- विजय जोशी
(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल,
भोपाल)
इंसानी भूख दो किस्म की होती है। एक आंतरिक या जिस्मानी जैसे रोटी, कपड़ा, मकान और दूसरी आंतरिक या रूहानी जिसे आप जिज्ञासा का नाम दे सकते हैं। दरअसल जिज्ञासा की जमीन पर ही ज्ञान का पौधा पनपता है। जो जिज्ञासु नहीं वह जीवन में कुछ नहीं जान पाता। यह प्रतिभाशाली इंसान की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता है।
जिज्ञासा जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। इसके अभाव में इंसान न तो जागरूक रह पाता है और न ही ज़िंदादिल। यह उसे सदैव सजग रखती है। हर चीज को बारीकी से देखकर उसके हल का हिस्सा बनना मन में उमंग एवं उत्साह का सृजन करती है। इतिहास प्रसिद्ध सारे महापुरुषों को देखिए। यदि ऐसा न होता तो न तो राजकुमार सिद्धार्थ गौतम बुद्ध बन पाते और न ही वर्धमान महावीर स्वामी। जीवन के प्रति जिज्ञासा ने ही उन्हें न केवल इस स्थान तक पहुँचाया;बल्कि वे सारे संसार के पथ प्रदर्शक बनकर भी उभर सके।
अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि इसे कैसे विकसित किया जाए। तो प्रस्तुत हैं कुछ उपाय-
सक्रिय मानस- एक्टिव माइंड,यह आपके मस्तिष्क को निष्क्रिय के बजाय सक्रिय रखता है। जिज्ञासु व्यक्ति सदैव प्रश्न पूछता है और अपने मस्तिष्क में उनके उत्तर खोजता है। यह मस्तिष्क को उसी प्रकार क्रियाशील रखता है जैसे कि व्यायाम, जिससे आपकी मांसपेशियाँ मजबूत रहती हैं। इसी तर्ज पर जिज्ञासा मस्तिष्क का व्यायाम है जो उसे जाग्रत,
सक्रिय एवं क्रियाशील बनाकर जीवंत रखती है।
चौकस मन- आब्सर्वेंट माइंड,जो नए आइडिया या सुझावों के लिये आपको सतत सजग रखता है। जब आप किसी चीज के बारे में उत्सुक होते हैं तब आपका दिमाग नए नए आयडिया की उम्मीद रखते हुए खोजी बन जाता है और जैसे ही कोई आयडिया मानस पटल पर उभरता है आपका मस्तिष्क तुरंत लपक लेता है। इसके विपरित जब आपका मानस उन्हें पहचानने के लिये तैयार या तत्पर नहीं, तब वह आपके सामने से गुजर जाता है और आप उसे खो देते हैं। इसलिये जरा सोचिये कितने सारे आयडिया आपने जिज्ञासा के अभाव में खो दिये होंगे।
संभावनाएँ
- पासिबिलिटिज, जिज्ञासु होते ही आपके सामने होता है एक नया संसार पूरी संभावनाओं के साथ,
जो अन्यथा दृष्टिगत नहीं होता। संभावनाएँ हमारे नार्मल जीवन की सतह के नीचे रहतीं हैं और उसके नीचे जाकर गहराई में देखने के लिये आपको गहरे पानी में पैठना या उतरना होगा। अपार संभावनाओं की कोलंबसी खोज ही आपको लक्ष्य तक पहुँचा सकती है।
जीवन में उत्तेजना- एक्साइटमेंट, जिज्ञासु व्यक्ति के जीवन में बोरियत का कोई स्थान नहीं। यह न तो सुस्तीपूर्ण और न ही सामान्य प्रक्रिया है। ऐसे इंसान को हर चीज नई और आकर्षक लगती है। वैसे ही जैसे बच्चे के लिये नए खिलौने। ऐसे व्यक्तियों का जीवन एकरसता से दूर साहसिक जीवन का मार्ग प्रशस्त करता है।
मस्तिष्क को खुला रखें - यह नितांत आवश्यक है कि आपका मानस जिज्ञासु हो। सीखने,
भूलने तथा पुन: सीखने के प्रति दिमाग के दरवाजे खुले हों। कुछ चीजों को आप जानते हैं और विश्वास रखते हैं कि वे गलत हैं, लेकिन फिर भी उन्हीं संभावनाओं स्वीकार कर पाने के परिवर्तन के लिये तैयार रहें।
अस्वीकारें- यदि आप संसार को वैसा ही स्वीकार करते हैं कि जैसा कि वह है, बगैर गहराई में जाकर खोज करने के तो यह वह स्थिति है जिसमें आप अपनी पवित्र जिज्ञासा को खो देंगे। चीजों को वैसा ही न स्वीकरें, जैसी वे दिखती हैं बल्कि गहराई में उतरकर देखने की प्रतिभा का स्वयं में विकास करें।
प्रश्न पूछें अविराम- गहराई तक उतरने का सबसे सरल व शर्तिया सूत्र है प्रश्न पूछना। यह क्या है? यह ऐसे ही क्यों बना है? यह कब बना था? किसने बनाया? यह कहां से आता है ? कैसे कार्य करता है ?
