बचपन और बालिका शिक्षा के लिए नोबेल
कैलाश सत्यार्थी और मलाला को नोबेल के बहाने भारत-पाकिस्तान की शान्ति की साझा विरासत
- आकांक्षा यादव
बचपन एक ऐसी अवस्था है, जो हर किसी का भविष्य निर्धारित करती है। आज जरूरत इस बचपन को बचाने की है। बचपन का न तो
कोई जाति होती है, न धर्म और न ही इसे देशों की परिधि से बाँधा जा सकता
है। तभी तो नोबेल समिति ने जब इस साल के
लिए नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा की तो बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले
भारत के कैलाश सत्यार्थी और बालिकाओं की शिक्षा के लिए कार्य करने वाली पाकिस्तान
की सामाजिक कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई को संयुक्त रूप से चुना। बचपन बचाओ आन्दोलन
से जुड़े सत्यार्थी ने कइयों का बचपन बचाने के लिए कार्य किया वहीं मलाला ने बचपन के कटु अनुभवों और
हादसे का शिकार होने के बावजूद लड़कियों की शिक्षा के लिए अलख जगाई रखी। सत्यार्थी नोबेल
शान्ति पुरस्कार पाने वाले दूसरे और नोबेल पाने वाले सातवें भारतीय हैं। इससे पहले
मदर टेरेसा को यह अवॉर्ड मिला था। वहीं 17 साल की मलाला सबसे कम उम्र में यह
अवॉर्ड पाने वाली शख्सियत बनी हैं। यह अजब संयोग है कि भारतीय और पाकिस्तानी को
संयुक्त रूप से शान्ति के नोबेल की घोषणा ऐसे वक्त में हुई है ,जब दोनों देशों की
सीमा पर भारी तनाव है। पुरस्कार समिति के जूरी ने कहा, 'नार्वे की नोबेल समिति
ने निर्णय किया है कि 2014 के लिए शान्ति का नोबेल पुरस्कार कैलाश सत्यार्थी और
मलाला यूसुफजई को बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ उनके संघर्ष तथा सभी बच्चों की
शिक्षा के अधिकार के लिए उनके प्रयासों के लिए दिया जाए। नोबेल समिति ने कहा कि
एनजीओ 'बचपन बचाओ आंदोलन’चलाने वाले सत्यार्थी ने महात्मा गांधी की परंपरा को
बरकरार रखा और 'वित्तीय लाभ के लिए होने वाले बच्चों के गंभीर शोषण के
खिलाफ विभिन्न प्रकार के शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों का नेतृत्व किया है। ‘समिति ने कहा कि वह 'एक हिंदू और एक
मुस्लिम, एक भारतीय और एक पाकिस्तानी के शिक्षा और आतंकवाद के खिलाफ साझा संघर्ष में
शामिल होने को महत्त्वपूर्ण बिंदु मानते हैं।’
कैलाश सत्यार्थी का नोबेल के
लिए नाम भारत में भले ही कइयों को चौंका गया हो पर विदेशों में उनके कार्यों की
अक्सर चर्चा और सराहना होती रहती है। वस्तुत: यह पुरस्कार बच्चों के अधिकारों के
लिए उनके संघर्ष की जीत है। सत्यार्थी ने
नोबेल कमेटी का आभार व्यक्त करते
हुए कहा भीहैकि उसने आज के आधुनिक युग में भी दुर्दशा के शिकार लाखों बच्चों की दर्द को
पहचाना है। मूलत: मध्य प्रदेश के विदिशा जनपद के
निवासी कैलाश सत्यार्थी ने वर्ष 1983 में बालश्रम के खिलाफ ‘बचपन बचाओ’आंदोलन की स्थापना की
थी। उनका यह संगठन अब तक 80,000 से ज्यादा बच्चों को बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी और
बालश्रम के चंगुल से छुड़ा चुका है। गैर-सरकारी संगठनों तथा कार्यकर्ताओं की
सहायता से कैलाश सत्यार्थी ने हजारों ऐसी फैक्टरियों तथा गोदामों पर छापे पड़वाए, जिनमें बच्चों से काम
करवाया जा रहा था। मूलत: कैलाश सत्यार्थी एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे, जो 26 वर्ष की आयु में
बाल अधिकारों के लिए काम करने लगे। कैलाश सत्यार्थी ने श्रगमार्कश् (त्नहउंता) की
भी शुरुआत की, जो इस बात को प्रमाणित करता है कि तैयार कारपेट
(कालीनों) तथा अन्य कपड़ों के निर्माण में बच्चों से काम नहीं करवाया गया है। उनकी
इस पहल से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने में
काफी सफलता मिली। कैलाश सत्यार्थी ने विभिन्न रूपों में प्रदर्शनों तथा
विरोध-प्रदर्शनों की परिकल्पना और नेतृत्व को अंजाम दिया, जो सभी शान्तिपूर्ण
ढंग से पूरे किए गए। इन सभी का मुख्य उद्देश्य आर्थिक लाभ के लिए बच्चों के शोषण
के खिलाफ काम करना था।
पूरी दुनिया में सबसे कम
उम्र में नोबेल पुरस्कार हेतु चयनित होने
