गुटके पर प्रतिबंध-
कानून के साथ जन अभियान भी ज़रूरी
- भारत डोगरा
हाल के वर्षों में तम्बाकू वाले गुटके या पान मसाले का सेवन खूब बढ़ा
है। इसके सेवन से अनेक स्वास्थ्य समस्याएँ होती हैं। इनके अधिक समय तक सेवन से मुँह
के कैंसर का खतरा बहुत बढ़ जाता है। इनके कारण प्लास्टिक के कचरे में भी भयंकर
वृद्धि हुई है।
धूम्रपान करने वालों को धूम्रपान न करने वालों की अपेक्षा फेफड़ों के
कैंसर की संभावना 15 गुना अधिक होती है। फेफड़ों के कैंसर के
अतिरिक्त और भी कई तरह के कैंसर धूम्रपान से जुड़े हैं।
धूम्रपान से हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है। धूम्रपान से
ब्रोंकाइटिस जैसे गंभीर रोग भी हो सकते हैं। धूम्रपान से पेट का अल्सर हो सकता है
और अल्सर पहले से हो तो गंभीर रूप ले सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनुमान लगाया था कि विश्व में एक वर्ष में
तीस लाख मौतें धूम्रपान से जुड़े रोगों के कारण होती हैं।
जो लोग कैंसर जैसे जानलेवा रोग के खतरे को नजरअंदाज कर धूम्रपान करते
रहे हैं, लगता है कि अब निष्क्रिय धूम्रपान के नए खतरे पता
चलने के बाद उन्हें भी अब धूम्रपान छोडऩा पड़ेगा। अपने स्वास्थ्य से तो कोई
खिलवाड़ कर सकता है, पर अपने बच्चों या पत्नी या परिवार के अन्य
सदस्यों के स्वास्थ्य से कोई खिलवाड़ नहीं करना चाहेगा। निष्क्रिय धूम्रपान के
खतरों की यही विशेषता है कि ये धूम्रपान करने वालों को नहीं उनके आसपास बैठे हुए
अन्य व्यक्तियों को प्रभावित करते हैं।
जब कोई व्यक्ति सिगरेट पीता है तो उसमें से लगभग तीन-चौथाई धुआँ बाहर
निकलता है व सिर्फ़ एक चौथाई धुआँ ही
सिगरेट पीने वाला व्यक्ति ग्रहण करता है। इस एक-चौथाई धुएँ का भी लगभग आधा हिस्सा
वह प्राय: बाद में बाहर ही छोड़ देता है। इस तरह लगभग 85
प्रतिशत धुआँ बाहर छोड़ा जाता है जो फिल्टर किया हुआ भी नहीं होता है। यह धुआँ पास
बैठे लोगों तक पहुँचता है और इस धुएँ में हानिकारक पदार्थ और भी ज़्यादा होते हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका के विख्यात स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. डेविड वर्नर
ने नशीले पदार्थों पर अपने एक बहुचर्चित भाषण में बताया था कि संयुक्त राज्य
अमेरिका में प्रति वर्ष 50,000 मौतें
निष्क्रिय धूम्रपान के कारण होती हैं।
इसी देश के स्वास्थ्य व मानवीय सेवाओं के सचिव लुई सुलिवान ने हाल ही
में अनुमान लगाया है कि यहाँ बच्चों की जितनी मौतें होती हैं, उनमें
से 10 प्रतिशत मौतों का कारण गर्भावस्था के दौरान इन बच्चों की माँ के
द्वारा धूम्रपान करना या किसी न किसी रूप में तम्बाकू का सेवन था।
गुटके से जुड़ी उक्त दोनों समस्याओं को देखते हुए सरकारी स्तर पर कुछ
कार्रवाई भी हुई है। पहले तो कुछ स्थानों पर सिर्फ़ प्लास्टिक पाउच की पैकिंग पर
प्रतिबंध लगा, पर फिर यह समझ बनी कि इससे तो केवल समस्या के एक
पक्ष का ही समाधान होगा। अत: हरियाणा व राजस्थान जैसे राज्यों में गुटके पर प्रतिबंध
लगाया गया। इस समय पाँच-छह राज्य इस तरह
गुटके या खाने-चबाने के तम्बाकू पर रोक लगाने की दिशा में आगे बढ़ चुके हैं।
दक्षिण राजस्थान में सामाजिक कार्यकत्र्ताओं की एक कार्यशाला में यह
अनुमान व्यक्त हुआ कि 1500 की आबादी के एक औसत गाँव में औसतन लगभग चार सौ
व्यक्ति गुटके का सेवन करते हैं। गुटके पर प्रति व्यक्ति प्रति दिन के अनुमानित
खर्च दस रुपए के हिसाब से एक दिन में पूरे गाँव में 4000 रुपए
(सालाना 14 लाख रुपए) गुटके पर खर्च होते हैं। सिगरेट, बीड़ी
के बारे में अनुमान लगाया गया कि इन पर सालाना 12 लाख रुपए खर्च होते हैं।
चर्चा में उभरा कि राजस्थान सरकार ने गुटके पर जो प्रतिबंध लगाया है
उससे इसकी खपत बाद में चाहे रुके पर अभी तो यह ब्लैक में बिकने लगा है।
इन समस्याओं का समाधान दो स्तरों पर हो सकता है। पहला कि पूरे देश में
एक साथ गुटके पर प्रतिबंध लगाया जाए। दूसरा प्रयास यह होना चाहिए कि मात्र कानूनी
प्रतिबंध से संतुष्ट न होकर तम्बाकू के सेवन के विरुद्ध एक जन अभियान चलाया जाए
ताकि एक माहौल तैयार हो जिसमें लोग तम्बाकू का सेवन छोडऩे को स्वयं प्रेरित हों। तम्बाकू
के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही व जन अभियान
दोनों प्रयास साथ-साथ चलने चाहिए। केवल एक प्रयास से बात नहीं बनेगी। (स्रोत
फीचर्स)
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