विष्णु के आठवें अवतार का जन्म
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी एक ऐसा पर्व है जो पूरे देश में पूरे जोश और उत्साह के साथ भगवान् कृष्ण के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। भगवान् कृष्ण का अवतार पृथ्वी से सभी अंधकारों का अंत करने और बुराई को नष्ट करने के लिए हुआ था। यह त्योहार देश भर के अधिकतर हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है। हिन्दू कैलेंडर या पंचांग के अनुसार, यह त्योहार सावन माह की समाप्ति के बाद आठवें दिन (अँधेरे पखवाड़े) कृष्ण पक्ष में पड़ता है।
कृष्ण के जन्म के पीछे हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब पापी और दुष्ट शक्तियों ने दुनिया भर में विनाश करना शुरू कर दिया, तो माँ पृथ्वी ने भगवान् ब्रह्मा से आक्रामक परिस्थितियों को समाप्त करने का अनुरोध किया। भगवान् ब्रह्मा ने माता पृथ्वी की इस चिन्ता को भगवान् विष्णु के समाने रखा, जिसके फलस्वरूप उन्होंने पृथ्वी पर मौजूद सभी बुराइयों को मिटाने के लिए धरती पर जन्म लेने का आश्वासन दिया।
जैसा कि आश्वासन दिया गया था, भगवान् विष्णु ने सावन की समाप्ति के बाद 8 वें दिन (अष्टमी) पर आधी रात को पृथ्वी पर कृष्ण के रूप में जन्म लिया। भगवान् विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण का जन्म मथुरा के एक कारागार में देवकी और वासुदेव के पुत्र के रूप में हुआ था। कृष्ण का जन्म उस समय हुआ जब धरती पर चारों तरफ उथल-पुथल, अत्याचार, स्वतंत्रता की कमी और बुरी शक्तियाँ शासन कर रही थीं। भगवान् कृष्ण के मामा राजा कंस के लिए भविष्यवाणी हुई थी कि उसकी मृत्यु उनके भानजे के हाथ होगी। कृष्ण के जीवन पर आने वाले संकट को जानकर उनके पिता वासुदेव ने, उन्हें तुरंत राजा कंस से दूर रखने के लिए गोकुल में यशोदा और नंद को सौंप दिया। कृष्ण के जन्म के इस कथा के आधार पर उनके भक्तों द्वारा जन्माष्टमी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है।
इस शुभ अवसर पर लोग अपने घरों में श्रीकृष्ण की झाँकी सजाते हैं। मूर्ति को पालने में रखा जाता है और घी, दूध, गंगाजल, शहद, तुलसी पत्तियों से बने पंचामृत से नहलाया जाता है। यह पंचामृत भक्तों में प्रसाद के रूप में भी वितरित किया जाता है। भक्त खुशी से पालने को झुलाते है हैं और अपने जीवन में श्रीकृष्ण के आशीर्वाद का अभिनंदन करते हैं। जहाँ समारोह हो रहे होते हैं वहाँ आरती, मंत्र, शंख की ध्वनि, भजन, कीर्तन हर जगह एक आम परिदृश्य बन जाता है।
आज के दिन मंदिरों में कई प्रकार के समारोह आयोजित किए जाते हैं। रोशनी और फूलों से बहुत ही खूबसूरती से सुसज्जित किया जाता है। मथुरा और वृंदावन के मंदिरों में रात में भगवान् श्री कृष्ण के बचपन पर आधारित, नाटक, नृत्य प्रदर्शन और जागरण के समारोह आयोजित किए जाते हैं।
भक्तगण इस दिन उपवास रखते हैं। श्रीकृष्ण के जन्म की लोककथाएँ मंदिरों और पूजा के समय परिवारों में सुनाई जाती है। देश के युवा, दही हांडी फोड़ के कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। कुछ जगहों पर, लोग भगवान् कृष्ण के जीवन की घटनाओं पर आधारित रासलीला करते हैं। श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित नाटक और नृत्य प्रदर्शन भी आयोजित किए जाते हैं।
आज से कुछ दशक पहले तक छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में पूरे पखवाड़े कृष्ण लीला या रास लीला का भव्य आयोजन होता था और जन्माष्टमी के दिन रात भर जागकर ग्रामीण कृष्ण जन्म की लीला का आनंद लेते थे। वर्तमान समय में कृष्ण लीला और राम लीला का आयोजन करने वाली लोक मंडलियाँ अब समाप्त हो गईं हैं जो गाँव-गाँव जाकर ऐसे लोकनाट्यों का आयोजन करते थे।
जन्माष्टमी का यह पर्व उसी उत्साह से आज भी मनाया जाता है। यहाँ जन्माष्टमी के दिन बच्चे बड़े सब उत्साह से भाग लेते हैं। कृष्ण कन्हैया का चित्र यहाँ हाथों से बनाया जाता है। पहले कृत्रिम रंग इस्तेमाल नहीं करते थे। हरा रंग के लिए सेम के पत्तों को पीस कर रंग बनाया जाता था, पीले के लिए हल्दी का उपयोग करते थे। लाल रंग के लिए सिंदुर या गुलाल का उपयोग किया जाता था। गाँव में लोग अपने घर की एक दीवार पर आठे कन्हैया का चित्र उकेरते हैं और उसमें रंग भरते हैं । जन्माष्टमी के दिन प्रसाद के लिए धनिया का पंजरी बनाया जाता है। फलाहार में सिंघाड़ा और थिखुर का कतरा, पूड़़ी, हलवा आदि के साथ सेंधा नमक डालकर साबूदाने की खिचड़ी भी कुछ लोग बनाते हैं। रात्रि कृष्ण भगवान् की पूजा कर फिर रात के 12 बजे के बाद लोग अपना व्रत तोड़ते हैं
कृष्ण भगवान् विष्णु के सबसे शक्तिशाली मानव अवतारों में से एक है। श्रीकृष्ण हिंदू पौराणिक कथाओं में एक ऐसे भगवान् है, जिनके जन्म और मृत्यु के बारे में विस्तार से लिखा गया है। भगवद् गीता में एक लोकप्रिय कथन है- “जब भी बुराई का उत्थान और धर्म की हानि होगी, मैं बुराई को खत्म करने और अच्छाई को बचाने के लिए अवतार लूँगा।” जन्माष्टमी का त्योहार सद्भावना को बढ़ाने और दुर्भावना को दूर करने को प्रोत्साहित करता है। (उदंती फीचर्स)
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