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Apr 16, 2018

क्या बच्चों को स्कूल भेजकर पढ़ाना ज़रूरी है?

क्या बच्चों को स्कूल भेजकर
 पढ़ाना ज़रूरी है?
शाहीन पारडीवाला सिर्फ 17 साल के हैं। पेशे से वो एक ब्लॉगर हैं और शॉर्ट फिल्में बनाते हैं। अब तक उन्होंने 16 शॉर्ट फिल्में बनाई है। इनमें से दो फिल्मों पर उन्हें अवॉर्ड भी मिल चुका है। आज शाहीन के पास लाखों का बैंक बैलेंस है। वो अपने साथ-साथ अपने घर का खर्च भी चलाते हैं।
लेकिन, आपको जान का हैरानी होगी की 7वीं के बाद शाहीन ने स्कूल जाकर पढ़ाई नहीं की है। शाहीन ने होम स्कूलिंग से 10वीं की पढ़ाई की है।
क्या है होम स्कूलिंग?
बच्चे बिना स्कूल गए जब घर बैठकर अनौपचारिक सेटअप में पढ़ाई करते हैं और स्कूल जैसी ही बातें घर पर सीखते हैं तो उसे होम स्कूलिंग कहा जाता है। इस सेटअप में माँ-बाप ही बच्चों के टीचर होते हैं।
चाइल्डहुड एसोसिएशन ऑफ इंडिया की अध्यक्ष स्वाति पोपट के मुताबिक भारत में होम स्कूलिंग एक नया ट्रेंड है। पिछले पाँच सालों में इसका चलन ज़्यादा बढ़ा है।
स्वाति इस ट्रेंड के पीछे कई वजहें गिनाती हैं। उनके मुताबिक-
- स्कूल जाने वाले बच्चों में तनाव के बढ़ते मामले,
- स्कूलों में अच्छे शिक्षकों की कमी,
- छात्रों के बीच बढ़ती असुरक्षा की भावना,
- स्कूल के बाद बच्चों को ट्यूशन भेजने का झंझट।
इन वजहों से अभिभावकों का स्कूली शिक्षा से मोह भंग हो रहा है और वो होम स्कूलिंग का रूख कर रहे हैं।
क्यों बढ़ रहा है होमस्कूलिंग का चलन?
दीपा भी उनमें से एक है। दीपा ने भी अपनी बेटी को स्कूल न भेजने का निर्णय लिया है। दीपा ने बीबीसी से बातचीत में बताया कि उनकी बेटी इस साल तीन साल की होगी। लेकिन, स्कूल में दाखिले की प्रक्रिया बच्चे के ढाई साल के होने पर ही शुरू हो जाती है।
दीपा
दीपा के मुताबिक जब तक वो माँ बनने के एहसास को आत्मसात् कर पातीं, उससे पहले उनको बच्ची को स्कूल में डालने और अलग-अलग स्कूलों के फॉर्म भरने की ज़रूरत आ पड़ी थी।
दीपा बेटी के भविष्य को लेकर तनाव में थीं। इस बारे में उन्होंने बहुत सोचा। फिर बेटी को होम स्कूलिंग के जरिए पढ़ाने का फैसला किया।
दीपा और उनके पति दोनों ने सोशलवर्क में एमए किया है। लेकिन, दोनों को लगता है कि स्कूल की पढ़ाई ने उनको नौकरी दिलाने में ज्यादा मदद नहीं की। खास तौर पर दसवीं तक की पढ़ाई ने।
लेकिन, इसी पर स्वाति को आपत्ति है।
वो कहती हैं कि हर बच्चे के लिए होम स्कूलिंग फिट नहीं है।
होम स्कूलिंग किसके लिए फिट है?
स्वाति कहती हैं कि केवल दो तरह के बच्चों के लिए होम स्कूलिंग सही है।
अगर बच्चा स्कूल जाकर बहुत तनाव में रहता है, जिससे उसके सम्पूर्ण विकास को खतरा होता है, तब बच्चे के लिए होम स्कूलिंग बेहतर होती है।
इसके अलावा अगर आपका बच्चा गिफ्टेड यानी ज़्यादा प्रतिभावान है, तो भी होम स्कूलिंग आपके बच्चे के लिए बेहतर होगी।
