तोता पिंजरे में बन्द था।
सुन्दर उसे दूध–भात खिलाता, हरी मिर्च खिलाता।
तरह–तरह के फल खिलाता। रोजाना उसे राम–राम, सीताराम पढ़ाता।
तोते के बिना उसे एक पल को चैन नहीं था। जहाँ भी जाता, तोते का पिंजरा
साथ ले जाता।तोता भी उसे बहुत चाहता था।
उसे देखकर खूब उछलता–कूदता था। खूब
बोलता था।
वह चाहता था कि सुन्दर पिंजरा खोल दे। मैं उसके हाथ पर, सिर पर बैठकर
नाचूँ।
पर सुन्दर समझ नहीं पाता था। वह समझता था कि तोता बहुत खुश
है, इसलिए उछल–कूद कर रहा है।
सुन्दर तोते का पिंजरा बाहर पेड़ पर टाँग देता।
पेड़ पर बैठी चि ड़ियों की बोली तोता सुनता। तब वह बाहर आने
के लिए खूब फड़फड़ाता। सुन्दर तब भी यही समझता कि तोता खुश होकर नाच रहा है।
सुन्दर का एक मित्र था, उसका नाम था
बहादुर ।
बहादुर बहुत लालची था। वह रुपये पैसे के चक्कर में बराबर
रहता था। उसकी आदतें खराब होती जा रही थीं।
एक दिन एक आदमी ने बहादुर को एक पैकेट लाकर दिया और कहा कि
इसे ले जाकर तुम नुक्कड़ की पान वाले की दुकान पर दे देना। मैं तुम्हें एक सौ
रुपया दूँगा।
बहादुर खुश हो गया। यह तो बहुत आसान काम है। इस तरह वह रोज
अलग–अलग दूकानों पर सामान पहुँचाने लगा।
पैकेट वाले आदमी ने कहा था, कोई पूछे कि यह
पैकेट कौन देता है, तो बताना नहीं। कहाँ ले जाते हो, यह भी मत बताना।
किसी को दिखाना भी नहीं। अगर कभी लगे कि अभी पकड़े जाओगे ,तो किसी के पास
पैकेट फेंक कर भाग जाना।
अब बहादुर को लगा कि यह गलत काम है।
उसने डरते हुए कहा– मैं यह काम नहीं
करूँगा।
आदमी ने उसे डाँटते हुए डराया। नहीं करोगे तो हम मारेंगें
और तुम्हें पुलिस को पकड़ा देंगें।
बहादुर डर कर काँपने लगा।
अब वह डरते–डरते उसका काम
करने लगा। धीरे–धीरे उसे यह गलत काम करने में भय नहीं रहा।
एक दिन वह पैकेट लेकर जा रहा था। उसने देखा पुलिस के सिपाही
टहल रहे हैं। सुन्दर अपने तोते को लेकर
बैठा था।
बहादुर ने देखा कि पुलिस वाले उसी की ओर इशारा करके उसकी
तरफ आ रहे हैं। वह घबड़ाता हुआ आया और पैकेट सुन्दर के पास फेंककर भाग गया।
सुन्दर पैकेट खोलकर देखने लगा।
तब तक सिपाही आ गए। सुन्दर को सिपाहियों ने पकड़ लिया। और
डाँटते हुए पूछा– तुम कहाँ ले जा रहे थे यह ? कितने दिन से यह
काम कर रहे हो ? कहाँ से ले आते हो ?
पर सुन्दर केवल रो रहा था और कह रहा था कि मेरा एक दोस्त
फेंक कर गया है।
मैं कुछ भी नहीं जानता।
सिपाही उसे पकड़कर ले चले– कहाँ है तुम्हारा
दोस्त ? पर बहादुर तो भागकर कहीं छिप गया था।
सिपाही ने सुन्दर को जेल में बन्द कर दिया।
सुन्दर के तोते का पिंजड़ा उस जेल की कोठरी के सामने रख
दिया गया था। तोता खूब फड़फड़ा रहा था। जोर–जोर से बोल रहा
था।
सुन्दर का मन बेचैन हो गया।
वह सोचने लगा– यह कोठरी का
दरवाजा खुल जाता ,तो मैं बाहर जाता। अपने तोते को देखता। अपने माता–पिता को देखता।
अपने भाई–बहन, दोस्तों से मिलता।
सुन्दर का मन हुआ जेल के सींखचे तोड़ दे। वह सींखचे हिलाने
लगा।
उसने सामने देखा। उसका तोता भी पिंजरे के सींखचे तोड़ने की
कोशिश कर रहा था। आज सुन्दर भी जेल के पिंजरे में बन्द था।
आज सुन्दर को लगा कि मेरा मिट्ठू भी इसी तरह पिंजरे में
घूमता, चोंच मारता था। पर मैं समझता था कि वह खुशी से नाच रहा है।
आज पता चला कि
वह भी आजाद होने के लिए छटपटाता था। मेरी तरह अपने परिवार से, दोस्तों से मिलने
के लिए उसका मन व्याकुल था। तभी तो पेड़ के नीचे चिड़ियों की आवाज सुनकर वह और
फड़फड़ाता था।
सुन्दर दुखी हो रहा था।
तभी बहादुर को पकड़कर सिपाही ले आये। बहादुर ने मार
खाने पर बता दिया था कि मैंने ही सुन्दर
के पास पैकेट फेंका था।
सुन्दर को छोड़ दिया गया।
बाहर आते ही सुन्दर ने पहला काम किया– अपने तोते का
पिंजरा खोल दिया।
तोता फुर्र से उड़ गया।
फिर आकर सुन्दर के सिर पर बैठकर उछलने लगा। उसके हाथ पर बैठ
गया।
सुन्दर की आँखों में आँसू आ गए।
उसे लगा– तोता भी अपना दर्द कहता था। आज भी अपनी
प्रसन्नता प्रकट कर रहा है।
आजादी से बढ़कर कोई सुख नहीं है।
सुन्दर ने प्यार से तोते को सहलाया और उसे उड़ा दिया।
सम्पर्कः 45, गोखले मार्ग , लखनऊ
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