-सुकेश साहनी
पूरे घर में मुर्दनी छा गई थी। माँ के कमरे के बाहर सिर पर हाथ रखकर बैठी उदास
दाई माँ... रो-रोकर थक चुकी माँ के पास चुपचाप बैठी गाँव की औरतें । सफेद कपड़े में
लिपटे गुड्डे के शव को हाथों में उठाए पिताजी को उसने पहली बार रोते देखा था...
“शुचि!” टीचर की कठोर आवाज़ से मस्तिष्क में दौड़ रही घटनाओं की रील कट गई और वह
हड़बड़ाकर खड़ी हो गई।
“तुम्हारा ध्यान किधर है? मैं क्या पढ़ा रही थी... बोलो?” वह घबरा गई। पूरी क्लास में सभी उसे देख रहे थे।
“बोलो!” टीचर उसके बिल्कुल पास आ गई।
“भगवान ने बच्चा वापस ले लिया...।” मारे डर के मुँह से बस इतना ही निकल सका।
कुछ बच्चे खी-खी कर हँसने लगे। टीचर का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा।
“स्टैंडअप आन द बैंच!”
वह चुपचाप बैंच पर खड़ी हो गई। उसने सोचा--- ये सब हँस क्यों रहे हैं, माँ-पिताजी, सभी तो रोए थे-यहाँ तक कि दूध वाला और
रिक्शेवाला भी बच्चे के बारे में सुनकर उदास हो गए थे और उससे कुछ अधिक ही प्यार से
पेश आए थे। वह ब्लैक-बोर्ड पर टकटकी लगाए थी, जहाँ उसे माँ के बगल में लेटा प्यारा-सा बच्चा दिखाई दे रहा था । हँसते हुए
पिताजी ने गुड्डे को उसकी नन्ही बाँहों में दे दिया था। कितनी खुश थी वह!
“टू प्लस-फाइव-कितने हुए?” टीचर बच्चों से पूछ रही थी ।
शुचि के जी में आया कि टीचर दीदी से पूछे जब भगवान ने गुडडे को वापस ही लेना
था ,तो फिर दिया ही क्यों था? उसकी आँखें डबडबा गईं। सफेद कपड़े में लिपटा
गुड्डे का शव उसकी आँखों के आगे घूम रहा था। इस दफा टीचर उसी से पूछ रही थी । उसने
ध्यान से ब्लैक-बोर्ड की ओर देखा। उसे लगा ब्लैक-बोर्ड भी गुड्डे के शव पर लिपटे
कपड़े की तरह सफेद रंग का हो गया है। उसे टीचर दीदी पर गुस्सा आया । सफेद बोर्ड पर
सफेद चाक से लिखे को भला वह कैसे पढ़े?
“पापा! राहुल कह रहा था कि आज तीन बजे...” विक्की ने बताना चाहा ।
“चुपचाप पढ़ो!” उन्होंने अखबार से नजरें हटाए बिना कहा, “पढ़ाई के समय बातचीत बिल्कुल बंद !”
“पापा कितने बज गए?” थोड़ी देर बाद विक्की ने पूछा।
“तुम्हारा मन पढ़ाई में क्यों नहीं लगता? क्या ऊटपटांग सोचते रहते हो? मन लगाकर पढ़ाई करो, नहीं तो मुझसे पिट जाओगे।”
विक्की ने नजरें पुस्तक में गड़ा दीं ।
“पापा! अचानक इतना अँधेरा क्यों हों गया है?” विक्की ने खिड़की से बाहर ख़ुले आसमान को एकटक
देख़ते हुए हैरानी से पूछा। अभी शाम भी नहीं हुई है और आसमान में बाद्ल भी नहीं
हैं! राहुल कह रहा था...”
“विक्की!!” वे गुस्से में बोले-ढेर सारा होमवर्क पड़ा है और तुम एक पाठ में ही
अटके हो!”
“पापा, बाहर इतना
अँधेरा...” उसने कहना चाहा ।
“अँधेरा लग रहा है ,तो
मैं लाइट जलाए देता हूँ। पाँच मिनट में पाठ याद न हुआ, तो
देखना मैं तुम्हारे साथ क्या सुलूक करता हूँ?”
विक्की सहम गया। वह ज़ोर-ज़ोर से याद करने लगा, “सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्र्मा आ जाने से
सूर्यग्रहण होता है... सूर्य और पृथ्वी के बीच...”
3-शिक्षाकाल
“सर,मे आय कम इन?” उसने डरते-डरते पूछा।
“आज फिर लेट? चलो, जाकर अपनी सीट पर खड़े हो जाओ।
वह तीर की तरह अपनी सीट की ओर बढ़ा...
“रुको!” टीचर का कठोर स्वर उसके कानों में बजा और उसके पैर वहीं जड़ हो गए। तेजी
से नज़दीक आते कदमों की आवाज़, “जेब में क्या है? निकालो ।”
कक्षा में सभी की नज़रें उसकी ठसाठस भरी जेबों पर टिक गई। वह एक-एक करके जेब से
सामान निकालने लगा... कंचे,तरह-तरह के पत्थर, पत्र-पत्रिकाओं से काटे गए कागज़ों के रंगीन टुकड़े, टूटा हुआ इलैक्ट्रिकटैस्टर, कुछ जंग खाए पेंच-पुर्जे...
“और क्या-क्या है? तलाशी दो।” उनके
सख्त हाथ उसकी नन्ही जेबें टटोलने लगे। तलाशी लेते उनके हाथ गर्दन से सिर की ओर बढ़
रहे थे, “यहाँ क्या छिपा रखा है?” उनकी सख्त अँगुलियाँ खोपड़ी को छेदकर अब उसके मस्तिष्क को
टटोल रहीं थीं ।
वह दर्द से चीख पड़ा और उसकी आँख खुल गई।
“क्या हुआ बेटा?”माँ ने घबराकर पूछा
।
“माँ, पेट में बहुत दर्द
हैं” -वह पहली बार माँ से झूठ बोला, “आज मैं स्कूल नहीं जाऊँगा ।”
सम्पर्कः 185,उत्सव,महानगर पार्ट–2,बरेली–243122 (उ.प्र.)
2 comments:
बालमन के भावों को उजागर करती बेहतरीन लघुकथाएं
साहनीजी को बधाई
तीनों लघुकथाएँ अपने में खरी उतरती हैं .. सुकेश जी को हार्दिक बधाई .
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