सोनल
होम स्कूलिंग के फायदे
शाहीन की माँ सोनल पारडीवाला के लिए ये फैसला आसान था।
ऐसा इसलिए क्योंकि उनके दोनों बच्चे गिफ्टेड हैं। वो अपनी क्लास के दूसरे बच्चों के मुकाबले ज्यादा तेज थे।
शाहीन को होम स्कूलिंग का एक फायदा ये मिला कि उन्होंने घर बैठे तीन साल की पढ़ाई दो साल में पूरी कर ली और जब उन्हें 9वीं की परीक्षा देनी चाहिए थी, तब वो 10वीं की परीक्षा पास कर गए और वो भी 93 फीसदी मार्क्स के साथ।
यानी कि उनका बेशकीमती एक साल बच गया।
कैसे होती है होम स्कूलिंग में पढ़ाई?
स्वाति बताती हैं कि होम स्कूलिंग में बच्चों को क्या पढ़ाना है या क्या नहीं इसका कोई तय पैटर्न नहीं होता।
उनके मुताबिक इसके दो प्रकार हो सकते हैं।
स्वाति
पहले तरीके में अभिभावक स्कूल का ही पैटर्न घर पर फॉलो करते हैं। मतलब ये कि उम्र के हिसाब से बच्चा जिस क्लास में पढऩा चाहिए, अभिभावक उस क्लास की किताबें घर पर ही बच्चों को मुहैया कराते हैं। शिक्षक का काम माता-पिता करते हैं। लेकिन, किस विषय पर कितना समय देना है ये बच्चा खुद तय कर सकता है।
होम स्कूलिंग के दूसरे फॉर्मेट में माता-पिता स्कूली शिक्षा पर ज्यादा ज़ोर नहीं देते। बच्चों में क्रिएटिविटी को ज़्यादा तरजीह दी जाती है और उनके मन माफिक कामों को करने के लिए प्रेरित करते हैं, ताकि बच्चों का विकास अपने हिसाब से हो, बिना किसी दवाब के।
स्वाति के मुताबिक होम स्कूलिंग की न तो कोई ट्रेनिंग होती है और न ही कोई सिलेबस होता है। हर अभिभावक अपने बच्चों की आवश्यकतानुसार पढ़ाने का समय और नियम तय करता है।
वो कहती हैं कि कई बार घर पर पढऩे की वजह से स्कूल में मिलने वाले महौल को कई बच्चे मिस भी करते हैं।
होम स्कूलिंग से नुकसान?
पद्मिनी
अपनी तीन साल की बेटी को घर में पढ़ाने का फैसला लेने से पहले पद्मिनी को यही डर था। पद्मिनी हर समय यही सोचती थी कि उनकी बच्ची बाकी बच्चों के साथ घुलेगी-मिलेगी कैसे?
स्वाति की मानें तो बहुत हद तक पद्मिनी का ये डर सही भी है।
वो कहती है कि होम स्कूलिंग करने वाले बच्चों में अनुशासनहीनता की कमी और सामाजिक न होने की अक्सर शिकायत मिलती है।
बीबीसी से बातचीत में पद्मिनी ने कहा कि अपने बेटी के लिए उन्होंने इसे एक चुनौती की तरह लिया।
वह कहती हैं कि उनकी बेटी स्कूल जाने वाले दूसरे बच्चों के मुकाबले अब ज्यादा सामाजिक है क्योंकि उसे दोस्त बनाने के लिए खुद पहल करनी पड़ती है। ये बात उसने अभी से गाँठ बाँध ली है।
इसलिए हमेशा वो दूसरे बच्चों के साथ दोस्ती का हाथ खुद बढ़ाती है।
पद्मिनी कहती हैं कि वो दूसरे होम स्कूलिंग वाले बच्चों के साथ ग्रुप में जुड़ी है, इससे भी बच्चों को सामाजिक होने में मदद मिलती है। अपने इस फैसले से फिलहाल वो बेहद खुश हैं।  (साभार - www.bbc.com/hindi)

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