वाली मलाला यूसुफजई भी पाकिस्तान में बच्चों की शिक्षा से जुड़ी हैं। मलाला का
जीवन संघर्ष और साहस की दास्तां है। 17 वर्षीय मलाला तब सुर्खियों में आईं जब बालिकाओं की शिक्षा की हिमायत करने को लेकर
अक्टूबर, 2012 में पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर इलाके में स्कूल से घर जाते समय तालिबान
के बंदूकधारियों ने मलाला को गोली मार दी थी। हमले के बाद उन्हें विशेष इलाज के लिए ब्रिटेन भेजा गया था।
मलाला इस पुरस्कार को पाने वाली प्रथम
पाकिस्तानी और सबसे कम उम्र की होंगी। उन्होंने यह पुरस्कार उन बच्चों को समर्पित
किया जिनकी आवाज सुने जाने की जरूरत है।
मलाला की मासूमियत और शिक्षा के प्रति अनुराग को इसी से समझा जा सकता है कि
उन्हें भले ही दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए चुना गया हो, लेकिन उनकी मुख्य
चिंता आने वाले समय में उनकी स्कूली परीक्षाओं को लेकर बनी हुई है। उन्हें इस बात की चिंता है कि पुरस्कार ग्रहण
करने के वक्त की उनकी पढ़ाई छूट जाएगी। सबसे कम उम्र की नोबेल पुरस्कार विजेता के
रूप में मलाला ने बर्मिंघम के मकान में अपनी पहली शाम अपने पिता के साथ पाकिस्तानी
टीवी देखते हुए बिताया। उन्होंने कहा, ‘मुझे जुकाम हो गया है और अच्छा महसूस नहीं हो रहा है।’इस पाकिस्तानी किशोरी
के लिए दुनिया भर से संदेशों का अम्बार लग गया, जिन्हें तालिबान हमले के बाद मस्तिष्क की सर्जरी के
लिए विमान से बर्मिंघम लाया गया था, ताकि उनकी जान बच सके। मलाला ने कहा, ‘मैं बहुत सम्मानित
महसूस कर रही हूँऔर खुश हूँ। लोगों के प्रेम ने सचमुच में मुझे गोलीबारी से उबरने
में और मजबूत होने में मदद की। इसलिए मैं वह सब कुछ करना चाहती हूँ जिससे समाज को
योगदान मिल सके।’
मलाला इस बात से अवगत थीं कि
उन्हें नोबेल पुरस्कार मिल सकता है। पुरस्कार की घोषणा होने के बाद उनके रसायन
विज्ञान के क्लास में शुक्रवार को सुबह 10 बजे के बाद शिक्षक के आने की व्यवस्था
की गई थी। उन्होंने बताया, ‘हम ताँबे की इलेक्ट्रोलाइसिस के बारे में पढ़ रहे हैं। मेरे
पास मोबाइल फोन नहीं है, इसलिए मेरी शिक्षक ने कहा था कि अगर ऐसी कोई खबर होगी
तो वह आएगी। लेकिन सवा दस बज गए और वह नहीं आई। इसलिए मैंने सोचा कि मुझे पुरस्कार
नहीं मिला। मैं बहुत छोटी हूँ और मैं अपने काम के शुरुआती दौर में हूँ।’पर कुछ ही मिनट बाद
शिक्षक आ गईं और यह खबर दी। मलाला ने बताया, ‘मुझे लगता है कि मेरे
शिक्षक मुझसे ज्यादा उत्साहित थे। उनके चेहरों की मुस्कान मुझसे ज्यादा थी। मैं
फिर अपने भौतिक विज्ञान की क्लास के लिए गई।’
एक तरफ बचपन और बालिका शिक्षा
को लेकर दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार, वहीं दोनों देशों के सम्बन्धों की बिसात पर कुछ लोग
इसे कूटनीतिक नजरिये से भी देखते हैं। पर इसके बावजूद सीमा पर बढ़ते तनाव के बीच नोबेल शान्ति पुरस्कार
विजेता कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई दोनों देशों के बीच मजबूत सम्बन्ध बनाने के लिए संयुक्त
रूप से काम करने को राजी हैं। मलाला ने कहा, ‘हम साथ काम करेंगे और
भारत एवं पाकिस्तान के बीच मजबूत सम्बन्ध बनाने की कोशिश करेंगे। लड़ाई के बजाय प्रगति और
विकास के लिए काम करना जरूरी है।’फिलहाल लोगों की निगाहें एक बार फिर से बचपन पर हैं और
साथ ही भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों पर। सत्यार्थी और मलाला की संयुक्त मुहिम इसमें
कितना रंग लाएगी, यह तो वक्त ही बताएगा पर इन दोनों को सम्मान मिलने से
एक बार फिर लोगों का ध्यान बाल श्रम, बाल दासता, बच्चों के यौन शोषण, बालिका शिक्षा जैसे
अहम मुद्दों पर गया है। वाकई आज जरूरत बचपन को सहेजने की है और यही इस पुरस्कार की
सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।
सम्पर्क: टाइप 5 निदेशक बंगला, जी.पी.ओ कैम्पस, सिविल लाइन्स, इलाहाबाद (उ.प्र.)
211001,kk_akanksha@yahoo.com, http://
shabdshikhar.blogspot.in
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