क्या,
क्यों,
कब,
कौन,
कहां और कैसे इत्यादि जिज्ञासु जन के सबसे सही मित्र हैं।
उकताना- जब आप किसी चीज को बोरिंग कहते हैं तो वह संभावनाओं के द्वार बंद कर देती है। जिज्ञासु किसी भी चीज को कभी बोरिंग नहीं कहेगा। दरअसल वे तो इसे नये संसार का प्रवेश द्वार मानते हैं और यदि उनके पास समय का अभाव हो तो भी इस दरवाजे को खुला ही रखेंगे।
मजाक में सीखना- यदि आप किसी भी चीज को बोरिंग मानते हैं तो फिर उसकी गहराई तक कभी नहीं उतर पाएँगे। लेकिन यदि आप सीखने को फन मानते हैं तो फिर अवश्य ही तल तक पहुँच पाएँगे। अत: चीजों को स्वाभाविक और फन के नज़रिये से देखने की आदत डालिये और सीखने की कला का आनंद लीजिये।
विविध अध्ययन- केवल एक ही चीज पर केंद्रित मत रहिये। आँखें खुली रखते हुए सब ओर सब कुछ देखें। यह दृष्टिकोण आपके लिये दूसरे संसार के द्वार खोलेगा एवं संभावनाओं से परीचित कराते हुए आपके अंदर जिज्ञासा की चाहत की अग्नि को प्रज्वलित करेगा। इसका सबसे सुलभ और सरल और उत्तम उपाय है अलग अलग विषय की पुस्तकों का अध्ययन करना। हर बार एक नये विषय पर पुस्तक उठाएँ एवं अपने मन मस्तिष्क में आत्मसात करने का प्रयास करें। इसकी सहायता से आपको एक नये संसार का दिग्दर्शन होगा।
यही है जीवन में जिज्ञासा का सूत्र। आप देखिये बालक में ज्ञान गृहण करने की शक्ति कितनी अपार होती है। जन्म लेते ही वह हर चीज का उत्सुकता की नज़र से अवलोकन करता है; इसीलिए मस्तिष्क का विकास भी आरंभिक अवस्था में ही सर्वाधिक होता है। बाद के वर्षों में तो जिज्ञासा के अभाव में मस्तिष्क कुंद होने लगता है।
यही हैं वे छोटे मोटे उपाय जो जिज्ञासा से ज्ञान और ज्ञान से अनुभव के मार्ग पर चलने में आपकी सहायता करेंगे। हर नया प्रयोग आरंभ में थोड़ा कठिन लगता है, लेकिन यदि आपने उसे अपने मन और मानस में स्वीकार कर लिया तो फिर संतोष तथा सफलता के अपार द्वार आपके लिये खुल जाएँगे।
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल- 462023, मो। 09826042641, E-mail- v।joshi415@gmail।com
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