द्वारा
संभव हो जाएगा। (स्रोत फीचर्स)
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