-प्रतिका गुप्ता
सूर्य
के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करने पर ज्योतिषियों द्वारा
मौसम,
खासकर गर्मी और बारिश के सम्बंध में कई बातें कही जाती हैं।
ज्योतिष के अनुसार सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करने के बाद शुरु के नौ
दिनों अधिक गर्मी पड़ती है। और यदि इन दिनों में वर्षा हो जाती है तो फिर उस वर्ष
कम वर्षा होती है।
नक्षत्र
क्या है?
आकाश में हमें कई गतियाँ देखने को
मिलती हैं। सूरज सुबह उगता है, शाम को डूब जाता है, साल
भर में सूरज एक ही स्थान से उदय नहीं होता। चांद लगभग एक महीने में अपनी कलाएँ दिखाकर
लगभग मूल स्थिति में लौट आता है। ग्रहों की अपनी गति होती है। सूरज, चाँद
और ग्रहों को मिलाकर हमारा सौर मंडल बनता है। सौर मंडल के सदस्यों की एक-दूसरे
के सापेक्ष स्थितियाँ बदलती रहती हैं।
लेकिन तारों की स्थितियाँ एक-दूसरे के सापेक्ष नहीं बदलतीं। कारण यह
है कि तारे हमारे सौरमंडल के अंदर नहीं हैं। ये सूर्य से बहुत दूर हैं और हमारे
सूर्य की परिक्रमा न करने तथा बहुत दूर होने के कारण स्थिर जान पड़ते हैं। यानी कोई
तारा दूसरे तारे से जिस ओर व जितनी दूर आज दिखेगा वह उसी ओर व उतनी ही दूर काफी
लंबे समय तक दिखेगा। इस प्रकार किसी चमकदार तारे या तारा समूह से बनी विशेष
आकृतियों और स्थितियों को आकाश में पहचाना जा सकता है। चंद्रमा लगभग 27 दिनों
में पृथ्वी की परिक्रमा करता है। और हर दिन जिस तारा समूह में चंद्रमा होता है उसे
नक्षत्र का नाम दिया गया है। इस प्रकार चंद्रमा 27 नक्षत्रों
से होकर गुज़रता है। रोहिणी इन्हीं 27 नक्षत्रों में से एक है।
प्रसंगवश, बता
दूँ कि सूर्य साल भर में जिन तारामंडलों के सामने से होकर गुज़रता है, उन्हें
राशियाँ कहते हैं। 12 राशियाँ
हैं और सूर्य हर माह एक राशि के सम्मुख
होता है। राशियों और नक्षत्रों की कल्पना मनुष्य की कल्पना शक्ति की परिचायक है और
मूलत:
आकाशीय पिंडों की गति को अधिक सूक्ष्मता से समझने के लिए रची
गई हैं।
राशियों की कल्पना आकाश में एक पट्टी
में की गई है जिस पट्टी पर सूर्य साल भर में चलता नज़र आता है। इसे राशि चक्र कहते
हैं। नक्षत्र इस राशि चक्र से थोड़ा हटकर हैं।
तारे हमें इन गतिशील पिंडों (यानी
सूर्य,
चंद्रमा और ग्रहों) के पीछे एक स्थिर पृष्ठभूमि की तरह
दिखते हैं। पृथ्वी की परिक्रमा के कारण सूर्य के पीछे का आकाश साल भर बदलता दिखता
है। साल भर में सूर्य 12 राशियों के सामने से गुज़रता है। इन
राशियों को 27
नक्षत्रों में बाँटा गया है, तो
साल भर में सूर्य इन्हीं 27 नक्षत्रों के सामने से भी गुज़रता है।
हर नक्षत्र में लगभग 13 दिन रहता है। पृथ्वी की निश्चित गति के
कारण सूर्य हर साल 25 मई को रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता
है इसके बाद पृथ्वी के आगे बढ़ जाने से सूर्य अगले नक्षत्र (मृगशिरा) में
दिखने लगता है।
यहाँ थोड़ी स्पष्टता ज़रूरी है। सूर्य के
