मॉरीशस
- सुदर्शन रत्नाकर
सर शिवसागर राम ग़ुलाम एयर पोर्ट पर जैसे ही हवाई जहाज़ से उतर कर मैं बाहर
निकली, मेरी उत्सुकता को जैसे पंख लग गए।पिछले दो मास से मॉरीशस जाने की तैयारी चल
रही थी और अब मैं उस धरती पर थी। उस समय मॉरीशस में दोपहर के डेढ़ बज रहे थे।
भारत से डेढ़ घंटा समय पीछे चलता है। दिल्ली के पैतांलिस डिग्री तापमान से निकल कर
वहाँ की सर्द मौसम की शीतल हवाओं ने हमारा स्वागत किया, तो साढ़े सात घंटे की
यात्रा की सारी थकान उतर गई। एयर पोर्ट मॉरीशस के साउथ कोस्ट में है और हमें वहाँ
से बाला कलावा के टर्टल बे अँगसना होटल के लिए मॉरीशस के नार्थ -वेस्ट कोस्ट में जाना था। हम पाँच लोग थे ।चार
लोग दो दिन बाद हम से आकर मिलने वाले थे।हमारी यात्रा का आरम्भ ही सुखद रहा ।हमने
जो टेक्सी ली ,उसका ड्राइवर तमलियन था।तमिल, अंग्रेज़ी ,फ़्रेंच और यहाँ तक की उसे हिन्दी भाषा
का भी ज्ञान था।
उसने जानकारी देते हुए बताया कि मॉरीशस गणराज्य का क्षेत्रफल 2,040 मील है ,जो अफ़्रीकी महाद्वीप के तट के दक्षिणपूर्व में 900 सौ किलोमीटर की दूरी पर हिन्द महासागर में और मेडागास्कर केपूर्व में स्थित लगभग तेरह लाख आबादी वाला एक द्वीपीय देश है। जिसका निर्माण ज्वालीमुखी के फूटने के कारण हुआ है ।यहाँ ज्वालीमुखी पर्वत सुप्तावस्था में हैं; जो कभी भी फूट सकते हैं ।गिरमिटिया लोगों की वजह से इस देश का भारत से गहरा नाता है। फ़्रेंच ,अँग्रेजी, मॉरीशियन, क्रिओल, तमिल, भोजपुरी, उर्दू , हक्का, हिन्दी यहाँ की प्रमुख भाषाएँ हैं।
भारतीय मूल के पैंसठ
प्रतिशत लोग यहाँ रहते हैं । जिनमें बावन प्रतिशत हिन्दू हैं और 16 मुस्लिम
समुदाय के लोग। इनके अतिरिक्त डच, फ़्रेंच ,ब्रिटिश अफ़्रीकी
लोग हैं।मिश्रित संस्कृतियों का यह द्वीप हिन्द महासागर का मोती कहलाता है।इसकी
खोज सबसे पहले अरब सामुद्रिक यात्रियों ने नौंवी शताब्दी में की थी ।तब यहाँ केवल
जंगल थे। वे लोग यहाँ बसे नहीं। सन् 1505 में पुर्तगाली, सन् 1598 में डच, सन्
1713 में फ़्रेंच और सन् 1810 में अंग्रेज़ों ने इस पर अपना अधिकार
जमा लिया। 12 मार्च 1968 में मॉरीशस
स्वतन्त्र हो गया।इस समय वहाँ संसदीय लोकतांत्रिक सरकार है जिसमें हिन्दू लोगों का
वर्चस्व है। सर शिव सागर राम ग़ुलाम का इस द्वीप को उन्नत बनाने में विशेष योगदान
है।
बालाचन्द्रन जब यह सब बता रहा था मेरा ध्यान सड़क के दोनों
ओर गन्ने के खेतों पर था। उसके साथ ही मुझे स्मरण हो आई वो कष्टप्रद यात्रा, दर्दभरा जीवन जो हमारे भारतीय पूर्वजों ने झेला था। कैसे धोखे से उन्हें
जानवरों की तरह जहाज़ों पर लाद कर गन्ने की खेती करने के लिये बिहार ,तमिलनाडु से यहाँ लाया गया था।
अच्छे जीवन का लालच देकर अपने देश,अपने
