- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
सूखी नदियाँ
नीर नहीं पाएँगे
नीर न मिला
गाछ कहाँ हों हरे !
गाछ न हरे
नीड न बनाएँगे
नीड के बिना
पाखी बेचारे प्यारे
बोलो तो ज़रा
किस देश जाएँगे ?
निर्झर सूखे
कल -कल
उदास
पाखी न कोई
अब आता है पास
रोता वसन्त
रो रहे हैं बुराँश
बचा- खुचा
जो
लील गई आग है
हरीतिमा का
उजड़ा सुहाग है
बहुत हुआ,
अब तो जाग जाओ
छाँव तरु की
बूँद -बूँद
नीर की
जीना है तो बचाओ।
सम्पर्कः सी-1702, जेएम अरोमा, सेक्टर-75, नोएडा- 201301 (उत्तरप्रदेश)
- डॉ. कविता भट्ट
कंठ
है प्यासा
पहाड़ी पगडंडी
बोझ है भारी
है विकट चढ़ाई
दोपहर में
दूर-दूर
तक भी
पेड़ न कोई
दावानल से सूखे
थे हरे-भरे
पोखर-जलधारा
सिसके-रोए
ये खग-मृग-श्रेणी
स्वयं किए थे
चिंगारी के हवाले
वृक्ष -लताएँ
अब गठरी लिये
स्वयं ही खोजें
पेड़ की छाँव घनी
और पीने को पानी
-महेन्द्र देवांगन ‘माटी’
एक एक पेड़ लगाओ,
धरती को बचाओ ।
धरती को बचाओ ।
मिले ताजा फल फूल,
पर्यावरण शुद्ध बनाओ।
पर्यावरण शुद्ध बनाओ।
मत काटो तुम पेड़ को,
पुत्र समान ही मानो।
पुत्र समान ही मानो।
इनसे ही जीवन जुड़ा है,
रिश्ता अपना जानो।
रिश्ता अपना जानो।
सोचो क्या होगा अगर,
पेड़ सभी कट जाएँगे?
पेड़ सभी कट जाएँगे?
कहाँ मिलेगी शुद्ध हवा,
तड़प- तड़प मर जाएँगे।
तड़प- तड़प मर जाएँगे।
फल फूल और औषधि तो,
पेड़ों से ही मिलते हैं।
पेड़ों से ही मिलते हैं।
रहते मन प्रसन्न सदा,
बागों में दिल खिलते हैं।
बागों में दिल खिलते हैं।
पंछी चहकते पेड़ों पर,
घोसला बनाकर रहती हैं।
घोसला बनाकर रहती हैं।
फल फूल खाते सदा,
धूप छाँव सब सहती हैं।
धूप छाँव सब सहती हैं।
सबका जीवन इसी से हैं,
फिर क्यों इसको काटते हो।
फिर क्यों इसको काटते हो।
अपना उल्लू सीधा करने,
लोगों को तुम बाँटते हो।
लोगों को तुम बाँटते हो।
करो संकल्प जीवन में प्यारे,
एक एक वृक्ष लगाएँगे।
एक एक वृक्ष लगाएँगे।
हरा भरा धरती रखेंगे,
जीवन खुशहाल बनाएँगे।
जीवन खुशहाल बनाएँगे।
सम्पर्कः
पंडरिया (कवर्धा), छत्तीसगढ़, वाट्सएप
नंबर-
8602407353
1 comment:
मेरी रचना प्रकाशित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद महोदय ।
कृपया इस नंबर पर सूचना दिया करें
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com
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