वास्तविक तारामंडलों में से होकर गुज़रने और ज्योतिषीय राशि या नक्षत्र में से होकर
गुज़रने में तनिक अंतर होता है। इस बात को तालिका में देखा जा सकता है।
सूर्य
का विभिन्न तारामंडलों में प्रवेश
20 जनवरी 2018: कुंभ
राशि में
18 फरवरी 2018: मीन
राशि में
20 मार्च 2018: मेष
राशि में
20 अप्रैल 2018: वृषभ
राशि में
21 मई 2018: मिथुन
राशि में
21 जून 2018: कर्क
राशि में
22 जुलाई 2018: सिंह
राशि में
23 अगस्त 2018: कन्या
राशि में
23 सितंबर 2018: तुला
राशि में
23 अक्टूबर 2018: वृश्चिक
राशि
22 नवंबर 2018: धनु
राशि में
23 दिसंबर 2018: मकर
राशि में
सूर्य का विभिन्न तारामंडलों में प्रवेश
16 फरवरी 2018: तारामंडल कुंभ में
12 मार्च 2018: तारामंडल मीन में
19 अप्रैल 2018: तारामंडल मेष में
14 मई 2018: तारामंडल वृषभ में
21 जून 2018: तारामंडल मिथुन में
21 जुलाई 2018: तारामंडल कर्क में
10 अगस्त 2018: तारामंडल सिंह में
17 सितंबर 2018: तारामंडल कन्या में
31 अक्टूबर 2018: तारामंडल तुला में
23 नवंबर 2018: तारामंडल वृश्चिक में
18 दिसंबर 2018: तारामंडल धनु में
19 जनवरी 2018: तारामंडल मकर में
सूर्य का विभिन्न तारामंडलों में प्रवेश
16 फरवरी 2018: तारामंडल कुंभ में
12 मार्च 2018: तारामंडल मीन में
19 अप्रैल 2018: तारामंडल मेष में
14 मई 2018: तारामंडल वृषभ में
21 जून 2018: तारामंडल मिथुन में
21 जुलाई 2018: तारामंडल कर्क में
10 अगस्त 2018: तारामंडल सिंह में
17 सितंबर 2018: तारामंडल कन्या में
31 अक्टूबर 2018: तारामंडल तुला में
23 नवंबर 2018: तारामंडल वृश्चिक में
18 दिसंबर 2018: तारामंडल धनु में
19 जनवरी 2018: तारामंडल मकर में
ज्योतिष में इन 27 नक्षत्रों
में सूर्य के होने से अलग-अलग प्रभाव बताए जाते हैं। ज्योतिष के
अनुसार सूर्य जब रोहिणी में प्रवेश करता है तो शुरु के नौ दिन अधिक गर्मी पड़ती है।
इसी को नौतपा कहते हैं। नौतपा में अधिक गर्मी पड़ने के पीछे मान्यताएँ भी हैं। जैसे, कुछ
लोगों के अनुसार पृथ्वी सूर्य के बहुत करीब होती है इसलिए गर्मी बढ़ जाती है। या
कुछ लोगों का मानना है कि नौतपा में पूरी पृथ्वी पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती है।
तापमान
के निर्धारक
पृथ्वी अपनी अक्ष पर झुकी हुई है। अक्ष
पर झुके होने के कारण सूर्य की किरणें पृथ्वी के हर हिस्से पर एक समान नहीं पड़ती।
कहीं एकदम सीधी तो कहीं तिरछी पड़ती हैं; इसलिए एक ही समय पर कुछ इलाके गर्म और
कुछ ठंडे होते हैं। इसके साथ-साथ उस स्थान की समुद्र से ऊँचाई, भौगोलिक
स्थितियाँ,
हवा की रफ्तार वगैरह भी तापमान पर असर डालते हैं। जैसे भारत
के ही कुछ इलाके गर्म तो कुछ ठंडे हैं। मध्य भारत में भौगोलिक स्थितियों के कारण
मई माह में अत्यधिक गर्मी पड़ती ही है।
सूर्य रोहिणी नक्षत्र में 25 मई
को प्रवेश करता है। इस समय पृथ्वी के केवल उस भाग में सूर्य की किरणें सीधी पड़ती
हैं जो 21.10
उत्तर और 22.30 उत्तर के बीच हैं जिनमें मध्य भारत के
नागपुर,