भाई-बन्धुओं से हज़ारों मील दूर इस द्वीप पर उतार दिया गया
था। यही अशिक्षित मज़दूर गिरमिटिया कहलाए जो अपने साथ रामायण, महाभारत अपने देश से धरोहर के रूप में साथ ले गए थे। सारा दिन खेतों में
जी तोड़ मेहनत करने के बाद रात के अंधकार में रामायण की चौपाइयों में उन्हें रोशनी की किरण दिखाती
थीं; उन्हें आध्यात्मिक, मानसिक बल प्रदान करती थीं। इन्हीं ग्रन्थों ने उन्हें अपने
देश ,अपनी जड़ों से जोड़े रखा। आज दो सदियाँ बीत जाने के
पश्चात् भी लोग अपनी संस्कृति को नहीं भूले।
आज भी उन मज़दूरों की तीसरी-चौथी पीढ़ी भले ही रोज़गार के कारण फ़्रेंच
,अँग्रेजी भाषा का प्रयोग करते हैं; लेकिन घर में संवाद की भाषा
भोजपुरी, हिन्दी,तमिल उर्दू ही है। नई
पीढी की वेशभूषा में अंतर आया है ;लेकिन साड़ी-सूट स्कर्ट
धोती -कुर्ता में भी लोग दिखाई देते हैं। बहुत सारी औरतों की
माँग में नारंगी रंग का सिन्दूर दूर से दिखाई देता है ।
अँगसना होटल में अधिकतर सैलानी यूरोपियन थे; लेकिन विशेष बात
यह थी कि वहाँ काम करने वाले अस्सी प्रतिशत लोग भारतीय मूल के थे; जिन्होंने
सर्विस देने में हमारा विशेष ध्यान रखा और हमसे हिन्दी में बातचीत की।प्रीतम
राजपूत विशेषरूप से समय निकालकर हम से बातचीत करता था। उसके दादा बँधुआ मज़दूर के
रूप में आए थे। पिता भी मज़दूरी करते रहे। लेकिन द्वीप के स्वतन्त्र हो जाने
के पश्चात् पढ़ -लिखकर
वह नौकरी करने लगा है। शेष सभी की कहानी भी यही है।
प्रीतम से मैंने पूछा कि क्या उसके परिवार में या उसकी कभी
इच्छा नहीं होती कि वह भारत में आएँ, अपने पूर्वजों, सगे
सम्बन्धियों की
जानकारी लें ।
उसकी आँखें सजल हो गईं। उसने कहा," इच्छा तो बहुत होती है मैडम, पर जा नहीं पाते।ख़र्चा बहुत होता है
,काम का भी नुक़सान होता है। मेरी माँ तो अपनों को याद कर के अभी भी
तड़प उठती है। जब भी जा सका, मैं एक बार कोशिश ज़रूर करूँगा। वैसे मैडम हम अपनी
भूमि से दूर हैं ; लेकिन अब यही हमारे लिए अपना देश है, इसी
को भारत मानते है ,क्योंकि हम अपनी संस्कृति, अपनी जड़ों से , संस्कारों से दूर नहीं हैं। एक दूसरे को अभिवादन- नमस्ते,
राम -राम अथवा ओम नम: शिवाय कहकर करते हैं।
पूरे हिन्दू रीति-रिवाजों को मानते हैं। सभी देवी -देवताओं की पूजा
करते हैं। व्रत करते हैं,तीज-त्योहार
मनाते हैं ।होली, जन्माष्टमी ,महाशिवरात्रि
, गणेशचत्तुर्थी सब मनाते हैं।दशहरा के दिन रावण जलाते हैं और दीवाली पर तो सारा मॉरीशस
दीयों की रोशनी से जगमगा उठता है ।" उसने मुझे कुछ
फ़ोटो भी दिखाए जिसमें साथ मिलकर सब
होली मना रहे थे। कुछ चित्र दीवाली के दिन के थे ,जिसमें वह अपने परिवार के साथ
मिलकर दीवाली पूजन कर रहा था। प्रीतम से यह बातें सुन कर मुझे लगा ही नहीं कि मैं
भारत से बहुत दूर हूँ।
