1. दर्द गुलामी का
- सुनीता काम्बोज
दर्द गुलामी का लिख
दूँ या, आजादी का हाल लिखूँ
कैसे- कैसे कब- कब
बदली, वक्त ने अपनी चाल लिखूँ
कितनी बार हुई है
घायल, धरती माँ मत पूछो तुम
दुश्मन ने हैं कैसे -कैसे, बुन डाले ये जाल लिखूँ
भ्रष्ट आचरण वाली
बेलें, फैली हैं हर ओर यहाँ ।
किस कारण से अब बतलाओ, देश हुआ खुशहाल लिखूँ
समझ न आता कलम चलाऊँ, किस-किस और समस्या पर
भूख गरीबी लिख डालूँ या, सूखा, बाढ़, अकाल लिखूँ
बेटी है लाचार व
बेबस, माँ की आँखें शंकित हैं ।
बता दामिनी के
जख़्मों को, कैसे मैं हर साल लिखूँ
पैसे वाले रखते है
अब, मुट्ठी में कानून यहाँ
गद्दारो की कभी नहीं
क्यों, होती है पड़ताल लिखूँ
कभी झोंपड़े गए उजाड़े, रो देती थी ये आँखें
मजदूरों के घर रोटी
ने, कर दी थी हड़ताल लिखूँ
जब -जब भी आवाज़
उठाई, सदा दबाते आए है
रातों-रात हुए है कैसे, अब वो मालोमाल लिखूँ
2.कर देगे आजाद माँ
कर देगें आजाद तुझको को कर देगे आजाद माँ
और भी तो वीर पैदा होगे अपने बाद माँ
हम चले हैं माँ ये अपनी जान तेरे नाम कर
चरणों तेरे सर झुका कर ऊँची तेरी शान कर
ये तमन्ना इस धरा पर जन्म फिर से ही मिले
अब नहीं अमृत की चाहत हम चले विषपान कर
हार मानेगी नही तेरी कभी औलाद माँ
कर देगे...
हम गुलामी की बँधी इन बेड़ियों को तोड़कर
एक कर देगे वतन को सब दिलों को जोड़कर
मिट्टी
में ही तेरी मिल जाएँगी हम माँ
भारती
और जाएँगे कहाँ हम तेरा आँचल छोड़कर
छोड़ जाएँगे दिलों पर अपनी गहरी याद माँ
कर देगे...
लौट जाएँगे ये तूफ़ाँ हमसे लड़कर देखना
छोड़ देगे रास्ता पर्वत भी डरकर देखना
करके देखो दोस्ती इस मौत से भी तुम कभी
तू अमर हो जाओगे ऐसे भी मरकर देखना
गूँजने देखो लगा है ये विजय का नाद माँ
सम्पर्कः मकान नंबर -120 टाइप-3,जिला– संगरूर, स्लाईट लोंगोवाल
पंजाब 148106, ईमेल- Sunitakamboj31@gmail.com, स्थायी निवासी–
यमुनानगर (हरियाणा )
1 comment:
आपने मेरी रचना को पत्रिका में स्थान दिया उसके लिए सादर धन्यवाद ..सादर नमन
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