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Feb 12, 2019

बसंत में सुना है भँवरों का गुंजन


बसंत में सुना है भँवरों का गुंजन
- जेरेमी कोल्स
सर्दी के दिन पूरे हुए। गर्मी आने को है। सर्दी-गर्मी के बीच के इस वक़्त को बसंत ऋतु कहा जाता है। ये क़ुदरत का सबसे ख़ूबसूरत दौर होता है। ज़िंदगी के इतने रंग-रूप देखने को मिलते हैं कि दिल ख़ुश हो जाता है।
बसंत के आने का मतलब है, सर्दियों की लंबी रातों का दौर ख़त्म। दिन, ज़िंदगी से लबरेज़। गुनगुने मौसम का ख़ूबसूरत एहसास।
बसंत के आने का मतलब है बहार का आना। परिंदों की चहचहाहट बढ़ जाती है। पेड़ों पर नई पत्तियाँ -कोपलें आती हैं। तरह-तरह के फूल खिल उठते हैं। दुनिया रंग-बिरंगी लगने लगती है। तमाम तरह के जीव-जंतु आपको नज़र आने लगने हैं।
तो यही वक़्त है कि आप घर से बाहर निकलें और क़ुदरत के ख़ूबसूरत रंगों का मज़ा लें।
बसंत ऋतु के आते ही पक्षियों की चहचहाहट बढ़ जाती है। सुदूर देशों को गए परिंदे अपने घर लौटते हैं। फिर यहीं के पक्षियों में भी ठंड के जाने की ख़ुशी होती है।
सब मिलकर लय-ताल में सुर निकालते हैं अगर आपको सुबह उठना पसंद है, तो परिंदों का ये शोर सुहाना लगेगा।

सर्दियों में ठंडे ख़ून वाले बहुत से जानवर छुपकर सोए रहते हैं। ठंड के गुज़र जाने के इंतज़ार में। जैसे मेंढक, सांप, छिपकली, चमगादड़, साही वग़ैरह।
ठंड के दिनों में शरीर की एनर्जी बचाने के लिए ये सब चुपचाप सोए पड़े रहते हैं। जैसे ही सर्दियों का बुरा वक़्त ख़त्म होता है। ये सब अंगड़ाई लेकर नींद के आग़ोश से बाहर आते हैं, खाने पीने की तलाश में। ज़िंदगी को नई रफ़्तार देने के लिए।
सर्दियों में रातें लंबी होती हैं। मगर बसंत के आते ही दिन बड़े होने लगते हैं।
मार्च के तीसरे हफ़्ते तक, सूरज के चक्कर लगा रही धरती की चाल ऐसी होती है कि दिन और रात बराबर हो जाते हैं।
इसके बाद दिन के, रातों से बड़े होने का सिलसिला शुरू हो जाता है।
बसंत के आते ही, क़ुदरत मानो अंगड़ाई लेती है, सर्दियों का आलस पीछे छोड़ती है। ज़िंदगी को नई रफ़्तार देती है।कलियाँ खिल उठती हैं, फूल महकने लगते हैं।
जिधर नज़र दौड़ाइए, बहार ही बहार नज़र आती है। पेड़ों में नई कोपलें फूटती हैं। आम में बौर आने लगते हैं। प्रकृति के इन रंगों को देखने का मौक़ा लेकर आता है बसंत। तो आप भी इन नज़ारों का लुत्फ़ लेने के लिए घर से बाहर निकलिए।
बंसत की रुत आते ही भंवरे अपने ठिकानों से बाहर निकलकर ताज़ा खिलने वाले फूलों पर मंडराने लगते हैं। रंग-बिरंगी तितलियाँ  भी खाने और साथी की तलाश में यहां-वहां फिरती दिखाई देती हैं।
ये नज़ारे रोज़-रोज़ तो दिखाई नहीं देते। बसंत में पहले भंवरे की गुंजन सुनना बेहद सुखद एहसास है।
अंग्रेज़ी में कहावत है, 'मैडएज़ मार्च हेयर'।यानी मार्च महीने के खरहे जैसा पागलपन।
मार्च का महीना, यूरोप में पाए जाने वाले खरहों का मैटिंगसीज़न होता है। इस दौरान वो दीवानों सा बर्ताव करते हैं। सर्दी की वजह से ठिठुरी पड़ी घास जब बसंत में खिल उठती है तो, उस पर लड़ते-भिड़ते, खेलते-कूदते इन खरहों को देखना बेहद दिलचस्प मालूम होता है।
बंसत वो मौसम होता है जब क़ुदरत की चित्रकारी देखने को मिलती है। तरह तरह के फूल खिलते हैं।
उन पर रंग-बिरंगी तितलियाँ  मंडराती हैं। कहीं गुलाबी, तो कहीं पीले रंग का चोला ओढ़े दिखाई देती है प्रकृति। इसी दौरान, अधपकी फ़सल की ख़ुशबू, चेरी के पेड़ों पर आई बहार, फलों से लदे बेर के पेड़ बड़े दिलकश अंदाज़ में आपका ध्यान अपनी तरफ़ खींचते हैं।
ये नज़ारे बहुत कम वक़्त के लिए देखने को मिलते हैं। इसीलिए हम कहेंगे कि भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी से थोड़ा वक़्त निकालकर, क़ुदरत की इस चित्रकारी को निहारिए। दिल को सुकून मिलेगा।
सर्दियों की विदाई के साथ ही, अपना वतन छोड़कर गए परिंदे वापस आने लगते हैं। हिंदुस्तान तो गर्म देश है।
यहां, रूस और साइबेरिया तक से पक्षी आते हैं सर्दियाँ  बिताने। यानी ये उड़ने वाले मेहमान अपने वतन वापस जाने लगते हैं बसंत के आते ही। वहीं, हमारे देश से बाहर गए पक्षी लौटने लगते हैं अपने घर। अपने साथियों और परिजनों से मिलने के लिए।
ज़िंदगी के तजुर्बे और ख़ुशियाँ  बांटने के लिए। आम की बौरों के बीच से झांकती कोयल की कुहू-कुहू, ज़िंदगी की सुरीली धुन मालूम होती है।
बसंत यानी बहार का मौसम। दूर तक फैली हरी घास, चारों और खिले रंग-बिरंगे ख़ुशबू बिखेरते फूल। परिंदों की चहचहाहट, भंवरों की गुंजन, तितलियों का मंडराना, पकती हुई फ़सल की ख़ुशबू, बावरे हुए जानवर।
कुल मिलाकर, क़ुदरत के लिए ये सबसे व्यस्त सीज़न होता है। ऐसे में हम आपको यही सलाह देंगे कि थोड़ा वक़्त निकालिए। घर से बाहर निकलकर किसी जंगल में जाइए, थोड़ा टहलिए।
दूर नहीं जा सकते तो शहर के क़रीब के किसी गांव में जाकर थोड़ा वक़्त क़ुदरती नज़ारों के बीच टहलते हुए गुज़ारिए।
ज़िंदगी के तमाम रसों से सराबोर इस मौसम को अपने नैनों में संजो लीजिए। दिल से महसूस कीजिए हज़ार तरह से धड़कती ज़िंदगी को (बीबीसी से)

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