वास्तुकला में भारतीय पुट है। बहुत सारे घरों की दीवारों और
मुँडेर पर श्रीराम, श्रीकृष्ण हनुमानजी शिवजी ,गणेशजी की प्रतिमाएँ लगीं हुईं हैं। कई बार तो ऐसा अनुभव हुआ कि हम भारत
के किसी नगर की गलियों से निकल रहें हैं। भ्रमण करते हुए जगह जगह मन्दिर दिखाई दिए, जिन पर शक्ति मन्दिर लिखा हुआ है वास्तव में यह मन्दिर उन्हें शक्ति देते हैं । गंगा तालाब ,ग्रेड बास एंड लेक में शिवजी की विशालकाय मूर्त्ति हम लोग विशेषरूप से देखने गए। मॉरीशस में गंगा तालाब का वही
महत्त्व है जो भारत में पवित्र नदी गंगा का है। शिव मन्दिर के अतिरिक्त यहाँ और भी कई मन्दिर हैं
जहाँ छोटे बच्चों को हिन्दी- अक्षरज्ञान कराया जाता है ।तमिल मन्दिरों की संख्या भी
तेज़ी से बढ़ रही है। एक स्थान पर पीपल के पेड़ जैसे एक पेड़ पर मन्नत के धागे भी बँधे हुए थे। तुलसी चौरे भी कई घरों के आँगन में दिखाई
दिए।
पोर्टलुइस के बाज़ार में घूमते हुए ऐसा लगा जैसे दिल्ली के कनॉटप्लेस में घूम रहे हों, तो कहीं लगता है चाँदनी चौक हो,
कहीं अलकनंदा जैसी मार्केट
दिखाई देती है ।दुकानों ,शोरूम, मॉल पर
भारतीय नाम पढ़ने को मिले। जेठा तुलसी दास के तो कई शोरूम हैं। इसके अतिरिक्त बहुत सारे नाम हैं, जैसे- मोहन स्वीट्स, रावल एडवोकेट, शर्मा ब्रदर्ज आदि ऐसे नाम थे जो
मॉरीशस में भी भारत में होने का एहसास दिला रहे थे।हर बड़े शॉपिंग मॉल में भारतीय शाकाहारी
भोजन उपलब्ध है ;जिन्हे बिहारी लोग चलाते हैं।
जहाँ मुस्लिम समुदाय की बहुलता है, वहाँ की बिरयानी की तो
बात ही कुछ और है; जहाँ हिन्दू-मुसलमान दोनों खरीददारी करते
हैं। वैसे बाहर से
आने वाले लोग सी फ़ूड खाना पसंद करते है।
अंतिम दो दिन हम लोग साउथ वेस्ट कोस्ट
पर स्थित बीच कूम्बर
पारादी रिजोर्ट एंड स्पा में रुके, जहाँ तमिल लोगों की
अधिकता है।दक्षिण भारतीय भोजन एवं मसालों की सुगंध ने तो भुला ही दिया कि हम मॉरीशस
में है। यहाँ यूरोपियन लोगों साथ- साथ भारतीय सैलानियों की संख्या अधिक थी।
गिरमिटिया लोगों के साथ- साथ ऐसे लोग भी हैं ,जो भारत के
अलग- अलग प्रदेशों से रोज़गार के कारण यहाँ आकर बस गए हैं। इसलिए ऐसा नहीं लग रहा था कि हम
भारत से बाहर हैं; क्योंकि भारत से दूर भी एक भारत और है जिस में हम घूम रहे थे ।
नार्थ-कोस्ट
पर एक छोटा- सा द्वीप है। जहाँ हम केटामरन क्रूज से गए ।चारों ओर समुद्र में उठती
ऊँची लहरें और उस पर आगे बढ़ता क्रूज बड़ा रोमांचक अनुभव रहा। सी सिकनेस होने के
कारण दो लोगों की तबीयत ख़राब हो गई।शेष सबने तैराकी का आनन्द लिया।
पर्यटन मॉरीशस की आय का सबसे बड़ा साधन है इसलिए इसे बढ़ावा
देने के लिए बहुत सारी क्रीडाओं का आयोजन किया गया है। हमने कुछेक का चयनकर पूरा