रायुपर, छिंदवाड़ा, बुरहानपुर, बैतूल
आदि शहर आते हैं। अभी जब भारत समेत कई देशों में गर्मी का मौसम है तो वहीं फिनलैंड, कनाडा
जैसे देशों में बसंत का मौसम चल रहा है। यदि रोहिणी नक्षत्र में सूर्य के प्रवेश
करने से तापमान में वृद्धि होती है ,तो सभी जगह एक समान असर होना चाहिए।
नौतपा के बारे में एक और मान्यता है कि
इस दौरान सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी कम हो जाती है ; इसलिए
ज़्यादा गर्मी पड़ती है। पृथ्वी के परिक्रमा करने का पथ अंडाकार है। इस कारण
परिक्रमा के दौरान पृथ्वी कभी सूर्य के थोड़ा नज़दीक होती है और कभी थोड़ा दूर होती
है। जनवरी में पृथ्वी सूर्य के सबसे करीब होती है। और इस समय भारत समेत पृथ्वी के
उत्तरी गोलार्ध में ठंड का मौसम होता है। यदि पृथ्वी पर गर्मी या ठंड सूर्य दूरी
पर निर्भर करता तो पृथ्वी के सूर्य के करीब होने को दौरान पृथ्वी पर सभी जगह गर्मी
का मौसम होना चाहिए।
तारीख सूर्य
से पृथ्वी की दूरी
जनवरी 3 14.71
करोड़ कि.मी.
जुलाई 4 15.2 करोड़
अधिकतम
तापमान और रोहिणी
यदि हम पिछले आठ सालों के भोपाल के
अधिकतम तापमान को देखें तो 2012, 2015 और 2017 में
नौतपा के दौरान तापमान अधिकतम पहुँचा है। अन्य सालों में नौतपा के पहले या बाद के
दिनों में अधिकतम तापमान दर्ज हुआ है। यदि रोहिणी के प्रभाव से गर्मी बढ़ती है तो
गर्मी के मौसम वाले इलाकों में हर साल रोहिणी के समय अधिकतम तापमान दर्ज होना
चाहिए।
क्र. साल वर्ष में अधिकतम तापमान तारीख
(डिग्री
सेल्सियस में)
1 2010 45 24 मई
2 2011 44 17 मई
3 2012 43 29 मई
4 2013 43 5 मई, 18 मई
5 2014 45 6 मई
6 2015 45 19 मई, 31 मई
7 2016 47 20 मई
8 2017 45 27 मई
तो रोहिणी के साथ सबसे तेज़ गर्मी पड़ने
और उसका सम्बन्ध वर्षा से होने की बात बहुत विश्वसनीय नहीं लगती। दरअसल वर्षा बहुत
बड़े इलाके का एक सिस्टम है। इसमें दूर-दूर के इलाके शामिल हैं और इस पर कई
बातों का असर पड़ता है।
मुख्य बात यह है कि रोहिणी में सूर्य
के प्रवेश के साथ तेज़ गर्मी पड़ना आंकड़ों के प्रकाश में सत्य प्रतीत नहीं होता। एक
ही समय पर पृथ्वी तो क्या देश और प्रदेश के ही अलग-अलग
इलाकों में तापमान में काफी विविधता देखी जाती है। ऐसे में किस स्थान का तापमान
वर्षा पर असर डालेगा, कहना मुश्किल है। और वर्षा का सिस्टम
इतना व्यापक है कि किसी एक जगह के तापमान में अंतर इस पूरे सिस्टम को प्रभावित
करेगा,
यह भी संभव नहीं लगता। सवाल यह है कि रोहिणी के समय किस जगह
का तापमान देखा जाए और कहां रोहिणी ‘गलने’ (यानी
उस दौरान वर्षा होने) से पूरे देश की बारिश प्रभावित होगी।
बारिश का सिस्टम क्या है इसे फिर कभी
देखेंगे मगर अभी इतना ही कहा जा सकता है कि रोहिणी के तपने और गलने की परिकल्पना
शायद मनुष्य द्वारा वर्षा जैसी महत्वपूर्ण और निर्णायक परिघटना की कुछ भविष्यवाणी
करने की आकांक्षा से उभरी होगी। (स्रोत फीचर्स)
राशियाँ और नक्षत्र
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