आनन्द लिया जैसे- फलिकएंड फलैक में स्कूबा डाइविंग, वाटर स्काई कसेला में कॉवड बाइक (quad bike) चलाई और
इसके साथ ही जंगल
में शेर, चीता, बाघ ज़ेब्रा देखने को
मिले। इसके अतिरिक्त बॉटैनिकल गार्डन, वाटर पार्क, नेचर एंड लेज़र पार्क, नेशनल पार्क, सेवन कलर लैंड, रोचेस्टर फाल, संग्रहालय अश्वधावन, ऐक्वेरियम, फलैक मार्कीट, शूगर मिल,रम फेक्टरी आदि प्रसिद्ध स्थान देखे ।
हम मॉरीशस के साउथ, नार्थ, वेस्ट, ईस्ट सभी कोस्ट में घूमने गए ।जहाँ पाँच किलोमीटर की दूरी पर कभी जंगल आता हो, कहीं पहाड़, कहीं बीच। ऐसा लगता
था जैसे हम अभी
भारत के केरल प्रदेश
में हैं और फिर गोवा में। गोवा से छत्तीसगढ ,छत्तीसगढ़ से हिमाचल । प्रकृति ने कितनी सुंदरता बिखेरी हुई है। एक बड़ी
ज़िंदगी जीकर क्या करना है जब सामने ख़ुशियों के पल हमारी प्रतीक्षा कर रहे हों।
प्रकृति के विविध रूप, भिन्न भिन्न रंग बिखरे हों। जी चाह रहा
था इस सारी सुंदरता को घूँट घूँट पीती रहूँ और मेरे भीतर एक समन्दर बस जे। आँखों
से उतार कर इस
सौन्दर्य, मनोरम छटा को दिल में बसा लूँ। स्वच्छ, श्वेत,धवल बादल मानो मुझे पुकार रहे हों। उन बादलों
की ओट से रास्ता बनाता सूर्य अपनी रश्मियाँ जब सागर पर फैलाता है, तो चाँदी के
मोतियों के थाल सज जाते हैं।नीली, हरी,काली,
भूरी, सफ़ेद रंग की लहरें जब हिलती हैं तो ऐसा लगता
है मानो कई रंगों की मालाएँ हों। शांत सागर में थोड़े थोड़े अंतराल में उठती लहरें
हमें चुनौती देतीं दिखाई देती हैं।उठो,अंदर तो झाँको,
उस अथाह जल के भीतर की दुनिया को देखो। कितने जीव -जन्तु, अमूल्य भंडार,अनमोल
मानक-मोती सागर ने अपने गर्भ में छुपा रखे हैं।
समन्दर को लाँघ
कर आती तेज़ पवन की आर्द्रता, शीतलता जब वदन को स्पर्श करती है
,तो उसकी अनुभूति किसी अलौकिक आनन्द से कम नहीं होती। यह मनोहारी छटा नौ दिन से
देख रही हूँ। चारों ओर बिखरा सौन्दर्य, अस्तगामी मार्तंड की
लालिमा सागर की सतह पर अपनी आभा फैलाता उसे एक नया लाल-गुलाबी
रंग दे जाता है।सिन्दूरी रंग में नहाती किरणें दुल्हन की नाई शर्माती हैं। हिलोरें
खाती लहरों का नर्तन, उनसे आती मंद- मंद संगीत की ध्वनि इस जादू ने तो बाँध लिया है।धरा
का सौन्दर्य भी कोई कम नहीं। लाल रंग की मिट्टी ऐसे लगती है मानो मूँगों का जाल बिछा हो।चारों ओर लहलहाते
गन्ने के खेत, केले और नारियल के पेड़, बोगनबेलिया
के आकर्षक रंगों की बेलें,चारों ओर फैली हरीतिमा सारे दिन की
यात्रा के बाद भी थकने नहीं देती और यह याद दिलाती है कि इस धरती को सँवारने सजाने
में प्रकृति के साथ हमारे पूर्वजों के बलिदान की कहानी भी छुपी है,जिस की
स्मृतियाँ लेकर हम लौटे हैं ।
सम्पर्क- ई-29 नेहरू ग्राउण्ड, फ़रीदाबाद– 121001, मो. 9811251135
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